tag:blogger.com,1999:blog-54078987535623649122024-03-28T20:28:20.757-07:00मयारु माटी mayaru mati Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.comBlogger1361125tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-71604969056696177272024-03-26T03:09:00.000-07:002024-03-26T03:10:01.992-07:00रंगमंच दिवस की शुभकामनाएँ.. गंवइहा<div>विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.. </div><div> रंगमंच पर अभिनय करने का वैसे मेरा कोई विशेष अनुभव नहीं है, फिर भी हमारे छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार रहे स्व. टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के द्वारा लिखित नाटक 'गंवइहा' में बाजार के एक दृश्य में मात्र एक मिनट के लिए मंच पर आने का संयोग है.</div><div> राधेश्याम बघेल एवं राकेश चंद्रवंशी के कुशल निर्देशन में 1 जनवरी 1991 को रायपुर के रंगमंदिर के मंच पर प्रस्तुत किए गये 'गंवइहा' नाटक के सभी गीत मेरे द्वारा लिखे गये थे, जिसे ग्राम बोरिया के कलाकार मित्र गोविन्द धनगर, जगतराम यादव, खुमान साव आदि के साथ मिलकर संगीतबद्ध कर गायन भी किए थे.</div><div> रंगमंदिर रायपुर में 1 जनवरी 91 को प्रस्तुत किये गए नाटक गंवइहा को अपार सफलता मिलने के कारण इसे उसी वर्ष भिलाई में आयोजित होने वाले 'लोक कला महोत्सव' में भी मंचित किया गया था.</div><div> गंवइहा में मुख्य पात्र थे- राधेश्याम बघेल, विष्णुदत्त बघेल, पूरन सिंह बैस, हरिश सिंह, संदीप परगनिहा, इंद्रकुमार चंद्रवंशी, अमित बघेल, राकेश वर्मा, मंजू, अंजू टिकरिहा, रमादत्त जोशी, टाकेश्वरी परगनिहा एवं साधना महावादी सहित अनेक सहयोगी कलाकार और मित्र थे.</div><div> आप सभी को आज विश्व रंगमंच दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEg2SchttdVkRFcX2ly-nkd_WzuzxRM4TKoKUuTsLoTuFwGCCwtCyKmeAZ-K3FlWDkMV91-1dqF2r0eFgsBDzr7gI9Z2iNOiFOZjqmlEY4a1A4bHbJR_9QvXFwAOIeRkSSHUeVx6oJz42my4bJFbwVobGT8qptX-SzAPyFfkhB7uyEljF1nkze6CgB_EUlw" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><div>विचार//</div><div>मृतात्मा के शांति खातिर दस दिन ले उरई म काबर रितोथन पानी? </div><div> हमर छत्तीसगढ़ म तइहा बेरा ले ए परंपरा चले आवत हे, के जेन कोनो हमर लाग-मानी मन अपन नश्वर देंह के त्याग कर के अपन देवलोक के रद्दा चल देथें, वोला अंत्येष्टि या कहिन काठी के दिन ले दसगात्र तक रोज कोनो तरिया या नदिया म घाट बना के पॉंच पसर पानी जरूर देथन.</div><div> ए परंपरा ह इहाँ के हर जाति समाज म देखे म आथे. जेन तरिया या नदिया म मृतात्मा ल पानी दे खातिर घाट बनाए जाथे, वोमा 'उरई' नामक एक जलीय पौधा ल गड़िया दिए जाथे, तहाँ ले वो जगा मृतात्मा खातिर एक ठन मुखारी मढ़ा दिए जाथे. जेन गाँव या घाट म उरई के पौधा नइ मिलय उहाँ दूबी ल गड़िया दिए जाथे, काबर ते दूबी ल घलो उरई बरोबर अम्मर माने जाथे, फेर उरई ल प्राथमिकता दिए जाथे. </div><div> हमर जिनगी म जनम ले मरण तक कतकों नेंग-जोग अउ रीति-रिवाज हे, जेला हमन पुरखौती बेरा ल पूरा निष्ठा अउ नियम के साथ मनावत आवत हावन. आप सब जानथौ के हमर छत्तीसगढ़ ह मूल रूप ले प्रकृति के उपासक समाज आय. एकरे सेती हमर इहाँ प्रकृति ले जुड़े हर जिनिस, जइसे जीव-जंतु, रुख-राई, कांदी-कुसा आदि सबोच ल इहाँ के नेंग-जोग अउ रीति-रिवाज म संघारे गे हावय.</div><div> नदिया, नरवा, तरिया, ढोड़गा जम्मोच पानी के तीर म पाए जाने वाला जलीय पौधा 'उरई' घलो अइसने एक प्राकृतिक जिनिस आय, जे ह कभू मरबे नइ करय, माने एक किसम ले अम्मर होथे. ए उरई ह कतकों खड़खड़ ले सूखा जाय राहय, फेर जब कभू थोर-बहुत पानी मिल जाथे, तहाँ ले फेर हरिया के मुस्काए लगथे. माने वापिस पुनर्जीवित हो जाथे.</div><div> हमन तइहा बेरा ले सुनत अउ पढ़त आवत हावन के आत्मा रूपी जीव ह कभू मरय नहीं, मरथे कहूँ त ए पॉंच तत्व ले बने शरीर ह. एकरे सेती एला आत्मा के शरीर बदलना घलो कहे जाथे. कहे जाथे के आत्मा ह जर्जर होवत शरीर ल बदल के दूसर नवा शरीर म प्रवेश कर जाथे. इहू मान्यता हावय के वो आत्मा ह अपन तात्कालिक देंह के माध्यम ले करे गे कर्म के मुताबिक कोनो आने चोला धारण करथे या फेर मोक्ष या सद्गति के प्रक्रिया म कोनो देवमंडल म थिरावत रहिथे, आनंद भोगत रहिथे.</div><div> एकरे सेती जब वो ह अपन तात्कालिक देंह के त्याग करथे, तब हम सब ओकर सगा-संबंधी मन कोनो तरिया या नदिया म घाट बना के दस दिन ले ओकर नॉव म नाहवन नहाथन अउ उरई खोंच के तिलि जवां संग पॉंच पसर पानी देथन, अउ मने मन अरजी करथन के हे पुण्य कर्म करने वाला आत्मा जा तुंहला शांति मिलय, जेन कोनो योनि म या देवजगत म ठउर पावस, उहाँ इही उरई के पौधा बरोबर सुघ्घर हरियर मुस्कावत राहस, अम्मर राहस.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-55881674389745061882024-03-13T00:16:00.001-07:002024-03-13T00:16:20.398-07:00कोंदा भैरा के गोठ-16<div>कोंदा भैरा के गोठ-16</div><div><br></div><div>-स्कूल म पढ़इया लइका मनला अभी जेन मध्याह्न भोजन दे जाथे ना.. वोमा तहूं ह अपन कोनो पुरखा के सुरता या अपन जनमदिन, बिहाव बछर के सुरता म बढ़िया पुष्टई जेवन खवा सकथस जी भैरा.</div><div> -अच्छा.. स्कूल के लइका मनला जी कोंदा? </div><div> - हव अभी स्कूल शिक्षा विभाग ह अइसन आदेश जारी करे हे.. एला न्योता भोजन योजना के नाम दे गे हवय. </div><div> -ए तो बढ़िया बात आय संगी.. जब हमन कोनो परब तिहार या उत्सव के बेरा म पूरा गाँव भर के लोगन ल नेवतथन त लइका मनला घलो एमा संघारे जा सकथे.</div><div> -हव जी.. एमा पुष्टई वाले जिनिस ही शामिल रइही, जेला स्कूल के शिक्षक अउ रसोइया मन बने जॉंच करहीं. जेन दिन अइसन नेवता भोजन बांटे जाही, वो दिन मध्याह्न भोजन नइ दे जाय, अइसन म वो बांचे मध्याह्न भोजन के पइसा ल आने दिन के भोजन म जादा पुष्टई वाले जेवन के रूप म परोसे जाही.</div><div> -ए तो बने बात ए जी.. एकर ले लइका मनला जादा पुष्टई के जेवन मिल पाही.</div><div>🌹</div><div>-आजकाल कुछू धरम परंपरा के अंते-तंते तर्क-विर्तक कर के विरोध करई ह ज्ञानी कहाए के नवा रिवाज बनत जावत हे जी भैरा.</div><div> -कइसे ढंग के जी कोंदा? </div><div> -अब कालीच एक झन काय चंदोर कहिथे तेन ह काहत रिहिसे के नदिया नरवा मन के जयंती नइ होवय, जे मन अइसन कहिथें वो ह प्रकृति संग खेलवाड़ आय. </div><div> -मतलब..? </div><div> -अरे.. जइसे गंगा जयंती, नर्मदा जयंती आदि मनाए के परंपरा हे, ए ह गलत हे.. तर्क संगत नइए.. अइसन कोनो नदिया नरवा मन के जयंती नइ हो सकय. </div><div> -फेर ए ब्रम्हांड म जेन कुछू भी जिनिस हे, सब के कभू न कभू तो जनम होएच हे ना.. आखिर ए पूरा दृश्य जगत ह तो पहिली अदृश्य रिहिसे, शून्य रिहिसे त फेर वोकर मन के जनम के परब मनाना ह कइसे अतार्किक हो सकथे? </div><div> -आजकाल ए ह ज्ञानी कहाय के नवा चलागन बनत हे.. भले वोकर तर्क ह नादानी अउ मूर्खता के चारी करत दिखत जनावय, फेर वो ह रेंधियई करबे करथे.</div><div> -ले अइसन ज्ञान के अंधरा मनला अंधियारी खोली म अंजोर के पासा ढारत बइठे राहन दे संगी.</div><div>🌹</div><div>-जिनगी के संझौती बेरा म मुंहाचाही बर एक संगी के होना बहुते जरूरी होथे जी भैरा.</div><div> -हव जी कोंदा सिरतोन आय.. अब कालेच देखना हमर रायपुर के शहीद स्मारक भवन म एक समाज के युवक युवती परिचय सम्मेलन होइस, तेमा एक साठ बछर के विधुर सियान घलो अपन परिचय दिस.. अउ कहिस के मोला अपन जिनगी के ए संझौती बेरा म दुख सुख के गोठ ल गोठियाए बर एक संगी चाही. ए आखिरी उमर के जिनगी ल अकेल्ला पहवाना बहुते दुखदायी जनाथे.</div><div> -सही आय संगी.. इही उमर म तो सुख दुख के संगवारी के सबले जादा आवश्यकता होथे. पहिली वानप्रस्थ आश्रम के परंपरा रिहिसे त लोगन जंगल झाड़ी म जाके अपन डेरा बना लेवत रिहिन हें, तप जप म लीन हो जावत रिहिन हें, फेर अब तो ए परंपरा ही नंदागे, त घर के डेहरी म ही जिनगी पहवाय बर लागथे.. अइसन म मुंहाचाही के संगवारी खोजे बर तो लागहीच. समाज के संगे-संग घर परिवार के लोगन ल अइसन विधुर, विधवा अउ तलाकशुदा मन डहार जरूर चेत करना चाही-जिनगी के संझौती बेरा म मुंहाचाही बर एक संगी के होना बहुते जरूरी होथे जी भैरा.</div><div> -हव जी कोंदा सिरतोन आय.. अब कालेच देखना हमर रायपुर के शहीद स्मारक भवन म एक समाज के युवक युवती परिचय सम्मेलन होइस, तेमा एक साठ बछर के विधुर सियान घलो अपन परिचय दिस.. अउ कहिस के मोला अपन जिनगी के ए संझौती बेरा म दुख सुख के गोठ ल गोठियाए बर एक संगी चाही. ए आखिरी उमर के जिनगी ल अकेल्ला पहवाना बहुते दुखदायी जनाथे.</div><div> -सही आय संगी.. इही उमर म तो सुख दुख के संगवारी के सबले जादा आवश्यकता होथे. पहिली वानप्रस्थ आश्रम के परंपरा रिहिसे त लोगन जंगल झाड़ी म जाके अपन डेरा बना लेवत रिहिन हें, तप जप म लीन हो जावत रिहिन हें, फेर अब तो ए परंपरा ही नंदागे, त घर के डेहरी म ही जिनगी पहवाय बर लागथे.. अइसन म मुंहाचाही के संगवारी खोजे बर तो लागहीच. समाज के संगे-संग घर परिवार के लोगन ल अइसन विधुर, विधवा अउ तलाकशुदा मन डहार जरूर चेत करना चाही.</div><div>🌹</div><div>-अब तो ककरो मरिया हरिया म मसान घाट घलो जाय बर नइ लागय काहत हें जी भैरा.</div><div> -कइसे गोठियाथस जी कोंदा..! अरे भई जेन कोनो अपन चिन्हार भीतर के मन सरग के रद्दा रेंग दिहीं त उनला चार खांध म मसान घाट लेग के आगी माटी तो देच बर लागही ना..? </div><div> -सेंट्रल रोटरी क्लब वाले मन अब घर बइठे आगी देके जुगाड़ करत हें जी संगी.</div><div> -वाह भई..! </div><div> -हव.. अभी चेन्नई म ए सेवा ह चालू होगे हे.. अवइया बेरा म सबोच डहार अइसन होय लागही. वोमन ल बस एक घंव फोन करे भर बर लागथे, तहाँ ले गैस के आगी म देंह ल लेसे वाला मोटर धर के तोर घर के दुवारी म आके खड़ा हो जाही अउ घंटा भर म सब लेस लुसा के वोकर हांड़ा ल तुंहला सौंप के वापस चल देही.</div><div> -मोला तो ए ह सुनेच म अलकर जनावत हे संगी.. हमर परंपरा, नता-रिश्ता के व्यवहार, मान-गौन सबके फेर का होही? </div><div> -त एमा कोनो जोर जबर्दस्ती थोरहे हे संगी.. ए तो वोकर मन बर आय, जिंकर मन के कोनो नइए.</div><div>🌹</div><div>-अब तो धरम ह धंधा बनगे हे जी भैरा.. कहूँ जगा कथा प्रवचन करवाना हे, त कथा कहइया के संग ताली बजा के हाथ ऊंचइया मन के भीड़ लाने बर आधा-आधा के बंटनिया म ठेकादार मिल जाथे.</div><div> -कइसे अलकरहा गोठियाथस जी कोंदा...? </div><div> -अरे.. अइसन मैं नइ काहत हौं जी संगी.. अभी हमर रायपुर के हिंद स्पोर्टिंग मैदान म जेन कथा चलत हे तेकर महराज ह अइसन कहे हे. </div><div> -वाह भई.. ताज्जुब लागथे..! </div><div> -एमा ताज्जुब के का बात हे संगी.. हम तो अपन गाँव गंवई म अधिया म कथा पढ़त, पूजा अउ बर-बिहाव करवावत कब के देखत आवत हन. </div><div> -अच्छा.. ! </div><div> -हव.. जब एक झन कथा पढ़इया या पूजा करइया ल एकेच तिथि म अबड़ जगा के नेवता मिल जाथे, त वो ह आने आने सबो जगा बर अधिया बंटवारा म आने आने कथा पढ़इया अउ पूजा करइया मन के जुगाड़ कर लेथे. अइसने सबो अउ जिनिस मन म घलो होवत होही.</div><div> -तब तो जादा अच्छा ए हे संगी के हम अपनेच हाथ ले पूजा कथा कर लेवन.</div><div>🌹</div><div>-एक झन सियानीन ह महतारी वंदन योजना के नॉव ल महतारी के जगा दाई शब्द लिखे जातीस त बने रहितीस काहत रिहिसे जी भैरा.</div><div> -महतारी घलो बढ़िया आदरसूचक शब्द आय जी कोंदा.. मोला इही शब्द ह जादा मयारुक जनावत हे.</div><div> -वोकर कहना रिहिसे के हमन आम बोलचाल म दाई शब्द के ही प्रयोग करथन त अपन घर परिवार के दाई मनला मिलत योजना बर अइसने शब्द बने फभतीस काहत रिहिसे.</div><div> -देख संगी.. दाई अउ महतारी दूनों शब्द के अर्थ तो लगभग एकेच होथे, फेर दूनों के भाव म जरूर अंतर होथे.</div><div> -अइसे का? </div><div> -हहो.. जइसे कोनो ल माँ कहिथन अउ कोनो ल मातेश्वरी त दूनों के भाव म अंतर जनाथे नहीं.. माँ कहे म एक सामान्य भाव के बोध होथे, जबकि मातेश्वरी कहे म वोकर देवी होए के बोध होथे, ठउका अइसने दाई कहे म अउ महतारी कहे म घलो होथे. जइसे हमन छत्तीसगढ़ ल दाई नहीं महतारी कहिथन.</div><div> -अच्छा..! </div><div> -हव.. इही तो शब्द मन के जगा अउ वोकर संबंध म उपयोग करे के गुन आय.. अब जइसे हम कोनो ल ए डोकरा सुन तो काहन अउ उहिच ल सुनव तो सियान कहिके संबोधित करन त वोकर भाव म अंतर जनाही नहीं?</div><div>🌹</div><div>-दुनिया म चारों मुड़ा युद्ध होतेच रहिथे जी भैरा, अब रूस अउ यूक्रेन के युद्ध ल ही देख ले तीन बछर ले ऊपर होगे, फेर एकर थिराए के कोनो आस नइ दिखत हे.</div><div> -हव जी कोंदा.. ए जे अमेरिका जइसन हथियार उत्पादक देश हें ना ए मन नइ चाहंय के दुनिया म शांति राहय.. काबर ते इही युद्ध मन के भरोसा तो उंकर देश के खजाना लबालब भरथे, उहाँ के लोगन ल रोजगार मिलथे अउ सबले बड़े उंकर मन के दादागिरी के जलवा बने रहिथे.</div><div> -वाह भई.. एकरे सेती दुनिया म युद्ध चलत रहिथे..? </div><div> -हव.. रूस चाहय त यूक्रेन संग वोकर युद्ध तुरते सिरा सकथे, फेर वो खुद अइसन नइ चाहय.. वो असल म युद्ध के बहाना अपन हथियार खरीददार देश मनला देखाना चाहथे, के देखौ कतेक जबर जिनिस हमन बनाए हावन.. तुमन अपन देश के सुरक्षा के नॉव म ए सबला बिसावत राहव.. सबो हथियार उत्पादक देश मन के इही चरित्तर आय.. त तहीं बता अइसन म भला दुनिया म शांति कहाँ ले स्थापित हो पाही?</div><div>🌹</div><div>-नवा जमाना के 3डी जूता आवत हे कहिथें जी भैरा.. एस्सा कंपनी के ए पनही के शुरूआती कीमत 21 हजार रुपिया रइही.</div><div> -वाह जी कोंदा.. पनही के कीमत 21 हजार..! </div><div> -हव.. ए 3 डी पनही म सेंसर डेटा लगे रइही काहत हें, तेकर सेती वो तोर पॉंव के मुताबिक अपन साईज़ ल कम जादा कर लेही, फेर जुड़ के दिन म तात अउ गरमी म जुड़ जनाही काहत हें.</div><div> -जइसे माटी के घर ह जुड़ तात जनाथे तइसे गढ़न के? </div><div> -हव.. </div><div> -त एमा नवा का हे संगी.. हमर गाँव के मेहर जगा निमगा चाम के पनही अउ भंदई पहिरन तेकर सुरता हावन नहीं, उहू ह सोला आना सोहलियत जनावय, फेर वोला तो चाहे कांटा-खूंटी म पहिर ले ते पानी-बादर म.. बाउत के नांगर, बियासी के नांगर सबोच म तो चभरंग चभरंग पहिरे रेंगन. गरमी के दिन म कहूँ अंकड़े असन करय त ओंगन तेल म बोर देवन, तहाँ ले मार कोंवर कोंवर कइसे निक जनावय? </div><div> -हव जी सिरतोन कहे.. ए 21 हजारी पनही तो पानी बादर, चिखला माटी म थोथना ल धपोर देही.. का सेंसर फेंसर कहिथें तेनो ह जुड़ा सिता जाही.</div><div>🌹</div><div>-शिवरात्रि जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार संगी कोंदा.. का बात हे ए बछर तो जतका गाँजा-भाॅंग के दुकान हे, सबो म बिक्री बाढ़गे हे कहिके पेपर मन म छपत हे.</div><div> -अब ए तो चतुरा स्वार्थी मन के चरित्तर के करनी आय.. अपन भोभस म भरे बर भगवान के बहाना अउ बदनामी.</div><div> -बदनामी कइसे संगी.. सबो तो भोलेनाथ म गाँजा-भाॅंग चढ़थें कहिथें.. शिवरात्रि तो एकर खातिर भारी ठउका बेरा होथे बताथें.</div><div> -मैं तो अइसन कोनोच पोथी पतरा म नइ पढ़े औं रे भई.. न कभू अपन जिनगी म चढ़ाए हौं न कोनो ल चढ़ाए बर कहे हौं.. जब भगवान सिरिफ बेलपान, फूल, फर अउ नरियर म मगन हो जाथे त फेर अइसन मंदहा-जकहा बरोबर चरित्तर रचे के का जरूरत हे. मोला तो लागथे संगी अइसन ढंग के चलन अउ गोठ ह इहाँ के लोकदेवता के व्यक्तित्व ल अनफभिक देखाय के एक षडयंत्र मात्र आय. </div><div> -अइसे..? </div><div> -हव.. जे मन भगवान म चढ़ा के गाँजा-भाॅंग के चिभिक म परे रहिथें, ते मन जहर के सेवन घलो काबर नइ करंय, आखिर भोलेनाथ ह समुद्र मंथन ले निकले जहर ल लोककल्याण के निमित्त पीए रिहिन हें त?</div><div>🌹</div><div>-भगवान भोलेनाथ ल काली ले तेल हरदी चढ़ाय के चालू होगे हे जी भैरा.. आज मायन भात खा के काली बरात जाबो नहीं? </div><div> -कोन जनी जी कोंदा.. मोला उंकर ए परंपरा ह थोकिन अनभरोसिल असन जनाथे.</div><div> -अइसे काबर? </div><div> -अब अभी पेपर मन म समाचार पढ़े बर मिलत हे, तेकर मुताबिक तो महाशिवरात्रि के दिन उंकर बिहाव होय रिहिस हे तइसे जनाथे, फेर मैं कुछ पोथी म पढ़े रेहेंव के शिवरात्रि के दिन ओमन जटाधारी रूप म प्रगट होए रिहिन हें.</div><div> -अच्छा... अइसे..? </div><div> -हव.. अब ए ह सुनती बात आय भई के सावन पुन्नी के शिवलिंग रूप म अउ शिवरात्रि के जटाधारी रूप म उन प्रगट होए रिहिन हें, एकरे सेती सावन महीना के संगे-संग शिवरात्रि ल घलो उंकर विशेष पूजा परब के रूप म मनाए जाथे.</div><div> -अइसनो तो हो सकथे संगी, के उंकर बिहाव ह दू पइत होए रिहिसे.. पहिली सती संग अउ पाछू पार्वती संग, त ए दूनों बखत म के एकाद के तिथि ह शिवरात्रि परे रिहिस होही? </div><div> -कोन जनी भई मैं तो उंकर प्रागट्य रूप के सुरता म ही पूजा उपासना करथौं.</div><div>🌹</div><div>-हमर छत्तीसगढ़ के इतिहास ल देख पढ़ के हमन गरब के मारे अपन पीठ ल भले थपथपावत रहिथन जी भैरा, फेर एमा के कतकों ह तर्क संगत नइ जनावय.</div><div> -कइसे ढंग के जी कोंदा? </div><div> -अब शिवरीनारायण के बात ल ही देख ले, एला माता शबरी के निवास स्थान बताए जाथे, जिहां भगवान राम ह अपन भाई लक्ष्मण संग उंकर जूठा बोइर खाए रिहिन हें, फेर ए बात ह मोला सही नइ जनावय, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ म तो भगवान राम के संग माता सीता अउ भाई लक्ष्मण घलो रिहिन हें, अउ छत्तीसगढ़ ले आगू बढ़े के बाद फेर सीता जी के हरण होय रिहिसे, अउ सीता हरण के बाद ही शबरी माता के आश्रम राम अउ लक्ष्मण गे रिहिन हें.</div><div> -तोर बात तो वाजिब जनाथे संगी.</div><div> -रामचरितमानस के मुताबिक सीताहरण पंचवटी ले होय रिहिसे. अउ पंचवटी ह महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिला म हे. रामचरितमानस के मुताबिक शबरी आश्रम कर्नाटक राज्य के पंपा नदी के तीर हे. तब ए बता के हमर छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण ह फेर कइसे शबरी माता के स्थान हो सकथे?</div><div>🌹</div><div>-अब तो वैज्ञानिक मन घलो ए बात ले सहमत होगे हावंय जी भैरा के हमर तेल पेरे, धान कूटे अउ पिसान पीसे के जेन पारंपरिक तरीका रिहिसे वो ह स्वास्थ्य अउ सुवाद दूनोंच खातिर एकदम सही रिहिसे.</div><div> -ए बात ल तो मैं कब के काहत हौं जी कोंदा घानी के पेरे तेल, जांता म पीसे पिसान अउ ढेंकी म कूटे चॉंउर ह हर दृष्टि ले जादा गुनकारी होथे. हमला अपन जुन्ना परंपरा डहार लहुटना चाही.</div><div> -हव सही आय.. अभी विश्व प्रसिद्ध रिचर्स जर्नल फूड केमिस्ट्री म छपे शोध के अनुसार हमर पारंपरिक तरीका घानी ले पेरे सरसों के तेल म आॅउरेन्टियामाइड एसीटेट नॉव के एण्टी कैंसर कम्पाउंडर पाए जाथे, जे ह कतकों किसम के रोग-राई संग लड़े बर हमला ताकत देथे. ए महत्वपूर्ण तत्व ह बड़े बड़े मशीन ले निकाले तेल म वतका मात्रा म नइ पाए जाय, काबर ते मशीन मन भारी रफ्तार म चलथें, जेकर सेती वो मन एकदम गरम हो जाथे. मशीन के इही गरम होवई ह अनाज मन के भीतर म पाए जाने वाला पोषक तत्व ल जला डारथे, तेकर सेती हमला मशीन ले निकले जिनिस म वतका पोषण नइ मिल पावय, जतका पारंपरिक तरीका ले निकले जिनिस मन म मिलथे.</div><div>🌹</div><div>-शिवरात्रि ल बने-बने मनाएव जी भैरा? </div><div> -हव जी कोंदा.. हमूं मन मनाएन अउ संगी-साथी मन घलो.</div><div> -बने आय संगी.. हमर देवजगत म सिरिफ भोलेनाथ ही तो हें, जेन पूरा समतावादी हें, उनमा काकरो खातिर छोटे बड़े, ऊँच-नीच के भेद नइए, तभे तो उनला देवता दानव सबोच मानथें.. उंकर उपासना करथें.</div><div> -ए बात तो हे संगी, फेर उंकर ए शिवरात्रि तिथि के संबंध म लोगन के अलग-अलग मान्यता देखे म आथे. कोनो एला उंकर बिहाव के परब मानथें, त कोनो शिवलिंग पूजन के प्रथम दिवस के रूप म, त कोनो जटाधारी रूप म प्रागट्य दिवस के रूप म. </div><div> -हाँ ए तो हे संगी.. फेर ए सबले अलग इहाँ के मूलनिवासी समाज कोयतोर (गोंड) मन ए शिवरात्रि ल 'संभू शेक नरका' के रूप म मनाथें. उंकर मानना हे के समुद्र मंथन के विष ल पान करे के बाद भोलेनाथ ह बेहोशी म चल दिए रिहिन हें, तेन ह शिवरात्रि के दिन चेतन अवस्था म वापस आए रिहिन हें.</div><div> -सबके अपन मान्यता अउ आस्था हे संगी, तभे तो इनला पोथी पतरा ले अलग हट के 'लोक के देवता' घलो कहे जाथे.</div><div>🌹</div><div>-हमर देश म आईरिस नॉव के पहला रोबोट शिक्षिका आगे हे जी भैरा.</div><div> -खबर तो सुने म बने जनावत हे जी कोंदा, फेर का एकर ले मानव श्रम के उपेक्षा नइ होही, जइसे खेती किसानी आदि के मशीनीकरण होय ले खेतिहर श्रमिक मन के हाथ बेरोजगार होगे हे? </div><div> -तोर चिंता ह सही आय संगी, फेर ए रोबोट शिक्षिका के माध्यम ले शिक्षा के स्तर के संग छात्र शिक्षक संबंध म बहुत सुधार आही. तिरुवनंतपुरम के केटीसीटी स्कूल म लुगरा पहिर के चार चक्का म ढुलत आए आईरिस ह कोनो भी तीन प्रमुख भाषा म गोठिया सकथे अउ विज्ञान गणित जइसन कोनो भी विषय के कतकों कठिन सवाल के छिन भर म सही जवाब दे सकथे.</div><div> -ए तो बने बात आय संगी.. मैं कोनो भी किसम ले विज्ञान के आविष्कार के विरोधी नइहौं, फेर एकर नॉव म मानव श्रम के कोनो किसम के उपेक्षा नइ होना चाही, तेकरो संसो करइया औं.</div><div> -जरूर करना चाही, काबर ते हमर इहाँ बेरोजगारी के दर चिंता जनक स्थिति म जनावत हे.. हमला वैज्ञानिक आविष्कार के स्वागत करना चाही, त मानव श्रम खातिर घलो नवा-नवा रद्दा सिरजाना चाही.</div><div>🌹</div><div>-हमन अपन भाखा के लिखित/प्रकाशित साहित्य ल गजब जुन्ना देखाय खातिर एकर मिश्रित रूप ल घलो संघार डारथन जी भैरा.</div><div> -कइसे गढ़न के जी कोंदा.. हमर लोकसाहित्य तो नंगते जुन्ना हावय ना? </div><div> -हव.. लोकसाहित्य तो हे, मैं लिखित/प्रकाशित साहित्य के गोठ करत हौं, जेकर लेखक मनला हमन जानथन. जइसे के छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि के रूप म ए कहि देथन के संत कबीर दास जी के बड़का चेला धनी धरमदास जी आय कहिके.</div><div> -हव.. कतकों झन लेखक के आलेख मन म तो महूं अइसने पढ़े हावौं.</div><div> -फेर मोला लागथे के धरमदास जी के रचना मनला आरुग छत्तीसगढ़ी के रचना नइ केहे जा सकय. </div><div> -अइसे का..! </div><div> -हव.. उंकर रचना मन म छत्तीसगढ़ी ले जादा बघेली अउ अवधि के शब्द पढ़े म आथे. काबर ते धरमदास जी छत्तीसगढ़ के मूल निवासी तो नइ रिहिन.. वो मन इहाँ बघेल खंड क्षेत्र ले आए रिहिन हें, एकरे सेती उंकर रचना मन म बघेली संग अवधि के शब्द देखे म आथे.. हाँ भई.. आरुग छत्तीसगढ़ी के गोठ करिन त हम काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के छत्तीसगढ़ी व्याकरण ल पहला प्रकाशित कृति मान सकथन.</div><div>🌹</div><div>-हमन महादेव संग बिराजे माता सती, पार्वती, उमा, गिरिजा, गौरा आदि मनला एके समझथन ना, वोला इहाँ के मूल निवासी कोया वंशी गोंड समुदाय के मन अलग अलग बताथें जी भैरा.. उंकर कहना हे के हमन जेला 'शंभू शेक' कहिथन वो ह सिरिफ एक उपाधि आय. ए शंभू शेक के उपाधि ले अलंकृत होके इहाँ 88 अलग अलग लोगन शासन करे हें. ए सबो ल उंकर पत्नी मन के नाम के संग म संयुक्त रूप ले चिन्हारी करे जाथे.</div><div> -वाह जी कोंदा ए तो एकदम अनसुने बात आय. </div><div> -हव.. एकर मन के एक सामाजिक लेखक अउ चिंतक कोसो होड़ी के एक आलेख म एकर जानकारी दिए गे हवय. गण्डोदीप सतपुड़ा ले ए मन अपन शासन चलावंय.. एमा शंभू मूला ह प्रथम जोड़ी आय. शंभू गवरा मध्य के अउ शंभू गिरजा अंतिम जोड़ी.</div><div> -वाह भई..! </div><div> -शंभू गवरा के बाद शंभू बेला, शंभू मूला, शंभू तुलसा, शंभू उमा, शंभू गिरजा, शंभू सति, शंभू पार्वती आदि 88 शंभू होइन. कोसो होड़ी ह अपन लेख म बताय हे के शंभू पार्वती जेन एमा के अंतिम जोड़ी रिहिसे वोकरे शासन काल ले इहाँ आर्य टोली मन के आना शुरू होइस.</div><div>🌹</div><div>-अब ले तो जी भैरा.. राष्ट्रपति ह अपन दाई के मरे के बाद मिलइया मुआवजा खातिर भटकत हे काहत हें..! </div><div> -राष्ट्रपति ह मुआवजा खातिर भटकत हे..! कइसे अंते-तंते गोठियाथस जी भैरा? </div><div> -हव जी संगी.. मनेंद्रगढ़ जिला के गाँव घुटरा के रहइया ए राष्ट्रपति ह.. असल म गाँव घुटरा के वार्ड 12 म रइहया आठवीं फेल मनखे के नॉव हे राष्ट्रपति.</div><div> -वाह भई..! </div><div> -हव.. उहू म गुरुजी मन के स्कूल दाखिला म वोकर नॉव लिखे म गलती करे के सेती राष्ट्रपति लिखागे हावय, जेन ह वोकर आधारकार्ड आदि सबोच म चलथे.. असल म वोकर नॉव वोकर ददा दाई मन 'राजपति' रखे रिहिन हें, फेर गुरुजी मन के गड़बड़ी के सेती बपरा राष्ट्रपति ल कतकों जगा हांसी-दिल्लगी के संग अउ कतकों किसम के परेशानी के सामना करना परथे.. अब देखना सरगुजा ग्रामीण विकास बैंक म धन वृद्धि जमा प्रमाण पत्र के जरिए वोकर महतारी के सड़क हादसा होय मौत के बाद वोकर जमा राशि ल निकाले बर दर दर भटके बर लागत हे.</div><div>🌹</div><div>-हमर इहाँ के सियानीन ह आजकाल दार्शनिक मन बरोबर गोठियाथे जी भैरा.</div><div> -कइसे ढंग के दार्शनिक गोठ जी कोंदा? </div><div> -वोकर कहना हे- सबो जिनिस तो मोर माध्यम ले आथे या मिलथे, फेर वोमा नॉव तोर काबर चलथे कहि देथे.</div><div> -का जिनिस ह वोकर होथे अउ नॉव तोर होथे? </div><div> -सबोच जिनिस म.. चूरी-फुंदरी मैं पहिनथौं फेर तोर नॉव धराथे, माथा मोर फेर टिकली तोर नॉव के, माँग मोर फेर सेंदुर तोर नॉव के.. अउ ते अउ पेट मोर, छाती के दूध मोर फेर एला पी के जमनाय अउ बाढ़त लइका घलो तोर नॉव के.</div><div> -वइसे कहे बर तो सियानीन ह सिरतोन ल कहिथे जी संगी.. फेर ए तो प्रकृति अउ समाज के बनाय व्यवस्था आय.. एमा तोर दोष तो नइए. </div><div> -हव जी सही आय.. फेर वोकर कहना हे- एकाद ठन तैं ह अइसने कुछू जिनिस बता दे, जेला तैं ह मोर नॉव ले धारण करत होबे?</div><div> -अब धारण करे के बात ल तो नइ जानौं, फेर तैं ह रातदिन जांगर टोर के कमावत सकेलत रहिथस तेन ह काकर नॉव के आय कहिके पूछते.</div><div>🌹</div><div>-मोर नाती ह आज पूछ परिस जी भैरा के ककरो मरनी के पाछू हमन तरिया नदिया म घाट बनाके दस दिन ले वोला पानी देथन नहीं.</div><div> -हाँ देथन तो जी कोंदा.. ए तो हमर पुरखौती परंपरा आय.. जेन घाट म नहाथन वोमा तरिया म जामे उरई नइते दूबी ल एका जगा गड़िया देथन तहाँ ले वोमा दतवन अउ तिली, जवा आदि संग पसर पसर पानी देथन.</div><div> -इही जेन उरई या दूबी ल गड़िया के पानी देथन तेकरे का महत्व हे कहिके पूछत रिहिसे.</div><div> -देख संगी, हमन तइहा बेरा ले प्रकृति के उपासक हावन, तेकरे सेती प्रकृति के अइसन जिनिस के माध्यम ले अपन भावना ल व्यक्त करथन जेन ह वोकर मुताबिक जनाथे.</div><div> -अच्छा.. अइसे? </div><div> -हव.. अब देख उरई अउ दूबी ह एक अइसे किसम के अमर पौधा आय, जेन ह कतकों खड़खड़ ले सूखा के मरत असन दिखत राहय, फेर जब वोमा पानी परथे, त फेर हरिया के मुस्काए लगथे. माने फेर जी जाथे.</div><div> -हाँ ए बात तो हे.</div><div> -एकरे सेती हम अपन नता-रिश्ता ल ए अमर पौधा म पानी दे के ए आसा करथन, के वोकरो आत्मा ह कोनो भी जीव-जगत राहय.. उरई कस हरियर अउ अम्मर राहय.</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-19163165087660630812024-03-04T14:10:00.001-08:002024-03-04T14:10:45.313-08:00राष्ट्रीय व्याकरण दिवस.. <div>राष्ट्रीय व्याकरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ... </div><div><br></div><div> भाषा के महत्व को समझने तथा भाषा में शुद्धता एवं एकरूपता लाने के लिए व्याकरण दिवस मनाया जाता है. पहिली बार वर्ष 2008 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के द्वारा 4 मार्च को व्याकरण दिवस की शुरुआत की गई थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वीकार कर लिया है. अब प्रायः सभी देश अपनी भाषा के महत्व को समझाने के लिए 4 मार्च को राष्ट्रीय व्याकरण दिवस मनाने लगे हैं.</div><div> हमें गर्व है कि छत्तीसगढ़ी भाषा का व्याकरण सन् 1890 में छत्तीसगढ़ी के साथ अंगरेजी भाषा में संयुक्त रूप से प्रकाशित हुआ था. </div><div> छत्तीसगढ़ी व्याकरण के लेखक काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी सन् 1880 से 1885 के बीच इस छत्तीसगढ़ी व्याकरण को लिखे थे, जिसे उस समय के प्राख्यात व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन के द्वारा अंगरेजी में अनुवाद कर छत्तीसगढ़ी और अंगरेजी में संयुक्त रूप से 1890 में प्रकाशित करवाया गया था.</div><div> आप सभी को राष्ट्रीय व्याकरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...</div><div>-सुशील भोले<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhmQsQCvR9EmgLkgDYlol3jNWPNahKyDX55B4Qa4MvOOWpnXKix5F0gJ6neB2DXaETRiFn1C-42H74lDAlIeDZiEfhMkNS_SCl5eMI9N8CUKOrpyUvFnRITKCUM5ENUKMcmy6WDw_9zCGRP8ynXY9QUJlsw48AWkAR-y6z8dQthpwMZXZChXFsfpHy1zlY" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-47643452904115450232024-02-26T20:45:00.001-08:002024-02-26T20:45:59.926-08:00का तैं मोला मोहनी... के पाछू के दर्शन<div>सुरता//</div><div>'का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' के पाछू के दर्शन...</div><div> छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के मयारुक मन सुप्रसिद्ध गायक रहे केदार यादव के गाये ए लोकप्रिय गीत- "का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल, तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते- रेंगत आंखी मार दिए ना..." </div><div> एला जरूर सुने होहीं अउ घनघोर सिंगारिक गीत के सुरता करत मन भर मुसकाए होहीं. फेर ए गीत के रचयिता लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी एला का कल्पना कर के कइसन संदर्भ म लिखे रिहिन हें. एला जानहू, त परमानंद जी के कल्पना अउ ओकर गहराई के कायल हो जाहू.</div><div> बात सन् 1989-90 के आय. तब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव. एक दिन रायगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. बलदेव जी के मोर जगा सोर पहुंचिस के हमन लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी संग भेंट करे बर रायपुर आवत हन. तहूं तइयार रहिबे. काबर ते हमन वोकर घर ल देखे नइ अन, तहीं हमन ल वोकर घर लेगबे. </div><div> निश्चित दिन 9 जनवरी 1990 के डाॅ. बलदेव जी रायगढ़ के ही एक अउ साहित्यकार रामलाल निषादराज जी संग रायपुर पहुँचगें. इहाँ रायपुर म आकाशवाणी म कार्यरत खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं उंकर संग संघर गेंन. मोर बचपन रायपुर के कंकालीपारा, अमीनपारा आदि म ही बीते हे, तेकर सेती परमानंद जी के महामाई पारा वाले घर मैं कतकों बेर गे रेहेंव. </div><div> सबो साहित्यकार मनला लेके परमानंद जी के घर गेन. उहाँ आदर-सत्कार अउ चिन-चिन्हार के बाद साहित्यिक गोठ-बात चालू होइस. सब तो बढ़िया चलत रिहिस. तभे डाॅ. बलदेव जी थोक मुस्कावत, मजा ले असन पूछ परिन- 'परमानंद जी! का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' जइसन गीत ल आप कब लिखे रेहेव?</div><div> तब परमानंद जी डाॅ. बलदेव के मनसा भरम ल टमड़ डारिन, अउ घर के दुवारी कोती ल झांक के आरो दिन- 'ए गियां आ तो..' उंकर बुलउवा म एक चउदा-पंदरा बछर के चंदा बरोबर सुग्घर नोनी ओकर आगू म आके ठाढ़ होगे, अउ कहिस- 'काये बबा' तब परमानंद जी अपन उही नतनीन डहर इसारा करत कहिन- 'इही वो गियां आय. जे दिन ए ह ए धरती म आइस, उही दिन ए गीत ल लिखे रेहेंव. 'तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए गोंदा फूल'. </div><div> वो नोनी छी: बबा कहिके घर म खुसरगे. तब परमानंद जी के निरमल हांसी घर-अंगना के संगे-संग हमरो मनके चेहरा म बगर गेइस. उन कहिन- 'डाॅक्टर साहेब, कवि के जाए के बेरा होवत हे, अउ आगू म उन्मत्त प्रकृति हे, उद्दाम कविता के रूप म दंग-दंग ले खड़ा हो गिस.'</div><div> घनघोर सिंगारिक गीत कस लागत ए रचना के मूल म कतका निर्दोष अउ उज्जवल भाव. हमर जइसन आम कवि-लेखक मन के कल्पना ले बाहिर के दृश्य आय. </div><div> परमानंद जी आगू कहिन- 'नारी सौंदर्य अउ प्रेम बरनन म मैं ह ओकर प्राकृतिक स्वरूप ल जरूर अपनाय हौं, फेर शिथिलता ल कभू स्थान नइ दे हौं... आज तो हमर बड़े कवि मन घलो सीमा लांघ जाथें डाॅक्टर साहेब, सारी-सखा तो बेटी बरोबर होथे, फेर वोकर बरनन म बनेच मजाक होगे हे. शायद उंकर इशारा- ' मोर सारी परम पियारी' जइसन लोकप्रिय सिंगारिक रचना डहर रिहिस.</div><div>( ए प्रसंग संग संलग्न चित्र उही दिन के आय, जेमा नीचे म डेरी डहर ले- डॉ. बलदेव साव, बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' अउ रामलाल निषादराज. पाछू म खड़े- खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं सुशील वर्मा 'भोले')</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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निपटा देहूं.</div><div>🌹</div><div>-आजकाल सोशलमीडिया के नॉव म का फेसबुक, इंस्टाग्राम आय हे तेनो मन गजब हे जी भैरा.</div><div> -कइसे का होगे जी भैरा? </div><div> -लोगन वोमा चुरुमुरु बूढ़ावत ले घलो जनावेच बने रहिथे भई..! </div><div> -बड़ा अचरज के बात हे... भला अइसे कइसे हो सकथे? </div><div> -अरे ओ टूरी.. का नॉव.. हाँ अंजोरी-अंधियारी कहिके नइ कुड़कावन.. स्कूल म पढ़त राहन त.</div><div> -हाँ हाँ..वो झुंडर्री चूंदी वाली बैसाखीन</div><div> -हाँ उही.. प्रायमरी ले मिडिल तक संगे म पढ़े हन.. तेने ल फेसबुक म भेटेंव संगी अभीच ले सतरा बछर के हे.</div><div> -अच्छा.. हमन नाती-नतुरा वाले होवत हन अउ ओ ह अभी ले सतरच बछर के हे..! </div><div> -हव भई.. पहिली तो महूं आकब नइ कर पाएंव, फेर मेसेंजर म अपने ह चेटिंग कर के बताइस के मैं फलानीन अंव कहिके, त मैं ओकर फोटू के बारे म पूछेंव.. तब बताइस के सोशलमीडिया म अइसने म बने लागथे, सतरा बछर के फोटू ल देख के सब बने-बने कमेंट अउ मेसेज करथे.</div><div> -भाग भइगे उंकर कमैंट अउ मेसेज के ललचही सउंख ल.. बूढ़िया होगे तभो ले मोटियारी के चुलुक.</div><div>🌹</div><div>-हमर छत्तीसगढ़ सरकार ह जब ले 'महतारी वंदन' योजना शुरू करे के निर्णय लिए हे, तब ले घर म आदमी जात मन के सियानी कमतियाय असन जनावत हे जी भैरा.</div><div> -कइसे गढ़न के जी कोंदा? </div><div> -या.. नाती-नतुरा मनला कभू-कभार टिकिया-बिस्कुट खाए बर पइसा दे देवत रेहेन त ओ मन हमन ला बड़ा आदर-सम्मान करे अस गोठियावय जी.. फेर अब तो भुसभुस बानी के जनावत हे.</div><div> -कइसे भुसभुस बानी के जी? </div><div> -अब तो उन अइसन किसम के नान-मुन जेब खर्चा बर हमर मन ऊपर आश्रित नइ रइही.. भलुक हमन ल नटेरे असन कहि दिहीं- 'जेब खर्चा बर पइसा हब ले देवत हस ते दे.. नइते फेर मैं दाई जगा जाके 'महतारी वंदन' कर लेथौं.</div><div> -हाँ ए बात तो हे.. फेर लइका मन सिरिफ पइसा भर के सेती नहीं, भलुक बने असन संस्कार दे म घलो बने अदब के साथ बात करथें, अउ फेर इही संस्कारे ह तो जिनगी भर साथ देथे, हमरो संग अउ दुनिया संग घलो.</div><div>🌹</div><div>-पहिली हमर मन के उमर म लोगन आवंय तहाँ ले वानप्रस्थ आश्रम के रद्दा धर लेवंय जी भैरा.</div><div> -हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. एकर ले सियान मन घलो बने जंगल म हरहिंछा रेहे राहंय अउ बेटा बहू मन घलो घर म स्वतंत्र राहंय.</div><div> -हव जी एकरे सेती सबो झन हरहट कटकट ले मुक्त राहंय, फेर अब तो न जंगल झाड़ी बांचीस अउ न ही वानप्रस्थ के परंपरा.. एकरे सेती घर म रात-दिन सास-बहू म खिबिड़-खाबड़ चलत रहिथे.. अउ जब उन खिसिया जथें त उनला वृद्धाश्रम म ढपेल देथें.</div><div> -ककरो भी स्वतंत्रता के उल्लंघन ठीक नोहय संगी.. न सियान मन के अउ न जवान मन के.. एकरे सेती सियान मनला घर म रहि के ही वानप्रस्थ के नियम ल मानना चाही.. बेटा बहू के स्वतंत्रता म रोड़ा बने ले बांच के सिरिफ अपन आप म मगन रहना चाही, तभेच घर परिवार म सुख-शांति के बासा हो पाही.</div><div>🌹</div><div>-अभी इहाँ के वित्त मंत्री ह विधानसभा म बजट पेश करीस हे, तेमा मैं ह हमर असन मावालोग मन बर घलो कुछू नवा उदिम करे हे का कहिके गुनत रेहेंव जी भैरा.</div><div> -कइसे ढंग के नवा उदिम जी कोंदा? </div><div> -अरे माईलोगिन मन बर 'महतारी वंदन' योजना लागू नइ करे हे जी.. ठउका अइसने हमर मन बर 'ददा सुमरनी' योजना लानिस के नहीं काहत रेहेंव गा.</div><div> -अच्छा.. तेमा तुंहरो मन के चोंगी-माखुर के जुगाड़ बने असन होवत राहय अइसे ढंग के.</div><div> -हव भई.. अब ए उमर म नान-मुन खर्चा बर बेटा-बहू मन के मुंह तकई ह सुहावय नहीं जी.. फेर कभू तिहार-बार म 'कुछू-कांही' के जुगाड़ घलो तो हरहिंछा हो जाही.</div><div> -तोर कहना तो वाजिब हे संगी.. ले अवइया बेरा म चुनावी घोषणापत्र म अइसन प्रावधान करे खातिर नेता जी ल गोहराबोन, काबर ते तुंहरो मन के दवई-दारू जरूरी हे.</div><div>🌹</div><div>-हमर खेती-किसानी अउ रांधे-गढ़े के तरीका म आवत बदलाव संग एकर ले जुड़े कतकों शब्द मन घलो नंदावत जावत हे जी भैरा.</div><div> -सिरतोन आय जी कोंदा.. अब देखना पहिली माटी के चुल्हा बनावय.. कभू एक-मुंहा कभू दू-मुंहा.. अइसने चुल्हा म बरे लकड़ी ले निकले कोइला के उपयोग बर माटीच के सिगड़ी.. अब सबो के चलागन नंदावत हे अउ एकरे संग इंकर ले जुड़े शब्द मन घलो.</div><div> -हव जी.. अइसने जिनगी के सबो क्षेत्र ले जुड़े बुता काम, परंपरा अउ उंकर ले जुड़े शब्द मन.. ए मन हमर महतारी भाखा के शब्दकोश बर घलो नकसान के बात आय संगी.</div><div> -सिरतोन आय.. हम अपन परंपरा के संग अपन शब्द ल भुलावत जावत हन अउ आने-आने चलागन के अपनई के सेती उंकर ले जुड़े आने भाखा के शब्द मनला अपन म संघारत जावत हन.</div><div> -शायद एकरे सेती भाखा ल सदानीरा कहिथें.. नदिया के बोहावत धारा म जइसे पानी के नवा नवा बूंद मन संघरत अउ आगू बढ़त जाथे, ठउका भाखा म घलो वइसने होवत जाथे.</div><div>🌹</div><div>-चल तुमा के नार तैं कइसे झूले हिंडोला म.. अरे सेमी कहिथे मोर पान चिकनी महूं फरौं बाहिरी भितरी.. चल तुमा के नार... </div><div> -का बात हे संगी कोंदा.. आज तो जुन्ना बेरा के सुरता देवावत हे तोर तुमा के नार ह.. </div><div> -हव जी भैरा.. अभी हमर इहाँ के शोधार्थी किसान कल्प दास ह तुमा के एक अइसे किसम विकसित करे हे, जे हा आने तुमा माने लौकी ले जादा मीठ होय के संग कैंसर अउ ब्लडप्रेशर ल नियंत्रण करे के घलो काम करही. संग म अउ कतकों किसम के फायदा पहुंचाही.</div><div> -वाह भई.. ए तो बढ़िया खबर हे संगी.</div><div> -हव जी हमर रायपुर के कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा ह बताए हे के ए नवा किसम ल भारत सरकार म रजिस्ट्रेशन करवाय जाही. शोधार्थी किसान कल्प दास ह ए तुमा के नामकरण 'नारायणा' करे हे. ए लौकी ल मई जून म बोए जाही त सरलग 9-10 महीना तक फसल देही, अउ दूसर लौकी मन ले जादा बड़का घलो होही.. संग म मात्रा घलो जादा रइही.</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-79637772155657636882024-02-11T05:15:00.001-08:002024-02-11T05:15:41.817-08:00भूमिका.. कोंदा भैरा.. डाॅ. सत्यभामा आड़िल<div>भूमिका//</div><div>दुलरुआ कोन्दा भैरा के गोठ--नवा उदिम</div><div>---------------------------------------------------</div><div><br></div><div> सोशल मिडिया के कतकोन ग्रुप म अपन झलक देखावत "कोन्दा भैरा के गोठ" ह सुशील भोले के नवा "उदिम" आय, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य म! मंय तो चकित हो गेंव पढ़के। चकित एकर सेती--कि कोन्दा गोठियावत हे अउ भैरा ह हुंकारु देवत सुनथे! सुशील ह हमर गांव अउ लोकजीवन के संस्कृति के रिवाज बताथे कि कईसे हमन मया अउ दुलार म अपन भांचा-भांची, नाती-नतुरा अउ गांव के कतकोन मयारुक अउ दुलरुआ लईका मन ला अईसन अलवा-जलवा नांव धरके पुकारथन!</div><div> कोन्दा, भैरा, लेड़गा, सुनसुनहा/ही, खनखनहा, तोतरी/रा, खोरवा, डंगचघा, चमकुल, रिसहा,---</div><div>अतेक असन नांव धरथें-- गांवलोगन मन! त ये सब मया पिरीत के धरे नांव आय। दुलार म धरे नांव आय! नांव म वो गुन देखे बर नई मिलय! ये ह हमर गांव के संस्कृति के खास बात आय! सुशील ह छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के जागरूक रखवारा आय। शब्द अउ अर्थ ल संजो- संजो के नवा उदिम करे हे! पढ़ के अब्बड़ निक लागथे!</div><div>संगी-जवंरिहा के सुग्घर गोठ-बात आय।</div><div>"कोन्दा भैरा के गोठ"- बात म--दुनिया भर के विषय हावय! राजनीति के दू चाल, वादा करथे फेर निभावत नइये, करनी अउ कथनी के भेद ल दूध-पानी सहीं अलग करके गोठियाथे!राजनीति--खाली राजनीति आय , शतरंज के खेल, तिरी-पासा! कोनो पार्टी होवय, सबो एक बरोबर।कुर्सी म बइठिन, तहां ले एक बरोबर! </div><div> कोन्दा भैरा, तीज तेवहार ल पकड़थे त छत्तीसगढ़ के सबो मूल तेवहार के इतिहास बताथें, उंखर महिमा के बखान करथें! एक -एक रीत रिवाज के सुरता देवाथे!</div><div> धरम-करम के गोठ होथे, त "आदि संस्कृति" के सुरता करके नन्दावत सनातन धरम के दुख मनाथें! कोन्दा भैरा के गोठ मा अपन देसराज के </div><div>के पहनई--ओढ़ई ल बिसार के परदेसिया रंग म रंगत लोग बर ताना कसथे!</div><div> छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियावत नकलची दरबारी मन के पोल खोलत कोन्दा भैरा के गोठ ह बियंग के धार ल तेज करथे!</div><div><br></div><div>ये बिधा के उदिम म किस्सागोई के आनन्द आथे गोठ म नाचा गम्मत के हांसी घलो होथे। ताना कसके " शब्दभेदी" बान चलाथे।</div><div> समाज म बाढ़त अपराध, चोरी ढारी, भ्र्ष्टाचार , इज्जत लुटई , सराब खोरी, फोकट म पावत चांउर अउ कामचोरी! सबो डहार--चारोमुड़ा के समस्या ऊपर कोन्दा-भैरा के नजर पड़ते! लईकन के पढई-लिखई ल लेके, अस्पताल म होवत लापरवाही अउ घोटाला के पोल खोलथे!</div><div>आखिर म गोठ ल समेटत , सुशील के ये नवा उदिम के जतका तारीफ करे जाय, कमती हे!</div><div> छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के संसार म, कोठी म। "कोन्दा-भैरा के गोठ" के स्वागत हे!" मोर असीस फलय -फुलय'"! सुशील जुग जुग जियय अउ नवा नवा सिरजन करे बर कलम चलावत रहय! </div><div>10फरवरी2024</div><div> असीस देवत,</div><div> डॉ, सत्यभामा आडिल</div><div> पूर्व अध्यक्ष,--हिन्दी अध्ययन मंडल</div><div> पं, रविशंकर वि, वि, रायपुर ,(छ,ग,)</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-25333695507590112862024-02-08T00:29:00.001-08:002024-02-08T00:29:37.611-08:00मानव जीवन का उत्पत्ति स्थल नर मादा की घाटी<div>माघ शुक्ल सप्तमी नर्मदा जयंती पर विशेष//</div><div> ** नर -मादा की घाटी **</div><div> अलग-अलग धर्मों और उनके ग्रंथों में सृष्टिक्रम की बातें और अवधारणा अलग-अलग दिखाई देती है। मानव जीवन की उत्पत्ति और उसके विकास क्रम को भी अलग-अलग तरीके से दर्शाया गया है। इन सबके बीच अगर हम कहें कि मानव जीवन की शुरूआत छत्तीसगढ़ से हुई है, तो आपको कैसा लगेगा? जी हाँ! यहाँ के मूल निवासी वर्ग के विद्वानों का ऐसा मत है। अमरकंटक की पहाड़ी को ये नर-मादा अर्थात् मानवी जीवन के उत्पत्ति स्थल के रूप में चिन्हित करते हैं।</div><div><br></div><div> यह सर्वविदित तथ्य है कि छत्तीसगढ़ के इतिहास और संस्कृति के लेखन में अलग-अलग प्रदेशों से आए लेखकों ने बहुत गड़बड़ किया है। ये लोग अपने साथ वहाँ से लाए ग्रंथों और संदर्भों के मानक पर छत्तीसगढ़ को परिभाषित करने का प्रयास किया है। दुर्भाग्य यह है, कि इसी वर्ग के लोग यहाँ शासन-प्रशासन के प्रमुख पदों पर आसीन होते रहे हैं, और अपने मनगढ़ंत लेखन को ही सही साबित करने के लिए हर स्तर पर अमादा रहे हैं। इसीलिए वर्तमान में उनके द्वारा उपलब्ध लेखन से हम केवल इतना ही जान पाए हैं कि यहाँ की ऐतिहासिक प्राचीनता मात्र 5 हजार साल पुरानी है। जबकि यहाँ के मूल निवासी वर्ग के लेखकों के साहित्य से परिचित हों तो आपको ज्ञात होगा कि मानवीय जीवन का उत्पत्ति स्थल है छत्तीसगढ़।</div><div><br></div><div> इस संदर्भ में गोंडी गुरु और प्रसिद्ध विद्वान ठाकुर कोमल सिंह मरई (अब स्वर्गवासी) द्वारा 'गोंडवाना दर्शन" में धारावाहिक लिखे गए लेख - 'नर-मादा की घाटी" पठनीय है। इस आलेख-श्रृंखला में न केवल छत्तीसगढ़ (गोंडवाना क्षेत्र) की उत्पत्ति और इतिहास का विद्वतापूर्ण वर्णन है, अपितु यह भी बताया गया है कि यहाँ के सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला पर स्थित 'अमरकंटक" मानव जीवन का उत्पत्ति स्थल है। यह बात अलग है कि आज मध्यप्रदेश अमरकंटक पर अवैध कब्जा कर बैठा है, लेकिन है वह प्राचीन छत्तीसगढ़ का ही हिस्सा। इसे यहाँ के मूल निवासी वर्ग के विद्वान 'अमरकोट या अमरूकूट" कहते हैं, और नर्मदा नदी के उत्पत्ति स्थल को 'नर-मादा" की घाटी के रूप में वर्णित किया जाता है। नर-मादा के मेल से ही नर्मदा (नरमदा, नारगोदा, नर्मदा) शब्द का निर्माण हुआ है।</div><div><br></div><div> कोमल सिंह जी से मेरा परिचय आकाशवाणी (अब दूरदर्शन) रायपुर में कार्यरत भाई रामजी ध्रुव के माध्यम से हुआ। उनसे घनिष्ठता बढ़ी, उनके साहित्य और यहाँ के मूल निवासियों के दृष्टिकोण से परिचित हुआ था, उसके पश्चात वे हमारी संस्था '"आदि धर्म जागृति संस्थान" के साथ जुड़ गये। उनका कहना है कि नर्मदा वास्तव में नर-मादा अर्थात मानवीय जीवन का उत्पत्ति स्थल है। सृष्टिकाल में यहीं से मानवीय जीवन की शुरूआत हुई है। आज हम जिस जटाधारी शंकर को आदि देव के नाम पर जानते हैं, उनका भी उत्पत्ति स्थल यही नर-मादा की घाटी है। बाद में वे कैलाश पर्वत चले गये और वहीं के वासी होकर रह गये। मैंने इसकी पुष्टि के लिए अपने आध्यात्मिक ज्ञान स्रोत से जानना चाहा, तो मुझे हाँ के रूप में पुष्टि की गई। यहाँ यह उल्लेखनीय है, कि अब भू-गर्भ शास्त्रियों (वे वैज्ञानिक जो पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास को लेकर शोध कार्य कर रहे ह़ैं, उन लोगों ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है, कि मैकाल पर्वत श्रृंखला, जिसे हम अमरकंटक की पर्वत श्रृंखला के रूप में जानते हैं, इसी की उत्पत्ति सबसे पहले हुई है, इसी लिए इस स्थल को पृथ्वी का "नाभि स्थल" भी माना जाता है।</div><div><br></div><div> मित्रों, जब भी मैं यहाँ की संस्कृति की बात करता हूं, तो सृष्टिकाल की संस्कृति की बात करता हूं, और हमेशा यह प्रश्न करता हूं कि जिस छत्तीसगढ़ में आज भी सृष्टिकाल की संस्कृति जीवित है, उसका इतिहास मात्र पाँच हजार साल पुराना कैसे हो सकता है? छत्तीसगढ़ के वैभव को, इतिहास और प्राचीनता को जानना है, समझना है तो मूल निवासयों के दृष्टिकोण से, उनके साहित्य से भी परिचित होना जरूरी है। साथ ही यह भी जरूरी है कि उनमें से विश्वसनीय और तर्क संगत संदर्भों को ही स्वीकार किया जाए।</div><div><br></div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)</div><div>मो/व्हा.9826992811<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjwpsXYWsoi6Pj_g51Y1PwHm-QcsvdkpwH6bZ_SOkEvtB-Znp_0g0gg-UO169V4AkIP2tQpA-IcdElPPj78J6MRuMEnAsCVN53JkUpYS9Z2cHPAOlxmY3UasHTbwLykxH-O1vFjdUG6OygkAPhDa4KJj3a_LooRgwYy-nmemz1PH4ACOWcTvWLMH95rClA" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjwpsXYWsoi6Pj_g51Y1PwHm-QcsvdkpwH6bZ_SOkEvtB-Znp_0g0gg-UO169V4AkIP2tQpA-IcdElPPj78J6MRuMEnAsCVN53JkUpYS9Z2cHPAOlxmY3UasHTbwLykxH-O1vFjdUG6OygkAPhDa4KJj3a_LooRgwYy-nmemz1PH4ACOWcTvWLMH95rClA" width="400">
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</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-72641653529557882842024-02-08T00:24:00.001-08:002024-02-08T00:24:47.717-08:00छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक आन्दोलन की आवश्यकता<div>छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक आन्दोलन की आवश्यकता...</div><div> किसी भी राज्य की पहचान वहाँ की भाषा और संस्कृति के माध्यम से होती है। इसी को आधार मानकर इस देश में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापन की गई थी, और नये राज्यों का निर्माण भी हुआ था।</div><div><br></div><div> छत्तीसगढ़ को अलग राज्य के रूप में स्वतंत्र अस्तित्व में आये दो दशक से ऊपर हो गया है, लेकिन अभी भी इसकी स्वतंत्र भाषाई एवं सांस्कृतिक पहचान नहीं बन पाई है। स्थानीय स्तर पर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की स्थापना कर छत्तीसगढ़ी को हिन्दी के साथ राजभाषा के रूप में मान्यता दे दी गई है, लेकिन अभी तक उसका उपयोग केवल खानापूर्ति करने से ज्यादा महसूस नहीं हो पाया है। यहाँ के राजकाज और शिक्षा में इसकी कहीं कोई उपस्थिति नहीं है, जिसकी आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है।</div><div><br></div><div> छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान के क्षेत्र में तो और भी दयनीय स्थिति है। यहाँ की मूल संस्कृति की तो कहीं पर चर्चा ही नहीं होती। अलबत्ता यह बताने का प्रयास जरूर किया जाता है, कि अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथ और उस पर आधारित संस्कृति ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति है।</div><div><br></div><div> छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़िया के नाम पर यहाँ समय-समय पर आन्दोलन होते रहे हैं, और आगे भी होते रहेंगे। लेकिन एक बात जो अधिकांशतः देखने में आती है, कि कुछ लोग इसे राजनीतिक चंदाखोरी के माध्यम के रूप में ही इस्तेमाल करते रहे हैं। जब उनकी राजनीतिक स्थिति डांवाडोल दिखती है, तो छत्तीसगढ़िया का नारा बुलंद करने लगते हैं, और रात के अंधेरे में उन्हीं लोगों से पद और पैसे की दलाली करने लग जाते हैं, ऐसे ही लोगों के कारण मूल छत्तीसगढ़िया आज भी उपेक्षित और अपने अधिकारों से वंचित है।</div><div><br></div><div> आश्चर्यजनक बात यह है कि आज तक इस राज्य में यहाँ की मूल संस्कृति के नाम पर कहीं कोई आन्दोलन नहीं हुआ है। जो लोग छत्तीसगढ़िया या छत्तीसगढ़ी भाषा के नाम पर आवाज बुलंद करते रहे हैं, एेसे लोग भी संस्कृति की बात करने से बचते रहे हैं। मैंने अनुभव किया है, ये वही लोग हैं, जो वास्तव में आज भी जिन प्रदेशों से आये हैं, वहाँ की संस्कृति को ही जीते हैं, और केवल भाषा के नाम पर ही छत्तीसगढ़िया होने का ढोंग रचते हैं। जबकि यह बात सर्व विदित है कि किसी भी राज्य या व्यक्ति की पहचान उसकी भाषा के साथ ही संस्कृति भी होती है। भाषा और संस्कृति किसी भी क्षेत्र की पहचान की दो आंखें हैं.</div><div> एेसे लोग एक और बात कहते हैं, छत्तीसगढ़ के मूल निवासी तो केवल आदिवासी हैं, उसके बाद जितने भी यहाँ हैं वे सभी बाहरी हैं, तो फिर यहाँ की मूल संस्कृति उन सभी के मानक कैसे हो सकती है? एेसे लोगों को मैं याद दिलाना चाहता हूं, यहाँ पूर्व में दो किस्म के लोगों आना हुआ था। एक वे जो यहां कमाने-खाने के लिए कुदाल-फावड़ा लेकर आये थे या जिनको कामगार बनाकर लाया गया था और एक वे जो जीने के साधन के रूप में केवल पोथी-पतरा और अन्य व्यापार रोजगार का साधन लेकर आये थे। जो लोग कुदाल-फावड़ा लेकर आये थे, वे धार्मिक- सांस्कृतिक रूप से अपने साथ कोई विशेष सामान नहीं लाए थे, इसलिए यहाँ जो भी पर्व-संस्कार था, उसे आत्मसात कर लिए। लेकिन जो लोग अपने साथ पोथी-पतरा और रोजगार लेकर आये थे, वे यहाँ की संस्कृति को आत्मसात करने के बजाय अपने साथ लाये पोथी कोे ही यहाँ के लोगों पर थोपने का उपक्रम करते रहे जो आज भी जारी है। इसीलिए ये लोग आज भी यहाँ की मूल संस्कृति के प्रति ईमानदार नहीं हैं। </div><div> अभी यहाँ राजिम के प्रसिद्ध पुन्नी मेला को परिवर्तित कर पुनः कुंभ कल्प (वास्तव में नकली कुंभ) के रूप में आयोजित किया जाने वाला है. यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है, कि ये लोग यहाँ की मूल संस्कृति के प्रति न तो पहले कभी ईमानदार रहे हैं, और न ही अब हैं.</div><div> जहाँ तक भाषा की बात है, तो भाषा को तो कोई भी व्यक्ति कुछ दिन यहाँ रहकर सीख और बोल सकता है। हम कई एेसे लोगों को देख भी रहे हैं, जो यहाँ के मूल निवासियों से ज्यादा अच्छा छत्तीसगढ़ी बोलते हैं, लेकिन क्या वे यहाँ की संस्कृति को भी जीते हैं? उनके घरों में जाकर देखिए वे आज भी वहीं की संस्कृति को जीते हैं, जहाँ से आये थे। एेसे में उन्हें छत्तीसगढ़िया की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है ? एेसे लोग यहाँ की कुछ कला को जिसे मंच पर प्रस्तुत किया जाता है, उसे ही संस्कृति के रूप में प्रचारित कर लोगों को भ्रमित करने की कुचेष्ठा जरूर करते हैं। जबकि संस्कृति वह है, जिसे हम संस्कारों के रूप में जीते हैं, पर्वों के रूप में जीते हैं। मंच पर प्रदर्शित किया जाने वाला कोई भी मंचन केवल कला के अंतर्गत आता है, संस्कृति के अंतर्गत नहीं.</div><div> आज की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है, कि हम अपनी मूल संस्कृति को जानें, समझें, उसकी मूल रूप में पहचान कायम रखने का प्रयास करें और उसके नाम पर पाखण्ड करने वालों के नकाब भी नोचें। छत्तीसगढ़ी या छत्तीसगढ़िया आन्दोलन तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक उसकी आत्मा अर्थात संस्कृति उसके साथ नहीं जुड़ जाती।</div><div><br></div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)</div><div>मो/व्हा.9826992811</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-38745693780063674712024-02-08T00:23:00.001-08:002024-02-08T00:23:22.174-08:00राजिम मेला बनाम कुंभ कल्प<div>राजिम मेला बनाम कुंभ कल्प</div><div> छत्तीसगढ़ की संस्कृति मेला-मड़ई की संस्कृति है। यहाँ के लोक पर्व मातर के दिन मड़र्ई जागरण के साथ ही यहाँ मड़ई-मेला की शुरूआत हो जाती है, जो महाशिव रात्रि तक चलती है।</div><div>मड़ई का आयोजन जहाँ छोटे गाँव-कस्बे या गाँवों में भरने वाले बाजार-स्थलों पर आयोजित कर लिए जाते हैं, वहीं मेला का आयोजन किसी पवित्र नदी अथवा प्राचीन सिद्ध शिव स्थलों पर आयोजित होता चला आ रहा है। इसी कड़ी में राजिम का प्रसिद्ध मेला भी कुलेश्वर महादेव के नाम पर आयोजित होता था। बचपन में हम लोग आकाशवाणी के माध्यम से एक गीत सुना करते थे- "चल चलना संगी राजिम के मेला जाबो, कुलेसर महादेव के दरस कर आबो।" लेकिन अब पुनः इस पारंपरिक मेला को परिवर्तित कर कुंभ कल्प के रूप में आयोजित करने का निर्णय लिया गया है.</div><div> पूर्ववर्ती सरकार के पहले पॉंच वर्ष पूर्व तक भी हम लोग इसे काल्पनिक कुंभ के रूप में भरते देखते रहे हैं. मुझे स्मरण है, इस कल्प कुंभ में शाही स्नान का भी आयोजन होता था. इसके लिए त्रिवेणी संगम स्थल के एक ओर एक छोटा तालाब नुमा गड्ढा (डबरा) बना लिया जाता था, जिसमें ऊपर के बॉंध से पानी लाकर भर दिया जाता था. फिर इसी में विशेष पर्व पर शाही स्नान का आयोजन होता था.</div><div> मुझे स्मरण है, उक्त डबरानुमा जलाशय में सैकड़ों लोगों के एक साथ स्नान करने के कारण उसका पानी प्रदूषित हो जाता था. इसलिए उसमें जो भी व्यक्ति स्नान करता था, उसे खुजली की तकलीफ जरूर होती थी. इसके संबंध में एक बार छत्तीसगढ़ के गॉंधी के नाम से प्रसिद्ध पं. सुंदरलाल शर्मा जी की पौत्री शोभा शर्मा जी ने कहा था- 'सुशील भैया, ए ह शाही स्नान नोहय, भलुक खजरी स्नान आय. हमन तो राजिम म रहिथन तभो उहाँ नहाय बर नइ जावन.' </div><div> चूंकि उस समय तक मैं राजधानी रायपुर के एक समाचार पत्र के साथ जुड़ा हुआ था, और राजिम कल्प कुंभ पर विशेषांक प्रकाशित करने की जिम्मेदारी मिलने के कारण मेरा वहाँ नियमित जाना होता था, इसलिए वहाँ की वास्तविकताओं को देखने समझने के साथ ही उस क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवियों के साथ मिलता और उनके विचारों से भी अवगत होता था.</div><div> जहाँ तक इस पारंपरिक राजिम मेला को भव्यता प्रदान करने की बात है, तो इसे हर स्तर पर स्वागत किया जाएगा। सभी लोग इससे सहमत थे, किन्तु इसका नाम और कारण को परिवर्तित करना किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करने की बात कही जाती थी । </div><div> इस बात से हम सभी परिचित हैं कि छत्तीसगढ़ आदि काल से ही बूढ़ादेव के रूप में शिव संस्कृति का उपासक रहा है, इसीलिए यहाँ के प्रसिद्ध शिव स्थलों पर ऐसे मेलों का आयोजन होता था. लेकिन जब से इसका नाम कुंभ कल्प किया गया था, तब से कुलेश्वर महादेव के नाम पर भरने वाला मेला का नाम परिवर्तित कर राजीव लोचन के नाम पर भरने वाला कुंभ कल्प किया गया था. </div><div> कितने आश्चर्य की बात है, कि यहाँ के तथाकथित बुद्धिजीवी और जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी इस पर कभी कोई टिका-टिप्पणी करते नहीं देखे जाते थे। बाद में जब हमारे जैसे कुछ सिरफिरे इस पर कलम चलाने लगे, तब पूर्व मुख्यमंत्री समेत कुछ विपक्ष के राजनीतिक लोग भी इस पर बोलने लगे थे. जबकि धंधेबाज किस्म के पत्रकार और साहित्यकार और कलाकार लोग तो वहाँ आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भागीदारी पाने के लिए लुलुवाते हुए या अपने पत्र-पत्रिका के लिए विज्ञापन उगाही करने के अलावा और कुछ भी करते नहीं पाये जाते थे।</div><div> सबसे आश्चर्य की बात तो यह है, कि यहाँ के तथाकथित संस्कृति और इतिहास के मर्मज्ञों को भी यह समझ में नहीं आया था कि महाशिव रात्रि के अवसर पर भरने वाला मेला महादेव के नाम पर भरा जाना चाहिए या किसी अन्य के नाम पर? </div><div> मित्रों, जिस समाज के बुद्धिजीवी और मुखिया दलाल हो जाते हैं, उस समाज को गुलामी भोगने से कोई नहीं बचा सकता। आज छत्तीसगढ़ अपनी ही जमीन पर अपनी अस्मिता की स्वतंत्र पहचान के लिए तड़प रहा है, तो वह ऐसे ही दलालों के कारण है। शायद छत्तीसगढ़ इस देश का एकमात्र राज्य है, जहाँ मूल निवासियों की भाषा, संस्कृति और लोग हासिए पर जी रहे हैं और बाहर से आकर राष्ट्रीयता का ढोंग करने वाले लोग तमाम महत्वपूर्ण ओहदे पर काबिज हो गये हैं।</div><div> इस देश में जिन चार स्थानों पर वास्तविक कुंभ आयोजित होते हैं, वे भी शिव स्थलों के नाम पर ही जाने और पहचाने जाते हैं, तब यह कुंभ कल्प भी कुलेश्वर महादेव के नाम पर पहचाना जाना चाहिए था? </div><div> अब देखते हैं, इस वर्ष से पुनः प्रारंभ हो रहे कुंभ कल्प में क्या कुछ देखने को मिलता है, क्योंकि यह पावन स्थल राजनीतिक दल वालों के लिए एक प्रकार से अहम तुष्टि और मनमर्जी का केंद्र बन गया है.</div><div>जय कुलेश्वर महादेव... जय राजिमलोचन.. सभी को सदबुद्धि प्रदान करें.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><div> -ठउका बात ल जाने के विचार उठत हे तोर मन म जी कोंदा.. कतकों गुनिक मन के कहना हे के चंदखुरी नॉव ह भगवान राम के बालपन म इहाँ के धुर्रा-माटी म खेले के सेती ही धराए हे.</div><div> -कइसे भला? </div><div> अरे भई.. जब लइकई म माता कौशल्या संग भगवान तीजा-पोरा माने बर इहाँ आवय, त बिहनिया ले लेके संझौती गरुवा धरसत बेरा ले उंकर मन के खुर म उड़त धुर्रा-माटी म खेलत राहय.</div><div> -अच्छा..! </div><div> -हव.. रामचंद्र के चंद्र अउ गरुवा के खुर ले उड़ियावत धुर्रा जेला खुरी कहे जाथे.. ए दूनों ले मिल के होगे- चंद्रुखुरी... इही चंद्रखुरी ह लोकरूप धरत 'चंदखुरी' होगे.</div><div>🌹</div><div>-ए ह कतका बड़ संजोग आय जी भैरा के काली जे दिन भगवान राम के अयोध्या म प्राणप्रतिष्ठा होइस, ठउका उहिच दिन हमर इहाँ के रामनामी समाज के मन के मेला घलो रिहिसे, जे ह बछर भर म एकेच दिन भराथे.</div><div> -इही ल तो भगवान के सच्चा भक्ति अउ वोला स्वीकार करना कहिथें जी कोंदा. जे मनला कभू मंदिर म खुसरे बर तक मना कर दिए रिहिन हें, आज भगवान उनला सउंहे स्वीकार कर लिस.</div><div> -हव भई.. जॉंजगीर-चांपा के एक नान्हे गाँव चारपारा के परशुराम ल दलित होए के सेती मंदिर म जावन नइ दे गे रिहिसे, तेकर सेती ए ह बछर 1890 के आसपास रामनामी समाज के स्थापना करे रिहिसे, ए कहिके के भगवान तो सबो जगा हे वोला पाए बर कोनो मंदिर जाए के जरूरत हे ना उहाँ पूजा करे के. अउ मंदिर म नइ जावन दे के विरोध स्वरूप अपन पूरा देंह म ही राम राम गोदवा डरिस. आज ए ह एक पूरा संप्रदाय के रूप धर ले हे, एकर अनुयायी मन अपन शरीर के संगे-संग घर के कोठ मन म घलो राम राम लिखवाए रहिथें. हर बछर भजन मेला के आयोजन करथें, जेमा नवा दीक्षा लेवइया मनला दीक्षा घलो देथें.</div><div>🌹</div><div>-छेरछेरा पुन्नी के जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार संगी कोंदा.. हमर पुरखा मन कतेक सुंदर परब अउ ओकर ले जुड़े परंपरा बनाए हवय ना.</div><div> -हव जी अब ए छेरछेरा ल ही देख ले छोटे बड़े सबके भेद ल भुलावत समरसता के कतेक सुघ्घर संदेश देथे.</div><div> -हव जी.. सबो झन एक-दूसर घर छेरछेरा मॉंगे बर जाथें अउ देथें घलो.. अउ एकर माध्यम ले कतकों लोककल्याण के बुता घलो हो जाथे.</div><div> -हव सिरतोन आय.. हमर गाँव के मिडिल स्कूल के भवन ल छेरछेरा मॉंग के ही बनवाए रेहेन, फेर हर बछर छेरछेरा म सकेले पइसा ले ही स्कूल म खेलकूद के सामान घलो लेवन.</div><div> -कतकों गाँव म रामकोठी घलो तो छेरछेरा के सेती ही लबालब भरे रहिथे.</div><div> -कुहकी पारत अउ डंडा नाचत छेरछेरा मॉंगे बर जावन त कतेक निक लागय ना.</div><div>🌹</div><div>-हमर इहाँ एक परंपरा हे जी भैरा के जब काकरो घर कोनो लइका के जनम होथे त किन्नर मनला वो लइका के नजर उतारे अउ बलैया ले बर विशेष रूप ले बलाए जाथे.</div><div> -हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. एला बहुते शुभ माने जाथे, तेकरे सेती किन्नर मनला अइसन बेरा म बढ़िया दान-दक्षिणा देके बिदा करे जाथे.</div><div> सही आय संगी.. अइसने अभी 22 जनवरी के जब अयोध्या म भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा होइस हे ना.. त ओकर सबले पहिली नजर उतार के बलैया लिस हमर रायपुर शहर के किन्नर सौम्या ह. </div><div> -अच्छा.. हमर रायपुर के सौम्या ह..! </div><div> -हव जी सौम्या ल एकर खातिर विशेष रूप ले नेवता भेज के बलवाए गे रिहिसे. प्राण प्रतिष्ठा म 5 हजार साधु संत अउ साध्वी मन सकलाय रिहिन हें, जेमा सौम्या घलो शामिल रिहिसे. सौम्या ह प्राण प्रतिष्ठा के बाद सबले पहिली अपन नृत्य के प्रस्तुति दिस, तहाँ ले फेर भगवान के नजर उतार के बलैया लिस. एकर खातिर हमर रायपुर के सौम्या ल इतिहास म सुरता करे जाही, के वो ह पहला किन्नर रिहिस जे ह भगवान के नजर उतार के बलैया लिस.</div><div>🌹</div><div>-हमर इहाँ जब कोनो देवी-देवता के पूजा उपासना के बाद घलो जब गांव म या हमर जिनगी म आय विपदा दूरिहा नइ जाय, त वो देवता ल माई भंगाराम के अदालत म शिकायत कर के सजा दे जाथे जी भैरा.</div><div> -अच्छा.. अइसनो होथे जी कोंदा..! </div><div> -हव.. केशकाल घाटी के ऊपर जेन भंगाराम माई के मंदिर हे ना उहाँ हर बछर भादो महीना के अंधियारी पाख म शनिच्चर के दिन भादो जातरा के आयोजन करे जाथे, वोमा दोष सिद्ध होय म सजा दे जाथे, जेमा दोष के छोटे बड़े के आधार म निलंबन, मान्यता समाप्ति या सजा-ए-मौत तक के सजा सुनाए जाथे.</div><div> -वाह भई..! </div><div> -देवी देवता के पक्ष रखे के घलो मौका मिलथे, जेमा उंकर प्रतिनिधि के रूप म पुजारी, गायता, सिरहा, मांझी या मुखिया उपस्थित रहिथे.</div><div> -ए परंपरा ह तो सुनेच म अद्भुत जनावत हे जी..! </div><div> -हाँ.. भंगाराम माई जगा जाए के पहिली सेवा समिति के सदस्य मनला देवी देवता के प्रतीक ल थाना लेगना परथे. उहाँ थाना म तैनात जवान मन देवी देवता के पूजा करथें, फेर पुलिस के सुरक्षा म देवी देवता मनला भंगाराम माई मंदिर तक लेगे जाथे.</div><div>🌹</div><div>-अभी एक आध्यात्मिक कथावाचक के पंडाल म इहाँ के एक नामी हास्य कवि ल छत्तीसगढ़ी लोककला के प्रदर्शन करे बर केहे गिस त जानत हस जी भैरा वो का सुनाइस तेला? </div><div> -अरे आध्यात्मिक पंडाल आय त कोनो ज्ञान-दर्शन ऊपर आधारित लोककला के बात बताइस होही जी कोंदा.</div><div> -नहीं संगी.. वो सुनाइस- सबके लउठी रिंगी-चिंगी, मोर लउठी कुसवा रे.. अउ झींक-पुदक के डौकी लानेंव तेनो ल लेगे मुसवा रे.. </div><div> -अरे ददा रे.. आध्यात्मिक पंडाल म अइसन उजबक गोठ गा...! </div><div> -हव भई.. मोला समझ नइ आइस, के वो तथाकथित महान हास्य कवि ह छत्तीसगढ़ के लोककला के प्रदर्शन करिस या अपन फूहड़ सोच के ते?</div><div> -ए तो फूहड़ सोच के ही प्रदर्शन आय संगी.. राउत नाचा के दोहा ही सुनाना रिहिसे, त एक ले बढ़ के एक ज्ञान अउ दर्शन के दोहा हे तेला सुनाना रिहिसे, फेर ए हास्य वाले मन न तो कोनो स्थान के महत्व ल समझय अउ ना मंच के ही गरिमा ल.</div><div>🌹</div><div>-हमर पुरखा मन दान के अबड़ महात्तम बतावय जी भैरा.</div><div> -हव सही आय जी कोंदा.. दान के अबड़ महात्तम हावयच.. अन्नदान, जलदान जइसन कतकों दान फेर ए सबले बढ़ के गुप्त दान ल काहंय, जब कोनो विशेष अवसर म दिए जावय.</div><div> -हव जी, फेर अब तो लोगन दान ल प्रदर्शन के जिनिस बनावत जावत हें.</div><div> -सही आय जी.. अब तो पेपर म समाचार अउ विज्ञापन तक छपवाथें, के फलाना ल अतका दान करे हवन कहिके.</div><div> -बहुत अकन संस्था वाले मन तो इहिच उदिम करथें. आठ-दस झन संघरा जाथें, अउ एक ठन आमा ल एकाद झन रोनहुत लइका ल धरावत फोटो खिंचवा लेथें.</div><div> -कभू कभू तो अइसनो देखे ले मिलथे, के जतका के दान नइ दे राहंय, तेकर ले जादा पइसा देके वोकर विज्ञापन करथें. तोला का जनाथे संगी.. अइसन दान के कोनो महत्व हे.. का अइसन किसम के दान ल परमार्थ या पुण्य के भागी होय के श्रेणी म रखे जाही?</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-8431520822680484122024-01-22T22:50:00.001-08:002024-03-02T22:39:25.498-08:00हमर छत्तीसगढ़ के रामनामी<div>
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बेरा इहाँ के मुख्यमंत्री निवास म मोर एकर मन संग भेंट होए रिहिसे त उंकर संग मुंहाचाही होए रिहिसे. वोमा के एक सियान ह कहे रिहिसे- 'आज लोगन हमन ल रामनामी के रूप म भगवान राम के उपासक बताए के प्रयास करथे, फेर हमन अयोध्या वाले राजा दशरथ के बेटा राम के नहीं, भलुक सर्वव्यापी निराकार ब्रह्म ल राम के रूप म मानथन अउ ओकरे उपासना करथन. </div><div> रामनामी समाज के लोगन के बिहनिया सूत के उठे ले लेके रतिहा सोवा के परत ले पूरा बेरा राम के जाप अउ सुमरनी म ही बीतथे. ए मन निर्गुण ब्रम्ह के उपासना करथें तेकर सेती न तो कोनो मंदिर जावंय अउ न कानो मूर्ति के पूजा करंय. फेर हां.. पूजा के बेरा इन एक लकड़ी के खंभा गड़ियाथें. सरी अंग म राम राम तो गोदवाएच रहिथें, इंकर कपड़ा-लत्ता अउ घर के कोठ मन म तको राम राम लिखाय रहिथे.</div><div> निर्गुण उपासना के कतकों संप्रदाय म लंबा चोंगा गढ़न के कुर्ता या सलूखा पहिने के परंपरा दिखथे, ठउका अइसनेच इहू मन पॉंव के घुठुवा तक लामे कपड़ा पहिरथें. पॉंव म घुंघरू बांधथें अउ मुड़ म मंजूर पॉंखी के मुकुट पहिरथें.</div><div> ए रामनामी समाज वाले मन के जीविका के मुख्य साधन खेती-किसानी ही आय. अब तो इंकर मन के संख्या पहिली ले थोकिन कम जनाथे, फेर बछर 1920 के आसपास जब एकर संस्थापक परशुराम ह देंह त्याग करिस वो बखत इंकर संख्या 20,000 अकन रिहिसे.</div><div> अब तो रामनामी समाज के उपासक मनला देश के कतकों जगा के आध्यात्मिक अउ सांस्कृतिक आयोजन म घलो बलाए जाथे, जिहां ए मन अपन निर्गुण भक्ति मार्ग के अंतर्गत प्रस्तुति देथें.</div><div> कतकों लोगन रामनामी मनला कबीर पंथ या सतनाम पंथ आदि ले जोड़े के प्रयास करथे, फेर ए ह सही नइ जनावय. जइसे इंकर जुड़ाव अयोध्या वाले राम संग नइए ठउका वइसनेच कबीर या सतनाम वाले निर्गुण उपासना संग घलो नइए. ए मन एक स्वतंत्र उपासना मार्ग के अनुयायी आयं, जिंकर अब तो स्वतंत्र चिन्हारी घलो बनगे हवय.</div><div> रामनामी समाज वाले मन हर बछर एक जबर मेला के आयोजन करथें, जेमा सबो रामनामी जुरियाथें. ए मेला के अवसर म जे मन रामनामी उपासना के भक्ति मार्ग म आना चाहथें, वो मनला दीक्षा दिए जाथे.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-79728506548474017252024-01-20T03:35:00.001-08:002024-02-01T17:18:57.919-08:00बोइर के झुंझकुर म मिलिस नवा माचिस<div>वो चैत नवरात के सुरता//</div><div>जब बोइर के झुंझकुर म मिलिस नवा माचिस </div><div> भगवान राम के ममियारो चंदखुरी के माता कौशल्या धाम तब अतका सुघ्घर रूप नइ धरे पाए रिहिसे. मोर साधना काल के चैत नवरात के बेरा आय. </div><div> बछर 1995 के चैत नवरात. वो बखत मैं साधना के अंतर्गत हफ्ता म एकाद दू दिन गाँव अड़सेना म शीत कुमार साहू जी के इहाँ कभू-कभार रुक के कुछू कुछू आवश्यक जप-तप कर लेवत रेहेंव. </div><div> एक दिन शीत कुमार कहिथे- चलव गुरुदेव चंदखुरी म कौशल्या माता के दरस कर आथन. मोर शुरू ले आदत रिहिसे- जइसे मैं सावन सोमवार के शिवजी के मंदिर दरस करे बर चल देवत रेहेंव, ठउका वइसनेच नवरात म कोनो न कोनो माता के ठउर म घलो पहुँची जावत रेहेंव. </div><div> शीत कुमार के बात मोला जंचीस. हव एदे लकठा के तो बात आय. सइकिल म जाबो तभो घंटा भर म अड़सेना ले चंदखुरी पहुँच जाबो. </div><div> हमन दू-चार मनखे सइकिल के सवारी करत चंदखुरी पहुँच गेन. वो बखत चंदखुरी के कौशल्या धाम ह अतका विकसित नइ होए रिहिसे. तब तरिया के पानी ल नहाक के मंदिर जाना परय. गाँव वाले मन नवरात के बेरा म मंदिर ले तरिया के पार तक बॉंस अउ बल्ली मन ल बॉंध के चैली के रस्ता बना दे राहय. उही रच-रच बाजत चैली म रेंगत हमन कौशल्या मंदिर गेन. </div><div> कौशल्या मंदिर के दरसन के ए ह मोर पहला मौका रिहिसे. चंदखुरी ले मोर गाँव जादा दुरिहा नइए, फेर शायद माता जी के दरसन के भाग पहिली नइ जोंगाय रिहिसे.</div><div> तब पूरा मंदिर परिसर अद्दर असन दिखत राहय. गर्भगृह म माता जी के नवरात वाले जोत जलत राहय. गाँव के बइगा अउ सेउक मन उंकर सेवा म लगे राहंय. हमन जब उहाँ पहुँचेन त मंझनिया होगे राहय, तेकर सेती दर्शक के रूप म एके-दुए लोगन वो मेर रहिन. मंदिर के बाहिर म एक खप्पर माढ़े राहय, तेकरे आगी म सिपचा-सिपचा के सब हूम-धूप अउ अगरबत्ती बारत राहंय. फेर मोर गुरु ह मोला अगरबत्ती आदि बारे बर आरुग आगी के उपयोग करे के सीख दिए रिहिसे, तेकर सेती मैं वो खप्पर के आगी म अगरबत्ती नइ बारेंव.</div><div> उहाँ जतका लोगन रिहिन सबो जगा माचिस आदि मॉंगेंव, तेमा आरुग आगी म अगरबत्ती सिपचा सकंव, फेर वो बखत ककरोच जगा माचिस नइ रिहिस.</div><div> मैं अबड़ जुवर ले उही जगा खड़े खड़े माता कौशल्या ल सुमिरत खड़ेच रेहेंव. फेर मन म का होइस ते मंदिर के परिक्रमा करे लगेंव. वो बखत मंदिर परिसर एकदम अद्दर राहय. चारों मुड़ा कांटा-खुंटी जामे अउ बगरे राहय. उखरा पॉंव रेंगे म घलो अलहन बानी के जनावय. तभो ले मैं गुनेंव- जादा नहीं ते कम से कम एक भॉंवर तो किंजरबेच करहूं.</div><div> हिम्मत कर के माता कौशल्या ल सुमिरत, के हे दाई तोर दरबार म मैं आज पहिली बेर आए हौं, अउ तोर ठउर म बिन अगरबत्ती जलाए चल देहूं तइसे जनाथे. परिक्रमा करत मंदिर के पाछू मुड़ा पहुंचेंव, त एक झुंझकुर बोइर के पेड़ म ओधे एक पखरा देखेंव. वो पखरा म जटायु के चित्र बने रिहिसे. आज इही स्थान ल जटायु मोक्ष स्थल के रूप म बताए जाथे. अब तो ए जगा के बोइर पेड़ अउ सब कटही झाड़ी मन कटा के चिक्कन चॉंदन ठउर बनगे हे.</div><div> मोला उही झुंझकुर बोइर पेड़ के एक डारा म एकदम नवा माचिस टंगाय दिखिस. पहिली तो बड़ा ताज्जुब लागिस के अइसन अलकर जगा म कोन नवा माचिस ल मढ़ाय होही कहिके. मैं एती-ओती चारों मुड़ा ल देखेंव शायद ककरो होही त पूछ के अगरबत्ती जलाए बर मॉंग लेहूं कहिके. फेर वो जगा तो कोनोच नइ दिखिन.</div><div> फेर का गुनेंव ते वो माचिस ल धर के मंदिर जगा आएंव अउ भीतरी म जाके अगरबत्ती जला के माता कौशल्या के जोहार पैलगी करेंव अउ संग व ओला धन्यवाद घलो देंव के दाई तैं मोला अगरबत्ती जलाए के ठउका अवसर दिए तेकर बर जोहार हे.</div><div> बाद म जब अगरबत्ती जला के मैं मंदिर भीतर ले निखलेंव, त शीत कुमार ह पूछीस- काकर जगा माचिस भीड़ा डारे गुरुदेव? त वोला सबो किस्सा ल बताएंव, अउ फेर माचिस ल वापिस उही बोइर पेड़ के झुंझकुर म मढ़ाए के बात कहेंव, त शीत कुमार कहिथे- ए ह कोनो दूसर के नोहय गुरुदेव.. ए ह तोरेच आय. माता जी ह तोला अपन पूजा करे बर दिए हे, तभे तो जिहां कोनो मनखे नइ जा सकय, तिहां तोला एकदम नवा माचिस बिन सील टूटे वाला मिले हे, उहू म बोइर पेड़ के झुंझकुर म. अइसे काहत वो ह वो माचिस ल अपन पेंठ के खीसा म धर लिस अउ घर आए के बाद पूजा ठउर म चिनहा के रूप म मढ़ा दिस. शायद आज तक वो माचिस ह वोकर पूजा ठउर म माढ़े होही.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा.9826992811<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-60670692732353321822024-01-17T21:47:00.001-08:002024-01-17T21:47:40.518-08:00कोंदा-भैरा के गोठ-13<div>कोंदा-भैरा के गोठ-13</div><div><br></div><div>-जब इंदिरा गाँधी ह ए देश के प्रधानमंत्री रिहिसे तेन बखत मीसा लगा के अबड़ झन सामाजिक अउ राजनीतिक कार्यकर्ता मनला जेल म धाॅंध दे रिहिसे तेकर सुरता हे नहीं जी भैरा? </div><div> -खंचित सुरता हे जी कोंदा.. इहाँ तो ए मनला लोकतंत्र सेनानी के रूप म सम्मान राशि घलो दे जावत रिहिसे.</div><div> -हाँ.. अब फेर ए मनला सम्मान राशि मिलइया हे, जेला पाछू के सरकार ह बंद कर दे रिहिसे.</div><div> -ए तो बने बात आय संगी.. जइसे देश के आजादी खातिर आन्दोलन करइया मनला सम्मान दिए गइस वइसने लोकतंत्र ल बचाने वाला मनला घलो सम्मान मिलना चाही, फेर मोला आजतक एक बात के गजब ताज्जूब होथे संगी.</div><div> -का बात के जी? </div><div> -भई छत्तीसगढ़ राज खातिर घलो तो इहाँ के लोगन कतकों पीढ़ी तक सरलग संघर्ष करत रहें हें, त फेर ए छत्तीसगढ़ राज आन्दोलनकारी मनला आज तक कोनो किसम के मान-सम्मान काबर नइ दिए जाय?</div><div>🌹</div><div>-सकट जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार जी कोंदा.. कइसे आजे आय का जी संगी.</div><div> -हव आज छेरछेरा परब के बाद के चउथ आय ना.. लगते माघ के? </div><div> -हव आय तो.</div><div> -हाँ आज महतारी मन अपन लइका मनला जम्मो किसम के संकट ले बचाए खातिर उपास रइहीं अउ रतिहा चौथ के चंदा ल अरघ देके फरहार करहीं.</div><div> -हाँ करथें तो जी.. अइसने कमरछठ म घलो सगरी म शिव पार्वती के पूजा कर के लइका मनला पिड़ौरी छूही के पोतनी म मार के उपास टोरथें.</div><div> -हव.. महतारी मन बर तो लइका मन ही सबले बढ़ के होथे.. एकरे सेती उन इंकरे चिंता फिकर अउ जतन जादा करथें. अउ तैं जानथस आज के परब ल का के सेती मनाए जाथे? </div><div> -बताना भई. </div><div> -भगवान गणेश के पहिली वाले मुड़ी के सुरता अउ सम्मान म. अभी जेन फोटो म देखथन ना.. ए ह बाद म जब भोलेनाथ ह हाथी के मुड़ी ल लगाए रिहिसे तेन वाला आय. एकर पहिली शिव जी ह वोकर मुड़ी ल काट दिए रिहिसे ना.. उही कटे वाले मुड़ी ह चंदा म जाके समाहित होगे रिहिसे. आज संकटी चतुर्थी के जेन चंदा ल अरघ दिए जाथे तेन उही गणेश जी ल देने वाला अरघ आय.</div><div>🌹</div><div>-संक्रांति जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार संगी कोंदा.. फेर एला तो काली 14 जनवरी के जोहारे रेहेन का? </div><div> -हाँ फेर अब अवइया 72 बछर तक 15 जनवरी के जोहारबोन.</div><div> -वाह भई..! </div><div> -ए ह सुरूज देवता के हर बछर 20 मिनट देरी ले धनु राशि ले मकर राशि म जाए के सेती होवत हे संगी.</div><div> -अच्छा..! </div><div> -हहो.. जे मन सुरूज, चंदा अउ जम्मो ग्रह नक्षत्र मन के सरलग गिनती करत रहिथें, तेकर मन के कहना हे- सुरूज देवता ह हर बछर धनु राशि ले मकर राशि म जाय म 20 मिनट के देरी करत जावत हे. ए बीस मिनट ह 72 बछर म पूरा 24 घंटा के माने एक दिन अउ रात के फरक पर जाथे, एकरे सेती ए संक्रांति ह बछर 2008 ले ही 15 जनवरी के होगे रिहिसे, फेर वोकर बेरा ह सुरूज देवता के संझौती बूड़े के पहिली हो जावत रिहिसे तेकर सेती 14 जनवरी के ही मकर संक्रांति मनावत आवत रेहेन, फेर ए बछर 14 जनवरी के रतिहा 9.35 बजे ही सुरूज बूड़गे रिहिसे, तेकर सेती उदय तिथि म 15 जनवरी के मकर संक्रांति मनावत हावन अउ 2081 तक 15 जनवरी के मनाबो तहाँ ले 16 जनवरी जोंगाही.</div><div>🌹</div><div>-कभू-कभू आस्था ह अंधविश्वास अउ नासमझी के चोला ओढ़ लेथे जी भैरा.</div><div> -कइसे गढ़न के जी कोंदा? </div><div> -अब देखना 22 जनवरी के भगवान राम के अयोध्या म बनत नवा मंदिर म प्राणप्रतिष्ठा हे, त कतकों अइसन गर्भवती महतारी हें जे मन चाहत हें के उंकर लइका के जनम उहिच दिन होवय, तेमा उनला भगवान के बिराजे के सुरता सबर दिन राहय अउ वोकर लइका ह भगवाने कस भागमानी हो जाय. ज्योतिष मन घलो कहि दे हें के वो दिन होवइया लइका मन पराक्रमी अउ भाग्यशाली होहीं कहिके.</div><div> -अच्छा... प्राकृतिक रूप ले अइसन होवत हे त एमा बुराई का हे जी.. ए तो बने बात ए. </div><div> -प्राकृतिक नहीं जी संगी.. ए गर्भवती मन डॉक्टर मन जगा संपर्क करत हें, तेमा आॅपरेशन के माध्यम ले उही दिन लइका जनम ले सकय. </div><div> -प्राकृतिक रूप ले उही दिन जनम होय ले वो दिन के जेन ग्रह नक्षत्र के योग होही तेकर सुफल मिल सकथे, फेर अप्राकृतिक रूप ले बरपेली जनम देवाय म घलो उही फल मिल सकही का.. ए बात के संसो जनाथे संगी.</div><div>🌹</div><div>-बसंत पंचमी के जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार संगी कोंदा.. अब मौसम ह थोकिन निक असन जनाइस ना.</div><div> -हव जी सरस्वती दाई के जयंती संग जाड़ के दंदोरई ह उरके असन भावत हे. </div><div> -हव.. फेर ए बसंत पंचमी ह हमर छत्तीसगढ़ म अंडा पेड़ गड़ियाए के अउ नंगाड़ा गदकाए के घलो परब आय जी.</div><div> -हाँ ए बात तो हे.. होले डांड़ ठउर म रोज रतिहा फाग सर्राबो जी अउ होलिका ल बढ़ावत जाबो.</div><div> -फेर हमन छत्तीसगढ़ म जेन होले बढ़ोथन वो ह होलिका नहीं संगी.. कामदेव के प्रतिरूप आय. </div><div> -अच्छा..! </div><div> -हमर इहाँ कामदहन के परब मनाए जाथे. वोकरे सेती बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक के लगभग चालीस दिन होले डांड़ ठउर म वासनात्मक गीत अउ नृत्य आदि के चलन चलथे, काबर ते कामदेव अउ ओकर सुवारी रति मिल के शिव तपस्या भंग करे बर अइसने चरित्तर रचे रिहिन हें.</div><div> -हव जी.. होलिका तो सिरिफ एके दिन म चीता रचवा के खुद वोमा भसम होगे रिहिसे, तब चालीस दिन के परब काबर? अउ वासनात्मक शब्द, नृत्य अउ गीत ले ओकर का संबंध?</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-60590542150792251582024-01-16T19:14:00.001-08:002024-01-16T19:14:34.313-08:00कोंदा-भैरा बर दू डांड़.. परदेशी राम वर्मा<div>'कोंदा-भैरा के गोठ' बर मोर दू डांड़</div><div>-डॉ. परदेशी राम वर्मा</div><div><br></div><div> छत्तीसगढ़ी भाषा बर लइकापन ले संसो करइया सुशील भोले ह जिनगी भर ठोसलगहा काम करिस. रोजी-रोजगार, पइसा-कौड़ी कुछू ल अपन जीवन म ओहा कमतिहा महत्तम के समझिस अऊ भाषा-संस्कृति, छत्तीसगढ़ महतारी के जय जयकार के बूता म भिड़गे. हरि ठाकुर, पवन दीवान के जौन परंपरा हे, वोला सुशील ह अपन पीढ़ी म सबले बढ़िया समझ के आगू बढ़े के कोशिश करिस. अब चारों मुड़ा ओकर नाव हे. छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखक अऊ छत्तीसगढ़ी संस्कृति धरम के मरम जनइया के रूप म. </div><div> पहिली तुतारी के चार छ: डांड़ रोज लिखिस. ओकर लेख, कविता म जौन मरयादा अऊ ठठ्ठा हे वोहा ओला पाठक मन के दुलरवा लेखक बनाइस. पेपर वाले मन सुशील के रचना ल जगा तो दीन फेर ओकर अंतस के पीरा के भभका ल जादा नइ झेले सकिन त सुशील ह सोशलमीडिया ला अपन बात केहे बर मंच बनाइस. अऊ होए लागिस चारों मुड़ा सोर. कोंदा-भैरा के गोठ ल दिनों दिन पेपरो वाला मन छापे लगिन.</div><div> कोंदा-भैरा के गोठ म छत्तीसगढ़ी भाषा के मिठास, बानगी, बियंग के धार, विषय के जानकारी के रंग देखते बनिस. बहुत लोकप्रिय होइस ये लेखन हा. साल भर सुशील हा एला लिखिस. अब एक बछर पूरा होइस त राजभाषा आयोग के सचिव अनिल भतपहरी जी हा आगू बढ़ के एला पीठ थपथपाइस. आशा हे जल्दी छप के किताब के रूप म हमर हाथ म आही 'कोंदा-भैरा के गोठ' हा. </div><div> नाव गजब सुग्घर चुनिस सुशील हा.</div><div> अपन जीवन म लगातार अभाव अऊ नाहक विरोध ला झेलत सुशील हा ताल ठोक के सच्चाई लिखथे.</div><div> सच के जर पताल म ये कहावत हे. आय हे तेन अपन जाय के बेरा म जाबे करही, फेर कोनो मनखे अपन काम के कारण सदा सुरता करे के योग्य बन जाथे.</div><div> सुशील भोले हा सदा अइसने काम करे हे. </div><div> उम्मर म मोर ले छोटे ए तब आसिरबाद अऊ संगवारी लेखक साथी ये त बधाई, मंगलकामना.</div><div> -डॉ. परदेशी राम वर्मा</div><div> संपादक- अगासदिया</div><div>अध्यक्ष छत्तीसगढ़ जनवादी लेखक संघ</div><div>एल. आई. जी.18, आमदी नगर, हुडको, भिलाई (छत्तीसगढ़)</div><div>मुंहाचाही- 9827993494</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-45810938906557677012024-01-16T04:34:00.000-08:002024-01-16T04:35:00.628-08:00अपन बात.. कोंदा भैरा के गोठ<div>अपन बात//</div><div>सोशलमीडिया म कॉलम लिखे के उदिम.. </div><div> </div><div> वइसे तो मैं रायपुर ले निकलइया दैनिक अखबार नव भास्कर, तरुण छत्तीसगढ़, अमृत संदेश मन म साप्ताहिक स्तंभ या कहिन कॉलम गजब लिखत रेहे हौं. साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक, इतवारी अखबार अउ मासिक 'मयारु माटी' म घलो थोर-बहुत लिखे के उदिम होय रिहिसे, फेर सोशलमीडिया म रोज के लिखना ह नवा अनुभव अउ प्रयोग आय. </div><div><br></div><div> दैनिक 'राष्ट्रीय हिन्दी मेल' म वइसे कुछ दिन तक 'तुतारी' शीर्षक ले रोज चार-छै डांड़ म लिखे के उदिम घलो करत रेहेंव, जेन वो अखबार के पहला पृष्ठ म पहला काॅलम के सबले नीचे के भाग म छपय. फेर वो लिखई म अखबार के संपादक अउ मालिक के राजनीतिक विचारधारा अउ संबंध के सुरता घलो राखे बर लागय, तेकर सेती मन के बात लिखना ह मुश्किल कस जनावय. एकरे सेती तीन-चार महीना के पाछू लिखना बंद कर दिए रेहेंव.</div><div><br></div><div> जबकि ए सोशलमीडिया के प्लेटफार्म ह तो 'अपन हाथ जगन्नाथ' बरोबर हे. जस मन म विचार आवय लिख लौ, फेर एहू मा मोर संग हर वर्ग के लोगन जुड़े हें. राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यवसायी, गृहस्थ, छात्र आदि सबो किसम के लोगन हें, त थोर-बहुत उंकरो मन के चेत राखे बर लागथे.</div><div><br></div><div> वइसे तो मैं पहिली सोशलमीडिया म रोज के चार डांड़ के एक नान्हे कविता संग संदर्भित फोटो पोस्ट करे के उदिम घलो करत रेहेंव, जेला लोगन गजब सॅंहरावत रिहिन हें, फेर एकर मन के विषय कोनो परब, तिहार या विषय विशेष ही राहत रिहिसे. कतकों अइसन विषय अउ घटना हे, जे मन एमा संघर नइ पावत रिहिन हें, जे मन म अपन विचार आना ज़रूरी जनावय.</div><div><br></div><div> अइसने बेरा म एक दिन अखबार म पढ़े बर मिलिस, के हमर इहाँ के एक प्रतिष्ठित राजनीतिक मनखे ह दूसर राज्य म जाके उहाँ के महतारी भाखा के मान बढ़ावत हे. मोला सुरता हे, ए उही मनखे आय, जेकर जगा हमन हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म शामिल करे खातिर संसद म बात रखे बर गोहराए रेहेंन, तब वो ह हमन ल लंदर-फंदर जवाब दे के टरका दिए रिहिसे. तब हमन वो बखत वोकर ए व्यवहार के निंदा करत रायपुर के अखबार मन म नंगत के समाचार छपवाए रेहेन. आज जब अखबार म वोकर दूसर राज्य के महतारी भाखा खातिर उमड़त मया ल देखेव त मोला थोक रिस असन लागिस, त फेर गुनेंव के अइसन राजनीतिक दुमुंहा मन बर कुछू सोंटा वाले गोठ घलो होना चाही. तब मन म विचार आइस, के सोशलमीडिया म चार-छै शब्द अउ डांड़ म अपन बात कहे वाले गोठ लिखना चाही. </div><div><br></div><div> गूगल महराज के कृपा ले एक ठन कार्टून मिलिस, जेमा अइसे-तइसे कर के लिखेंव -'कोंदा-भैरा के गोठ' अउ वोमा अपन मन म उठत बात ल लिख के सोशलमीडिया के जम्मो प्लेटफार्म म ढील दिएंव.</div><div><br></div><div> संयोग ले वो दिन (26 फरवरी 2023) छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के वार्षिक जलसा रायपुर के दूधाधारी संत्सग भवन म होवत रिहिसे. चारों मुड़ा के छत्तीसगढ़ी प्रेमी मन जुरियाए रिहिन हें. मोर वो पोस्ट के गजब तारीफ करीन अउ ए उदिम ल सरलग लिखे के बात कहीन. कतकों झन फोन अउ मेसेज घलो करीन. फेर तो चारों मुड़ा ले लोगन के सुघ्घर सुघ्घर प्रतिक्रिया सरलग आवत गिस.</div><div><br></div><div> आगू चल के कोंदा-भैरा वाले कार्टून ल साहित्यकार संगी दिनेश चौहान जगा छत्तीसगढ़ी परिवेश म बनवाएंव. अब तक ए धारावाहिक ह लोकप्रिय होए लगे रिहिसे, काबर ते कतकों झन एला अपन टाईम लाईन के संगे-संग अउ आने समूह म शेयर करे लगे रिहिन हें. कतकों झन तो एमा लिखे खातिर विषय घलो सुझाए लगिन अउ कतकों साहित्यिक संगी मन तो कोंदा-भैरा ल संबोधित करत रचना घलो लिखे लगिन. ए सबो ह ए धारावाहिक के सफलता के संगे-संग मोर बर प्रोत्साहन के बुता करीस.</div><div><br></div><div> आगू चल के रायगढ़ ले प्रकाशित होवइया दैनिक 'सुघ्घर छत्तीसगढ़' ह 4 सितम्बर '23 ले अपन पहला पेज के पहला कॉलम म एला सबले ऊपर म ठउर दिए लगिस. एकर खातिर मैं सुघ्घर छत्तीसगढ़ के संपादक यशवंत खेडुलकर जी के संग शमीम भाई अउ उंकर जम्मो संगी मन के जोहार करत हौं.</div><div><br></div><div> सुघ्घर छत्तीसगढ़ असन ही कोरबा अउ रायपुर ले संघरा छपइया अखबार दैनिक 'लोकसदन' के 'झॉंपी' अंक म घलो कोनो कोनो कड़ी ल व्यंग्य के रूप म छापे गे हवय, तेकर खातिर मैं झॉंपी के जोखा करइया सुखनंदन सिंह धुर्वे 'नंदन' जी ल जोहार करत हौं.</div><div> </div><div> सोशलमीडिया म जुड़े मोर जम्मो पाठक मन के घलो मैं जोहार करत हौं, जेकर मन के प्रोत्साहन अउ पंदोली देवई के सेती ए धारावाहिक ह एक किताब के रूप म आप सबके आगू म आ पावत हे.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-39875374391732135772024-01-15T15:19:00.001-08:002024-01-15T15:19:57.608-08:00बछर भर के 'कोंदा-भैरा.. '<div>बछर भर के 'कोंदा-भैरा.. '</div><div> सोशलमीडिया म धारावाहिक के रूप म लिखे के उदिम करे 'कोंदा-भैरा के गोठ' ल आज 26 फरवरी'24 के एक बछर पुरगे.</div><div><br></div><div> एक राजनीतिक मनखे के महतारी भाखा खातिर दिखे दूमुंहा चरित्तर के सेती आक्रोश के रूप म 26 फरवरी'23 ले चालू होय 'कोंदा-भैरा के गोठ' ल शुरू-शुरू म व्यंग्य के शैली म लिखे के उदिम करे गिस, फेर धीरे-धीरे अइसनो विषय मनला एमा संघारे के मन होइस, जे मन म विशुद्ध गंभीरता अउ चिंतन-मनन जरूरी रिहिसे, तेकर सेती ए धारावाहिक के लेखन शैली अउ विषय म विविधता आवत गिस.</div><div><br></div><div> शुरू-शुरू म जब ए धारावाहिक ल लिखे लगेन त लोगन के गजब प्रतिक्रिया आवय, कतकों झन फोन अउ मेसेज कर के घलो प्रोत्साहित करंय, फेर धीरे-धीरे एमा कमी आवत गिस, जेन स्वाभाविक घलो हे. वइसे एक-दू लोगन कोंदा-भैरा के ही शैली म लिखे के प्रयास घलो करीन, भले उन वोला सरलग नइ चला पाईन. कतकों लोगन ए धारावाहिक के कतकोन कड़ी ल अपन टाईम लाईन के संगे-संग अउ आने समूह मन म शेयर कर देथें, ठउका अइसनेच कतकों झन तो कोंदा अउ भैरा शब्द के प्रयोग ल अपन रचना मन म उपयोग करत रहिथें. ए सबो ह ए धारावाहिक के सफलता के चिन्हारी तो आएच मोर बर प्रोत्साहन के उदिम घलो आय. </div><div><br></div><div> बछर 2023 के 4 सितंबर ले रायगढ़ ले दैनिक के रूप म छपत अखबार 'सुघ्घर छत्तीसगढ़' के पहला पेज के पहला कॉलम म एला सबले ऊपर म सरलग ठउर दिए जावत हे, इहू ह मोर बर प्रोत्साहन के बड़का कारण आय, एकर खातिर मैं सुघ्घर छत्तीसगढ़ के संपादक यशवंत खेडुलकर जी अउ शमीम भाई के संग जम्मो सहयोगी मन ल जोहार करत हौं.</div><div><br></div><div> 'सुघ्घर छत्तीसगढ़' असन ही कोरबा अउ रायपुर ले संघरा छपइया अखबार दैनिक 'लोकसदन' के 'झॉंपी' अंक म घलो 'कोंदा-भैरा के गोठ' के कोनो कोनो कड़ी ल कभू-कभू व्यंग्य के रूप म ठउर दे दिए जाथे. एकरो खातिर मैं 'झॉंपी' के सरेखा करइया सुखनंदन सिंह धुर्वे 'नंदन' जी के जोहार करत हौं.</div><div><br></div><div> चार-छै डांड़ मन म संवाद के रूप म लिखे जावत ए धारावाहिक ल कभू छत्तीसगढ़ी साहित्य के अंग माने जाही या नइ माने जाही, ए बात के तो मोला आकब नइए, फेर हाॅं.. छत्तीसगढ़ी ल विविध शैली अउ रूप म लिखे जाना चाही, ए बात के मैं समर्थक हौं. मोर मानना हे- हम सिरिफ कविता, कहानी जइसन पारंपरिक लेखन रूप तक ही सीमित रहिबोन त ए भाखा ल सर्वग्राह्य भाखा नइ बना पावन. मैं चाहथौं के छत्तीसगढ़ी के पाठक एक इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउंटेंट, कृषि वैज्ञानिक ले लेके सामाजिक, राजनीतिक अउ आध्यात्मिक सबोच वर्ग के लोगन बनंय, अउ अइसन तभे हो सकथे जब छत्तीसगढ़ी म कविता, कहानी ले इतर अउ जम्मोच विषय अउ विधा म लिखे जाय.</div><div><br></div><div> 'कोंदा-भैरा' इही इतर लेखन रूप के एक प्रयोग आय, अउ मोला खुशी हे के एकर पाठक वर्ग म वो जम्मोच वर्ग के लोगन हें, जिनला म मैं ऊपर म उल्लेखित करे हावौं. </div><div><br></div><div> सोशलमीडिया म चार-छै डांड़ ल पढ़ के लोगन आगू बाढ़ जाथें, तेकरे सेती मोर ए उदिम रहिथे, के एकर हर कड़ी ह चारेच छै डांड़ म ही उरक जाय. </div><div><br></div><div> आप जम्मो गुणी अउ हितवा मन के पंदोली अउ प्रोत्साहन दे के सेती 'कोंदा-भैरा के गोठ' सरलग एक बछर पूरा कर पाईस, तेकर सेती मैं जम्मोच झन के जोहार करत हौं.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEinsx0YEzLV4SGNYQAOTmNKE8nCabzLIudS85i3XjSp2JH3DkpeawzCLJDfTpyhC-QAerSmSMklglji-7Tsw7zDn14NvVhSWFLJNkYFQlbPEAyy01Uwmbq1UtxYg7rJ1PtI2_nkFvJC6YJg0B4li5D7yynFKg5ctq3iPLW3L6MnPPyQQZTBvUQtO5Ci39Y" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-69145817305314073342024-01-10T01:07:00.001-08:002024-01-10T01:07:07.357-08:00कोंदा भैरा के गोठ-12<div>कोंदा भैरा के गोठ-12</div><div><br></div><div>-हमर इहाँ कतकों अइसन संत-महात्मा होए हें, जेकर ज्ञान अउ दर्शन ल उंकर अनुयायी मन लुकाए या एती-तेती भटकाए के उदिम घलो कर डारथें जी भैरा.</div><div> -हाँ.. अइसन ढंग के तो महूं ल जनाथे जी कोंदा.</div><div> -अब देखना सतगुरु कबीर साहेब ल ही.. वो मन निराकार परमात्मा के उपासना के रद्दा तो बताए हें, फेर वोला उन साकार अउ निराकार दूनोंच रूप एकेच आय घलो कहे हें, फेर उंकर ए महत्वपूर्ण बात ल अनुयायी मन कहाँ बताथें.. उल्टा उन साकार के नॉव म अंते-तंते गोठियाए के उदिम जरूर कर देथें.</div><div> -हाँ जी.. कतकों झनला अइसन गोठियावत तो महूं सुने हौं.</div><div> - जबकि कबीर साहेब के महत्वपूर्ण ग्रंथ 'बीजक' के एक पद उन कहे हें-"ज्यूं बिम्बहिं प्रतिबिम्ब समाना, उदिक कुम्भ बिगराना, कहैं कबीर जानि भ्रम भागा शिव ही जीव समाना".. एकर ले स्पष्ट हे- उन दूनोंच ल एके कहे हें.. जइसे समुंदर म छछले पानी निराकार होथे, फेर उही पानी ल एक मरकी म भर देबे, त वो मरकी के रूप धर लेथे.. माने साकार हो जाथे.</div><div>🌹</div><div><br></div><div>-अहा..जाड़ ह भारी दंदोरत हे जी भैरा.. चलना रउनिया तापे बर नइ जावस? </div><div> -चलना संगी कोंदा.. ए मकरसंक्रांति कब आही तेने ल गुनथौं जी.. तब बुजा जाड़ के सपेटा ले थोकिन बाॅंचे असन जनाही.. अभी तो भारी लेद-बरेद होगे हे भई हमर असन सियान-सामरत मनला.</div><div> -हाँ ए बात तो हे जी.. मकरसंक्रांति के पाछू फेर बसंत के आरो घलो जनाए लगही.. वइसे दिन ह बड़का होय के शुरुआत तो 21 दिसंबर ले ही होगे हावय जी संगी.. फेर जनाय असन लागथे हमन ल मकर संक्रांति के सुरूज नरायन के उत्तरायण होए के पाछू ही.</div><div> -अच्छा.. अइसे हे का? </div><div> -हहो.. सबले बड़का रतिहा 22 दिसंबर के होथे. वोकर पाछू फेर रतिहा के बेरा म कमी अउ दिन के बेरा म बढ़ोत्तरी होवत जाथे, जे हा 21 जून तक चलथे. इही 21 जून ह बछर भर के सबले बड़का दिन होथे, जेला आजकाल हमन विश्व योग दिवस के रूप म मनाथन.</div><div> -हव मनाथन तो.. तहाँ ले दिन छोटे अउ रतिहा बड़का होय के शुरुआत हो जाथे कहिदे.</div><div> -हहो.. अइसने बानी के दिन अउ रात म घट-बढ़ चलत रहिथे.</div><div>🌹</div><div>-हसदेव के जंगल ल फेर काटे-उजारे के सोर सुनावत हे जी भैरा.</div><div> -हाँ सुनावत तो हे जी कोंदा.. अब देश के विकास खातिर बिजली चाही, त कोइला खदान के संख्या म बढ़ोत्तरी तो करेच बर लागही.</div><div> -फेर मोला ए ह उचित नइ जनावय संगी.. सरकार ल ऊर्जा के वैकल्पिक व्यवस्था डहार जादा चेत करना चाही.</div><div> -हाँ करना तो चाही.. काबर हमला विकास खातिर बिजली चाही त मानव जाति संग जम्मो जीव-जंत के रक्षा खातिर जंगल-झाड़ी घलो चाही.</div><div> -सिरतोन आय.. बिना जंगल-झाड़ी अउ पर्यावरण के काकरो भी जिनगी के कल्पना नइ करे जा सकय. </div><div> -हव जी.. सौर ऊर्जा जेन हमर बर सबले बड़का ऊर्जा के स्रोत हो सकथे, तेकर वतका उपयोग नइ हो पावत हे, जतका होना चाही.</div><div> -सबो किसम के वैकल्पिक ऊर्जा के व्यवस्था होना चाही. सरकार ह बिजली बिल हाफ जइसन योजना के द्वारा जनता ल जेन सोहलियत देथे, तेन जम्मो पइसा ल वैकल्पिक ऊर्जा खातिर लगाना चाही, तभे हमला भविष्य म विकास अउ पर्यावरण के संघरा दर्शन हो पाही.</div><div>🌹</div><div>-अभी के नवा सरकार म ए नारा ह गजब सोर बगरावत हे जी भैरा- 'हमने बनाया है, हम ही संवारेंगे'.</div><div> -वइसे बात तो सिरतोन जनाथे जी कोंदा.. काबर ते हमन ल अलग राज के चिन्हारी तो इहीच मन दिए हें.</div><div> -हाँ जी.. फेर हमर महतारी भाखा ल हिंदी संग संघार के राजभाषा के दर्जा घलो तो इंकरेच बखत मिले रिहिसे.</div><div> -सिरतोन कहे संगी.. फेर तोला अइसे नइ जनावय के ए राजभाखा के गोठ ह अभी तक अधुरच असन हे? </div><div> -हाँ.. हे बर तो अधुरच हे.. अउ जब तक ए ह शिक्षा अउ राजकाज के भाखा नइ बन जाही तब तक अधूरा रइही.</div><div> -मोला इहू जरूरी जनाथे संगी के छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ी साहित्य अकादमी अउ सांस्कृतिक संवर्धन संस्थान के गठन घलो होना चाही.</div><div> -जरूर होना चाही.. साहित्य अकादमी म साहित्यकार मनला संघार के कारज करना चाही, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग म वो मनला संघारना चाही, जे मन इहाँ के महतारी भाखा खातिर ही सरलग कारज करत हें. अइसने कला-संस्कृति खातिर कारज करइया मनला सांस्कृतिक संवर्धन संस्थान म संघार के कारज करना चाही. तभे हमर चिन्हारी के सबो अंग के बढ़वार सही गढ़न के हो पाही.</div><div>🌹</div><div>-एक डहार जिहां बिजली खातिर हसदेव के जंगल ल उजारे के उदिम चलत हे, उहें बस्तर के एक गाँव टाइपदर ले बोहाने वाला नरवा गणेशबहार ले पनबिजली बना के दू सौ एकड़ खेत मन के सिंचाई करे के संग गाँव म अंजोर बगराए बर 16 किलोवॉट बिजली अमराए के खबर आए हे जी भैरा.</div><div> -ए तो गजब निक खबर आय जी कोंदा.. हमन तो कब के गोहरावत हावन के वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत मनला बढ़ाए जाय.</div><div> -हव जी.. जगदलपुर ले 40 किमी दुरिहा कावापाल पंचायत के अंतर्गत अवइया गाँव टाइपदर म ए पनबिजली के कारनामा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर के प्रोफेसर पुनीत सिंह ह करे हे.</div><div> -अच्छा..! </div><div> -हव.. अपन खुद के पइसा ले संगी.. वोला ए कारज ल सफल करे म 14 बछर लागे हे.. बछर 2009 म ए उदिम म उन भीड़े रिहिन हें, तेन ह अब सफल होइस हे.</div><div> -वाह भई.. जब एक अकेल्ला मनखे ह अपन खुद के प्रयास ले अतेक बड़े बुता कर सकथे, त सरकार संग जम्मो समाज मन एकमई प्रयास करहीं, तब तो अउ जबर बुता हो जाही संगी.</div><div>🌹</div><div>-हमर छत्तीसगढ़ के तीन किसम के धान म कैंसर के रोग ल ठीक करे के तत्व पाए गे हे जी भैरा.</div><div> -ए तो गजब के खबर आय जी कोंदा.. वइसे कोन कोन किसम के धान म? </div><div> -गठवन, महाराजी अउ लाइचा.. ए तीन किसम के धान म फेफड़ा अउ स्तन कैंसर के कोशिका मनला खतम करे के गुण भाभा एटामिक रिचर्स सेंटर अउ इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा करे गे शोध कारज म होय हे. वइसे अभी ए शोध कारज ह मुसवा मन ऊपर ही होय हे, मनखे मन ऊपर करे खातिर केंद्र सरकार जगा अनुमति माँगे गे हवय. </div><div> -बहुत बढ़िया जी संगी.</div><div> -वइसे इहाँ के कृषि विवि जगा 23250 किसम के धान हे, जेमा के 13 किसम के धान ल औषधीय गुण खातिर चिन्हे गे हे, जेमा के ए तीन ऊपर शोध कारज होय हे. वैज्ञानिक मन के कहना हे- रोज कहूँ एमा के 200 ग्राम चॉंउर के सेवन करे जाय त हमर शरीर म कैंसर रोके खातिर पर्याप्त तत्व पहुँच जाही.</div><div>🌹</div><div>-'हमन बनाए हन, त हमीं मन सजाबो' ए नारा ह सुने म कतका सुघ्घर लागथे जी भैरा.</div><div> -हाँ लागथे तो जी कोंदा.. भई जे मन अपन घर-कुरिया ल बनाथें, उहिच मन तो वोला सजाथे-सम्हराथे घलो न. </div><div> -फेर राजनीति क्षेत्र के बनई अउ संवरई ह थोरिक आने बानी के जनावत हे संगी.</div><div> -कइसे भला? </div><div> -हमर इहाँ के पुरखौती मेला-मड़ई के संस्कृति म फेर नकली कुंभ झपइया हे तइसे जनावत हे.</div><div> -अइसे का..! </div><div> -हहो.. इहाँ के राजिम पुन्नी मेला ल कुंभ के नॉव दे के पारंपरिक स्वरूप ल पहिली बिगाड़े रिहिन हें, तेला तो जानते हावस.</div><div> -हव जी.. पाछू वाले सरकार ह वोला जस के तस पुन्नी मेला के स्वरूप म लाने रिहिसे.. इही हमर परंपरा घलो आय. </div><div> -हव.. उहीच ल फेर कुंभ के नॉव म जतर-कतर करबो काहत हें.. अभी के नवा सरकार के संस्कृति मंत्री के गोठबात ले अइसने आरो मिलत हे.</div><div> -फेर ए ह बने बात नोहय संगी.. मेला ल बड़का स्वरूप दे के तो स्वागत करथन, फेर एकर नॉव अउ स्वरूप के बदलई ह इहाँ के परंपरा के हत्या बरोबर हे.</div><div> -सही आय जी.. कम से कम आदिवासी मुखिया के कार्यकाल म तो परंपरा के बिगाड़ के भरोसा नइ रिहिसे.</div><div>🌹</div><div>-हमर छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के मनला जानथस नहीं जी भैरा? </div><div> -हाँ जानबे कइसे नहीं जी कोंदा.. हमन उनला रमरमिहा कहिथन.</div><div> -हाँ ठउका जाने.. ए मन असल म दलित वर्ग के आय, जे मनला इहाँ के धरम-करम के गौंटिया मन मंदिर-देवाला म जाके पूजा-दरसन करे बर छेंका-रूंधा कर दिए रिहिन हें.</div><div> -अच्छा..! </div><div> -हव.. मैं एकर मन संग कतकों बेर मुंहाचाही करत रेहे हौं.</div><div> -अच्छा.. </div><div> -हव.. तब ए मन बतावंय के हमन ल जब मंदिर-देवाला म जाए के रोका-छेंका होगे, त हमन निराकार ब्रह्म ल राम के रूप मान के वोकरे उपासना करे लगेन.. एकरे सेती सैकड़ों बछर ले अपन देंह-पॉंव, कपड़ा-लत्ता सबोच म राम राम गोदवा डारथन. एमा के एक झन सियान ह बतावत रिहिसे के हमर राम ह राजा दशरथ के बेटा नहीं, भलुक निराकार ब्रह्म आय. </div><div> -चाहे कोनो रूप के उपासना होय संगी.. आय तो राम के ही उपासना.. अउ अइसन बेरा म जब पूरा देश दुनिया के लोगन 22 जनवरी के अयोध्या म रामलला के प्राण प्रतिष्ठा होय के नेवता झोंक के उहाँ जावत हें, त एहू रामभक्त मनला नेवता तो मिलना ही चाही.</div><div> -कहे बर तो सिरतोन कहिथस संगी, फेर ए मनला आजो कहूँ सिरिफ दलित नजरिया ले ही देखे जावत होही त धरम के गौंटिया मन कइसे इनला उहाँ देखे अउ नेवते सकहीं?</div><div>🌹</div><div>-सुनत हस जी भैरा.. मरे मनखे के दशगात्र जेला ए मन कतला कहिथें उही दिन वोकर नॉव म बजार भराथे, जिहां रुपिया पइसा म नहीं, भलुक पखरा म समान बिसाए जाथे.</div><div> -अइसन सिरतोन होथे जी कोंदा? </div><div> -हव.. हमर बस्तर के ए ह पुरखौती परंपरा आय. कोनो मनखे के मरे के बाद उनला देवता बरोबर पितर मान के वोकर बर गाँव के बने असन जगा म बजार लगाए जाथे.. उंकर मान्यता हे के जब तक मृतक के सबो क्रियाकर्म नइ हो जाय तब तक वोकर आत्मा ह अपन घर के आसपास ही रहिथे, एकरे सेती वोकर बर सबो किसम के जिनिस मन के बजार लगाए जाथे.. तेमा वो ह अपन मनपसंद के जिनिस बिसा लेवय. अभी पाछू दिन जगदलपुर जगा के चितापदर गाँव म अइसने बजार भराए रिहिसे.</div><div> -बढ़िया परंपरा हे भई.. ए किसम पूरा अंतिम संस्कार होय के पाछू फेर वो मृतात्मा ह पितरदेव म शामिल होथे कहिदे.</div><div> -हव.. ए बेरा म मृतक के घर वाले मनला अशुभहा माने जाथे, तेकर सेती भंडारी के देखरेख म ए सबो कारज होथे.</div><div>🌹</div><div>-हिंदी दिवस के जोहार जी भैरा.</div><div> -अरे.. 14 सितम्बर के तो जोहारे रेहे न संगी कोंदा.. फेर आज अउ..!</div><div> -हव जी आज विश्व हिंदी दिवस आय न.. अउ 14 सितम्बर के हमर राष्ट्रीय हिंदी दिवस रिहिसे.</div><div> -अच्छा.. त एला दू अलग अलग पइत मनाए के अलग अलग कारण होथे का? </div><div> -नहीं जी संगी.. उद्देश्य तो एके आय.. हिंदी के प्रसार करना ही.. हाँ भई दूनों के भौगोलिक क्षेत्र के विस्तार भर म अंतर हे, एक सिरिफ देश भर म हे अउ दूसर पूरा दुनिया म हे.</div><div> -तारीख म घलो तो अंतर हे..! </div><div> -हव.. 14 सितम्बर 1949 के संविधान सभा म पारित हिंदी ल बछर 1953 ले आधिकारिक रूप म राष्ट्रीय हिंदी दिवस तो मनावत आवत हवन, फेर जब 10 जनवरी 1974 के हिंदी के पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन नागपुर म होइस त फेर इही 10 जनवरी ल हिंदी ल अंतर्राष्ट्रीय स्तर म प्रचार करे बर विश्व हिंदी दिवस घलो मनाए लगेन.. एकरे आज जोहार हे.</div><div>🌹</div><div>-हमर इहाँ अइसन कतकों सामाजिक धार्मिक क्षेत्र के ऐतिहासिक व्यक्तित्व होए हें जी भैरा जेकर मन के नॉव ल बदल के आने-आने कर के मूल चिन्हारी ल अनदेखा करे जावत हे.</div><div> -अइसन महूं ल जनाथे संगी.. छत्तीसगढ़ म अइसन कतकों ठउर हे जेला बाहिर ले आए लोगन या उंकर आस्था के मापदंड म लहुटा दिए गे हे.</div><div> -हव जी.. अब हमर छत्तीसगढ़ के हृदय स्थल राजिम के ऐतिहासिक मंदिर राजिमलोचन ल ही देख ले, ए ह भक्तिन राजिम दाई के नॉव म रिहिसे, फेर अब वोकर चिन्हारी राजीवलोचन के रूप म होगे हे.</div><div> -हाँ.. ए बात तो हे.. राजिम दाई ल भगवान के मूर्ति ह इहाँ त्रिवेणी संगम म मिले रिहिसे, जेला वो ह मंदिर म स्थापित करे बर दिए रिहिसे, तेकर सेती वो देवता ल राजिमलोचन कहे गिस.</div><div> -हव जी अउ संग म वो शहर के नॉव ल घलो राजिम दाई के नॉव म ही राजिम रखे गिस.</div><div> -सही आय संगी.. अइसन जम्मो उदिम ह हमर पुरखौती चिन्हारी मन के अनदेखी आय..हमर रायपुर के बूढ़ा तरिया के घलो तो इही हाल हे.. संबंधित जिम्मेदार लोगन ल एमा चेत करना चाही.</div><div>🌹</div><div>-हमर सुप्रीम कोर्ट ह भले किन्नर मनला तृतीय लिंग के चिन्हारी देके उनला समानता के अधिकार अउ पहचान दिए हे, तभो ले एकर मन के उपेक्षा अउ तिरस्कार सबोच डहार देखे ले मिल जाथे जी भैरा.</div><div> -सिरतोन आय जी कोंदा.. दाई-ददा, घर-परिवार सबोच म उपेक्षित होय के सेती ए मन एकांकी जीवन जीए बर मजबूर हें.</div><div> -हव जी.. वइसे हमर छत्तीसगढ़ शासन ह ए मनला पुलिस विभाग म भर्ती करे के उदिम शुरू करे हे.. एक दू विभाग म घलो इंकर पूछ-परख होवत हे, फेर जब तक समाज ह ए मनला अपन अंग मान के बरोबरी के सम्मान नइ दिही तब तक सब बिरथा हे.</div><div> -हव संगी.. अभी रायपुर म इंकर मन के 7 ले 10 जनवरी तक अखिल भारतीय महासम्मेलन होइस हे, जेमा देश भर के किन्नर समाज के प्रमुख मन सकलाय रिहिन हें.. अपन दुख-सुख ऊपर गोठ करीन हें.. फेर मीडिया ल देख ले एकर मन के बने असन सोर-खबर नइ लिन.</div><div> -हव जी.. जेन खबर के कोनो मतलब नइ राहय, तेन मन तो रेडियो टीवी अउ पेपर मन म छाए रहिथे, फेर समाज के अतेक महत्वपूर्ण अंग ह खबर म बने गतर के ठउर नइ पाइस.</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-50901662598789231342024-01-01T01:19:00.001-08:002024-01-02T22:52:02.881-08:00अई .. इहाँ के रहइया नोहय... <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjZqT1KY1cJTAQXGX4g6adHxkZN5H_Xy9KslHtfppniqI-HL24aizgOHzaysf33kBk7i3FlQWVmC4KwRqwX9EQi6cotpZJ1fmck18QF2gGpYOASW3LnEovFWp3gPbujqm78P7BdJaXHWC7d01iWk8iInTH2Z3y-rssrpNVgl6PEHNS2ihf3jvNfexuEqZg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjZqT1KY1cJTAQXGX4g6adHxkZN5H_Xy9KslHtfppniqI-HL24aizgOHzaysf33kBk7i3FlQWVmC4KwRqwX9EQi6cotpZJ1fmck18QF2gGpYOASW3LnEovFWp3gPbujqm78P7BdJaXHWC7d01iWk8iInTH2Z3y-rssrpNVgl6PEHNS2ihf3jvNfexuEqZg" width="400">
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</div><div>अई .. इहाँ के रहइया नोहय... </div><div> मशाल के भभका अंजोर म चिकारा, तमुरा अउ करताल संग म होवत खड़े साज ले कनिहा म तबला पेटी बांध के नाचत नाचा ले लेके आज के जगर-बगर अंजोर म झॉंय-झिपिंग होवत सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप म भले सरलग बढ़ोत्तरी देखे जावत हे, फेर जिहां तक मंचीय गरिमा के बात हे, त एकर संदर्भ अउ प्रस्तुति म वो ह थोरिक कमी आए असन जनाथे.</div><div> मैं ह नाचा के वो खड़े साज वाले रूप ल घलो देखे हौं, जेमा मशाल के अंजोर म गाँव के कोनो चौंक-चाकर जगा म चार ठन बांस ल गड़िया के रात भर विशुद्ध जनरंजन के कार्यक्रम देखाए जावय. बिना माईक के होवइया ए कार्यक्रम म पारंपरिक गीत मन के संगे-संग समसामयिक विषय मन ऊपर तुकबंदी के शैली म जोड़े गे गीत मन के बीच म सामाजिक अउ राजनैतिक विसंगति ले जुड़े विषय म बड़ सुघ्घर गढ़न के पिरोए जाय. वो बेरा ह स्वाधीनता आन्दोलन के रिहिसे तेकर सेती नाचा प्रसंग मन म गाँधी बबा के संग देश ल आजादी देवया के जबर उदिम के आरो मिल जावत रिहिसे.</div><div> खड़े साज के बाद हारमोनियम तबला संग बइठ के गावत-बजावत नाचा के घलो अबड़ मजा ले हावन. तब तक माईक अउ कमती पॉवर वाले बिजली-बत्ती आगे रिहिसे. </div><div> हमन स्कूल-कॉलेज के पढ़त ले एकर भारी आनंद ले हावन. वइसे तो हमर खुद के गाँव नगरगाँव म घलो अलवा-जलवा नाचा पार्टी रिहिसे, तभो कोस दू-चार कोस के दुरिहा म कोनो गाँव म नाचा होय के आरो मिलय त दू-चार संगी संघर के उहाँ सइकिल म धमकीच देवत रेहेन. हमर गाँव के खंड़ म बसे बोहरही धाम म हर बछर महाशिवरात्रि के बेरा तीन दिन के जबर मेला भराथे. एमा रतिहा बेरा नाचा के कार्यक्रम तो होबेच करथे. कभू-कभू तो अइसनो हो जावय के एकेच रतिहा म दू अलग अलग जगा एके संग नाचा के कार्यक्रम चल जावय. तब हमन दर्शक दीर्घा के नाचा प्रेमी होय के संग वालंटियर के बुता घलो कर डारत रेहेन. तब परी मनला मोजरा देखाय के अलगेच सेवाद राहय. तीन-सेलिया टार्च के बटन ल चपक के परी के मुंह म अंजोर मारन त वो ह स्टेज म नचई-गवई ल छोड़ के हमर मन तीर म आ धमकय. </div><div> हमन सब संगी बरार के पॉंच-दस जतका सका जाय ततका रुपिया देके बिदा करन तहाँ ले वोहा मंच म जाके सर्रावय-</div><div> अई.. इहाँ के रहइया नोहय.. रहिथे नगरगाँव गा.. अउ का सुशील कहिथे तइसे वोकर नॉव गा.. पास म बलाके मयारु दिसे दू के नोट गा.. मैं तहे दिल से उनका शुक्रिया अदा करती हूँ.. अउ सुनथस गा बजकाहर का किहिसे तेला..? </div><div> -ले सुनाना बाई.. सुनाना ओ.. </div><div> -ओ किहिसे- चलना-चलना जाबो बोहरही के बजार .. तोर बर लुहूं चूरी-पटा अउ पहिनाहूं सोनहा ढार.. </div><div> बछर 1970 के दशक म फेर नाचा ल अउ परिष्कृत कर के सांस्कृतिक मंच के स्वरूप दे गइस. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल एकर श्रेय जाथे. जइसे खड़े साज ल हारमोनियम तबला संग बइठ के नाचा के सुघ्घर रूप दे के श्रेय दाऊ मंदरा जी ल जाथे ठउका वइसनेच.</div><div> मैं व्यक्तिगत रूप ले साहित्य अउ पत्रकारिता के संग जुड़े रेहे के संग ही आडियो रिकार्डिंग स्टूडियो के संचालन घलो करत रेहेंव, तेकर सेती मोर उठक-बइठक ह कला, साहित्य, संगीत सबोच क्षेत्र के पोठहा लोगन संग होवत रिहिसे. इंकर मन संग मुंहाचाही घलो होवय, जेला पत्र-पत्रिका म छापत घलो रेहेन. </div><div> खड़े साज ले जेन नाचा अउ फेर नाचा ले सांस्कृतिक मंच तक के विकासयात्रा होवत हमर ए मंचीय प्रस्तुति ह आगू बढ़े हे, तेकर संबंध म मैं दाऊ रामचंद्र देशमुख, दाऊ महासिंह चंद्राकर, खुमान साव, कोदूराम वर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया आदि जइसन जम्मोच कला-संस्कृति के रखवार मन संग गोठबात करत रेहेंव. सबोच झन एकर विषय अउ प्रस्तुति म सरलग आवत गिरावट ऊपर चिंतित रिहिन. अभी जइसे कवि सम्मेलन के मंच मन म हास्य के नॉव म फूहड़ता अउ अश्लीलता घलो ह अपन ठउर बना डारथे ठउका वइसनेच सांस्कृतिक मंच म घलो एकर मन के आरो मिल जाथे.</div><div> पहिली गीत-संगीत ल विस्तार दे बर तावा आइस, जेला ग्रामोफोन काहन. एकर पाछू आडियो कैसेट आइस. इही आडियो कैसेट के चलन बाढ़े के संग इहाँ के मयारुक गीत मन म हल्का-फुल्का गीत मन धीरे धीरे संघरत गीन. तब फेर ए कैसेट के गीत के हल्का पन ह मंच के प्रस्तुति म घलो जनाए लगिस. एक बेरा अइसनो आइस जब एकरे मन के बोलबाला दिखे लागिस. ए मनला प्रोत्साहित करे म आडियो कैसेट कंपनी वाले मन के विशेष हाथ हे, जे मन आडियो के संगे-संग विडीयो घलो बनाए लगे रिहिन हें. वइसे बड़का सांस्कृतिक मंच वाले मन तो कइसनो कर के मंच के गरिमा ल बचाए के जतन करत रहिथें आजो करत हें, फेर जे मन चार-छै झनला जोर-सकेल के गावत-नाचत रहिथें अइसने मन आडियो विडीयो कंपनी वाले मन के झॉंसा म झट फंस जाथें. उन जइसे गढ़न के नाचे-गाये बर कहिथें, बिन सोचे-गुने वइसनेच कूद-फांद देथें.</div><div> हमर लोक संगीत के अइसन दुर्दशा ल देख के कतकों बेर विचार आथे- जइसे सिनेमा मन के प्रदर्शन के पहिली उनला फिल्म प्रमाणन बोर्ड ले अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना जरूरी होथे, ठउका वइसनेच लोक कला अउ संगीत क्षेत्र खातिर घलो एक अइसे संस्थान बनना चाही, जे ह अइसन जम्मो किसम के गीत, संगीत अउ सांस्कृतिक प्रस्तुति मन के सोर-खबर लेवत राहय.</div><div> सांस्कृतिक मंच मन के भारी बढ़ोत्तरी के बाद घलो अभी नाचा पार्टी वाले मन के कभू-कभार दर्शन हो जाथे. ए पार्टी वाले मन के प्रदर्शन ल देख के अभी घलो मन ल थोक संतोष जनाथे, के इन फूहड़ता अउ अश्लीलता ले अभी घलो इनला बंचा के राखे हावंय.</div><div> अभी बीते बछर म नाचा कलाकार डोमार सिंह कुंवर ल पद्मश्री के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे जे हा हमर पुरखौती परंपरा के संरक्षण संवर्धन खातिर प्रोत्साहित करे के बड़का उदिम आय. भरोसा हे, अउ दूसर कलाकार मन घलो पुरखौती परंपरा ल संजो के रखे के रद्दा म आगू आहीं. मंच के गरिमा ल बनाए रखहीं.</div><div>-सुशील भोले</div><div>संजय नगर, रायपुर</div><div>मो/व्हा. 9826992811</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-82352113809620592152023-12-19T22:51:00.001-08:002023-12-19T22:51:21.957-08:00कोंदा भैरा के गोठ-11<div>कोंदा भैरा के गोठ-11</div><div><br></div><div>-ए बखत नवा मुख्यमंत्री अउ जम्मो मंत्री मन संग विधायक मन इहाँ के राजभाखा छत्तीसगढ़ी म शपथ लेहीं के नहीं जी भैरा.</div><div> -लेना तो चाही जी कोंदा.. अरे भई जब इहाँ के विधानसभा म सर्वसम्मति ले प्रस्ताव पास कर के हिंदी के संग म छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा के दर्जा दिए गे हवय, त वोकर पालन ल घलो तो करना चाही ना.</div><div> -बात तो तैं सोला आना कहिथस जी संगी फेर इहाँ के अधिकारी मन कतकों बखत डेढ़ होशियारी कर देथें.</div><div> -कइसे भला? </div><div> -वो मन अभी छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म संघारे नइए कहिके अटघा डारे के उदिम कर देथें.</div><div> -अइसे कइसे हो सकथे, जब इहाँ के विधानसभा म राजभाखा के रूप म मान्यता देवत प्रस्ताव पारित हे, त वो मनला सोझबाय छत्तीसगढ़ी म शपथ देवाना चाही.</div><div> -वो बखत के शपथ ग्रहण म तो अइसने अटघा डारे रिहिन हें.. देखव भई ए बखत कइसे करथें ते.</div><div> -सोझबाय करना चाही जी.. एकर खातिर इहाँ के जम्मो विधायक अउ संबंधित लोगन ल चिटिक चेत घलो करना चाही.</div><div>🌹</div><div>-हमर इहाँ बाहिरी-भितरी के मुद्दा ल लेके कई ठन पार्टी बनगे हवय जी भैरा जे मन विधानसभा ले लेके अउ आने चुनई म अपन उपस्थिति दर्ज कराए के उदिम करत रहिथें.</div><div> -हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. करना घलो चाही, काबर ते ए मन राष्ट्रीय पार्टी वाले मन के सिद्धांत ले अपन अलग सिद्धांत के आधार म इहाँ राज-काज चलाना चाहथें.</div><div> -हाँ ए बात तो हे.. हमू मन जब छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरे राहन, त अइसने बानी के सिद्धांत ल लेके ही वोमा जुरे रेहेन.</div><div> -सही आय काबर ते कोनो भी राष्ट्रीय पार्टी ह क्षेत्रीय अस्मिता के मापदंड म कारज नइ कर सकय, वोकर मन के मानक ही अलग होथे. एकरे सेती मोर ए कहना हे- जब सबो क्षेत्रीय पार्टी लगभग एके जइसे उद्देश्य ल लेके चुनावी मैदान म उतरथें, त सब अलग-अलग खेमाबंदी म काबर रहिथें.. सबो एकमई होके चुनई नइ लड़ सकंय का? कहूँ ए मन एक होके लड़तीन त अभी ले जादा लोगन के सहयोग अउ समर्थन मिलतीस.</div><div> -हाँ ए बात तो हे संगी, फेर सब के मुखिया बने के अपन साध होथे ना.. तभे तो ए सब अपन-अपन गौंटियई म मगन रहिथें.</div><div>🌹</div><div>-बधाई हो जी भैरा.. मूल निवासी समाज के मुड़ म इहाँ के मुखियई के पागा खाप डारेव तुमन ए बखत. </div><div> -हव जी कोंदा तहूं ल बधाई.. हमर मनसुभा रिहिसे के आरुग छत्तीसगढ़िया ल ही इहाँ के मुखिया बनाए जाय.. वाजिब म गजब निक जनावत हे संगी, अब भरोसा होवत हे के इंकर अगुवई म गारंटी के रूप म जेन घोषणा पत्र जारी करे गे रिहिसे वोमा के जम्मो कारज ह पूरा होही.</div><div> -हव जी भरोसा तो हमूं मनला होवत हे के अब इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता के बढ़वार होही, राज्य आन्दोलन के बखत हमर पुरखा मन के ए राज के अस्मिता के स्वतंत्र चिन्हारी के जेन सपना देखे रिहिन हें, तेन ह पूरा होही, चारों खुंट छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परंपरा के दर्शन होही.</div><div> -हव जी अउ एकर शुरुआत ए मनला छत्तीसगढ़ी राजभाखा म शपथ ग्रहण कर के करना चाही, काबर ते भाखा अउ संस्कृति इही दूनों ह कोनो भी देश अउ राज के चिन्हारी के मानक होथे.</div><div>🌹 </div><div>-सत्ता म आए बदलाव के संग शासन-प्रशासन के कतकों काम-काज म घलो बदलाव देखे बर मिल जाथे जी भैरा.</div><div> -हव जी कोंदा ए बात तो हे. दलगत राजनीति के ए ह दुखद रूप आय, जेला सबो राज अउ दल म देखे जाथे.</div><div> -अभी देखना इहाँ गोबर खरीदी चलत रिहिसे, तेमा गरीब परिवार के कतेक माईलोगिन मनला रोजगार मिलत रिहिसे, गोबर के दीया, गोकाष्ठ, पेंट, पुट्टी सब बनत रिहिसे, फेर अब गोबर खरीदी बंद करे के आदेश के मिलते जम्मो महिला समूह मन के आगू म रोजी-रोटी के संकट जनावत हे.</div><div> -हव जी ए बपरी मनला कांग्रेस-भाजपा से का लेना-देना.. इन तो जॉंगर भर कमाथें तब कहूँ जाके घर के चुल्हा म आगी सिपचा पाथें.</div><div> -वइसे अभी तो इनला मौखिक आदेश भर मिले हे, लिखित आदेश के मिलते पूरा राज भर के हजारों महिला समूह के आगू म अंधियारी छा जाही.</div><div> -सही आय जी.. अउ एकरे संग इहाँ के गोबर दीया ले भगवान के धाम ह देवारी परब म जगमगाए रिहिसे तइसने कतकों गरब करे के लाइक खबर मन घलो बुता जाहीं.</div><div>🌹</div><div>-मूल निवासी मनला इहाँ के मुखिया बनाए हे कहिके गजब गदकत रेहेन जी भैरा.. एकरे सेती उनला ज्ञापन अउ जम्मो मिडीया मन के माध्यम ले हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म शपथ ले बर गोहराए रेहेन, फेर वो मन तो ए डहार चेते नइ करीन.</div><div> -हव जी कोंदा इही बात ह महूं ल अलकरहा बानी के जनाइस हे. इहाँ के पढ़इया लइका मन ले लेके सियान-सामरत सबो झन छत्तीसगढ़ी म शपथ ले खातिर गोहराईन फेर सब बिरथा होगे. </div><div> -हव जी.. अउ तैं शपथ ग्रहण समारोह ल देखे हावस, वो मंच हमर राजगीत- 'अरपा पैरी के धार..' के गायन घलो नइ होइस.</div><div> -अतकेच नहीं संगी, वो मंच म छत्तीसगढ़ महतारी के छापा ल घलो एक कोंटा म टिकली बरोबर चटका दिए रिहिन हें भइगे.</div><div> -मोला तो ए सबो लच्छन ह बने नइ जनावत हे संगी.. फेर इहाँ राष्ट्रीयता के नॉव म क्षेत्रीय उपेक्षा के खेल तो नइ चालू हो जाही?</div><div>🌹</div><div>-अभी के शपथ ह हमर चिन्हारी ऊपर गरहन धरे बरोबर होगे जी भैरा तभो ले बड़का नामधारी मन के एको प्रतिक्रिया सोशलमीडिया म देखे-पढ़े बर नइ मिलिस.</div><div> -इही बात ल तो महूं गुनत रेहेंव जी कोंदा.. इहाँ के भाखा, राजगीत अउ छत्तीसगढ़ महतारी के एक किसम ले हिनमान बरोबर होगे तभो ले कोनोच लंबरदार मन के ए बात ऊपर आरो नइ सुनाइस.. कहूँ ए सब अपन-अपन ले दरबारगिरी म तो मगन नइ होहीं? </div><div> -कइसे ढंग के जी? </div><div> -अतको ल नइ जानस बइहा.. काकर दरबार म हाजरी बजाबोन त कोन पद ल पाबोन अउ काकर म जाबोन त काला पोगराबो अइसे ढंग के.</div><div> -अच्छा.. पद-पदवी पाए के जोखा म भीड़े होहीं कहिदे! </div><div> -एदे.. अब ठउका समझे.. हमन नान-नान मन अपन भाखा-संस्कृति के मान-गौन अउ मरजाद के चिंता-फिकर म अरझे रहिथन अउ ए बड़का मन सिरिफ पद के अमरई अउ मंच म फूल-माला पहिरई के जुगाड़ म.. अतके तो फरक हे उंकर अउ हमार म.</div><div>🌹</div><div>-गीता जयंती के जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार जी कोंदा.</div><div> -आज हमन ल गीता म भगवान ह जेन निष्काम कर्मयोग के उपदेश दिए हे, तेकर सबले जादा आवश्यकता जनाथे जी संगी.</div><div> -हाँ.. ए बात तो महूं ल ठउका लागथे जी.. काबर ते लोगन अभी धरम-करम के नॉव म एती-तेती के छकल-बकल अउ देखावा म भीड़े जादा जनाथें.</div><div> -उहू बपरा मन के दोस नइहे संगी.. जइसे उंकर रद्दा देखइया मन अंगरी म आरो कराथें तइसे उन बपरा मन करत रहिथें, जोगड़ा बरोबर किंजरत रहिथें.</div><div> -हव जी इहू बात सही हे.. फेर आज के ए लोकतांत्रिक ढाँचा अउ भागमभाग के बेरा म कर्मयोग ही सबले श्रेष्ठ रद्दा हो सकथे संगी, एकरे माध्यम ले हम अपन जिनगी के सबो सांसारिक कर्तव्य ल पूरा करत मोक्ष के आसन म बिराज सकथन. </div><div> -सिरतोन आय संगी.. हम अपन जम्मो किसम के करम ल भगवान ल अर्पित कर के निश्चिंत भाव ले हर कारज ल करत जाइन त सिरतोन म ए जिनगी सुफल हो जाही.</div><div>🌹</div><div>-हमन ए पढ़त-सुनत रहिथन के जब-जब धरम के हानि होथे तब-तब देवता मन आवत रहिथें.. का सिरतोन म अइसन होथे जी भैरा? </div><div> -गुनिक सुजन मन कहिथें तो अइसने जी कोंदा. हाँ.. ए बात अलग हे भई के हमर असन माया-मोह अउ अहंकार म बूड़े मनखे उनला चिन्हे नइ पावन.</div><div> -वो कइसे? </div><div> -अरे भई.. जे मन अइसन गढ़न के आथें वो मन सिरिफ अपन काम-बुता म मगन रहिथें.. कोनो किसम के बाजा-रूंजी बजा के नइ बतावत राहंय के देखौ.. चिन्हौ.. मैं कोन आॅंव कहिके.</div><div> -अच्छा..! </div><div> -हहो.. उन तो कर्मयोग के जिनगी जीयत अपन कारज ल करथें अउ कलेचुप चले जाथें घलो.. उनला जाने-समझे बर तो हमला लागथे.. फेर का करबे हमर मन के टकर तो चिक्कन-चॉंदन अउ लीपे-पोते मनला देखे-टमड़े परगे हे न.. त सीधा-सरल अउ बिन चुपरे-पोते मनखे ल कहाँ आकब कर पाथन.. अउ पाछू जब सबके बताए-गुनाए म गम पाथन त तरूवा धर के पछताए के छोड़ अउ कुछू नइ कर पावन.</div><div>🌹</div><div><br></div><div>-नवा बछर के बधाई जी भैरा.</div><div> -तहूं ल बधाई जी कोंदा.. फेर ए नवा बछर ह हमर देश के पुरखौती परंपरा नोहय संगी.</div><div> -हाँ ए बात तो हे, फेर आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर म इही वाले नवा बछर के चलन देखे म जादा आवत हे.</div><div> -हाँ जी ए बात तो हे, हमरो देश के संसद अउ जम्मो शासन-प्रशासन ह एकरे मुताबिक अपन दिन-बादर ल जोंगथे, त बता भला हमन एकर ले कइसे बोचक सकथन? </div><div> -सही आय संगी.. देश के जेन संवैधानिक व्यवस्था हे, तेकर संग तो रेहेच बर लागही.. वइसे हमर देश म चैत महीना के अंजोरी पाख के एकम तिथि ल जादा कर के माने जाथे.</div><div> -हमर देश के कतकों भाग म कृषि ऊपर आधारित नवा बछर के घलो चलन म हे, जइसे- हमर छत्तीसगढ़ म बैशाख महीना के अंजोरी पाख के तीज तिथि जेला अक्ती परब के रूप म जानथन वोला नवा बछर के रूप म मनाए जाथे.</div><div> -हव जी अक्ती परब के दिन ही हमन खेती-किसानी के शुरुआत करथन. अपन-अपन खेत म बॉंवत के मूठ धरथन संगे-संग पौनी-पसारी अउ आने बनिहार-भूतिहार मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति करथन.</div><div>🌹</div><div>-हमर बस्तर म आजो अइसन कतकों परंपरा हे जे मन अउ अन्ते देखब म नइ आवय जी भैरा.</div><div> -हव जी कोंदा ए बात तो हे, तभे तो इहाँ के संस्कृति अउ सभ्यता के खोज-खबर आजो लोगन करत रहिथें.</div><div> -हव जी.. अइसने एक परंपरा हे इहाँ के जिला मुख्यालय जगदलपुर ले 70 किमी दुरिहा बसे गाँव बिंता म. इहाँ के लोगन अपन सरग सिधारे नता-रिश्ता मन खातिर मसानघाट म नान्हे-नान्हे मचान असन कुंदरा बनाथें.</div><div> -अच्छा.. अइसे! .. वइसे ए ह अपन पुरखा मन के ऋण ले मुक्त होए के ठउका उदिम आय, जइसे हमन उंकर मन के पिंड दान अउ पितर पाख म सुरता करथन तइसे गढ़न.</div><div> -हव जी.. अपन नता-रिश्ता के मठ जगा उंकर आत्मा के बसेरा खातिर अइसन बनाए जाथे. वइसे ए परंपरा ह बहुतेच कमती जगा देखे म आथे. तोला कभू बिंता बजार जाए के मौका मिलय, त उहाँ के मरघट्टी जरूर जाबे अइसन कतकों कुंदरा देखे बर मिल जाही.</div><div>🌹</div><div>-बधाई हो जी भैरा.. तुंहर मन के मॉंग अउ जनभावना के मुताबिक विधायक अउ प्रोटेम स्पीकर मन छत्तीसगढ़ी भाखा म शपथ लिन हें.</div><div> -मुख्यमंत्री अउ उप मुख्यमंत्री मनला घलो पहिली अइसने छत्तीसगढ़ी भाखा म शपथ देवाय रहितीन त जादा निक जनाय रहितीस जी कोंदा.</div><div> -चलो आखिर छत्तीसगढ़ी के चेत तो आईस राजभवन ल.. देर आए दुरूस्त आए ही सही.</div><div> -ए ह देर आए दुरूस्त आए वाले बात नोहय संगी.. असल म ए ह लहुट के भोकवा ठउर म हबरिस वाले बात आय. </div><div> -वो कइसे? </div><div> -काबर ते जे अधिकारी मन पहिली आठवीं अनुसूची के अटघा डार के छत्तीसगढ़ी भाखा के हिनमान करे के चरित्तर रचत रिहिन हें, उनला अब समझ आगे के इहाँ के विधानसभा म सर्वसम्मति ले राजभाखा के रूप म पारित छत्तीसगढ़ी म शपथ देवाय ले कोनो किसम के संवैधानिक उलंघन नइ होवय.</div><div> -अच्छा.. अइसे.</div><div> -हहो.. पहिली ले अधिकारी मन ए महत्वपूर्ण बात ल समझ जाए रहितीन त लोगन के नाराजगी संग इहाँ के महतारी भाखा के हिनमान के आरोप ल काबर पाए रहितीन.. एकरे सेती काहत हौं.. ए ह लहुट के भोकवा ठउर म हबरिस वाले बात आय.</div><div>🌹</div><div>-दुनिया भर के लोगन लोकसभा या विधानसभा जइसन संवैधानिक सदन म अपन महतारी भाखा म शपथ लेबोन कहिके सरकार जगा गोहरावत रहिथें जी भैरा, फेर इहाँ के सदन म अइसनो लोगन देखे म आइन जे मन संस्कृत जइसे अइसन भाखा म शपथ लिन हें, जेकर इहाँ कोनो किसम ले सामान्य व्यवहार म आरो घलो नइ मिलय.</div><div> -हमर संविधान ह सबो लोगन ल अपन पसंद के भाखा म शपथ ले के अधिकार दिए हे जी कोंदा.. त लोगन अपन मनपसंद के भाखा म शपथ ले सकथें, एमा हीने अउ गुने के का बात हे? </div><div> -जे मन चापलूसी के डोंगा म सवार होके मंत्री पद पाना चाहथें, तेकर मन के तो अइसन उदिम ह समझ म आथे, फेर वो मनखे के अइसन करई ह अलकर जनाइस, जेकर पुरखा ल हमन अपन महतारी भाखा म आध्यात्मिक दर्शन दे हे कहिके गरब करथन. </div><div> -अब ए तो वोकर सोच अउ चिंतन ऊपर हे. वइसे ए बात जरूर हे, के काकरो कुल म जनम धरे भर म ही वो मनखे म अपन पुरखा के ज्ञान अउ संस्कार के संचार नइ हो जाय, एकर खातिर वोला खुद तप-साधना के भट्ठी म तपे बर लागथे.</div><div>🌹</div><div>-अब तो छत्तीसगढ़ी भाखा म पोठ लिखे जावत हे जी भैरा.</div><div> -हव जी कोंदा ए बात तो हे. खासकर के नवा पीढ़ी के रचनाकार मन सबोच विधा म अपन कलम रेंगावत हें.</div><div> -कतकों झन तो बड़का-बड़का ग्रंथ मन के अनुवाद तो घलोक करत हें कहिके सुनाथे जी.</div><div> -हाँ अनुवाद तो होवत हे, फेर मोला लागथे के हमला मौलिक लेखन म ही जादा चेत करना चाही.</div><div> -अइसे का..? </div><div> -हहो.. हमर इहाँ के कतकों अइसन ऐतिहासिक व्यक्तित्व हें, जिंकर ऊपर अभी तक कोनो लिखे नइए, जबकि उंकर मन ऊपर खंचित लिखे जाना चाही. हमन सिरिफ अनुवाद के नॉव म आने क्षेत्र अउ राज के ऐतिहासिक लोगन ल ही अमरत रहिबोन, त अपन गौरव मनला कोन जगा ठउर देवा पाबोन? हमर भाखा तो सही अरथ म तभे पोठ होही, जब एमा हमर गौरव, हमर अस्मिता अउ हमर इतिहास संघरत जाही.</div><div> -हाँ ए बात तो सिरतोन आय संगी.. अपन भाखा ह अपन चिन्हारी मन के माध्यम ले ही सही मायने म पोठ अउ रोठ बनथे.</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-4317672540138398112023-12-13T17:02:00.001-08:002023-12-13T17:02:36.534-08:00माटी पुत्र या माटी के पुतला? <div>माटी पुत्र या माटी के पुतला..?</div><div> हमर इहाँ कोनो भी मनखे ल मूल निवासी के रूप म चिन्हारी कराए खातिर एक सहज शब्द के उपयोग करे जाथे- 'माटी पुत्र" खास कर के राजनीति म। चाहे कोनो पार्टी के मनखे होय, कोनो पद म बइठे नेता होय सबके एके चिन्हारी- 'माटी पुत्र'। फेर मोला लगथे के 'माटी पुत्र' कहाए के अधिकार हर कोई ल नइ मिलना चाही, भलुक वोकर 'माटी' खातिर 'मया' अउ वोकरो ले बढ़ के माटी के पहचान जेला हमन भाखा, संस्कृति या अस्मिता के रूप म चिन्हारी करथन, एमा वोकर कतका अकन योगदान हे, एहू ल देखे-टमड़े जाना चाही।</div><div><br></div><div>काबर ते सिरिफ इहाँ जनम भर होय म या सिरिफ इहाँ के भाखा-संस्कृति के गोठ भर कर दे म कोनो ल 'माटी पुत्र' के चिन्हारी नइ मिल जाय, भलुक एकर मन के करम ल या कहिन बुता ल घलोक देखे जाना चाही। आज छत्तीसगढ़ ल अलग राज बने कोरी भर बछर ले आगर होगे हवय। फेर इहाँ के भाखा के, संस्कृति के, इहाँ के मूलधरम के अलगे चिन्हारी अभी तक नइ बन पाए हे।</div><div><br></div><div>ताज्जुब तब होथे जब कोलकी-संगसी म नेतागिरी करइया मन ले लेके राज के मुखिया तक के बोली म इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ संपूर्ण अस्मिता खातिर भारी अकन कारज करे के शेखी सुने बर मिलथे! अरे भइया.. भारी अकन कारज करे हावव त वोहर कोनो मेर दिखय काबर नहीं? आज तक इहाँ के भाखा ह, शिक्षा अउ राजकाज के भाखा काबर नइ बन पाए हे? इहाँ के संस्कृति ल आने प्रदेश ले आए मनखे मन के संस्कृति अउ ग्रंथ संग संघार के काबर लिखे अउ बताए जाथे? इहाँ के मूल 'आदि धरम' ल जाति-पाति अउ वर्ण व्यवस्था के दलदल म धंसे तथाकथित धरम के अंग के रूप में काबर चिन्हारी करे जाथे?</div><div><br></div><div>का इहाँ के माटी पुत्र मनला ए बात के समझ नइए, या इन समझ के घलोक अपन राजनीतिक ददा-बबा मन के जोहार-पैलगी करे के छोड़ अउ कुछ जानंय-समझंय नहीं?</div><div><br></div><div>मैं एकरे सेती एमन ल 'माटी के पुतला' कहिथौं! जे मन अपन भाखा-बोली, धरम-संस्कृति अउ इतिहास के गौरव ल नइ गोठिया सकंय, इंकर बढ़वार अउ रखवारी खातिर कुछु ठोस उदिम नइ कर सकंय, उन 'माटी पुत्र' कइसे हो सकथे, इन सब तो 'माटी के पुतला' ही कहाहीं न?</div><div><br></div><div>मैं वो तथाकथित साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार अउ अस्मिता के चारोंखुंट बगरे रखवार मनला घलोक इही श्रेणी म शामिल करथौं, जेमन भाखा-संस्कृति के बात ल, अस्मिता के गोठ ल सिरिफ मंच म माला पहिरे खातिर करथें। एकाद ठन सरकारी सम्मान ल अपन टोटा म ओरमाए खातिर करथें। जबकि ठोस भुइयां म इंकर मन के कारज शून्य होथे।</div><div><br></div><div>छत्तीसगढ़ी भाखा-संस्कृति खातिर कतकों अकन सरकारी-असरकारी आयोजन होवत रहिथे। फेर मोर ये प्रश्न हे- एकर मन के मंच म अतिथि-सतिथि के रूप म जेमन टोटा म माला ओरमा के बइठे रहिथें, बड़े-बड़े पदवी ले सम्मानित होवत रहिथें वोमा के कतका झन के योगदान छत्तीसगढ़ी भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता खातिर ठोस होथे?</div><div><br></div><div>एक बात तो ठउका जानव के जब तक ढोंगी-पाखंडी अउ फर्जी किसम के मनखे मन मंच म सम्मान पाहीं अउ ठोसहा बुता करइया मन उपेक्षित रइहीं, तब तक छत्तीसगढ़ी के न तो विकास हो सकय, न तो वोकर अस्तित्व बांच सकय।</div><div><br></div><div>का ये सब हमर 'माटी पुत्र' मन के आंखी म नइ दिखय? अउ नइ दिखय त उन 'माटीपुत्र' कइसे हो सकथें? जेकर मन के आंखी म अंधरौटी छागे हवय, जेकर मन के मती ल लकवा मार दिये हवय, जेकर मन के हाथ-गोड़ ह सिरिफ अपन राजनीतिक आका मन के जोहार-पैलगी करे खातिर हालथे-डोलथे वोमन सिरिफ 'माटी के पुतला' तो हो सकथें। जेन कठपुतली नाच बरोबर नाचे के छोड़ अउ कुछु नइ कर सकंय।</div><div><br></div><div>एक बात मोला अउ जादा कचोटत रहिथे- अभी तक इहाँ जतका झन मुखिया पदवी म बइठे हें, वोमा के एकोच झन ह इहाँ के राजभाखा के पदवी ले सम्मानित हम सब के महतारी भाखा 'छत्तीसगढ़ी' म शपथ ग्रहण नइ करे हें. इन एकर संबंध म गोठ करबे त अभी तो छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल नइ करे गे हे काहत अधिकारी मन ऊपर अपन निकम्मा पन ढांके-तोपे के कोशिश करथें. ए जम्मो झन ले मोर प्रश्न हे- अंगरेजी जेन विदेशी भाखा होए के संगे-संग इहाँ के आठवीं अनुसूची म संघरे नइए तभो ले वो परदेशी भाखा म शपथ लिए जा सकथे, त फेर हमर राज के विधानसभा म सर्वसम्मति ले राजभाखा के रूप म पारित इहाँ के जनभाखा छत्तीसगढ़ी म काबर नहीं? </div><div> </div><div>अब तुमन खुद सोचव- तुम इहाँ के माटी पुत्र आव ते दूसर मन के हाथ म खेले खातिर बने माटी के पुतला? </div><div>- सुशील भोले </div><div>संजय नगर, रायपुर </div><div>मोबा. नं 098269-92811</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-1013514148932079332023-12-08T18:16:00.000-08:002023-12-08T18:17:52.812-08:009 दिसंबर : ऐतिहासिक बेरा के सुरता<div>9 दिसंबर : वो ऐतिहासिक बेरा के सुरता... </div><div> छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म 9 दिसंबर 1987 के दिन ल सबर दिन सुरता राखे जाही, जे दिन छत्तीसगढ़ी भाखा के ऐतिहासिक मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन रायपुर के आजाद चौक तीर तात्यापारा के कुर्मी बोर्डिंग के सभा भवन म जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन के उपस्थिति म संपन्न होए रिहिसे.</div><div><br></div><div> ए विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी रहिन हें. अध्यक्षता दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी करे रिहिन हें. संग म 'सोनहा बिहान' के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी विशेष अतिथि के रूप म पधारे रिहिन हें. ए बेरा म छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के जम्मो मयारुक मन उहाँ बनेच जुरियाए रिहिन.</div><div><br></div><div>चित्र 1- 'मयारु माटी' के विमोचन के बेरा. डेरी डहर ले- सुशील वर्मा 'भोले', पंचराम सोनी, टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा, विमोचन करत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी अउ नवभारत के संपादक रहे कुमार साहू जी.</div><div><br></div><div>चित्र 2- डेरी डहर ले- कुमार साहू जी के स्वागत होवत, स्वागत करत 'मयारु माटी' के संपादक सुशील वर्मा 'भोले', अउ बीच म कुर्सी म बइठे दिखत हें- सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी.</div><div><br></div><div>चित्र 3- विमोचन के बेरा म उपस्थित छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन म. डेरी डहर ले- जागेश्वर प्रसाद जी, डॉ. देवेश दत्त मिश्र जी, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी, डॉ. शालिक राम अग्रवाल 'शलभ' जी, डॉ. व्यास नारायण दुबे जी, जगदीश बन गोस्वामी जी</div><div>उंकर पाछू म डॉ. भारत भूषण बघेल जी, डॉ. राजेन्द्र सोनी जी रामचंद्र वर्मा जी संग डॉ. सुखदेव राम साहू 'सरस' अउ जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5407898753562364912.post-73815328110898490892023-12-05T23:26:00.001-08:002023-12-05T23:26:18.961-08:00कोंदा भैरा के गोठ 10<div>कोंदा भैरा के गोठ 10</div><div><br></div><div>-जे मन कोनो विषय म पीएचडी कर लेथें, ते मनला वो विषय के संगे-संग सबोच विषय के विद्वान मान के उंकर लिखे अउ बोले गे वाक्य मनला ही पखरा के लकीर बरोबर मान लेथन जी भैरा.</div><div> -हाँ ए बात तो सिरतो आय जी कोंदा.. तभे तो अइसने मनला अतिथि बना के फूल-माला पहिरावत रहिथन.</div><div> -फेर कतकों बखत इहू देखे म आथे के वो पीएचडी धारी ह नकलचोट्टई कर के या पइसा के पंदोली दे के सेती उपाधि पाए रहिथे, एकरे सेती वोकर वक्तव्य म आरुग सत्य के दर्शन नइ हो पाय.</div><div> -अच्छा.. अइसना घलो हे? </div><div> -हहो.. मैं अइसन कतकों उपाधि धारी मनला जानथौं, जे मन अपन विषय म घलो अधकचरा बरोबर जनाथें.</div><div> -वोकर मन जगा विश्वविद्यालय के डिग्री होथे न जी संगी, लोगन के नजर म वोकरे तो मान-सम्मान हे.</div><div> -अइसने नकलचोट्टई ले बाॅंचे खातिर अभी सरकार ह स्वास्थ्य विभाग म मेडिकल शोधगंगा प्लेटफार्म बनाय हे, जेकर ले अइसन लोगन मन के असलियत आगू आ सकय.. मोला लागथे के सरकार ल सबो विभाग के शोध कारज खातिर अइसने उदिम करना चाही.</div><div>🌹</div><div>-राजभाषा छत्तीसगढ़ी दिवस के जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार संगी कोंदा.. फेर मोला जनाथे के ए जनम म हमन राजभाखा के नॉव म भइगे जोहरईच भर करत रहि जाबो तइसे लागथे.</div><div> -अइसे काबर जनाथे संगी? </div><div> -देखना.. राजभाषा घोषित तो कर डारे हें, फेर कोनो च सरकार के बुता ह एला सही अरथ म राजभाषा माने बरोबर नइ जनावय. आज ले न तो ए ह पढ़ई के माध्यम बन पाए हे, न राजकाज के.</div><div> -ए बात तो सिरतोन आय संगी केंद्र अउ राज दूनों जगा के लंबरदार मन हमरे मन असन कोंदा भैरा गढ़न के होगे हें. कतकों चिचिया हुंत करा फेर हूँ हाॅं करे कस घलो नइ जनावय.</div><div> -सबले अचरज के बात तो ए आय संगी.. जे मन लोकसभा अउ राज्यसभा म छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म संघारे खातिर गोहराए रिहिन हें, उहू मन अपन-अपन पार्टी के सरकार जगा एकर खातिर कुछू नइ करवा पाईन.</div><div> -हाँ ए तो हे.. तभे तो सब कहिथें के ए राजनीति वाले मन सत्ता के बइठत भर ले भावनात्मक विषय ऊपर कूद फांद करथें, अउ सत्ता म आए के बाद कोंदा लेड़गा बन जाथें.</div><div>🌹</div><div>-विधानसभा चुनाव के परिणाम अवइया हे जी भैरा.. हमर पार्टी वाले मन वोकर पहिली अच्छा तगड़ा गढ़न के हुमन जग करवाबो काहत हें.</div><div> -अच्छा.. चुनाव म जीत के सरकार बनाए खातिर का जी कोंदा? </div><div> -हहो संगी.. अभी विश्व कप क्रिकेट म भारतीय टीम ह जीत जावय कहिके हुमन जग करवाए रिहिन हें ना.. उंकरे मन जगा इहू हुमन जग ल करवाबो काहत हें.</div><div> -त तोला कइसे जनाथे संगी.. हुमन जग करवाए ले मतदाता मन जेन छापा म वोटिंग मशीन म बटन दबाए हें, ते ह तुंहर डहार लहुट जाही? </div><div> -अब पार्टी के लंबरदार मन तो अइसने काहत हें गा.</div><div> -देख रे भई.. देश भर म होय हुमन जग अउ दुआ मॉंगे के बाद घलो जइसे हमर क्रिकेट टीम वाले मनला तीन धार के रोए बर लाग गे रिहिसे ना.. तइसने तुंहरो लंबरदार मन संग झन हो जावय गा.</div><div>🌹</div><div>-जेठौनी जोहार जी भैरा.</div><div> -जोहार जी कोंदा.. यहा काला-काला धर के जावत हस जी संगी? </div><div> -या.. ए सब टूटहा चरिहा, झेंझरी, सूपा-उपा मन ताय गा.. आज ले हमन इही सब जुन्ना जिनिस मनला बार के भुर्री तापे के नेंग करथन नहीं गा.. ओकरे जोखा तो आय. </div><div> -अच्छा.. जेठौनी के रतिहा तुलसी महारानी के पूजा पाठ करे के पाछू कुसियार चुहकत भुर्री तापथन तेकरे नेंग खातिर? </div><div> -हहो संगी.. पुरखा मन के चलाय नेंग ताय गा.. रतिहा बेरा अब जुड़ जनाय के चालू तो होइच गे हे, आज भुर्री तापे के शुरुआत करबो तहाँ ले गोरसी अउ भुर्रीच ह तो हमर असन सियनहा मन के चार महीना के संगवारी बन जाथे.</div><div> -सही आय संगी.. पहिली असन अब गहिर जाड़ तो नइ जनावय, तभो ले पुरखा मन के चलाय परंपरा ल निभा लेथन.</div><div>🌹</div><div>-ए बछर कतेक धान-पान बनाएव जी भैरा? </div><div> -कोन जनी जी कोंदा.. अब तो का हार्वेस्टर कहिथें तइसने मशीन आथे अउ भकभक-भकभक धुंगिया उड़ियावत खेतेच म सबो ल काट-निमार के बोरा-बोरा करत मढ़ा देथे, तहाँ ले उहिच डहार ले वोला मंडी घलो अमरा डारथें. कतका गाड़ा होइस.. का खंगती जादा होइस तेकरो गम नइ जनावय.</div><div> -भइगे सबोच घर के एके हाल हे संगी.. हमन तभोच ले खाए-पीए अउ पौनी-पसारी मन के पुरती ल हाथेच म लू-मिंज डारथन, फेर पहिली असन न तो रास मढ़ा के नापन अउ न वोकर ओसरती म खीर-तसमई के भोग चढ़ावन.</div><div> -भइगे काला कहिबे.. ए मशीनीकरण ह हमर तइहा के परंपरा मनला घलो सिरवावत जावत हे जी.. अब अन्नपूर्णा महतारी ह घर अउ कोठी म पधारे के पहिलीच ले बेचरउहा बन के मंडी म अमा जाथे.</div><div>🌹</div><div>-हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म आने-आने भाखा मन के गजब अकन शब्द मन संघरत जावत हे जी भैरा.</div><div> -हाँ.. बात तो सिरतोन आय जी कोंदा. एकर दू कारन हे.. पहला ए आय के हमर मन के उठई-बइठई अउ दिनचर्या म जे लोगन मन संग मेल-भेंट होवत रहिथे, उंकर मन के भाखा के शब्द ह घलो हमर संग संघरत जाथे.</div><div> -अच्छा.. अउ दूसर? </div><div> -हमर शिक्षा के माध्यम होथे. अब देखना हमन आन छत्तीसगढ़ी भाषी फेर पढ़े हावन हिंदी माध्यम ले, तेकर सेती हमन हिंदी के कतकों शब्द मनला बरपेली छत्तीसगढ़ी के बोलचाल अउ लिखई-पढ़ई म खुसेर डारथन, जबकि हमर जगा छत्तीसगढ़ी के अपन पोगरी शब्द रहिथे तभोच ले.</div><div> -जइसे के? </div><div> -अब हमर 'भाखा' शब्द ल ही देख लेवव ना.. 'भाख' माने 'बोलना' शब्द ले बने 'भाखा' शब्द हमर पोगरी शब्द आय, तभो ले हमन हिंदी ले पढ़े-लिखे रहे के सेती ओकरे ले प्रभावित रहि के 'भाषा' शब्द के उच्चारण करथन. अइसने अउ बहुत अकन शब्द हे, जे मनला हम जाने-अनजाने बउरत रहिथन.</div><div>🌹</div><div>-राजनीति वाले मन घलो कहाँ-कहाँ ले नवा-नवा शब्द खोज-ढूंढ के लावत रहिथें जी कोंदा.. कभू-कभू ताज्जुब घलो लागथे.</div><div> -कइसे का खोज डारे हें जी भैरा? </div><div> -अरे काला कहिबे संगी.. अभी वो दिन वो बपरा ह मोर शहर म क्रिकेट मैच होवत हे, त चल बुजा ल महूं देखे लेथौं कहिके गिस, त वो क्रिकेट वाले बाबू मन उहिच दिन हार गें गा! </div><div> -ले.. रोज-रोज जीतइया मनला उहिच दिन हारे बर रिहिसे कहिदे! </div><div> -हव भई.. तब ले वो बपरा ल आने दल वाले मन 'पनौती' काहत हें.</div><div> -अच्छा.. ए पनौती ह हमर डहार के शब्द नोहय तइसे जनावत हे जी संगी.</div><div> -हहो.. भंडार मुड़ा के भाखा आय.. हमर एती इही ल 'गिरहा' कहिथन. </div><div> -अच्छा.. गिरहा.. एला कोनो-कोनो अशुभहा घलो कहि देथें का? </div><div> -बेरा-बखत देख के खर छॉंव वाले, दोखहा, नछत्तर जइसन कतकों शब्द बउरे जा सकत हे जी.</div><div> -अच्छा ठीक हे.. हमर भाखा समृद्ध हे, एमा कतकों वैकल्पिक शब्द हे, फेर मोला संसो ए बात के होवथे के वो खेल के असर ह इहाँ के चुनई परिणाम म तो नइ अभर जाही.</div><div>🌹</div><div>-ए एक्जिट पोल वाले मन कइसे अलकरहा बानी के बताथें जी भैरा.. मोला तो माथा धरे बरोबर होगे हे.</div><div> -कइसे का काहत हें जी कोंदा? </div><div> -अरे काला बताबे.. एको ठन पार्टी के आरो ल स्पष्ट नइ बतावत हें, मोला थथमरई असन लागत हे.</div><div> -त तोला का बात के थथमरई होगे भई.. कोनो पार्टी वाले मन जीतंय हमला का करे बर. </div><div> -वाह.. स्पष्ट होना चाही ना के फलाना पार्टी के सरकार बनत हे कहिके, तब तो उंकरे मन के रंग के कपड़ा खिलवा के उंकर जीते विधायक के परघनी करे बर जातेंव जी.</div><div> -सबले बढ़िया तो ए हे संगी.. तैं ह सबो पार्टी वाले मन असन डरेस सिलवा डार, जे पार्टी के मन सरकार बनावत दिखहीं, उही पार्टी के डरेस ल पहिर के फूल-माला धर के निकल जाबे जी.</div><div> -तोर कहना तो वाजिब जनावत हे संगी.. आजकाल के चलन तो अइसनेच हे.. जेती बम तेती हम.</div><div>🌹</div><div>-तोला वो बेरा के सुरता हे जी भैरा.. जब पेट्रो तेल के विकल्प के रूप म इहाँ रतनजोत नॉव के पेड़ लगाए के भारी नारा चलत रिहिसे.</div><div> -हाँ सुरता कइसे नइ रइही जी कोंदा.. तब जगा-जगा लिखाय राहय- अब तेल नहीं आएगा खाड़ी से, हमको मिलेगा अपने घर की बाड़ी से.</div><div> -हाँ उही रतनजोत जेला हमन इहाँ के देशी किस्म ल बगरंडा/बगरंडी कहिथन. एकर बीजा ले तेल निकाले के एको ठन फैक्टरी अभी तक नइ खुल पाए हे का? </div><div> -कोन जनी संगी आरो तो नइ पाए हौं.. हाँ भई फेर एकर बीजा ल खा के अबड़ झन लइका मन के बीमार परे के खबर जरूर सुने हावंव.</div><div> -कतकों जगा ले तो मरे के खबर घलो आ धमकथे, फेर एकर बीजा ले तेल निकाले के फैक्टरी के सोर हमर एती तो नइ सुनाए हे.</div><div> -वइसे ए अच्छा उदिम रिहिसे, फेर कोन जनी कइसे अरझे असन होगे ते? </div><div> -सरकार के बहुत अकन उदिम मन लोक हितकारी होथे, फेर कोन जनी काबर वो ह बेरा ले पहिली अल्लर पर जाथे?</div><div>🌹</div><div>-मनखे-मनखे एक बरोबर के उद्घोष करइया गुरु बाबा घासीदास जी के आज जयंती आय जी भैरा.</div><div> -हाँ जी कोंदा.. सही म सब जीव-जंत परमात्मा के नजर म एक बरोबर ही होथे.. तभे ते हर जीव म शिव के वास हे कहिथें.</div><div> -सही आय संगी.. बस हमी मन ह आज तक उंकर ए समरसता के संदेश ल समझ नइ पाए हन, अउ फोकटे-फोकट म छोटे-बड़े ऊँच-नीच के अंधरौटी ल आॉंखी म आॅंजे रहिथन.</div><div> -हमन तो जेला अपन जात-समाज कहिथन तेनो म गरीबहा-बड़हर के नॉव म खंचका खन डारथन.. अउ जब अपनेच समाज म छोटे-बड़े के भेद कर डारेन, तब आने वाले मन संग तो पूछबेच झन कर. </div><div> -हव जी एकेच समाज के पंगत म बड़का खातिर आने जगा आसन अउ छोटे खातिर आने जगा देखे बर मिल जाथे.</div><div> -गुरु-ग्रंथ मन के जतका संदेश हे सब किताब म पढ़े अउ भाषण म गोठियाए भर के होगे हे.. चरित्तर म सब अन्ते-तन्ते जनाथे.</div><div>🌹</div><div>-बधाई हो जी भैरा तुंहर सरकार फेर लहुट आइस. </div><div> -तहूं ल बधाई संगी कोंदा.. अब लागथे फेर इहाँ के भाखा साहित्य के दिन बहुरही.</div><div> -महूं ल अइसने जनावत हे संगी.. छत्तीसगढ़िया के नारा लगाने वाले मन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पॉंच बछर म घलो गठन नइ करे पाईन न शिक्षा के माध्यम बनाइन.. अउ बाकी अपेक्षा मन के तो बाते ल छोड़ दे, तब लोगन उंकर मन ऊपर अउ कतका भरोसा करतीन.</div><div> -सही आय जी.. सिरिफ सोंटा मरवाए अउ गेंड़ी चघे भर म छत्तीसगढ़ी अस्मिता के बढ़वार नइ हो जाय, जेन भाखा संस्कृति के नेंव के ठोस कारज होथे, तेन ल तो ए मन छुईन तक नहीं, तब जनता अउ कतका अगोरा करतीन.. चलव.. कोनो राजा बनय, हमला का नफा ते का नुकसान हे.. बस लोगन के मनसुभा फलित होवत राहय.. उंकर सपना अउ कारज पूरा होवत राहय ए जरूरी हे.</div><div> -सही आय संगी.. अब तो बस न्याय, विकास अउ अस्मिता के बढ़वार के बुलडोजर चले के अगोरा हे.</div><div>🌹</div><div>-अब राजा-महाराजा मन के मोहजाल ले लोगन सिरतोन म निकले ले धर लिए हें जी भैरा.</div><div> -कइसे का होगे जी कोंदा? </div><div> -अभी हमर इहाँ जेन विधानसभा के चुनई होय हे ना, एमा राजपरिवार के एको सदस्य मन जीत नइ पाए हें.</div><div> -अच्छा.. मतलब अब सिरतोन म लोकतंत्र माने आम जनता के राज आवत हे का? </div><div> -हव जी.. पहिली ए देश म कहे बर तो लोकतंत्र आगे रिहिसे, फेर संसद अउ विधानसभा मन म इहिच खानदान के मन दिखत राहंय. लोगन घलो आॅंखी-कान मूंद के उहिच मनला वोट दे देवत रिहिन हें, फेर अभी पहिली बार हमर छत्तीसगढ़ विधानसभा म एको राजपरिवार के सदस्य नइ दिखंय. अलग-अलग पार्टी ले राजपरिवार के सात झन चुनई म खड़े रिहिन हें, फेर सातों के सातों अभी के चुनई म हार गे हें. एमा कांग्रेस ह तीन, भाजपा ह तीन अउ आम आदमी पार्टी ह एक झन ल प्रत्याशी बनाए रिहिसे.</div><div> -माने अब सिरतोन म राजशाही ले मुक्ति मिलत हे.. बढ़िया हे संगी.. लोकतंत्र के जय हो.</div><div>🌹</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02966703931015442502noreply@blogger.com0