शरद की वह रात......
शरद ऋतु के आगमन के साथ ही मौसम में ठंड का हल्का सा अहसास होने लगा था। रात के आठ बज चुके थे, चांद दुधिया रोशनी लिए आसमान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था।
आमदी नगर, भिलाई के "अगासदिया परिसर" में छत्तीसगढ़ के लोकप्रसिद्ध कलाकार और शब्दभेदी बाण के संधानकर्ता रहे, स्व. कोदूराम जी वर्मा की स्मृति में आयोजित "शरदोत्सव" कार्यक्रम अपने पूरे शबाब पर था। इसी बीच कार्यक्रम के संयोजक अंचल के सुविख्यात कथाकार डा. परदेशी राम वर्मा जी माइक पर आकर मुझे कविता पाठ के लिए आमंत्रित किए।
शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि की जयंती भी होती है, इसलिए मैंने छत्तीसगढ़ के तुरतुरिया में उनके आश्रम होने की बात बताकर, उनके दुनिया के प्रथम कवि होने का स्मरण करा कर उनके दर्द से निकली कविता को आगे बढ़ाने का प्रयास इन पंक्तियों से किया -"जब-जब पांवों में कोई कहीं कांटा बन चुभ जाता है, दर्द कहीं भी होता हो गीत मेरा बन जाता है।"
गीत के समाप्त होते ही तालियों की गड़गड़ाहट मेरे कानों में सुनाई दी। स्टेज से उतरकर मैं नीचे जाने का प्रयास करने लगा, पर अपनी जगह से हिल नहीं पाया, वहीं पर गिरने लगा। तब कुछ लोग आगे बढ़कर मुझे सम्हाले और स्टेज से नीचे लाए। कुर्सी पर बिठाने का प्रयास किए, लेकिन मैं बैठ नहीं पाया, तब पास के कक्ष में ले जाकर मुझे जमीन पर लिटाया गया।
कुछ लोगों ने मुझसे प्रश्न किया- क्या पहले भी ऐसा हो चुका है? मैंने नहीं कहा। मेरी जुबान लड़खड़ाने लगी थी, तभी किसी के कहने की आवाज मेरे कानों में गूंजी -"जा इसे तो पैरालिसिस हो गया।"
गत वर्ष यह शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को आई थी, अब के 13 अक्टूबर को है। लगभग एक वर्ष पूरा होने को है, तब से लेकर आज तक मैं एक बिस्तर पर ही हूँ।
हां, इस बीच इतना अवश्य हुआ कि हजारों मित्र और रिश्तेदार मुझे देखने के लिए आते रहे, अपनी दुआएं और शुभकामनाएं व्यक्त करते रहे, उन्हीं दुआओं के परिणाम स्वरूप अब तक मैं कुछ कुछ स्वस्थ हो गया हूँ। एकाद लकड़ी का सहारा लेकर थोड़ा बहुत चलफिर लेता हूँ, लेकिन अभी भी घर से अकेला कहीं बाहर जा पाने की स्थिति में नहीं आ पाया हूँ. पूर्ण रूप से स्वस्थ होने में अभी भी आप लोगों की दुआओं की आवश्यकता है।
शुभेच्छु
सुशील भोले, रायपुर
मो./व्हाट्सएप 9826992811
Thursday, 10 October 2019
शरद की वह रात......
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हिम्मत रखें ईश्वर साथ देगा, आप जल्दी से स्वस्थ हों, यही ईश्वर से प्रार्थना है
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