अब्बड़ दिन म दिखे हावय एसो सुघ्घर झड़ी
नंदिया-नरवा बदत हावंय आपस म देखौ गड़ी
चौमासा के ए बरसा ल रूंध-बांध के छेंके परही
तभे हमर जिनगी म जुड़़ही खुशहाली के लड़ी
जोगी के रूप धरे रावन सीता ल हर के ले जाथे
सत्ता मद म बूड़े़ बाम्हन धरम-करम बिसर जाथे
कइसे मोह बनाए हावय अहंकार के मोर-मुकुट के
बड़े-बड़े विद्वान घलो मन लंदर-फंदर म पर जाथे