बासी काबर खावन समझव...
कार्बोहाइड्रेट 79•2-- 78℅,
खनिज पदार्थ 0•5--0•7℅
फाइबर 0--0℅
कैल्शियम 0•01-- 0•01℅
फॉस्फोरस 0•11--0•17℅
प्रति 100 ग्राम में-----
लौह तत्व 1•0--2•8mg
विटामिन बी 20--60 lU
प्रति 300 ग्राम में--
विटामिन A -- 0--4 IU
कैलोरी प्रति 100 ग्राम- 348- 351
यह वैज्ञानिक विश्लेषण चावल का है, लेकिन हम चावल नहीं खाते, उसे पका कर खाते हैं। पकाना एक प्रसंस्करण क्रिया है।प्रसंस्करण से पदार्थ के गुण-धर्म बदल जाते हैं इसलिए उपरोक्त वैज्ञानिक निर्धारण को व्यवहारिक नहीं माना जा सकता।
चावल को पका कर अनेक खाद्य पदार्थ बनाये जाते हैं।प्रत्येक के गुण, स्वाद और पौष्टिकता में अन्तर होता है।अतः चावल से निर्मित विविध व्यंजनों के पौष्टिकता का वैज्ञानिक निर्धारण अभी किया जाना है।
आयुर्वेद में विभिन्न रोगों में पथ्य के रूप में चावल के अलग अलग प्रकल्प दिए जाते हैं।
भात-- चावल को जल में उबाल कर अथवा भाप में पका कर भात बनाया जाता है, इसे दाल-सब्जी आदि भक्ष्य पदार्थो के साथ खाया जाता है। यह स्वस्थ व्यक्ति का पूर्ण आहार होता है।
कृशरा- (खिचड़ी)
चावल, दाल, कुछ पत्र शक, नमक, मिर्च, हल्दी आदि को एक साथ कुछ अधिक जल के साथ अधिक नरम होते तक पकाया जाता है उसे कृशरा कहा गया है। जिस रोगी की जठराग्नि मन्द हो जाती है उसे सुपाच्य और पूर्ण पौष्टिक आहार के रूप में कृशरा दिया जाता है।
यवागू (पेज)---
सामान्यतः व्यक्ति जितना चावल खाता है उसकी एक चौथाई मात्रा की चार गुना जल में पकाया जाता है उसे यवागू कहा गया है। यह अल्प पौष्टिक और अधिक सुपाच्य होता है।दुर्बल तथा क्षीण जठराग्नि रोगी को यवागू देने का विधान है।
पेया ( घोटो)-
थोड़े से चावल को दस गुना जल में अधिक देर तक पकाया जाता है। चावल के दाने यदि दिखाई दें तो उसे मथानी से मथ कर उसे पीने योग्य बना लिया जाता है। इसे पेया कहा जाता है। थोड़े अन्न से पेट भरने का अच्छा साधन है यह। यह और भी अधिक सुपाच्य होता है।
मण्ड (पसिया)--
कुछ लोग चावल को अधिक जल में पका कर जलीय अंश को निथार देते हैं। निथारने की इस प्रक्रिया को पसाना कहते हैं तथा पसाने से निकले मण्ड को पसिया कहा जाता है। यह सर्वाधिक सुपाच्य साथ ही पौष्टिक भी होता है।
पेया और मण्ड (घोटो और पसिया) नमक डालकर दिया जाता है तो यह Oral rehydration के लिए अति उत्तम कार्य करता है। मैं अपने चिकित्सा अभ्यास में इसका प्रयोग करता हूँ। अतिसार वमन (उल्टी) के रोगी शरीर का जलीय अंश निकल जाने से अत्यधिक दुर्बल हो जाते हैं साथ ही उनकी अंतड़ियों से पाचक रस मल के साथ निकल जाने के कारण जठराग्नि अत्यन्त क्षीण हो जाती है। तब oral rehydration अथवा intraveinous rehydration दिया जाता है। इस प्रकार दिए जाने वाले rehydration में पौष्टिकता अत्यल्प होती है। यदि रोगी मुख मार्ग से ले सकता हो तो पेया या मण्ड नमक डालकर देने से रोगी की स्थिति से शीघ्र सुधार होता है और पाचन की समस्या भी नहीं होती।
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। छत्तीसगढ़ उष्ण कटिबंधीय प्रदेश है, यहाँ के निवासी मुख्यतः कृषक हैं। आदर्श विधि से भोजन निर्माण और उसका सेवन इनकी जीवन शैली से मेल नहीं खाता। सुबह से शाम तक खेत खार में खटने वाला ताजा गरम भोजन की व्यवस्था कैसे कर सकता है, इसलिए उसने पानी जीवन पद्धति के अनुरूप वैकल्पिक व्यवस्था कर ली। बोर बासी और बासी ऐसी ही वैकल्पिक व्यवस्था है। सैद्धांतिक रूप से बासी अन्न को निषिद्ध माना गया है परन्तु वह सिद्धांत बोरे बासी और बासी पर लागू नहीं होता। भात को गरम ही खाना चाहिए। ठण्डा हो जाने पर उसका स्वाद और पौष्टिकता दोनों हीन हो जाते हैं क्योंकि उसका जलीय अंश सूख जाता है। यदि भात ठण्डा होने लगे उस समय उसमें पर्याप्त जल डाल दिया जाए तो सजा विशिष्ट स्वाद और पौष्टिकता का निर्माण होता है। इसे बोरे बासी कहा जाता है। इसमें नमक, प्याज डालकर अचार, चटनी या सब्जी के साथ खाने पर अत्यधिक स्वादिष्ट होता है तथा इसकी पौष्टिकता भी बनी रहती है। इसमें दही या मट्ठा डालकर खाने से और भी अधिक स्वादिष्ट हो जाता है।
भात को जल में डुबाने पर वह बोरे बासी बनता है और छः घंटे से अधिक बीत जाने पर इसे ही बासी कहा जाता है। बासी में चावल के fermentation होने के कारण खमीर उठता है, उसमें कुछ खट्टापन आ जाता है।यह अधिक सुपाच्य और ऊर्जादायक बन जाता है।इसीलिए छत्तीसगढ़ में बासी खाने को प्राथमिकता दी जाती है।
बोरे बासी या बासी खाने से प्यास कम लगती है। इससे सिद्ध होता है कि बासी पुनर्जलीकरण का उत्तम साधन है। लू में गोंदली (प्याज ) की उपयोगिता से सभी परिचित हैं। हमने देखा है कि बासी खाने वाले श्रमिक की कार्यक्षमता अधिक होती है।
अनुभव सिद्ध सत्य है कि *बासी सड़ा हुआ भोजन नहीं,अतिउत्तम खाद्य प्रसंस्करण है।*
-डॉ सुरेन्द्र यदु
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