Wednesday 24 April 2024

अक्ती किसानी के नवा बछर

अक्ती हमर किसानी के नवा बछर
   छत्तीसगढ़ म जेन अक्ती के परब मनाए जाथे, वो ह किसानी के नवा बछर के रूप म ही मनाए जाथे. पुतरा-पुतरी के बिहाव या ए दिन बर-बिहाव खातिर शुभ मुहूर्त संग अउ कतकों अकन जुड़े मान्यता मन ओकर सहायक परंपरा के अंग आय, जे मन आने-आने क्षेत्र ले आए लोगन संग इहाँ आ के सॉंझर-मिंझर होवत गे हवंय.
   हमर इहाँ अक्ती के दिन जेन सबले बड़का परंपरा के निर्वाह करे जाथे ओला हमर महतारी भाखा म 'मूठ धरना' कहिथन. ए मूठ धरई ह असल म अपन-अपन खेत म खरीफ के नवा फसल खातिर बीजा बोवई के शुरुआत आय. 
   ए बीज बोए के परंपरा ल पूरा करे खातिर गाँव के सबो किसान अपन-अपन घर ले धान लेके एक निश्चित जगा सकलाथें. कोनो कोनो गाँव म ठाकुर देव या ठाकुर दिया म सकलाथें त कोनो गाँव म अउ कोनो मेर, जिहां वो गाँव के बइगा ह सबो झन के बिजहा ल संघार के पूजा पाठ करथे, मंत्र के माध्यम ले अभिमंत्रित करथे. तहाँ ले सबो किसान मनला वो अभिमंत्रित धान के बिजहा ल बॉंट दिए जाथे. किसान मन इही अभिमंत्रित धान के बिजहा ल अपन खेत म लेग के बोवाई करथें.
   कतकों गाँव मन म बइगा के द्वारा बिजहा के धान ल अभिमंत्रित करे के परंपरा नइ देखे म आवय. तब अइसन गाँव के किसान मन अपन खेत म ओनारे बर रखे धान के बिजहा ल अपन कुल देवता, ग्राम देवता आदि मन म समर्पित करत खेत डहार जाथे अउ जतका बिजहा बॉंच जथे वो मनला खेत म बो देथे. ए किसम 'मूठ धरे' के परंपरा संपन्न हो जाथे.
   अक्ती परब के दिन ही संझौती बेरा गाँव के सब किसान अउ पौनी पसारी संग कमइया मन कोनो चउंक-चाकर जगा म सकलाथें, जिहां अपन-अपन सामरथ के मुताबिक सौंजिया, पहाटिया, मरदनिया, धोबी आदि मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति करथें. जे सौंजिया, कमइया अउ पौनी पसारी मन अपन जोंगे धान-पान अउ रुपिया पइसा के मुताबिक ठाकुर मन ले हुंकारू पा जाथें, ते मन अपन-अपन ठाकुर के पॉंव-पैलगी कर के चोंगी-माखुर पीयत बुता-काम ल लग जाथें.
    ए सब के संग ही अक्ती के दिन ले कतकों नवा कारज जइसे नवा करसी म पानी पीए के, आमा जइसन मौसमी फल ल टोरे अउ खाए के शुरुआत घलो करथें. 
   नान-नान नोनी मन बर ए ह पुतरा-पुतरी के बिहाव के मयारुक बेरा होथे. अक्ती के आगू दिन संझौती बेरा बने बाजा-रूंजी संग चुलमाटी के नेंग करे रहिथें, तेला ए दिन मड़वा ठउर म लानथें तहाँ ले तेल, हरदी मायन, बरात परघनी आदि सबो नेंग ल पूरा करत टिकावन करथें, पुतरा-पुतरी के बिहाव ल संपन्न करथें.
   अक्ती के दिन ढाबा भरे के घलो परंपरा हे. ए दिन किसान मन अपन-अपन अंगना म गोबर के तीन ठक खंचवा बनाथें. इही गोबर ले बने खंचवा ल ढाबा कहे जाथे.
   फेर ए ढाबा म एक म  धान दूसर म ओन्हारी जइसे- तिंवरा या राहेर अउ तीसर म पानी भरे जाथे बने टिपटिप ले.
   ढाबा म धान ओन्हारी अउ पानी भरे के बाद फेर ओकर आगू म हूमधूप देके पूजा करे जाथे. तेकर पाछू फेर बिजहा बोनी के टुकना म बीजहा, कुदारी, आगी पानी अउ हूमधूप धर के खेत म बोवई के मूठ धरे जाथें.
   अक्ती के दिन घर के देवाला म नवा फल ल नवा करसी के पानी खातिर चढ़ाए जाथे. अपन पुरखा मनला सुरता कर के तरिया या नदिया म उरई के पौधा (घास) गड़िया के नवा करसी या तांबा के चरू म पानी डारथें. अपन पुरखा मनला पानी दिए जाथे, जइसे पितर तरपन म करे जाथे.
    ए किसम सब अपन अपन परंपरा अउ मान्यता के मुताबिक अक्ती परब ल मनाथें.

अक्ती आगे घाम ठठागे चलव जी मूठ धरबो
अपन किसानी के शुरुआत सुम्मत ले सब करबो
बइगा बबा पूजा कर के सबला पहिली सिरजाही
फेर पाछू हम ओरी-ओरी बिजहा ल ओरियाबो
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा 9826992811

Monday 22 April 2024

कोंदा भैरा के गोठ-18

कोंदा भैरा के गोठ-18

-पहिली अक्ती के दिन ले नवा करसी ल बउरे के शुरूआत करत रेहेन जी भैरा, फेर अब तो फागुन चइत म ही मुंह चपियाए ले धर लेथे.
   -हव जी कोंदा.. गरमी ह दिन के दिन लाहो लेवत हे.. अब तो लगते फागुन ले ही जुड़ पानी बर टोटा के आस बाढ़ जाथे, फेर ए बछर तो अउ अतलंग होही काहत हें.
   -अच्छा.. अइसे का? 
   -हव.. देश के मौसम वैज्ञानिक मन के कहना हे के ए बछर अप्रैल ले जून तक सरलग तीन महीना नंगतेच दंदोरही गरमी ह.. अउ जानत हस..? 
   -बताना भई. 
   -लू जेला हमन झॉंझ-बड़ोरा कहिथन ते ह पहिली असन सिरिफ दू-चार दिन के नहीं, भलुक ए बछर बीस दिन तक गदर मचा देही काहत हें.
   -जउंहर होगे.. ए सब ह पर्यावरण के अनदेखी अउ ग्लोबल वार्मिंग के नतीजा आय संगी जे ह अउ बाढ़ते जाही, तइसे जनाथे मोला.
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-पहिली के चुनाव म मुहर-ठप्पा लगाय के नियम नइ रिहिसे जी भैरा.
   -त कइसन चुनाव होवय जी कोंदा? 
   -हमर देश के शुरूआती दू आम चुनाव म प्रत्याशी मन के नॉव अउ ओकर चुनाव चिन्ह के छप्पा लगे वाला अलग अलग मतपेटी रख दिए जावय. मतदाता ह अपन मतपत्र ल अपन पसंद के उम्मीदवार के मतपेटी म डार देवय.
   -अच्छा..! 
   -हव.. दू चुनाव के बाद जब मतपत्र म मुहर-ठप्पा लगाय के शुरुआत होइस, त कतकों झन तो ए नवा पद्धति के विरोध घलो करीन.
   -हाँ.. फेर अब तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आगे हवय ना.
   -हाँ सही आय.. अउ हो सकथे अवइया बेरा म वोट डारे के अउ कुछू नवा आविष्कार हो सकथे, फेर शुरूआती दू चुनाव के ऐतिहासिक महत्व हे.. वो बखत के बिना मुहर-ठप्पा वाले मतदान ल "मुहर न ठप्पा, जीत गए कक्का" वाले दौर कहिके आज तक सुरता करे जाथे.
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-ए बछर के नवरात म निरई माता के दरस करे बर चलबो नहीं जी भैरा.
   -मोला नइ ओसरही तइसे जनाथे जी कोंदा.. फेर उहाँ तो बछर म एके दिन भर दरस कर सकथन आने दिन तो बंद रहिथे कहिथें.
   -हव.. चैत नवरात के पहला इतवार के माता के जात्रा लगथे. ए दिन दुरिहा-दुरिहा लोगन अपन मनोकामना पूरा होय के सेती आथें अउ बोकरा के पूजवन देथें. ए बछर अवइया इतवार के मुंदरहा 4 बजे ले बिहनिया 9 तक दरस कर सकथन. 
   -अब मोर भाग म एसो माता के दरस के जोंग नइहे तइसे जनाथे जी संगी.. उहाँ के जोत ह माता के किरपा ले अपने अपन नौ दिन ले बिन तेल के बरथे कइथें ना? 
   -हव सही आय.. फेर गरियाबंद जिला के मोहेरा गाँव के डोंगरी म बिराजे निरई माता के मंदिर म माईलोगिन मन के जवई प्रतिबंधित हे. वो मन उहाँ के परसाद तको नइ खावंय.
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-पहिली नवरात आवय तहाँ ले नौ दिन के सोवा हमर मन के माता गुड़ी या चौंरा म ही होवय जी भैरा.
   -सही आय जी कोंदा.. बियारी कर के घर ले निकलन तहाँ ले माता देवाला के जस-सेवा म संघर जावत रेहेन. अधरतिहा के होवत ले माता के सेवा म गावत बजावत मगन राहन, तहाँ ले चार पहर रतिहा ल गुड़ी चौंरा म ही ढलंग के बीता देवन.
   -हव जी.. फेर अब वो लइकुसहा उमर के जोश संग हमर बोली भाखा के शब्द मन घलो नंदावत जावत हावय न.. अब कोनो माता के ठउर ल गुड़ी या देवाला कहाँ कहिथें, सब के सब मंदिर कहि देथें.
   -हव जी हमर परंपरा मन म आने ठउर ले आए नेंग-जोंग संग शब्द मन घलो साॅंझर-मिंझर होवत जावत हे.
   -एकर सबले बड़का कारण ए आय संगी, के हम अपन गुड़ी देवाला के पूजा उपासना ल खुद करे ले छोड़ के अंते-अंते ले आए लोगन मनला सउंपत जावत हावन, तेकरे सेती उन हमर परंपरा म अपन संग लाने शब्द संग परंपरा मनला संघारत जावत हें. हमला अपन परंपरा के आरुग रूप के रक्षा करना हे, त जम्मो पूजा सेवा ल अपन खुद के हाथ ले ही करे बर लागही.
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-अभी चैत अंजोरी एकम के जशपुर के वनवासी कल्याण आश्रम म आदिवासी मन के सबले बड़का परब सरहुल सरना पूजा महोत्सव म इहाँ के मुखिया ह कहिस हे जी भैरा के आदिवासी मन ले बड़का हिंदू अउ कोनो नइए. वो मन कहिन के हमन शिव अउ पार्वती के पूजा करथन, जे मन आदिवासी मनला हिंदू नोहय कहिथें, वो मन विधर्मी आय.. अउ अइसन विधर्मी मन ले हमला बॉंच के रहना चाही.
   -एक पइत महूं ल जशपुर जिला के बगीचा क्षेत्र म जाए के अवसर मिले हे जी कोंदा.. मैं जब उहाँ के सरना पूजा स्थल म गे रेहेंव त उहाँ के पहाड़ी कोरवा आदिवासी समाज के अध्यक्ष ह घलो मोला अइसने बताय रिहिसे.
   -अच्छा.. अइसे? 
   -हव.. मोला राजपुरी नामक गाँव के सरना पूजा स्थल के संगे-संग उहाँ के पहाड़ी म स्थापित जम्मो देवी देवता मनला देखाए रिहिन हें.
   -फेर हमर ए मैदानी भाग के आदिवासी विद्वान मन ए बात ल नइ मानंय, उंकर कहना हे के सांस्कृतिक अउ संवैधानिक दूनों रूप ले ही आदिवासी मन हिंदू धर्म या संप्रदाय के अंग नोहय.
   -हो सकथे अलग अलग क्षेत्र के आदिवासी मन के पूजा उपासना के प्रतीक अउ मान्यता अलग अलग होही.
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-अभी नवरात म दुर्गा सप्तशती के पाठ तो करत होबे न जी भैरा? 
   -करथौं न जी कोंदा.. कभू-कभू मन होथे त अइसने आने बखत घलो कर लेथौं.
   -ए तो बने बात आय जी संगी, फेर तैं जानथस दुर्गा सप्तशती के रचना हमर छत्तीसगढ़ म ही मार्कंडेय ऋषि ह करे रिहिसे? 
   -वाह भई.. ए बात ल तो कभू नइ सुने रेहेन संगी! 
   -हाँ.. हमर बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर ले 40 कि.मी. दुरिहा मारकंडी नदिया के तीर चपका नॉव के गाँव हे, इहें ऋषि मार्कंडेय ह राहत रिहिसे, जिहां महादेव के आशीर्वाद ले दुर्गा सप्तशती के संगे-संग मार्कंडेय पुराण के रचना वो मन करे रिहिन हें.
   -भारी अचरज के गोठ आय संगी हम अपने तीर-तखार के इतिहास अउ गौरव ले अनचिन्हार बने हावन.
   -हव जी.. कतकों दृष्टि ले ऐतिहासिक चपका गाँव म आज घलो मार्कंडेय ऋषि के धुनी अउ प्रतिमा ल प्रत्यक्ष देखे जा सकथे. इहाँ एक प्राकृतिक जलस्रोत घलो हे. संग म देखे के लाइक अउ कतकों देव मूर्ति अउ जगा हें.
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-हमर रायपुर म माता जी के एक अइसे मंदिर हे जी भैरा जिहां यादव समाज के मन ही पुजारी होथें.
   -अच्छा.. कोन मंदिर के बात आय जी कोंदा? 
   -इहाँ के कुशालपुर चौक म दंतेश्वरी माता के मंदिर म. अउ तैं जानथस जी संगी इही जगा के खोखोपारा स्कूल ले मैं ह मिडिल पास करे हौं.
   -वाह भई..! 
   -हव.. चौदहवीं शताब्दी म ए जगा गजब जंगल रिहिसे, तब गरुवा चराय बर एक गणेशिया बाई नॉव के यादव महिला ह जावय. वो देखय के एक ठ गाय ह एक जगा खड़ा होवय तहाँ ले वोकर दूध ह अपने अपन गिरत जावय. जब एकर जानकारी वो बखत के हैहयवंशी राजा म मिलिस त वो जगा ल खनवाइस त उहाँ दंतिका के रूप म एक प्रतिमा मिलिस. तब उहाँ मंदिर बना के वोला दंतेश्वरी नॉव ले चिन्हारी करे गिस. काबर ते गणेशिया बाई के रूप में यादव मन उहाँ माता जी के पहिली सेवा करे रिहिन हें, तेकर सेती आज तक यादव मन ही इहाँ सेवा करथें, अभी राजू यादव ह इहाँ के पुजारी हे.
   -ए तो बने बात आय जी जेकर मन के माध्यम ले मंदिर बने हे उही मनला उहाँ के पुजारी होना चाही सबोच जगा.
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-रायपुर के ऐतिहासिक कंकाली मंदिर अउ तरिया हे ना जी भैरा पहिली वो जगा इहाँ के मसानघाट रिहिसे.
   -अच्छा.. अइसे का जी कोंदा? 
   -हव.. करीब सात सौ साल पहिली बद्रीनाथ धाम ले आए नागा साधु मन एला बनवाए रिहिन हें. मोर बचपना इही पारा म बीते हे संगी . 
   -अच्छा.
   -हव.. मसानघाट होय के सेती नागा साधु मन ए जगा तांत्रिक क्रिया करत राहंय. एमा के कृपालु गिरी जी के सपना म कंकाली दाई आइस अउ ए जगा तरिया कोड़वाय बर कहिस. जब ए जगा तरिया कोड़े गिस त वोमा ले माता जी के मूर्ति ह निकलिस, जेला उहाँ स्थापित करे गिस. तरिया के बीच म एक शिव जी के मंदिर घलो हे, जेहा बारों महीना पानी म बूड़े रहिथे. मंदिर के ऊपर के कलश वाले हिस्सा भर ह दिखथे. हमन लइका रेहेन ना त उहाँ अबड़ कूद कूद के नहाए हावन. 
   -अच्छा.. त वो शिव मंदिर ह कभू नइ दिखय का? 
   -दिखथे ना.. एक दू पइत जब तरिया के चिखला ल हेरे बर पानी ल अंटवाए गिस तब दिखे रिहिसे. हमन अपन आॅंखी म देखे हावन.
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-हमर देश म हरियाणा एक अइसे राज्य आय जी भैरा जे ह 75 साल ले जादा के जुन्ना पेड़ मनला पेंशन देही.
   -वाह भई.. जइसे सियान मनखे मनला सरकार ह पेंशन देथे तइसने सियनहा पेड़ मनला पेंशन जी कोंदा! 
   -हव संगी.. हर बछर 2,750 रुपिया के पेंशन ह वो मनखे के खाता म जाही, जे ह वो पेड़ के देखरेख करही.
   -ए तो बने निक बात आय संगी.. एकर ले पेड़ पौधा मन के संरक्षण डहार लोगन के चेत जाही, जे गरीब मनखे मन पेड़ के सेवा जतन करहीं वो मनला आर्थिक लाभ हो जाही अउ सबले बड़का बात ए के जे मन बिन सोचे गुने जुन्ना रूख मनला काट डारथें वोकरो ले बचाव होही.
   -हव सही आय.. अभी 3,810 पेड़ के चिन्हारी करे गे हवय, जेमा बर, पीपर, लीम, आमा, डूमर अउ कदम आदि के पेड़ शामिल हें.
    -निश्चित रूप ले एकर ले पर्यावरण संतुलन के दिशा म जबर सफलता मिलही, हमर देश के आने सबो राज्य सरकार मनला घलो अइसने कुछू उदिम करना चाही.
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-हमर इहाँ के जोत जंवारा के विसर्जन म पहिली नान-नान बाबू पिला मन ले लेके जवनहा अउ सियनहा सबोच आदमी जात मनला ही बाना-सांग गोभे, झूमत-नाचत देखे रेहेन जी भैरा, फेर अभी ए बखत तीन झन बेटी मनला घलो बाना सांग धारण करे देखेन भई. 
   -अच्छा.. ए ह कहाँ के बेटी मन आय जी कोंदा? 
   -हमर रायपुर के ही आय संगी. एमा के एक नोनी वैभवी निर्मलकर जेन कक्षा 11 वीं म पढ़थे ते ह बताइस के उंकर घर म दूनों नवरात्रि म जोत जंवारा बोवय त वो ह वोकर देख-रेख करे के संग ही नौ दिन के उपास घलो करय. तब पाछू के चैत नवरात्रि म वोकर मन म ए प्रेरणा आइस के उहू ह जंवारा विसर्जन म सांग धारण करय. 
   -ए तो बने बात आय संगी.. आस्था के प्रदर्शन या कोनो भी धरम के कारज ह सिरिफ पुरुष मन के पोगरौती क्षेत्र नोहय, बेटी महतारी मन घलो अइसन सब कर सकथें.
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-पहिली जब नवा नवा सिनेमा बने के चालू होए रिहिसे न जी भैरा तब माईलोगिन मन के भूमिका ल आदमी च मन निभावय.
   -हव जी कोंदा.. जइसे हमर इहाँ के नाचा-गम्मत म परी अउ जनाना सब आदमीच मन बनयं तइसे कहि दे.
   -हव.. नाचा अउ गंड़वा बाजा म तो अभी ले आदमी मन ही परी बन के नाचत दिख जाथें, फेर सिनेमा म घलो तब खोजे म घलो माईलोगिन मन नइ मिलत रिहिन हें, आज भले फिलिम म काम करे बर सब लाईन लगे रहिथें, एकरे सेती सिनेमा जगत के भीष्म पितामह के रूप म प्रसिद्ध दादा साहेब फाल्के ह बछर 1917 म अपन फिलिम 'लंका दहन' म अन्ना सालुंके ल सीता के रोल करवाए रिहिसे.. अउ मजेदार बात जानथस संगी.. राम के रोल ल घलो उहिच ह करे रिहिसे.
   -वाह भई.. राम अउ सीता दूनों के रोल ल एकेच आदमी ह? 
   -हव..अन्ना सालुंके ह पहिली आदमी आय जे ह महिला अउ पुरुष के दू भूमिका ल एके संग एके फिलिम म निभाए रिहिसे, ए बात ल इतिहास म सुरता रखे जाही संगी.
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-ए द्वापर त्रेता के गोठ करइया इतिहासकार मन हमर छत्तीसगढ़ के प्राचीनता ल सिरिफ पॉंच हजार बछर जुन्ना बताथें जी भैरा.. फेर अभी मानव विज्ञान सर्वेक्षण विश्वविद्यालय के एंथ्रापाॅलाजी विभाग के शोधकर्ता मन बस्तर के अबूझमाड़ इलाका म जेन शोध कारज करे हें, उंकर मन के कहना हे के अबूझमाड़ क्षेत्र म 30 ले 70 हजार बछर पहिली मानव सभ्यता अस्तित्व म रिहिस.
   -वाह भई.. ए तो हमर मन बर गरब करे के लाइक बात आय जी कोंदा.
   -हव जी संगी.. मानव विज्ञान सर्वेक्षण के प्रमुख डॉ. पीयुष रंजन साहू के कहना हे के बस्तर के कतकों जगा के पथरा मन के नमूना सकेले गे हवय जेकर ले जनाथे के 70 हजार बछर पहिली इहाँ मानव सभ्यता विकसित होइस. उंकर कहना हे के कार्बन डेटिंग अउ जादा शोध करे म कतकों चौंकाने वाला तथ्य मन के जानकारी मिल सकही. 
   वो मन बताइन के शोधार्थी मन पॉंच बछर तक अबूझमाड़, बीजापुर, सुकमा, बारसूर अउ दंतेवाड़ा ले गुजरइया प्रमुख नदिया मन के तीर-तखार म खोज अभियान ल फोकस करे रिहिन.
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-दुनिया बर राम ह भगवान होही जी भैरा फेर छत्तीसगढ़ बर तो वो ह सिरिफ भॉंचा ही आय. 
   -सिरतोन कहे जी कोंदा इहाँ के परंपरा म अइसन कतकों जिनिस दिख जाथे जेकर ले ए बात ह प्रमाणित होथे.
   -हव ना.. हमन इहाँ भाॅंचा के पॉंव परे के परंपरा ल तो जानबे करथन के ओकर कारण का आय? ठउका अइसने हमर रायपुर के पुरानी बस्ती म एक मंदिर हे जेला जैतूसाव मठ के रूप म जानथन, इहाँ हर बछर रामनवमी माने राम के जनमतिथि के छै दिन बाद वोकर छट्ठी मनाए के परंपरा हे. 
   -अच्छा..! 
    -हव.. ए ह इहाँ के गजब जुन्ना परंपरा आय.. जइसे हमन अपन घर-परिवार म होय लइका के छट्ठी मनाथन न ठउका वइसनेच ए मठ म राम के छट्ठी मनाए जाथे, माईलोगिन मन बने सोहर गाथें अउ तहाँ ले फेर उनला ओसहा लाड़ू अउ कॉंके परोसे जाथे. सिरतोन संगी गजब निक जनाथे.
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Tuesday 16 April 2024

सुशील भोले को जनकवि मरहा सम्मान

सुशील भोले जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' सम्मान' से सम्मानित
    रायपुर. साहित्य एवं पत्रकारिता के साथ ही छत्तीसगढ़ की पारंपरिक संस्कृति के उन्नयन में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजधानी रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार एवं संस्कृति मर्मज्ञ सुशील भोले को जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया. 
    माँ कल्याणी शीतला मंदिर मरौदा टैंक रिसाली भिलाई द्वारा विगत बारह वर्षों से चैत्र नवरात्रि के अवसर पर षष्ठमी तिथि को प्रतिवर्ष यह प्रतिष्ठित सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्ति को प्रदान किया जाता है. इसी श्रृंखला में इस वर्ष सुशील भोले को प्रतिष्ठित बिसंभर यादव मरहा सम्मान से सम्मानित किया गया.
    अंचल के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. परदेशी राम वर्मा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. उन्होंने इस अवसर पर अपने उद्बोधन में बिसंभर यादव 'मरहा' को स्मरण करते हुए कहा कि मरहा जी जनकवि तो थे ही साथ ही वे महाकवि भी थे. वे बड़े बड़े कवि सम्मेलन के मंच के साथ ही गाँव गाँव में आयोजित होने वाले रामायण कार्यक्रम के मंचों पर भी अपनी कविता की प्रस्तुति देते थे और उसके माध्यम से जनजागरण का कार्य करते थे. मरहा जी कोई पूंजीपति या धन्नासेठ नहीं थे, उसके बावजूद उनके नाम पर प्रतिवर्ष सम्मान समारोह आयोजित करने के लिए मैं माँ कल्याणी शीतला मंदिर समिति को हृदय से बधाई देता हूँ.
   'मरहा' सम्मान से इस वर्ष सम्मानित होने वाले साहित्यकार सुशील भोले ने मरहा जी को स्मरण करते हुए कहा कि वे जब छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन कार्यक्रम के सिलसिले में 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख के ग्राम बघेरा स्थित निवास पर गये थे, तब दाऊ जी ने ही पहली बार बिसंभर यादव मरहा जी से उनका परिचय कराया था. उसके पश्चात तो मरहा जी के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में नियमित रूप से मुलाकात होती थी. उन्होंने कहा कि मरहा जी की कविता जितनी सहज और सरल होती थी, वे स्वयं भी उतने ही सरल और मयारुक व्यक्ति थे. उनके साथ 
 कविता पाठ करने का अनेकों बार अवसर मिला. उन्होंने मरहा जी स्मृति में प्रतिवर्ष सम्मान समारोह आयोजित करने के लिए माँ कल्याणी शीतला मंदिर के सदस्यों को साधुवाद दिया.
    इस अवसर पर कवि बलराम चंद्राकर के संचालन में भव्य कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें विरेंद्र तिवारी, गायत्री श्रीवास, मनोज श्रीवास्तव, पूरन जायसवाल, राजेश चौहान तथा लोकेश मानिकपुरी सहित स्थानीय कवियों ने देर रात तक काव्य पाठ कर उपस्थित जनसमुदाय को कविता रस से सराबोर किया.

Monday 15 April 2024

विजय मिश्रा अउ झंगलू-मंगलू

वरिष्ठ पत्रकार विजय मिश्रा जी हमार ठीहा म पधारे रिहिन. ए बेरा म उन अपन हालेच म छप के आए किताब 'गोठ झंगलू-मंगलू के' भेंट करिन.
   छत्तीसगढ़ राज्य बने के आरो बछर 2000 म जनाए ले धरत रिहिसे, ठउका उही बेरा म अक्टूबर 2000 ले उन दैनिक अग्रदूत म छत्तीसगढ़ी भाखा म समसामयिक विषय मन ऊपर हास्य-व्यंग्य के शैली म क्षणिका लिखे के शुरू करिन, जे ह अग्रदूत के पहला पेज म सरलग छपय. 
   ठउका इहिच बेरा म जे दिन छत्तीसगढ़ राज्य बने के घोषणा होइस, उहिच दिन 1 नवंबर 2000 ले टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी घलो दैनिक अग्रदूत म ही छत्तीसगढ़ी भाखा म सरलग संपादकीय लिखे के शुरू करिन.
   छत्तीसगढ़ी भाखा के बढ़वार अउ प्रोत्साहन खातिर ए ह दैनिक अग्रदूत के जबर बुता रहिस. एक हिन्दी के दैनिक अखबार म छत्तीसगढ़ी म सरलग कॉलम संग संपादकीय के छपई. ए जबर बुता ल जब कभू छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास के इतिहास लिखे जाही, त वोमा विशेष रूप ले उल्लेखित करे जाही.
   ए ह संयोग के बात आय के मोरो अखबार लाईन के शुरुआत ह दैनिक अग्रदूत ले ही होय हे. मोर जिनगी के पहला कविता अउ कहानी के प्रकाशन घलो दैनिक अग्रदूत म ही होय हे.
   आज जब भाई विजय मिश्रा जी ह अपन सरलग लिखे कॉलम के किताब रूप ल मोर घर म आ के भेंट करिन, त मोला गजबे निक लागीस संग म अपन वो जुन्ना दिन के सुरता घलो आगे. 
    विजय मिश्रा जी ल उंकर ए किताब 'गोठ झंगलू-मंगलू के' खातिर गाड़ा गाड़ा बधाई संग शुभकामना हे.
-सुशील भोले

Sunday 7 April 2024

मित्र मिलन में स्मरण हो आया फिर छात्र जीवन

आर.डी.तिवारी मित्र मिलन में फिर स्मरण हो आया हमारा छात्र जीवन
    साठ वर्ष से ऊपर के लोग जब मिलते हैं, तो बेटा-बहू, रिटायर पेंशन और विभिन्न बीमारियों से होते हुए घर का बंटवारा और भाई भाई की लड़ाई तक पहुँच जाते हैं. अक्सर इस वर्ग के लोगों की चर्चा का विषय ऐसा ही कुछ होता है, लेकिन हम आर. डी. तिवारी स्कूल के छात्र लगभग पैतालीस वर्ष के अंतराल के पश्चात् एक साथ मिले तो फिर से उसी स्कूली जीवन की याद में खो गये.
   जैसा कि मुझे लग ही रहा था, कि इतने वर्षों के बाद मिल रहे बाल सखाओं में से कुछ को तो शायद पहचान ही नहीं पाऊंगा और हुआ भी ऐसा ही. हम जब उस समय पढ़ रहे थे, तो हमारी कक्षा में लगभग 38 छात्र थे. रविवार 7 अप्रैल को जब चंगोरा भाठा स्थित अभिनंदन पैलेस में मिले तो कुल 23 मित्र ही उपस्थित हो पाए. वहाँ ज्ञात हुआ कि कुछ मित्र तो अब इस दुनिया में ही नहीं रहे और कुछ किसी कारण से आ नही पाए.
   वहाँ उपस्थित मित्रों में से तीन को पहचानने में मुझे थोड़ा समय लगा. एक जिसे देवीदीन कहकर परिचित कराया जा रहा था, मुझे बिल्कुल भी याद नहीं आ रहा था. उसका भारी भरकम शरीर.. लगता था कहीं का धन्नासेठ हमारे सामने आकर बैठ गया है. 
   तब त्रिलोचन में मुझे बताया- अबे.. इसको हम लोग चकरा नहीं कहते थे. 'चकरा' शब्द मेरे मष्तिष्क पर कौंधा.. तभी स्मरण हो आया कि यह तो वही है, जब हम लोग फुटबॉल खेलते थे, तो यह शख्स फुटबॉल को आउट लाईन के किनारे किनारे लेकर भागता था. बीच मैदान में कभी खेलता ही नहीं था.
   दूसरा मित्र जिसने अपना नाम झंगलुराम ढीमर बताया. मैं इसे भी नहीं पहचान पाया, तब उसी ने बताया- भैया हम लोग साथ में वॉलीबॉल नहीं खेलते थे. तब मुझे धीरे धीरे समझ में आया कि हम पढ़ाई करने के साथ ही वॉलीबॉल भी साथ में खेलते थे.
   तीसरा मित्र जिसे मैं पहचान नहीं पाया, उसका नाम है- राजू महावादी. महावादी सरनेम सुनकर मुझे साधना महावादी का स्मरण हो आया, जिसे हम लोग टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा लिखित नाटक 'गंवइहा' में गायिका रूप में गाना गवाए थे. तब राजू ने बताया कि साधना उसकी चचेरी बहन है, और हम लोग हांडीपारा में टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के घर के सामने ही रहते थे. तब मैं राजू महावादी को भी पहचान पाया.
   वर्ष 1978-79 में पढ़कर निकले हमारे मित्रों में से कुछ तो अब सेवानिवृत्त हो गये हैं. ज्ञानेश शर्मा छत्तीसगढ़ योग आयोग के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर चुके हैं. नरेंद्र बंछोर एंटी करप्शन ब्यूरो के डीएसपी पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. डॉ. ध्रुव कुमार पाण्डेय महाविद्यालय के प्राध्यापक पद से तो अशोक शर्मा बैंक अधिकारी के पद से. 
    ऐसे ही शत्रुहन यादव आरडीए से, राजू शर्मा और मनोज सोनी नगर निगम से. हरीश अवधिया और दीपक ब्राहा शिक्षा विभाग से. लेकिन प्यारेलाल सेन अभी जे.आर.दानी में व्याख्याता के पद पर तो डॉ. अशोक शर्मा छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. इसी तरह योगेन्द्र यदु भी शासकीय सेवा में सक्रिय हैं.
   त्रिलोचन सिंह, गगन पंजवानी, मुश्ताक अहमद और प्रधान सिंह होरा, लीलाधर महोबिया, जीतेन्द्र अग्रवाल, नंदकिशोर श्रीवास अपने अपने पुराने व्यवसाय में ही मगन हैं.
   आमतौर पर यह माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति का साठ वर्ष से ऊपर का जीवन बोनस का जीवन होता है, इसलिए इस बोनस के जीवन को हम सभी को हंसते हुए सक्रिय रहकर व्यतीत करना चाहिए. इसी बात को ध्यान में रखकर हम सभी मित्रों ने निर्णय लिया कि इस तरह का मिलन कार्यक्रम अब नियमित रूप से किया करेंगे. वर्ष में कम से कम दो बार दीपावली और होली मिलन के बहाने तो जरूर मिलेंगे.
-सुशील वर्मा भोले

Friday 5 April 2024

जब पैतालीस वर्ष बाद मिलेंगे स्कूल के मित्रों से...

* कैसा लगेगा अपने बाल सखाओं से पैतालीस वर्ष बाद मिलकर? 
* आर. डी.तिवारी फ्रेंड्स ग्रुप का होली मिलन 7 को.. 
    मैं इस कल्पना से ही रोमांचित हूँ कि मेरे हाईस्कूल के मित्रों के साथ पैतालीस वर्ष बाद मिलकर कितना भावविभोर महसूस करूँगा.. मुझे कैसा महसूस होगा? 
    उन मित्रों के साथ मिलकर, जिनके साथ पढ़ते हुए हमारी मूंछें भी ठीक से नहीं निकल पाईं थीं, अब जब डाढ़ी मूंछ और सिर के सारे बाल सफेद हो गये हैं, किसी किसी के बाल तो झड़ भी गये हैं, ऐसे में हम उन्हें पहचान पाएंगे भी या नहीं? 
   वर्ष 1978-79 में पुराना मेट्रिक पास कर हम सब अलग अलग कॉलेज और अन्य संस्थानों में अपनी अपनी रुचि और घर की परिस्थितियों के मुताबिक पढ़ने या काम करने चले गये थे. इस बीच कभी कभार दो चार मित्रों के साथ मुलाकात भी हो जाती थी. कभी कभी तो दूर से ही दुआ सलाम की औपचारिकता मात्र हो पाती थी, तो कुछ मित्रों के साथ दो चार बातें भी हो जाती थीं.
   मुझे स्मरण हो रहा है, सबसे ज्यादा मुलाकात मेरी त्रिलोचन सिंह के साथ होती थी. मैं रजबंधा मैदान, रायपुर स्थित दैनिक छत्तीसगढ़ प्रेस में सहायक संपादक था, इसलिए प्रेस कार्यालय से दैनिक भास्कर होते हुए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के मुख्य मार्ग से होते हुए घर आता जाता था. यहीं पर त्रिलोचन अपने टैक्सी के व्यवसाय के सिलसिले में मिल जाता था. मुझे देख लेता तो चिल्लाता था- अबे सुशील.. आना बे.. चाय पीते हैं. फिर हम केंद्रीय सहकारी बैंक के सामने वाले चाय ठेला में खड़े होकर चाय पीते थे.
    इसके बाद मनोज सोनी के साथ भी मेरी काफी मुलाकात होती थी. तब मनोज भाई नगर निगम रायपुर के संस्कृति विभाग में कार्यरत थे, इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल की जयंती एवं पुण्यतिथि के कार्यक्रमों की व्यवस्था की जिम्मेदारी निगम की ओर से मनोज को ही दी जाती थी. हम लोग खूबचंद बघेल वाले कार्यक्रम में आयोजक मंडल में रहते थे, इसलिए वहाँ जाते और कार्यक्रम में भागीदारी निभाते थे. इसी दरमियान मनोज भाई से मुलाकात भी होती थी और साथ में बैठकर गप्पें भी लड़ाते थे.
   शत्रुहन यादव के साथ भी उसके आमापारा वाली दुकान में एक दो बार मुलाकात हुई, साथ बैठकर चाय भी पीए. प्यारेलाल सेन के साथ रास्ते चलते कई बार मुलाकात हुई, बातें भी होती थी. इसी तरह राजू दुबे के साथ लिली चौक के पान ठेला पर दुआ सलाम हो जाता था. दीपक ब्राहा के साथ रायपुर से मांढर वाले लोकल ट्रेन में जब वह स्कूल जा रहा था, तो मैं भी उसी ट्रेन से अपने गाँव नगरगांव जा रहा था, तब उसने बताया था कि वह मांढर हाई स्कूल में ही शिक्षक है.
    हरीश अवधिया नगरी सिहावा के एक कवि और कलाकार मित्र नरेंद्र प्रजापति के साथ मेरे प्रेस पर आए थे, जब मैं छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' का प्रकाशन संपादन कर रहा था. उस समय हरीश ने बताया था कि वह नगरी में ही शिक्षक है.
    ज्ञानेश शर्मा के साथ तो कई बार मुलाकात हुई. ज्ञानेश राजनीति के चक्कर में इधर उधर आना जाना करता था, मैं भी छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन और छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृति के कार्यक्रमों में जाता था, इसलिए मुलाकात हो जाती थी. नरेंद्र बंछोर के साथ भी एक दो बार मुलाकात हुई लेकिन बात नहीं हो पाई. लीलाधर पंसारी/तंबोली के साथ तो कभी ठलहा समय में बैठ भी लिया करता था , एकाद बार फिल्म भी देखे थे. एकाद बार रशीद मोहम्मद के साथ भी मुलाकात हुई थी, शायद रशीद भाई अब इस दुनिया में नहीं हैं.
   मुझे स्मरण नहीं आ रहा है, कि इन सब मित्रों के अलावा और किन किन मित्रों के साथ आर. डी. तिवारी से पढ़कर निकलने के पश्चात मुलाकात हुई? 
    खैर, अब जब पैतालीस वर्ष बाद रविवार 7 अप्रैल को अभिनंदन पैलेस चंगोराभाठा, रायपुर में सभी मित्रों के साथ पुनः मिलने का संजोग बना है, तब यह सोचता हूँ कि मैं उनमें से कितनों को एक नज़र में ही पहचान पाऊंगा? क्योंकि इन पैतालीस वर्षों में आधे से भी ज्यादा मित्रों को तो हम देखे भी नहीं हैं.
    खैर... जैसा भी हो बालसखाओं से बूढ़ापे के आॅंगन में मिलना रोमांचकारी तो होगा ही और साथ ही अविस्मरणीय भी.
-सुशील वर्मा भोले

Monday 1 April 2024

कोंदा भैरा के गोठ-17

कोंदा भैरा के गोठ-17

-हमर छत्तीसगढ़ के मयारुक संगीतकार रहे स्व. खुमान लाल साव जी के जनम बछर ह कोनो जगा 1929 लिखाय रहिथे, त कोनो जगा 1930 लिखाय रहिथे, तेकर कारण ल जानथस जी भैरा.
   -कोन जनी भई.. फेर अतेक बड़ मनखे के जनम बछर म अइसन अलहन कइसे हो सकथे जी कोंदा? 
   -ए ह थोकन लापरवाही अउ थोकन अनाड़ी पन के सेती आय.
   -अच्छा... अइसे? 
   -हव.. असल म खुमान साव जी के जनम 5 सितम्बर 1929 आय, फेर जब स्कूल म दाखिला कराय बर उंकर सियान ह घर के पहाटिया ल वोकर संग म स्कूल भेजिन, त उनला चेताय रिहिन के 5 सितम्बर 1929 लिखवाबे कहिके.
   -हाँ त बने ल बने चेताइस.
  -हव.. फेर पहाटिया घर ले स्कूल के जावत ले 'उनतीस' के 'उन' ल भुलागे अउ सिरिफ 'तीस' भर ल लिखवा दिस. अइसे किसम स्कूल के दाखिला म खुमान साव जी के जनम बछर 1930 लिखागे, जेन अब सबो जगा के सरकारी रिकॉर्ड म चलत हे.
   -भारी अलकर हे भई.. अरे भई.. कागज म लिख के दे दिए रहितीस, या फेर सियान ल पहाटिया ल स्कूल भेजे के बलदा खुदे जाय रहितीस त अइसन नइ होए रहितीस.
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-काली राजधानी म प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाड़ी मनके सम्मान होइस हे जी भैरा... वोमा के कतकों झन गोल्ड मेडल जीतइया मन बतावत रिहिन हें, के उनला अपन जिनगी चलाय बर छोटे मोटे मजदूरी करे बर लागथे.. कोनो कोनो तो काहत रिहिन हें, के उनला रायपुर तक आए बर अपन संगी मन ले पइसा उधार लेना परिस हे.
   -अइसन सबो क्षेत्र के प्रतिभा मन संग देखे म आथे जी कोंदा.. मैं ह कला अउ साहित्य क्षेत्र के अइसने कतकों अद्भुत प्रतिभा मनला देखे हौं, जेकर मन जगा अइसने मंच म जाए खातिर न तो मोटर गाड़ी के टिकट खातिर पइसा राहय न पहिरे बर बने गतर के कपड़ा लत्ता.
   -ए ह न सिरिफ सरकार खातिर सोचे-गुने के बात आय भलुक सबो मानव समाज खातिर घलोक आय.
   -सही आय संगी.. सिरिफ पुरस्कार बॉंट दे भर म हमर मन के कर्तव्य पूरा नइ हो जावय.. जरूरी हे अइसन मन के सम्मान जनक जीवकोपार्जन खातिर चेत करे जाना चाही.
   -सही आय जी.. सम्मानित कर के सिरिफ इनला प्रोत्साहित करे जा सकथे, सम्मान जनक जीवन नइ दिए जा सकय.. सरकार ल अइसन मनला नौकरी आदि म विशेष अवसर देना चाही.
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-हमर इहाँ कतकों जगा के परंपरा मनला देख-सुन के ताज्जुब लागथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. अब हमरे परोसी गाँव मोहदा ल देख ले.. इहाँ होली के रतिहा महादेव के मंदिर म जब्बर मेला भराथे.. हजारों के संख्या म लोगन आने-आने देश राज ले सकलाथें. इहाँ होली ल जलाथें घलो त रतिहा 12 बजे के बाद, मेला झरे के नेंग होय के बाद.
   -हाँ.. ए रायपुर ले बिलासपुर रद्दा के मोहदा गाँव के बात ल तो महूं सुने हौं.. उहाँ जाए के अउ तरिया पार के मोहदेश्वर महादेव के दर्शन करे के सौभाग्य मिले हे.
    -जे मन सावन महीना म मनौती माने रहिथें ना.. जब उंकर मनोकामना पूरा हो जाथे, वो मन इहाँ होली के रतिहा आके महादेव के पूजा करथें.. अब तो ए दिन इहाँ जबर मेला भराथे.. हाँ.. फेर एक बात हे.. महादेव के पूजा करे बर सकलाय दूसर गाँव के लोगन मन ऊपर ए गाँव वाले मन कोनो किसम के रंग-गुलाल नइ लगावंय.
   -बने बात आय.. जे मन उहाँ महादेव के पूजा करे के उद्देश्य ले जाए रहिथें, उंकर ऊपर होली के रंग नइ डारना चाही.
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-हमर गाँव म ए बछर के घर म जंवारा बोवत हें जी भैरा? 
   -कोन जनी जी कोंदा, अभी तो मंडल पारा भर म सुनाय हे.. अउ बस्ती डहार ले शीतला म तो बोवाबेच करथे.
   -जतका जादा जगा जंवारा बोवाथे, वतके जादा गद बोलथे न गाँव ह? 
   -हव जी ए बात तो हे.. रतिहा ह माता जी सेवा करे अउ जस गाये म कइसे पहाथे तेकरो गम नइ मिलय.. नौ दिन ले नम्मी तक तिहार बरोबर जनाथे.
    -फेर अब तो कोनो कोनो मेर नवा चलागन देखे म आवत हे जी.. लोगन आठे के हूम-जग करवा के उहिच दिन ले या फेर नम्मी के बिहनिया जंवारा सरोय के नेंग कर देथें.
   -ए ह बने बात नोहय संगी.. जंवारा सरोय के नेंग ल दसमीं के ही करना चाही, इही हमर पुरखौती परंपरा आय. 
   -भांठा वाले महराज ह तो नम्मी के चल जाथे काहत रिहिसे जी.
   -आने गाँव ले आके इहाँ बसुंद्रा बसे मनखे ह हमर गाँव के परंपरा ल काय जानही.. इहाँ के जुन्ना बइगा ल पूछबे वो ह बताही तोला हमर असली परंपरा ल.. ए बाहिर ले आए पेट-पोंसवा मनखे मन तो इहाँ के परंपरा ल भरमाए अउ भटकाए के छोड़ अउ कुछू नइ करत हें.. वो बसुंद्रा महराज ल पूछबे- आज तक एको झन वोकर लरा-जरा मन कभू अपन घर म जंवारा बो के नौ दिन ले माता जी के सेवा करे होहीं का? अउ खुद वो मन अइसन नइ करे होहीं त फेर एकर ले जुड़े परंपरा ल जानहीं कइसे?
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-अब के लइका मन के नवा-नवा चरित्तर के सेती आजकाल कोनो मेर 'कॉंके पानी' घलो पीये बर नइ मिलय जी भैरा.
    -सिरतोन ताय जी कोंदा.. न बपरी छेवरहीन ल अउ वोकर संग म छट्ठी म पहुंचे हमर असन मयारुक पहुना मनला.
   -हव भई.. उरई के जड़ ल माटी के मरकी म खूब चुरो के बनाए जाय कॉंके पानी ल एमा सुवाद के मुताबिक गुड़ अउ तिलि म बघार के सब नता-गोता मनला घलो दिए जाय.
   -हव सही आय.. छेवरहीन महतारी ल कॉंके पानी पीयाय के पहिली दू दिन लांघन रखे जाय त फेर तीसरइया दिन पीयाए जाय.. ए कॉंके म अद्भुत पुष्टई राहय, तेकर सेती छेवरहीन महतारी के देंह-पॉंंव ह जल्दी पहिली असन तंदुरुस्त हो जावय.
   -उरई ह अम्मर पौधा आय न संगी..ए ह कतकों सूखा जाय राहय फेर जब एमा थोरको पानी परथे त पुनर्जीवित हो जाथे.. अपन इही गुन के सेती एकर जड़ ले बने कॉंके ह छेवरहीन ल घलो पुनर्जीवित कर देवय.. हष्ट पुष्ट कर देवय, फेर अब तो हमर परंपरा मन के संग म प्रकृति ले मिलइया जीवन के अद्भुत अवसर घलो नंदावत जावत हे.
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-हमर इहाँ आज घलो कतकों लोगन हनुमान जी ल बेंदरा (बंदर) समझ जाथें जी भैरा, फेर मोला ए ह सही नइ जनावय.
   -बिल्कुल सही नोहय जी कोंदा.. उहू मन हमरे मन असन मानव ही रिहिन हें.. इहाँ के मूल निवासी समाज के मनखे रिहिन हें. 
   -हव महू ल अइसने जनाथे.. अब जइसे हमन इहाँ नाग या नागवंशी समाज के लोगन मनला जानथन नहीं.. ठउका वइसने.
   -हव इहू मन मूल निवासी समाज के लोगन आॅंय.. नाग या नागवंशी के मतलब सॉंप या सॉंप के वंशज नइ होवय, ठउका वइसने वानर कहे ले बेंदरा या बेंदरा मन के वंशज नइ होवय.
   -हव इही बात सही आय.. हमर इहाँ बिंझवार अउ संवरा जाति के मूल निवासी समाज वाले मनला बाली अउ ओकर भाई सुग्रीव के वंशज माने जाथे. बाली ले बिंझवार अउ सुग्रीव ले संवरा.. अउ हमन तो सब ए बात ल जानथन के बाली, सुग्रीव अउ हनुमान सबो एके प्रजाति के लोगन रिहिन हें... इहाँ के मूल निवासी समाज के लोगन रिहिन हें.
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-पहिली होरी तिहार ल मान के अंगना म सूते के जोखा मढ़ा देवत रेहेन तेकर सुरता हे नहीं जी भैरा? 
   -रइही कइसे नहीं जी कोंदा.. मैं तो तरिया पार के महादेव के मंदिर ऊपर छत म सूत जावत रेहेंव.. एक्के नींद म रतिहा पहावय.
   -हव जी फेर अब तो ए बड़े-बड़े फैक्टरी मन के चिमनी ले निकलत धुंगिया मन के मारे उसनत गरमी म घलो कुरिया भीतर छटपटावत सूते रेहे के मजबूरी होगे हे.
   -हव जी.. औद्योगीकरण के नॉव म प्रदूषण के दुकान खुलत हे चारों मुड़ा. न तो शुद्ध हवा मिल पावत हे अउ न शुद्ध पानी.
   -सही आय संगी.. हमर एती तो ए फैक्टरी मन म आने-आने देश राज ले आए लोगन मन सांस्कृतिक प्रदूषण घलो बगरावत हें. बेटी-बहू मन के कहूँ अकेल्ला दुकेल्ला अवई जवई ह अलहन बरोबर होगे हे.
   -हमर गाँव डहार के घलो इही च हाल हे.. औद्योगिक क्षेत्र बनाय के नॉव म गाँव गंवई के जम्मो चिन्हारी अउ संस्कार मिटावत हे.
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-होरी परब ह तो फागुन पुन्नी के दिन काम दहन या कहिन होलिका दहन के संग ही झर जाथे जी भैरा, फेर एला धूर पंचमी जेला रंग पंचमी घलो कहे जाथे, तक काबर मनाए जावत होही? 
   -अब अतका ल तो महूं ह फरी-फरा नइ जान पाए हौं जी कोंदा, फेर एक मान्यता इहू हवय के भगवान भोलेनाथ ह माता सती के मृत देंह ल ए दिन बनारस के मणिकर्णिका घाट म आगी दिए रिहिन हें, आउ फेर माता सती के चिता के राख ले होरी खेले रिहिन हें, एकरे सेती आज घलो ए मणिकर्णिका घाट म रंग पंचमी के दिन 'शिव जी के अड़भंगी होली' के सुरता म अइसने होरी खेले जाथे. इहाँ रंग गुलाल के नहीं, भलुक चिता के राख के होली खेलथें अउ गाथें-
खेले मसाने म होरी दिगंबर, खेले मसाने म होरी, 
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने म होरी
    -वाह भई.. मोला तो एकर गमे नइ रिहिसे.
   -हव.. एकरे सेती एला धूर पंचमी कहे जाथे.. हो सकथे अउ कोनो मन के अउ कुछू अलग मान्यता होही.
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-इहाँ के मूलनिवासी गोंडीयन समुदाय के मन होली ल शिमगा/शिवमगवरा के रूप म मनाथें जी भैरा.
   -अच्छा.. ए शिवमगवरा का होथे जी कोंदा? 
   -गोण्डवाना धर्म एवं संस्कृति के तिरूमाल संतोष कुमार मरकाम के वाल म एक पोस्ट हे, ओकर मुताबिक शिवमगवरा माने होथे- 'शिव ले जाओ गौरा को'.
   -वाह भई..! 
   -संतोष मरकाम के पोस्ट के मुताबिक जब दक्ष के यज्ञ म पार्वती (पोस्ट म पार्वती ही लिखाय हे, सती नहीं) ल अग्नि कुंड म ढकेल दिए जाथे, त संभु के सेवक मन शिवमगवरा.. शिवमगवरा.. काहत दउंर परथें, अउ गवरा दाई के राख ल अपन माथा म लगाथें. एकर खबर मिले के बाद जब संभु ह क्रोधित होके आथे, त दक्ष के महल ल जला के राख कर देथे. ए किसम राजा दक्ष के महल के होली संभु ह जलाथे, एकरे सुरता म गोंडीयन समुदाय के मन शिमगा/शिवमगवरा परब मनाथें.
   -वाह भई.. परब तो हमन ल सब एकेच कस जनाथे, फेर सबके मान्यता अलग-अलग हे.
   -हव.. एकरे सेती तो इहाँ के संस्कृति अउ इतिहास मनला समझे म आम लोगन ल अकबकासी कस जनाथे.
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-पहिली के चुनाव म मुहर-ठप्पा लगाय के नियम नइ रिहिसे जी भैरा.
   -त कइसन चुनाव होवय जी कोंदा? 
   -हमर देश के शुरूआती दू आम चुनाव म प्रत्याशी मन के नॉव अउ ओकर चुनाव चिन्ह के छप्पा लगे वाला अलग अलग मतपेटी रख दिए जावय. मतदाता ह अपन मतपत्र ल अपन पसंद के उम्मीदवार के मतपेटी म डार देवय.
   -अच्छा..! 
   -हव.. दू चुनाव के बाद जब मतपत्र म मुहर-ठप्पा लगाय के शुरुआत होइस, त कतकों झन तो ए नवा पद्धति के विरोध घलो करीन.
   -हाँ.. फेर अब तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आगे हवय ना.
   -हाँ सही आय.. अउ हो सकथे अवइया बेरा वोट डारे के अउ कुछू नवा आविष्कार हो सकथे, फेर शुरूआती दू चुनाव के ऐतिहासिक महत्व हे.. वो बखत के बिना मुहर-ठप्पा वाले मतदान ल "मुहर न ठप्पा, जीत गए क्का" वाले दौर कहिके आज तक सुरता करे जाथे.
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-अभी कतकों जगा ए देखे म आथे जी भैरा के होले डांड़ म माढ़े लकड़ी म एक माईलोगिन के पुतरी ल बइठार के पहिली ओकर पूजा करथें. पूजा करइया मन म माईलोगिन मन घलो रहिथें, अउ पूजा के पाछू फेर वोमा आगी ढीले गिस.
   -हव अइसन परंपरा ह शहरी क्षेत्र म वो जगा देखे ले मिलथे, जिहां आने देश राज ले आए लोगन मन एला मनाथें. हमर गंवई गाँव म जिहां आरुग छत्तीसगढ़िया पद्धति ले होले म आगी ढीले जाथे, उहाँ अइसन नइ होवय. हमर इहाँ तो होले डांड़ म माईलोगिन मन के जवई तक ह प्रतिबंधित रहिथे, होले म पुतरी बइठार के पूजा करई तो दुरिहा के बात आय. काबर ते इहाँ होले डांड़ म वासनात्मक गीत नृत्य के चलन हो जाथे, अइसन म माईलोगिन मन ल उहाँ कहाँ जावन दे जाही? 
   -हव सिरतोन आय जी.. तभे तो हमर बूढ़ी दाई ह पहिली कोनो लड़ई झगरा म अश्लील गढ़न के गारी गुप्तार करयं त वो मनला कहि देवय- तुंहर घर म दाई बहिनी नइए का तेमा ए जगा फुहर फुहर के होले बकत हौ? 
   -हां.. अब समझे डोकरी दाई ह अश्लील शब्द ल होले बकत हौ काबर काहय तेला? काबर ते इहाँ काम दहन के परब म अइसन शब्द गीत के चलन होय.
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-बस्तर बियर के नॉव ले प्रसिद्ध सल्फी के रस कभू पीए हावस नहीं जी भैरा? 
   -हाँ.. कतकों बेर पीए के जोंग जमे हे जी कोंदा.. सल्फी ल इहाँ के आदिवासी संस्कृति म पूजनीय पेड़ माने जाथे, अउ जब कोनो ल सल्फी पेड़ के पौधा भेंट करे जाथे, त जइसे हमन अपन बेटी के बिदागरी ल बाजा-गाजा के संग करथन नहीं, ठउका वइसने बाजा-गाजा संग सल्फी पौधा के बिदागरी करे जाथे.
   -हव सही आय.. एकरे सेती ए सल्फी के पेड़ म हर कोई ल चढ़ के वोकर रस निकाले के अनुमति नइ राहय. सल्फी पेड़ ले रस केवल उही मनखे ह निकाल सकथे, जेला वोकर पति के रूप म चिन्हारी दिए जाथे. मान्यता हे, के कहूँ दूसर मनखे ह सल्फी के पेड़ म चढ़ के रस निकाल दिही त सल्फी के पेड़ ह सूखा के मर जाथे.
   -हव जी जब बेटी के रूप म बिदागरी करे जाथे, त फेर वोमा ले रस निकाले के अनुमति हर कोई ल कइसे होही? ए बेटी बरोबर सल्फी के बिदागरी के परंपरा कोंडागांव, नारायणपुर, अंतागढ़ अउ फरसगांव आदि क्षेत्र म जादा देखे म आथे.
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-हमर इहाँ के कतकों गौरवशाली इतिहास के लेखन म अनदेखा करे गे हवय जी भैरा, जेकर सेती हम खुद आज अपन गौरव ले अनचिन्हार बने हावन.
   -हव जी कोंदा महूं तोर ए बात ले सहमत हौं.. अब देखना द्वापरयुग के वो गौरवशाली घटना ल जेमा धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़ा ल हमर बस्तर के राजकुमारी प्रमिला देवी ह छेंक के बाॅंध दे रिहिसे, अउ जब अर्जुन ह वो घोड़ा ल छोड़वाय बर आइस त प्रमिला देवी ह अर्जुन ल वोकर सेना सहित हरवा के वोकर अहंकार ल टोरे रिहिसे.
   -सही आय.. ए बात के जानकारी महूं ल मिले हे, तब बस्तर ल महाकांतार के नॉव के जाने जाय. वो बखत इहाँ स्त्री शासन रिहिसे, जेकर रानी रिहिसे प्रमिला देवी. 
   -हव जी.. हमर बस्तर के पुरखा साहित्यकार लाला जगदलपुरी ह अपन किताब म प्रमिला देवी के शौर्य गाथा के जबर उल्लेख करे हे. अब कमीश्नर कार्यालय जगदलपुर डहार ले प्रमिला देवी के प्रतिमा स्थापित करे के उदिम करे जावत हे.
    -ए तो बने बात आय.. हमला अपन गौरवशाली इतिहास मनला खोज खोज के निकाल के नवा पीढ़ी ले चिन्हारी करवाना चाही.
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-आजकाल लोगन अबड़ पूजा पाठ करथें.. कथा प्रवचन सुनथें, तभो कतकों किसम के लिगरी-लाई म परे रहिथें जी भैरा.
   -असली म लोगन धरम-करम के परिभाषा नइ समझंय जी कोंदा.
   -अच्छा.. अइसे हे का? 
   -हव.. धरम के मतलब मंदिर-मस्जिद म दिन-रात खुसरे राह, तिलक-टोपी खापे लोगन ल अपन धार्मिकता देखावत राह.. अइसन नइ होवय संगी.
   -अच्छा.. त फेर का होथे जी? 
   -इंसानियत के सच्चाई के साथ पालन करना होथे. अब देख स्वीडन नॉव के देश के 80 प्रतिशत लोगन नास्तिक हें, लेकिन ए अइसन देश आय जिहां अपराध के संख्या दुनिया म सबले कम हे.
   -अच्छा.. वाह भई? 
   -हव.. अउ एकर खातिर ओकर मन के धरम-करम ह नहीं, भलुक सच्चा इंसानियत ह असल कारण आय. मंदिर मस्जिद, पूजा उपासना सबो बने आय, फेर ए सबले पहिली इंसानियत के ठउर हे, अउ कहूँ इही ल छोड़ डारे त का बात के धरम अउ का बात के धार्मिक?
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