Monday 21 May 2018

लोक गीत में अध्यात्म का गूढ़ अर्थ...

☺हमारे लोक साहित्य अध्यात्म की अनुपम धरोहर हैं। यहां का कण-कण आध्यात्मिक गौरव से लबालब है, और दुखद है हम अपने इस समृद्ध कटोरा को अनदेखी कर नौटकीबाजों के तमाशे देखने धार्मिक सांस्कृतिक पलायन करते जा रहे हैं। हमारा "आदि धर्म जागृति संस्थान" का अभियान ऐसे गौरवशाली अतीत और समृद्धि से अपनों को अवगत कराने का एक नन्हा सा प्रयास है।☺
आइए देखें एक लोक गीत में अध्यात्म का गूढ़ अर्थ....
-सुशील भोले-
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1- ( अटकन )
अर्थ-
जीर्ण शरीर हुआ जीव जब भोजन उचित रूप से निगल तक नहीँ पाता अटकने लगता है--
2- ( बटकन )
अर्थ-
मृत्युकाल निकट आते ही जब पुतलियाँ उलटने लगती हैं-
3- ( दही चटाकन )
अर्थ -
उसके बाद जब जीव जाने के लिए आतुर काल में होता है तो लोग कहते हैँ गंगाजल पिलाओ
4- ( लउहा लाटा बन के काटा )
अर्थ-
जब जीव मर गया तब श्मशान भूमि ले जाकर लकड़ियों से जलाना अर्थात जल्दी जल्दी लकड़ी लाकर जलाया जाना
6- ( तुहुर-तुहुर पानी गिरय )
अर्थ-
जल रही चिता के पास खड़े हर जीव की आँखों में आंसू होते हैं
7- ( सावन में करेला फुटय )
अर्थ-
अश्रुपूरित होकर कपाल क्रिया कर मस्तक को फोड़ना |
8- ( चल चल बेटा गंगा जाबो )
अर्थ-
अस्थि संचय पश्चात उसे विसर्जन हेतु गंगा ले जाना ।
9- ( गंगा ले गोदावरी जाबो )
अर्थ-
अस्थि विसर्जित कर घर लौटना ।
10- ( पाका-पाका बेल खाबो )
अर्थ-
घर में पक्वान्न (तेरहवीं अथवा दस गात्र में) खाना और खिलाना |
11- ( बेल के डारा टुटगे )
अर्थ-
सब खा-पीकर अपने-अपने घर चले गए |
12- ( भरे कटोरा फुटगे )
अर्थ-
उस जीव का इस संसार से नाता छूट गया ।
13- ( टुरी-टुरा जुझगे )
अर्थ-
दशकर्म के बाद सब कुछ भुलकर सब कोई अपने-अपने काम धंधा में लग गये |
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यह प्रतीकात्मक बाल गीत इतना बड़ा सन्देश देता रहा और मुझे अर्थ समझने में इतने वर्ष लग गए।

सबो काम सुलट नइ पावय, ...

सबो काम सुलट नइ पावय, बस पइसा के ढेरी ले
कतकों बुता सिरिफ सिध परथे देव-मंदिर के फेरी ले
जानव-बूझव कइसे होथे जब भाग के खेल-तमाशा
कर्म के कोठी भरे रहिथे तभो मिलत जाथे निराशा

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो. 9826992811

सबो काम सुलट नइ पावय, बस पइसा के ...

सबो काम सुलट नइ पावय, बस पइसा के ढेरी ले
कतकों बुता सिरिफ सिध परथे देव-मंदिर के फेरी ले
जानव-बूझव कइसे होथे जब भाग के खेल-तमाशा
कर्म के कोठी भरे रहिथे तभो मिलत जाथे निराशा
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा . 9826992811

Sunday 13 May 2018

परसा के पान म कांचा...

























परसा के पान म कांचा आमा अउ नून
आ झपकन खाबो झन एती-तेती गुन
दिन आत हे झांझ के ए ताप ले बचाही
कतकों रोग-राई ल दवई बन के भगाही

-सुशील भोले-9826992811
संजय नगर, रायपुर

बिन घिसाए लगय नहीं...

बिन घिसाए लगय नहीं माथ म ककरो चंदन
न होवय पूरा एकर बिन बाबा के पूजा-वंदन
अइसनेच होथे जिनगी म घलो महके खातिर
जेन धरथे संघर्ष के रद्दा होथे वोकरे अभिनंदन

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

घर-बाहिर दूनोंच के जिम्मा..























घर-बाहिर दूनोंच के जिम्मा अब बेटी के होथे
दाई-ददा दूनों के आसरा वोकरे खांध संवरथे
अब घर के खातिर बेटा जरूरी हे कोन कहिथे
जब सरग निसैनी बन बेटी चतवारे रद्दा बनथे

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

आज जोहीं ल खीर खवाहूं...






















आज जोहीं ल खीर खवाहूं लेथंव चांउर निमार
पुन्नी के चंदा संग रतिहा होही फेर उजियार
काम-कमई तो लगे रहिथे ए जिनगी के मेला म
कभू संवांगा कर के उनला परोस देथंव दुलार

-सुशील भोले
मो. 9826992811

"आदि धर्म जागृति संस्थान" काबर...?

आदि धर्म जागृति संस्थान काबर...?
शोषण के बहुत अकन रूप होथे। हमन छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन संग जुड़े राहन त राजनीतिक शोषण के बात करन। आने-आने राज ले आए लोगन हमर शासन-प्रसाशन के अधिकार म बइठगे हवंय अउ हमर अस्तित्व के, हमर चिन्हारी के संहार करत हें, हमर मुंह के कौंरा ल नंगावत हें।

तब ये सपना देखे गे रिहिसे के जेन दिन छत्तीसगढ़ ह अलग राज के रूप म अपन स्वतंत्र चिन्हारी बना लेही, वो दिन इहां के जम्मो मूल निवासी मन के हाथ म इहां के जम्मो राज-काज आ जाही। तहां ले फेर जम्मो मूल निवासी मन के दिन बहुर जाही। इहां के बोली-भाखा म जम्मो काम-काज होही, पढई-लिखई होही, तब इहेंच के लइका मन जम्मो किसम के नौकरी-चाकरी म घलो अगुवा बन के बइठहीं।

आज दू दशक ले आगर बेरा होगे हावय, फेर ए कोरी भर के बछर म घलो मूल निवासी वर्ग के कोरी भर मनखे घलोक ऊँचहा अउ ठोसहा पद म बइठे नइ दिखंय।उल्टा ये देखब म आवत हे, के जेकर मन के गुलामी ले मुक्ति खातिर राज आन्दोलन के नेंव रखे गे रिहिसे, तेकरेच मन के संख्या दिनों-दिन बाढ़तेच जावत हे।

गुनान करव, एकर मूल कारन का आय? काबर आने क्षेत्र ले आए लोगन के पिछलग्गू बने ले हम बांचे नइ पावत हन? कम पढे़-लिखे मन के तो बात ल छोड़िच देवव, बड़े-बड़े पढ़ंता अउ गुनिक मन घलो इहीच गुलामी के रद्दा म हवंय। मैं जिहां तक गुन पाएंव, एकर असल कारन आय धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी। चेत करव, सिरिफ राजनीतिक गुलामी नहीं, असल म धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी।

आने-आने राज के मनखे धर्म गुरु के चोला ओढ़ के आथें, संग म उहेंच के लिखे पोथी-पतरा अउ जीवन शैली लानथें, तहां ले फेर राष्ट्रीयता अउ राष्ट्रीय धर्म के नांव म हमला अपन मायाजाल म फांस लेथें। तहां ले फेर हम बिना कुछू गुने-समझे उंकर पाछू धर लेथन। उन धर्म के आड़ म हमर जमीन-जायदाद, रोजी-रोटी, शासन-प्रशासन अउ हमर जीवन शैली म घलोक कब्जा कर लेथें। इही आय असल म हमर गुलामी अउ शोषण के मूल कारन।

त गुनव, एकर ले बांचे खातिर का उपाय हे? जब हमर खुद के भाखा हे, हमर कला हे, हमर संस्कृति हे, त का हमर खुद के आध्यात्मिक जीवन शैली अउ पूजा-उपासना के पद्धति नइहे? निश्चित रूप ले हावय। अपन 21 बछर के साधना काल म मोला ए समझ म आइस, के हमर जगा तो सबकुछ हे। इहां के मूल संस्कृति एक सम्पूर्ण धर्म आय, एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति आय। हमर जगा मौलिक जीवन शैली हे, पूजा-उपासना के विधि हे, त फेर हम धरम-संस्कृति के नांव म पर के पाछू काबर भटकत हावन? अपन खुद के जीवन शैली अउ उपासना विधि, जेला हमर पुरखा मन तइहा जुग ले धरे अउ जीयत आएं हें, उहीच ल फेर धो-उजरा के काबर नइ आत्मसात कर लेवन?

"आदि धर्म जागृति संस्थान" के गठन अउ वोला मैदान म स्थापित करे के ये उदिम असल म उही सब गुलामी ले मुक्ति के रद्दा देखाय के एक नान्हे उदिम आय। मोला भरोसा हे, इहां के जम्मो चिंतक अउ गुनिक मनखे मन हमर ए बात ल समझहीं, अउ अपन संगे-संग जम्मो मूल निवासी मनला घलो एमा जोर के जम्मो किसम के गुलामी अउ शोषण ले मुक्ति पाहीं।

कतेक भटकहू पर के पाछू खुद धरव धरम के झंडा
पुरखा मन सम्हाल रखे हें जेन आदि काल के हंडा
भरे लबालब हे गुन म बस एला तुम कबिया लेवव
नइ परही फेर तुंहला कोनोच पंथ-प्रपंच के डंडा

-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर 
मो/व्हा. 9826992811