( हमारे देश में आज भी कई एेसी परिस्थियां निर्मित होती हैं, जब हमारे गौरव के विषयों पर प्रश्न जिन्ह अंकित किए जाते हैं। एेसे ही जब संसद भवन में बीएसपी के एक सांसद द्वारा वंदेमातरम् गान का बहिष्कार किया गया, तब उससे दुखी होकर लिखा गया यह गीत...)
हर मज़हब से ऊँचा है ये वंदेमातरम्
भूखों का भगवान सरीखा वंदेमातरम्
चलो बढ़ाएं कदम मिलाकर फिर से आगे
आज प्रश्न फिर जाग उठा है देश के आगे
कोई कहीं ललकार रहा है वंदेमातरम्...
आजादी दिलवाई जिसने जोश जगाकर
हर सूबे को गले लगाया स्नेह बढ़ाकार
फिर कोई क्यों नकार रहा है वंदेमातरम्...
गण को तंत्र का राज दिलाया बनाया राजा
मुक्त हुआ सामंतों से यह शुभ दिन आया
लोकतंत्र लहराया तब, गूंजा फिर वंदेमातरम्...
नवभारत में स्वर्णिम सवेरा आया जिससे
बच्चा-बच्चा जन-मन-गण को गाया जिससे
आज हिसाब सब मांग रहा है वंदेमातरम्...
अंधियारे में सूर्य सरीखा है यह वंदेमातरम्
जेठ की दुपहरी में छांव की ठंढक वंदेमातरम्
अरे बच्चों की मुस्कान सरीखा वंदेमातरम्...
सुशील भोले
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