कोंदा भैरा के गोठ-9
-कतकों लोगन अभी घलो सुवा गीत ल नारी विरह के गीत कहिथें जी भैरा.
-अइसन कहइया मन छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति ले अनचिन्हार होथें जी कोंदा.
-अइसे का?
-हव.. नारी विरह के गीत होतीस, त एला आने विरह गीत मन असन बारों महीना नइ गाए जातीस.. सिरिफ कातिक महीना के अंधियारी पाख म गौरा-ईसरदेव बिहाव तक ही काबर गाये जाथे? असल म ए ह गौरा-ईसरदेव बिहाव के संदेशा गीत आय.
-अच्छा... तुंहर इहाँ कब ले चालू होथे ए सुवा गीत के चलन हा?
-हमर गाँव म तो कातिक अंधियारी पंचमी ले चालू होथे, इही दिन गौरा-ईसरदेव परब खातिर फूल कुचरे के नेंग घलो होथे.
-अच्छा.. हमर इहाँ तो फूल कुचरे के नेंग ह एकादशी के होथे जी.
-कतकों जगा अलग-अलग मान्यता देखे ले मिलथे. हमन जइसे गौरा-ईसरदेव बिहाव ल कातिक के अंधियारी पाख म अमावस के मनाथन त कतकों जगा कातिक के अंजोरी पाख म पुन्नी के दिन मनाथें.
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-कातिक जोहार जी भैरा. कते डहार ले आवत हस ते?
-जोहार जी कोंदा.. एदे लइका मनला आज ले कातिक नहाए ले जाही कहिके उठा के आवत हौं. हमन लइकई म कातिक नहाए ले जावन तेकर सुरता हे नहीं जी संगी?
-रइही कइसे नहीं संगी.. पारा भर के नोनी मनला मुंदरहा ले उठावन तहाँ तरिया जावन.
-हव जी उंकर मन बर फूल अउ बेलपान तो हमीं मन सकेलन, फेर उंकर मन के नाहवत ले तरिया पार के चिरी-उरी अउ सुक्खा असन दिखत लकड़ी मन ल सकेल के भुर्री बारन.
-सही आय संगी, नोनी मन नहा-धो के थोकन भुर्री ताप लेवंय तहाँ ले महादेव के पूजा करय अउ भोग-परसाद चघावय, ते मनला तो फेर हमीं मन झड़कन ना.
-हव जी.. अउ संझा बेरा जब नोनी मन सुवा नाचे बर जावंय, तब वो मनला मिले चॉंउर-दार ल धरे बर झोला घलो तो हमीं मन धरे राहन ना.
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-चल बजार डहार नइ जावस जी भैरा.. देवरिहा दीया बाती के लेन-देन करे बर?
-मैं तो हमरे गाँव म बिसा डारथौं जी कोंदा.. कुम्हार पारा जाथौं अउ जतका लागथे बिसा लाथौं. फेर हमर इहाँ तो तेरस ले सुरहुत्ती तक के नेंग वाले दीया मनला नवा चॉंउर पिसान के बनाथन. तब एती-तेती कहाँ भटकबे?
-वाह भई.. फेर बजार म तो रंग-रंग फैशन वाला आथें जी संगी.. बने छाॅंट के सुघ्घर असन जिनिस ले म निक लागथे.. चीन-ऊन जइसन आने देश ले घलो आथें कहिथें. आज के लइका मन उही मन ला भाथें.
-मोला अपन देश-राज म बने जिनिस ही सुहाथे जी संगी.. हमरे तीर-तखार के लोगन दू पइसा कमावय बपरा मन.. कहाँ परदेशी मन के मोह म परबे? अउ ऐशन-फैशन वाले दीया-बाती चाही, त आजकाल महिला समूह वाली माईलोगिन मन एक ले बढ़ के एक गोबर के मयारुक दीया बनावत हें, एकर मन जगा बिसा लेना.. कहाँ आने देश वाले मन जगा पइसा डारे बर जाबे.
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-तुंहर इहाँ के बहुरिया मन आजकाल के नवा चलन वाला उपास-धास रहिथे नहीं जी भैरा?
-कइसन ढंग के नवा चलन वाला जी कोंदा?
-अरे.. काली सिनेमा उनिमा वाले मन असन करवाचौथ के नइ रिहिन जी.
-टार बुजा ल.. कइसे गोठियाथस तैं ह.. अरे भई हमर इहाँ तो एकर ले बढ़ के तीजा के उपास रहिथे तब ए सब नवा-नवा चोचला काबर?
-हमर इहाँ के नेवरिन मन तो जहाँ कोनो ल कुछू नवा चलागन म देखिन तहाँ उहू मन उम्हियाय परथें.
-ए सब हीनता अउ छोटे पन के चिन्हारी आय. जे मन अपन आप ल छोटे अउ पिछड़े समझथें ना उही मन दूसर के पिछलग्गू बने म अपन गरब समझथें. फेर मोर तो कहना हे संगी- जिहां तक सम्मान के बात हे, त सबो के संस्कृति अउ परंपरा के सम्मान करना चाही, फेर जीना चाही सिरिफ अपन संस्कृति ल.. काबर ते सिरिफ अपन संस्कृति ही ह आत्मगौरव के बोध कराथे, जबकि दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रद्दा देखाथे.
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-अब हमर सब परब-तिहार मन व्यापारी मन के चकाचौंध म बूड़े विज्ञापन के पाछू परके मॉंहगी-मॉंहगी जिनिस बिसाय भर के चिन्हारी बनत जावत हे जी भैरा.
-तोर कहना महूं ल वाजिब जनाथे जी कोंदा. अब देखना हमर ए धनतेरस परब ल टीवी पेपर मन के विज्ञापन अउ मुहुर्त मनला देखबे त अइसे जनाथे जइसे ए ह सिरिफ देखावा, चढ़ावा अउ फैशन वाले जिनिस मन के बिसाय के मुहुर्त वाला परब भर आय.
-सिरतोन आय संगी.. जबकि ए ह असल म हमर खेत म मुस्की ढारत खड़े अन्नपूर्णा दाई संग पेड़ पौधा अउ प्रकृति के पूजा के परब आय. धनतेरस के दिन किसान मन खेत म खड़े धान-पान ल सकेले के पहिली वोकर पूजा करथें, वो मन मानथें के अब हमन जम्मो लोगन खातिर बछर भर के जीवकोपार्जन खातिर अन्न के व्यवस्था कर डारेन. ए बेरा वो ह अपन खेत के मेड़ म पौधा घलो लगाथे. प्रकृति के आभार जताथे. अउ फेर सुरहुत्ती देवारी मान के धान लुवई के शुरुआत करथे.
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-तुंहर डहार देवरिहा लिपई-पोतई ओसरगे तइसे जनावत हे जी भैरा?
-हव जी कोंदा.. अब मड़ई के रतिहा खातिर नाचा लगाए बर जाना हे.
-वाह भई.. पाछू बछर वाले मन के नाचा तो बड़ मयारुक रिहिसे, फेर उही मनला नइ लगा लेतेव.
-आजकाल के लइका मन नवा-नवा कहिके गोहराथें गा.
-हाँ ए बात तो हे. फेर इहू बछर मातर के दिन ही मड़ई मढ़ावत हौ ना?
-हहो.. सुरहुत्ती के दिन मड़ई बना के जलदेवता के आशीष खातिर कुआँ तीर मढ़ा देबोन, फेर मातर के दिन गाँव के सब सियान मन बाजा-रूंजी संग परघाय बर आहीं तब फेर वोला जगाए के नेंग कर के मातर ठउर म लेग जाबोन.
-हहो.. हमरो डहार अइसने करथें, सुरहुत्ती के दिन मड़ई ल बनाए जाथे अउ मातर के दिन फेर वोला जगाए जाथे.
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-चुनावी शोर शराबा के बीच हमर अबूझमाड़ के मलखम्ब उस्ताद मन के एक सुंदर अउ गरब करे के लाइक खबर आए हे जी भैरा.
-कइसन गढ़न के खबर जी कोंदा?
-हमर देश के प्रतिष्ठित 'इंडिया गॉट टैलेंट' प्रतियोगिता ल जीते के. एकर पहिली घलो ए मन देश के अउ अबड़ अकन प्रतियोगिता मन म अपन कला के जौहर देखावत कतकों पदक पाए रिहिन हें.
-वाजिब म ए ह संहराय के लाइक बात आय संगी. अबूझमाड़ जइसन क्षेत्र ले निकल के पूरा देश भर म अपन प्रतिभा के परचम लहराना अनुकरणीय हे.
-हव जी.. अउ एकर ले इहू बात साबित होथे के हमर गाँव-गंवई के प्रतिभा मनला सही अवसर अउ मार्गदर्शन मिल जाय, त उन कोनो भी क्षेत्र के लोगन ले हर किसम के प्रतियोगिता म बीस ही साबित हो सकथें. ए मलखम्ब के प्रदर्शन म मनोज प्रसाद, पारस यादव, नरेंद्र गोटा, युवराज सोम, फूलसिंह सलाम, श्यामलाल पोटाई, सलाम, राकेश वरदा, मोनू नेताम, राजेश कोर्राम, शुभम पोटाई, अजमत फरीदी, समीर शोरी सुरेश पोटाई शामिल रहिन, जिनला 20 लाख रुपिया नगद के संग आर्टिगो कार मिलही.
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-आज हमर इहाँ विधानसभा चुनई के पहला चरण के मतदान हे जी भैरा. ए बखत तैं काकर सरकार बनावत हावस?
-उही ल तो गुनत हौं जी कोंदा. एदे सबो पार्टी वाले मन के घोषणा पत्र मनला खंधोलत हावंव, फेर ए मन म के कोनोच म इहाँ के जनभाखा छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले जम्मो शिक्षा दे अउ राजकाज चलाय के बात नइ लिखाय हे.
-हव जी उही ल महूं खोजत रेहेंव.. का-का फोकट म बॉंटे जाही, काला कामे संघारे जाही ते मन तो लिखाय हे, फेर इहाँ आत्मा भाखा अउ संस्कृति खातिर काकरोच चेत नइए तइसे जनाइस.
-मैं तो शुरू ले कहिथौं संगी- राष्ट्रीय दल मन के भरोसा हमर अस्मिता के बढ़वार ह मुसकुल जनाथे. काबर ते एकर मन के मापदंड क्षेत्रीय अस्मिता के स्वतंत्र चिन्हारी कभू नइ हो सकय. एकर बर तो एक मजबूत क्षेत्रीय दल ही चाही, फेर अभी इहाँ जतका अइसन दल हें, बौद्धिक अउ सैद्धांतिक रूप म कोनोच ह ए विषय म पोठहा नइ जनावय.
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-सुरहुत्ती के जोहार जी भैरा.. कोन कोती के जवई होवत हे?
-जोहार जी कोंदा.. एदे मंडल पारा कोती देवरिहा बधई दे खातिर जावत हौं गा.
-बधाई दे बर ते बधई दे बर?
- तिहरहा शुभकामना देथे तइसने गा.
-त एला शुद्ध रूप ले 'बधाई' कहना चाही. 'बधई' कहे म अलकरहा हो जाही.
-अइसे का?
-हहो.. हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म बधई मतलब पूजवन देना होथे. जबकि शुभकामना बर बधाई कहे जाना चाही. वइसे बधाई ह छत्तीसगढ़ी के शब्द नोहय, फेर अइसन कतकों शब्द हे, जे मनला चलन म सरलग बउरे जावत हे. त ए मनला जस के तस बउरे जाना चाही. बरपेली छत्तीसगढ़ीकरण करे के चक्कर म अर्थ के अनर्थ हो जाही.
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-हमर देश के राजनीति म किसान मन बर कभू ठोसहा नीति बना के उनला सत्ता पाए के केंद्र म नइ राखे जावत रिहिसे जी भैरा.
-ए बात तो वाजिब आय जी कोंदा एकरे सेती तो देश के चारों मुड़ा ले किसान मन के आत्महत्या करे के संग खेत-खार ल बेच-भांज के शहर डहर पलायन करे के खबर सरलग आवत राहय, फेर ए दरी हमर छत्तीसगढ़ म ए नजारा ह बदले असन जनावत हे.
-हव जी संगी.. पहिली बेर छत्तीसगढ़ के राजनीति म किसान मन केंद्र बिंदु म हावंय. सबोच पार्टी वाले मन उनला खुश करे के उदिम म भीड़े हें.
-हव जी.. पहिली किसान मन सरकारी उपेक्षा ले हलाकान होके खेती मनला बेचे के ही बुता करंय, जेमा अन्ते ले अवइया व्यापारी अउ धन्नासेठ मन काबिज हो जावत रिहिन हें, फेर अब नजारा ह आने जनाथे.
-सही आय.. किसान मन बर अभी के नीति अउ उदारवादी बेरा ह हरित क्रांति ले बढ़ के सोनहा क्रांति कस जनावत हे.
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-हमर इहाँ सुरहुत्ती के रतिहा जेन जुआ खेले के चलन दिखथे, ए ह आय तो अंधविश्वास ही, फेर सैकड़ों बछर ले अइसन चलत आवत हे जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. हमूं मनला हमर बूढ़ी दाई मन जुआ खेले बर काहंय, उन काहंय- आज के रतिहा जुआ नइ खेलबे त वो जनम म छूछु-मुसवा बन जाबे.
-हाँ.. सबो घर के सियान मन अइसने गढ़न के काहंय, तेकरे सेती तो ए बखत के जुआ ह महामारी कस रूप बगरगे हवय. अउ तैं जानथस हमर छत्तीसगढ़ म अइसन जुआ के एक रूप जेला खड़खड़िया कहिथन एकर चलन ह अढ़ई हजार बछर पहिली ले चलत आय के प्रमाण मिले हे.
-अच्छा!
-हहो.. राजधानी रायपुर ले 32 किमी दुरिहा खारून नदिया के तीर म जेन तरीघाट हे ना उहाँ के जुन्ना बस्ती के डीह (टीला) के खनई म अइसने माटी के पके वाले गोटी (लुडो) मिले हे, जेला पुरातत्व विभाग ह उहेंच बने संग्रहालय म रखवाय हे.
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-ए बखत के चुनई म जे मन जीतहीं ते मनला बड़े आदमी बना देबो काहत हें जी भैरा.
-अच्छा.. फेर हमर इहाँ तो बड़े आदमी मन के देखे सबके पलई चमकथे जी कोंदा, तब भला कोन बड़े आदमी बनइया मनला चुनहीं, फोकट म मरे बर, उंकर मार-गारी खाए बर?
-अइसे..?
-हहो.. हमन ला बड़े आदमी नहीं, भलुक देवता मनखे चाही जी संगी देवता मनखे.. बड़े आदमी मन तो न कुछू काम करय, न कुछू कारज.. वो मन तो लोगन संग सिरिफ गारी-गुफ्तार अउ पटकिक-पटका म मगन रहिथें. कभू काकरो काटे अंगरी तक म नइ.... देखथस नहीं हमर गाँव-गंवई के बड़े आदमी मनला, कइसे अति करथें तेला?
-सिरतोन आय संगी.. हमला जनता के सुख-दुख म खांध म खांध जोर के रेंगइया देवता मनखे के चुनाव करना हे जी, जेन ह सही अरथ म जनता के सेवा कर सकय, लोगन के सच्चा प्रतिनिधि बन सकय.
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-हमर इहाँ लइका के जनम धरे के तुरतेच बाद ओकर संग जुड़े गर्भनाल ल तुरते काटे के परंपरा हे जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. देखे तो अइसने हावन.
-फेर आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय स्वास्थ्य अउ चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक शोध म ए बताए गे हवय के गर्भनाल ल तुरते काटे के बदला कम से कम दू मिनट अगोरा कर के काटे ले जनम लेवइया लइका के जीवन के संभावना ह बाढ़ जाथे.
-अच्छा!
-हहो.. डॉ. अन्ना लेने सीलडर अउ प्रोफेसर लिसा एस्की के शोध ले ए जानबा होए हे, के गर्भनाल ल देरी म काटे ले होवइया लइका के शरीर म रेड ब्लड सेल्स ह 60 प्रतिशत तक बाढ़ जाथे अउ वॉल्यूम म 30 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी होथे. एकर ले जनम धरे के तुरते बाद होवइया मृत्यु ल रोके के संभावना ह 91 प्रतिशत तक बाढ़ जाथे.
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- गाँव ले तिहार मान के आ गेव जी भैरा?
-कहाँ जी कोंदा.. ए बछर शहर म घर रखवारी के बुता मोरे रिहिसे, तेकर सेती गाँव नइ जा पाएंव.
-अइसे?
-हहो.. अब शहर म घलो घर बनवा परे हन त इहों देवता-धामी मन के आगू म दीया-बाती करे बर लागथे ना जी.
-हाँ ए बात तो हे संगी.. फेर परब-तिहार ह गाँवे म निक जनाथे जी. वो कहिथें ना.. हमर देश के आत्मा गाँव म बसथे कहिके तेन ह सिरतोन आय. काबर ते गाँव म ही हमर परंपरा अउ संस्कृति ह जीयत हे.
-हव जी सही आय.. हमर परब-तिहार तो गाँवेच म जीयत हे, शहर म तो भइगे फट-फट फट-फट फटाका फोरिस तहाँ ले झर गे. अउ जादा होगे त टूरा पिला मन दारू पी के लड़ई-झगरा म माते रहिथें .. अतकेच ह शहर के तिहार आय.. न ककरो संग जोहार-भेंट न ककरो संग निक-बोल.
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-अइसने जुड़हा दिन-बादर म गोरसी तापत अंगाकर रोटी दमकाय म गजबे मजा आथे जी भैरा.
-सिरतोन आय जी कोंदा.. मार चर्रस चर्रस सेंकाय वाले अंगाकर के फोकला ल झड़के म अउ निक लागथे.
-हव जी.. फेर उमर के संग अब अंगाकर भीतर के गुदा ल ही खा सकथन.. फोकला ल चाबे अस करबे त दांत ह गवाही दे असन नइ करय.
-मोरो उही हाल जनाथे संगी.. लइकई म फोकलाच फोकला ल बने घी लगा के सोंधे-सोंध झड़कन अउ बबा ल गुदा मनला देवत जावन.
- फेर अब तइहा के बात ल बइहा लेगे असन होगे संगी.. उमर के संग सब उल्टा होगे हे. गुदा ल हमन झड़कथन अउ बने सोंधे-सोंध फोकला ल नाती डहार अमर देथन.
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-लोकतंत्र के महान परब म अपन भूमिका तो हमन निभा डारेन जी भैरा.. अब एकर परिणाम के अगोरा हे, ए बखत काकर भाग म राजयोग लिखाय हे ते.
-हव जी कोंदा, फेर एक बात ऊपर तैं ह चेत करे हावस?
-का बात ऊपर जी संगी?
-अभी के चुनई म गाँव-गंवई के लोगन तो बढ़-चढ़ के मतदान करे हें, फेर शहरिया मन ढेरियाय असन दिखत हें.
-अच्छा!
-हहो.. अभी निर्वाचन आयोग ह मतदान प्रतिशत के जेन सूची जारी करे हे, तेकर मुताबिक शहरिया मन अल्लर परे असन वोट दिए हें. तेमा राजधानी रायपुर वाले मन तो सबले पिछवाय हें, इहाँ मतदान के सबले कम प्रतिशत हे.
-मतलब जेन गाँव-गंवई के लोगन ल हमन पिछड़ा अउ अनपढ़ कहिथन, ते मन मतदान के जागरूकता देखाय म अगुवाय हें, अउ शहर के शेखचिल्ली मन पिछवाय हें.
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-हमर गाँव म तो मातर के दिन ही संझौती बेरा मड़ई के आयोजन हो जाथे, फेर धमतरी क्षेत्र म गंगरेल बॉंध तीर के दाई अंगारमोती के आशीष पाए के बाद ही मड़ई के उत्सव चालू होथे जी भैरा.
-अइसे का जी कोंदा?
-हहो.. अंगारमोती म हर बछर देवारी माने के बाद जेन पहला शुक्रवार आथे, उहीच दिन मड़ई भराथे. ए दिन इहाँ हजारों लोगन अंगारमोती दाई के आशीष पाए बर जुरियाथें. जे माईलोगिन मन संताए पाए के आस म आए रहिथें वो मन इहाँ हाथ म नरियर धरे मुड़ उघरा कर के ओरीओर सूत जाथें, तब उहाँ के पुजारी ह अंगारमोती दाई के संग अउ आने देवी देवता मन के डांग- डंगनी मनला धर के उंकर मन ऊपर ले उखरा पॉंव रेंगत नहाकथे. मान्यता हे, के एकरे ले वो जम्मो माईलोगिन मन के मनोकामना पूरा होथे. ए बेरा म आसपास के 52 गॉंव के देवी देवता मनला ल नेवता दे के अंगारमोती दाई के दरबार म बलवाए जाथे.
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