Saturday 29 November 2014

छत्तीसगढ़ी दिवस पर संगोष्ठी संपन्न...

कालिन्दी शिक्षा महाविद्यालय लालपुर, रायपुर में छत्तीसगढ़ी दिवस के अवसर पर शुक्रवार 28 नवंबर को अपरान्ह 1 बजे से संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संस्था के प्राचार्य डॉ. सुखदेवराम साहू *सरस* की अध्यक्षता एवं रायपुर नगर निगम के उपायुक्त डॉ. जे.आर. सोनी के मुख्यआतिथ्य में आयोजित उक्त संगोष्ठी में सुशील भोले छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर, सुधा वर्मा छत्तीसगढ़ी परंपरा पर, दिनेश चौहान छत्तीसगढ़ी जनउला पर अपने-अपने विचार रखे। इसके अतिरिक्त संस्था के छात्र-छात्राओं ने भी अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां दी।






Monday 24 November 2014

संगवारी राजा....














आजा रे संगवारी राजा, 
लेके आजा गंड़वा बाजा
संग म घोड़ा-गाड़ी-बराती, 
मइके के संग छोड़ाजा.....

फुगड़ी बिल्लस के दिन परागे
खोखो डड़इय्या घलो झुपागे
अब तो मोहरी के धुन सुनाजा... आजा रे...

भरे जाड़ म कातिक नहावन
महादेव ल तोर बर मनावन
अब तो फल पाये के आरो देवाजा... आजा रे...

तीजा उपास घलो रहि जावन
सब के संग म फुलेरी सजावन
वोकरो महिमा के परसाद चिखाजा... आजा रे...
(फोटो-गुजरात हैंडीक्राफ्ट आर्ट से साभार)

सुशील भोले
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com

Monday 17 November 2014

'भोले के गोले" म छूटत गियान के गोला



ये पुस्तक ह पंचमिझरा साग के सुवाद देथे। ये साग के अपन सुवाद होथे। हमर बारी बखरी के हर फर के मान रखे जाथे, एक-एक, दू-दी ठन फर ल मिंझार के अइसना साग बनाये जाथे के मनखे ह अंगरी चाटत रहि जाथे। इही हाल ये 'भोले के गोले" के आय। अपन हर विधा ल सकेल के सुशील भोले ह गोला फेंके हावय। बियंग म बियंग के गोला हावय, तव लेख म सुग्घर विचार के संग-संग पीरा के गोला हावय। 'सुरता" म अपन सुरता के गोला फेंके हावय त कहिनी म 'मन के सुख" के गोला बांटत हावय।

ये संकलन म एके ठन कहिनी हावय फेर कहिनी के संदेश गंज अकन हावय। एक नारी के विकास यात्रा जेमा बाल-विवाह के बाद पढ़े-लिखे पति के छोडऩा अउ रेजा के काम ले जिनगी शुरू करके झाड़ू-पोंछा, फेर नर्स ओखर बाद पढ़-लिख के एक डॉक्टर बनना। ये अंजलि के कहिनी आय जेन अंजलि ल बाद म सरकार ले 'नारी शक्ति सम्मान" मिलथे। ये कहिनी के एक पक्ष आय जिहां अंजलि मेहनत करथे। फेर अपन मन ल कइसे संतुष्ट करय? दूसर पक्ष आय के अपन संतुष्टि बर ओ ह संगीत ल चुनथे। काबर के संगीत आत्मा ल परमात्मा ले जोरथे। ये ह अंजली के दूसर पक्ष आय। कहिनी के अंत मन ल छू लेथे- 'तन के सुख के संगे-संग वो ह लोगन ल मन के सुख घलो बांटथे।"

'नवा बछर के नवा आस" लेख म सुशील भोले ह छत्तीसगढ़ ल दस बछर के लइका के रूप म देखत हावय अउ काहत हावय के हमर ददा-बबा मन जेन सपना देखे हावंय ओ रूप ल गढऩा हे। अपना भाखा, साहित्य, कला संस्कृति, संस्कार ल बनाना हे। लेखक अपन जिम्मेदारी के एहसास करावत हावय। 'छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति" के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के तीज तिहार ल छत्तीसगढ़ के संदर्भ म जेन लेखन आज होवत हावय ओखर तालमेल, हमर संस्कृति म नई दिखय। मूल संस्कृति दूरिहावत हावय। ये लेख हमर संस्कृति के पूरा जानकारी देथे।

'अस्मिता के आत्मा संस्कृति" आज दूसर प्रदेश ले आये मनखे मन के संस्कृति ल छत्तीसगढ़ के संस्कृति के रूप म लिखत-पढ़त हावयं। ये लेख म लेखक ल एक आस हावय के इंटरनेट के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी ह चारोंखुंट पहुंचगे हावय। अवइया बेरा म छत्तीसगढ़ भासा चमकही। ये छत्तीसगढ़ी भासा के व्याकरण 125 बछर पहिली लिखागे रहिस हे। हीरालाल चन्नाहू 'काव्योपाध्याय" के लिखे व्याकरन के अंग्रेजी अनुवाद जार्ज ग्रियर्सन ह 1890 म करे रहिस हे। फेर ये ह आठवीं अनुसूची म काबर नई आत हावय?

'हीरा गंवा ये बनकचरा" म दू बात हावय एक तो इहां के संस्कृति सतयुग के संस्कृति आय। शिव उपासना, बूढ़ादेव के संस्कृति इहां रचे-बसे हावय न कि राम या कृष्ण। दूसर बात आय के इहां के हीरा बेटा याने जेन असल म छत्तीसगढ़ के लेखक कवि हावय, जेन ल बनकचरा म फेंके गे हावय, लुका देय गे हावय तेन ल खोज के आगू म लाना है। 'तभे आथे निखार" म छत्तीसगढ़ी पत्र-पत्रिका के जानकारी देय गे हावय। येखर संग-संग लेखक के कहना हावय के देवनागरी लिपि के सबो वर्णमाला ल अपना के शुद्ध भासा बनाना चाही। येखर ले देवनागरी पढ़इया मनखे मन येला पढ़के समझ सकंय अउ आत्मसात कर सकयं। ये सब्बो लेख छत्तीसगढ़ी भाषा बर लिखे गे हावय। ये स्तरीय लेख ल पढ़के सब ल अपन भासा के प्रति जागरुकता आही।

सुशील भोले ह बियंग विधा म घलो कलम चलाय हावय। 'गोल्लर ल गरुवा सम्मान" म सम्मान अऊ पुरस्कार ल चना-फुटेना असन बांटे जाथे। तेखर ऊपर बियंग हे। 'धोंधो बाई" में कवियत्री के माध्यम ले बियंग करे गे हावय। आजकल आयोजन मन रूप-रंग अउ देह, पांव ल जादा देखथे। जेन जतका जादा फेशन करके रहिथे, वो वोत के बड़े कवियत्री। 'सम्मान के सपना" म लेखक ह छत्तीसगढ़ के सच्चाई ल बियंग के माध्यम ले उजागर करे हावय। राज सरकार के अलंकरण ले ले के केन्द्र सरकार के पद्य सम्मान तक के सपना म बिधुन होगे हावयं। बपरा मन अपन-अपन परिचय के कागद धरे ये गली ले वो गली, सिफारिश तक किंजर-किंजर के साड़ ले सोक-सोकहा बानी के पठरू कस होगे हावय। 'दीया तरी अंधियार" म घुघुवा के माध्यम ले बड़े-बड़े नेता व्यापारी के नौकर के सुरता आगे। आखिर उंखर देवारी कइसे होथे। ये बियंग दिल ल छू लेथे। बड़े-बड़ेे बिषय ल बियंग के माध्यम ले सुशील भोले ह आसान कर दे हावय।

'पुरखा मन के सुरता के परब पितर पाख", 'पहिली सुमरनी तोर" म गनेस के जानकारी, 'गुथौं हो मालिन माई बर फूल गजरा" म छत्तीसगढ़ के संस्कृति म जंवारा (नवरात) के पूरा जानकारी हावय। अमरित पाए के परब शरद पुन्नी म समुद्र मंथन ले निकले विष अउ अमरित के संग-संग बस्तर के दसरहा के जम्मो जानकारी हावय जेन इंहा के जुन्ना संस्कृति ल उजागर करथे। छत्तीसगढ़ म कार्तिक नहाना अउ गौरा-गौरी के बिहाव, सुवा नाच के जानकारी के संग-संग 'एक पतरी रैनी-बैनी" म गौेरी-गौरा के बिहाव के पूरा जानकारी हावय। मेला मड़ई के जानकारी के संग-संग राजिम म कुलेश्वर महादेव के जगह राजीव लोचन के नांव ले कुंभ मेला भरना इहां के संस्कृति संग खिलवाड़ करना आय। हर लेख म लेखक के छत्तीसगढ़ के भासा, इतिहास, संस्कृति ऊपर पीरा दिखाई देथे।

'सुरता" म नाचा के पुरोधा मदन निषाद, पंडवानी पुरोधा नारायण प्रसाद वर्मा, बिसंभर यादव 'मरहा" के संग-संग सुराजी वीर अनंतराम बर्छिहा के जानकारी देय हावय। अंत म हमर मूल परब के जानकारी देय गे हे। येमा तीज तिहार के जतका जानकारी देय गे हावय, ओला विस्तृत समझे जा सकथे। आज हमर छत्तीसगढ़ के गांव-गांव तक करवा चौथ, संतान सप्तमी पहुंचगे हावय। हमर पूजा पाठ के तरिका बदल गे हावय। आज धान्य लक्ष्मी के पूजा के जगह सब धन लक्ष्मी के पूजा करथें। ऊंखर बर हमर परब ल जानना बहुत जरूरी हावय।

ये पुस्तक म भासा संस्कृति के जानकारी ल देय के कारन पठनीय अउ संग्रहनीय हावय। येखर भासा सुग्घर अउ सरल हावय। हाना गीत के संग लेख के प्रस्तुति रोचक बनगे हावय। मूल संस्कृति के जानकारी देय बर सुशील भोले ल बधाई।

किताब - भोले के गोले
लेखक - सुशील भोले
समीक्षक -सुधा वर्मा
प्रकाशक- वैभव प्रकाशन, रायपुर
मूल्य- 100 रूपये

Sunday 16 November 2014

छत्तीसगढ़ी दिवस पर संगोष्ठी...

कालिन्दी शिक्षा महाविद्यालय लालपुर, रायपुर में छत्तीसगढ़ी दिवस के अवसर पर शुक्रवार 28 नवंबर 2014 को अपरान्ह 1 बजे से संगोष्ठी का आयोजन किया गया है।

संस्था के प्राचार्य डॉ. सुखदेवराम साहू *सरस* ने जानकारी दी है कि रायपुर नगर निगम के उपायुक्त डॉ. जे.आर. सोनी के मुख्यआतिथ्य में आयोजित उक्त संगोष्ठी में सुशील भोले छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर, सुधा वर्मा छत्तीसगढ़ी परंपरा पर, दिनेश चौहान छत्तीसगढ़ी जनउला पर, शीतल शर्मा छत्तीसगढ़ी सिनेमा पर एवं चंद्रशेखर चकोर छत्तीसगढ़ी लोकखेल पर अपना वक्तव्य देंगे।

इसके अतिरिक्त संस्था के छात्र अपनी विभिन्न प्रस्तुति देंगे। ज्ञात रहे इस दिन महाविद्यालय के समस्त शिक्षक एवं छात्र-छात्राएं छत्तीसगढ़ी में ही बातचीत एवं कार्य करते हैं।

Saturday 15 November 2014

छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़ के पत्रकार...

छत्तीसगढ़ राज्य की जनभाषा छत्तीसगढ़ी को प्रदेश स्तर पर *राजभाषा* का दर्जा मिले लगभग 7 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन अभी भी यह यहां की शिक्षा और राजकाज की भाषा नहीं बन पायी है। राज्य शासन द्वारा राजभाषा आयोग का जरूर गठन किया गया है, लेकिन अधिकार और संसाधन की कमियों के कारण उससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहा है।

इस संबंध में जब भी राज्य शासन के प्रतिनिधियों से चर्चा की जाती है, तो वे केन्द्र सरकार पर ठिकरा फोड़ते हुए कह देते हैं जब तक केन्द्र इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं करेगा, तब तक हम भी कुछ नहीं कर सकते।

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ने अपने स्तर पर केन्द्र शासन से आठवींं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को शामिल करने के लिए काफी प्रयास किया है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी  अपने-अपने स्तर के अनुरूप बहुत कुछ किये हैं और कर रहे हैं। लेकिन मेरा इस प्रदेश के समस्त पत्रकारों से प्रश्न है कि वे यहां की जनभाषा के लिए क्या कर रहे हैं, आज तक क्या किये हैं? क्या ये अपने-अपने समाचार पत्र, पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर छत्तीसगढ़ी के लिए अलग से पृष्ठ, कार्यक्रम और समय आरक्षित किये हैं?  क्या ऐसा कर सकते हैं? प्रदेश और केन्द्र सरकार पर   इसके लिएनियमित रूप से दबाव बना सकते हैं?      

लोकतांत्रिक व्यवस्था में पत्रकारों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस (28 नवंबर) के अवसर पर  मेरा प्रदेश के समस्त पत्रकार बंधुओं से आग्रह है कि वे छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अुनसूची में शामिल करवाने के लिए अपने-अपने स्तर पर ईमानदार प्रयास करें। छत्तीसगढ़ी को जनभाषा के साथ ही साथ संवैधानिक भाषा, राजकाज और शिक्षा की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दें।

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

Wednesday 12 November 2014

लोक संस्कृति के ढेलवा-रहचुली मेला- मड़ई



छत्तीसगढ़ के संस्कृति म मेला-मड़ई मनके घलोक महत्वपूर्ण स्थान हे। मड़ई के शुरूआत जिहां देवारी ले होथे, उहें मेला के आयोजन ह कातिक पुन्नी ले होथे, जेन ह महाशिवरात्रि (फागुन अंधियार तेरस) तक चलथे। छत्तीसगढ़ के भीतर जतका भी सिद्ध शिव स्थल हे, उन सबो म मेला भराथे जेमा राजिम, सिरपुर, शिवरीनारायण, रायपुर के महादेवघाट आदि मन पूरा प्रदेश भर म परसिद्ध हें जिहां चारों मुड़ा के मनखे सैमो-सैमो करत रहिथें। एकर छोड़े अउ कतकों जगा हे जिहां स्थानीय स्तर म अलग-अलग तिथि म मेला आयोजन होवत रहिथे।

खेत म खड़े धान के सोनहा लरी जब बियारा अउ बियारा ले मिसा- ओसा के घर के माई कोठी म खनके लगथे, तब ये मेला-मड़ई के शुरूआत होथे। एकरे सेती कतकों लोगन एला कृषि संस्कृति के अंग मानथें। फेर जिहां तक देखब म आथे के एकर संबंध कोनो न कोना किसम ले अध्यात्म संग जुड़े होथे। छत्तीसगढ़ आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म भगवान शिव के उपासक रहे हे, एकरे सेती इहां जतका भी बड़का मेला के आयोजन होथे, जम्मो ह सिद्ध शिव स्थल म ही होथे। पहिली ए अवसर ए बधई(पूजवन) देके घलोक चलन रिहीसे। फेर जइसे-जइसे लोगन म शिक्षा के प्रसार होवत जावत हे वइसे-वइसे अब मरई-हरई के रीत ह कमतियावत जावत हे। बिल्कुल वइसने जइसे पहिली जंवारा बोवइया वाले मन अनिवार्य रूप ले बधई देवयं, फेर अब उहू मन सेत (सादा, बिन पूजवन के) जंवारा बो लेथें तइसने मेला-मड़ई म घलोक लोगन अपन मनौती ल सिरिफ नरियर आदि फल-फलहरी म भगवान ल मना लेथें। फेर कतकों मनखे अभी घलोक पूजवन के रिवाज ल धरे बइठे हें।
मेला संग जुड़े ये आध्यात्मिक रूप ह ए बात के जानबा देथे के एकर संबंध सिरिफ खेती-किसानी वाला नहीं भलुक आध्यात्मिक संस्कृति संग घलोक हे। फेर एकर गलत रूप म व्याख्या के संगे-संग एकर आयोजन के कारन अउ रूप ल घलोक बदले जावत हे जेला कोनो भी रूप म अच्छा नइ केहे जा सकय। उदाहरण के रूप म छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाला राजिम के प्रसिद्ध पारंपरिक मेला जेला अब कुंभ के रूप म प्रचारित करे जावत हे तेला ले सकथन।

मेला के कोनो भी बड़का आयोजन ल कुंभ के संज्ञा तो दिए जा सकथे फेर वोकर कारन ल बदलना ह अच्छा बात नोहय। छत्तीसगढ़ के संगे-संग देश म भरने वाला जम्मो मेला ह सिरिफ शिव स्थल म ही भरथे, एकरे सेती नानपन ले ये सुनत आये रहे हन के राजिम मेला ह कुलेश्वर महादेव के नांव म भराथे। फेर अब जब ले एकर नांव ल कुंभ कर दिए गेहे तब ले एकर कारन ल राजीव लोचन के नांव म भरने वाला बताए जाथ्ेा। एहर इहां के मूल संस्कृति के संग खिलवाड़ आय जेला कोनो भी रूप म माफी नइ करे जा सकय। सरकार अउ कथित संस्कृति मर्मज्ञ मनला अपन अइसन गलती ल सुधारना चाही।

राजिम मेला के संगे-संग इहां पंचकोसी यात्रा के महत्व घलो बताये जाथे, जेमा राजिम के संगम म स्थित कुलेश्वर महादेव के संगे-संग चंपेश्वर महादेव (चांपाझार या चम्पारण्य), बम्हनिकेश्वर महादेव (बम्हनी), फणिकेश्वर महादेव (फिंगेश्वर), अउ कमरेश्वर महादेव (कोपरा) के एके संग दरसन करे के रिवाज हे, तभे ये राजिम मेला के दरसन लाभ ह पूरा छाहित होके मिलथे।

मेला चाहे कहूंचो के होवय, वोकर रूप ह बड़का होवय ते छोटका होवय। फेर जब तक वोमा ढेलवा, रहचुली अउ कुसियार के कोंवर-कोंवर डांग नइ दिखय तब तक मन नइ भरय। लोगन होत मुंदरहा मेला तीर के नंदिया-नरवा म नहा-धो के भगवान भोलेनाथ के पूजा-पाठ करथें। तेकर पाछू फेर चारों-मुड़ा कटाकट भराये मेला (बाजार) ल घूमथें- फिरथें। रंग-रंग के जिनिस बिसाथें। अउ जब मन भर के ढेलवा-रहचुली झूल लेथें, त फेर, कांदा, कुसियार, ओखरा झड़कत घर लहुटथें।
(फोटो-उदंती.काम, और गूगल महाराज से)

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
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Tuesday 11 November 2014

वंदे मातरम...











घर-घर ले अब सोर सुनाथे वंदे मातरम
लइका-लइका अलख जगाथें वंदे मातरम...
देश के पुरवाही म घुरगे वंदे मातरम
सांस-सांस म आस जगाथे वंदे मातरम
रग-रग म तब जोश जगाथे वंदे मातरम....
उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम मिलके गाथें
कहूं बिपत आये म सब खांध मिलाथें
तब तोर-मोर के भेद भुलाथे वंदे मातरम....
हितवा खातिर मया लुटाथे वंदे मातरम
बैरी बर फेर रार मचाथे वंदे मातरम
अरे पाक-चीन के छाती दरकाथे वंदे मातरम...
सुवा-ददरिया-करमा धुन म वंदे मातरम
भोजली अउ गौरा म सुनथन वंदे मातरम
तब देश के खातिर चेत जगाथे वंदे मातरम...
सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Saturday 8 November 2014

कब होबो सजोर...












सुन संगी मोर, कब होबो सजोर
आंखी ले झांकत हे, आंसू के लोर....
काला अच्छे दिन कहिथें, मन मोर गुनथे
तिड़ी-बिड़ी जिनगी ल, मोती कस चुनथे
किस्मत गरियार होगे, ते लेगे कोनो चोर.....
सरकार तो देथे, आनी-बानी के काम
बीच म कर देथे फेर, कोन हमला बेकाम
मुंह के कौंरा नंगाथे, देथे कनिहा ल टोर....
रंग-रंग के गोठ होथे, रंग-रंग के बोल
आगे सुराज कहिके, पीटत रहिथें ढोल
फेर बरही दीया सुख के, कब होही अंजोर...
सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
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Tuesday 4 November 2014

नरेन्द्र वर्मा की किताबों का विमोचन...

वरिष्ठ साहित्यकार नरेन्द्र वर्मा की चार किताबों का विमोचन रविवार 2 नवंबर 2014 को भाठापारा के शा. उ. मा. शाला के सभागार में गरिमामय माहौल में संपन्न हुआ। स्थानीय विधायक शिवरतन शर्मा के मुख्य आतिथ्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं सृजनगाथा डॉट कॉम के संपादक जय प्रकाश मानस की अध्यक्षता में 1-भाटापारा के साहित्यिक जातरा, 2- तब अउ अब, 3- बइहा (खलील जिब्रान की रचनाओं का छत्तीसगढ़ी अनुवाद) एवं 4- थरहा नामक किताबों का विमोचन हुआ।
इस अवसर पर सुशील भोले, संजीव तिवारी, चेतन भारती, रवीन्द्र गिन्नौरे, बलदेव भारती, डॉ. सुधीर पाठक, डॉ. नरेश वर्मा, चोवाराम बादल आदि विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। विमोचन समारोह के पश्चात काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।





Monday 3 November 2014

राष्ट्रभाषा-राष्ट्रसंस्कृति

इस देश की हर भाषा राष्ट्रभाषा है, हर संस्कृति राष्ट्रसंस्कृति है। इन सभी का संरक्षण हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।

*सुशील भोले*
दैनिक नवप्रदेश के 5 नवंबर 2014 के अंक में मेरा फेसबुक वाल का पोस्ट.....