कोंदा भैरा के गोठ-36
1-
-आज 20 अगस्त के रेडियो प्रसारण दिवस के सेती मोला सुरता आवत हे जी भैरा.. अब मनोरंजन के कतकों साधन आगे हवय तभो रेडियो सुनई ह अभो निक जनाथे ना?
-सिरतोन आय जी कोंदा.. जइसे समाचार मन के सोर-खबर ले खातिर कतकों न्यूज़ चैनल आगे हवय, तभो अखबार ल पढ़े बिन मन नइ मानय तइसे केहे कस.
-हव जी.. मोला तब के सुरता हे संगी जब हमर गाँव म पारा भर म सिरिफ हमरे घर भर रेडियो रिहिसे. संझौती बेरा जब बॉंस गीत आवय, त रेडियो ल घर ले हेर के बाहिर के कुआँ पार म मढ़ावन, तहाँ ले पारा भर के लोगन जुरिया के सुनँय.
-अइसने मोला अपन पहला कविता प्रसारण के सुरता हे संगी.. वो बखत अभी असन कविता मनला रिकार्डिंग कर के नइ राखत रिहिन हें. तब जीवंत प्रसारण होवय. बरसाती भइया, बिसाहू भइया मन संग चौपाल कार्यक्रम म मोला बइठारे रिहिन हें, एती ले हमन बोलत जावन.. वोती लोगन ल रेडियो म सुनावत जावय, बाद म मोर पहला कहानी 'ढेंकी' के प्रसारण होइस, त वोला पहिली रिकॉर्ड करे गे रिहिसे.
-हाँ अब तो सबो ल पहिली रिकॉर्ड कर लिए जाथे, पाछू वोकर प्रसारण होथे.
-रेडियो सुनइया जम्मो संगी मनला रेडियो प्रसारण दिवस के बधाई अउ जोहार.
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2-
-गणपति महराज के बिराजे के संग ही पोंगा-चोंगा मन ले आनीबानी के गीत सुनाए लगिस जी भैरा.
-अरे नेवरिया लइका मनला कतकों बरज फेर अंते-तंते के गीत बजई ल नइ छोड़ँय जी कोंदा.
-हव जी.. डीजे वाले मनला घलो चेताय रिहिन हें कहूँ गणपति महराज ल लानत-लेगत बेरा डीजे बजाहू ते लाख रुपिया जुर्माना लागही, फेर कोनो भी नियम के पालन बने असन कहाँ हो पाथे.. दस दिन ले भाइगे चोरो-बोरो तो आय.
-हव जी.. अउ तैं जानथस गणपति महराज के उत्सव ल 10 दिन तक ही काबर मनाए जाथे?
-कोन जनी संगी.. ए मुड़ा तो कभू चेत नइ करे रेहेन.
-वइसे तो कतकों कारण बताए जाथे, फेर एमा प्रमुख हे- जब महर्षि वेदव्यास जी ह गणेश जी ले महाभारत लिखे के अरजी करिस त भगवान गणेश ह दस दिन तक बिन रुके सरलग लिखइच करीन.. एकर ले गणेश जी के देंह के तापमान बाढ़गे रिहिसे.
-बाढ़बेच करही.. दस दिन ले बिन थिराय लिखइच करही त.
-हव.. एकरे सेती वेदव्यास जी उनला दसवाँ दिन नँदिया म बने खलखल ले नहवाए रिहिन हें.. बताथें के इही ह परंपरा बनगे.. दस दिन बने उत्सव मनाथें यहाँ ले दसवाँ दिन विसर्जित कर देथें।
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3-
-हमर छत्तीसगढ़ म एक ले बढ़ के एक परंपरा देखे सुने ले मिलथे जी भैरा.
-हाँ.. ए बात तो हे जी कोंदा.. तभे तो हमन छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी संस्कृति ल अद्भुत कहिथन.
-सही आय संगी.. अब कालेच देख ले गरियाबंद जिला के गाँव देवरी म उहाँ के साँवरा समिति ह साँप मन के शोभायात्रा निकाले रिहिसे, जेमा हजारों के संख्या ल साँप रिहिसे.. लोगन घलो हजारों के संख्या म जुरियाय रिहिन हें, जे मन शोभायात्रा के जगा-जगा पूजा करत रिहिन हें.
-गजब हे संगी.
-हव.. हर बछर ऋषिपंचमी के दिन इहाँ साँप मन के पूजा कर के शोभायात्रा निकाले जाथे, जेमा तीर-तखार गाँव के मन घलो सँघरथें.. अउ तैं जानत हावस?
-बताना भई.
-ए जम्मो साँप मनला गाँव वाले मन अपन घर या खेत-खार म निकलथे तेने ल धर के उँकर संरक्षण कर के राखथें, तहाँ ले फेर ऋषिपंचमी के दिन सबो के सामूहिक रूप ले पूजा कर के शोभायात्रा निकाले जाथे.. शोभायात्रा निकाले के बाद फेर सबो साँप मनला जंगल म ढील दिए जाथे.
-मारय-पीटय नहीं कहिदे.
-नहीं संगी.. जेकर पूजा करथें वोला मारहीं कइसे.. कतकों बछर ले ए परंपरा चलत हे.. एकरे सेती इहाँ अभी तक कोनो किसम के साँप चाबे के घटना नइ घटे हे.
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4-
-हमर छत्तीसगढ़ जेला तइहा बेरा म दक्षिण कोसल के नॉव ले जाने जावय इहाँ कविता पाठ के बड़ा पोठलग परंपरा हावय जी भैरा.
-हव.. हावय न जी कोंदा.. बछर 1983 ले तो महूँ ह एमा सँघरत हावँव.. फेर हमर इहाँ जेन लोकगीत अउ साहित्य के पोठलग परंपरा देखे ले मिलथे तेन ह तभे तो सिरजे अउ आगू बाढ़त रेहे होही.
-सही कहे.. इतिहास के जुन्ना पन्ना लहुटाए ले इहू जानबा होथे के महाकवि कालिदास ह इहें के रामडोंगरी जेन ह सरगुजा संभाग म आथे उहें अपन अमरकृति 'मेघदूतम' के सिरजन करे हें..
-हव जी सही आय.. मैं ह मेघदूतम के छत्तीसगढ़ी अनुवाद जेला छायावाद के प्रवर्तक कवि पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय जी करे रिहिन हें तेला पढ़े हौं.
हाँ.. अउ तैं जानथस.. हमर इहाँ महाकवि कालिदास जी के बेरा ले ही कविता पाठ के जानबा मिलथे.. रामगढ़ पर्वत म ही एक गुफा हे, जेला सीता बेंगरा के नॉव ले जाने जाथे.. इही गुफा के एक कोठ म ब्राम्हीलिपि म लिखाय एक शिलालेख हे, जेमा कवि मन के रतिहा बेरा कविता पाठ करे के उल्लेख हे.
-ददा रे.. तब के इहाँ कविता पाठ के परंपरा हे कहिदे!
-हव.. दू हजार बछर अकन होगे हे वो बेरा ल.
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5-
-हिंदी दिवस के दिन लकठाथे तहाँ ले कतकों लोगन छत्तीसगढ़ी ल बोली आय कहिके कोचके-हुदरे के कोशिश करथें जी भैरा.
-वो मनला भाखा के मानक के जानकारी नइ होही जी कोंदा.. जे भाखा के माध्यम ले हम अपन मन-अंतस के बात ल कोनो भी दूसर मनखे ल जस के तस समझा सकन वो सबो ह भाखा कहाथे.
-फेर लोगन तो जेकर व्याकरण अउ लिपि होथे, तेने ल भाखा कहे जाथे कहिथें.
-जिहाँ तक व्याकरण के बात हे, त छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह बछर 1880 ले 1885 के बीच म काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के द्वारा लिखे गे रिहिसे, जेला तब के बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह बछर 1890 म छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म समिलहा छपवाए रिहिसे.. तब तक हिंदी के व्याकरण नइ बन पाए रिहिसे. हिंदी के व्याकरण ह बछर 1920 म कामता प्रसाद गुरु के माध्यम ले आइस.
-अच्छा.. माने छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह हिंदी ले पहिली बने हे. फेर लिपि तो नइए न छत्तीसगढ़ी के?
--कोनो भी भाखा खातिर लिपि के होना जरूरी नइए. हिंदी के लिपि कहाँ हे? एला तो नागरी लिपि म लिखे जाथे. संस्कृत, मराठी आदि ल घलो नागरी म ही लिखे जाथे.. हाँ, छत्तीसगढ़ी के पहिली लिपि रहिसे जेला हर्ष लिपि कहे जाय, इहाँ के जुन्ना मंदिर मन म वोला अभी घलो शिलालेख के रूप म देखे जा सकथे. तैं राजिम के राजीव लोचन मंदिर जाबे, उहाँ सीढ़िया चघ के मंदिर भीतर जाबे त डेरी हाथ के कोठ म एक बड़का शिलालेख पाबे. वोहा जेन लिपि म लिखाय हे, उही आय हर्ष लिपि.
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-छत्तीसगढ़ म नवरात परब म दुर्गा बइठारे के परंपरा पहिली नइ रिहिसे जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. फेर अब तो गाँव गँवई म घलो चार पाँच जगा दुर्गा पंडाल दिख जाथे.
-सही कहे.. जइसे गणपति महराज ल पंडाल म बइठारे के शुरुआत आजादी के आन्दोलन के बखत महाराष्ट्र ले होय हे, वइसने दुर्गा पंडाल के परंपरा प. बंगाल ले होय हे अइसे सियान मन बताथें.. अउ तैं जानथस.. हमर रायपुर म अभी जेन दुर्गा प्रतिमा बनत हे वोमा वेश्यालय के माटी के प्रयोग अनिवार्य होथे?
-कोन जनी संगी.. मैं पहिली पइत अइसन सुनत हौं!
-इहाँ कोलकाता के सोनागाछी (रेडलाइट एरिया) ले माटी लाने जाथे, जेला पुण्य माटी कहिथें.. मूर्तिकार मन बताथें के सोनागाछी के माटी ले ही महतारी के मुड़ी बनाए जाथे.
-एकर कुछू विशेष कारण होही?
-माने जाथे के वेश्यालय म जवइया मन अपन जम्मो किसम के पवित्रता ल बाहिर म छोड़ जाथें, तेकर सेती उहाँ के माटी पवित्र हो जाथे. एक लोककथा बताथें- एक वेश्या माँ दुर्गा के जबर भक्त रिहिसे, जेन समाज के तिरस्कार ले दुखी राहय. वो महतारी जगा अरजी करिस, तब दाई वरदान दिस के जब तक वोकर मूर्ति वेश्या के अँगना के माटी ले नइ बनही, तब तक वो मूर्ति म बसेरा नइ करय.
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-छत्तीसगढ़ी परब-तिहार अउ परंपरा मन म अब आने राज ले आए परंपरा मन घलो निंगत जावत हें जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. भारी साँझर-मिंझर होय लगे हे.. लोगन एक-दूसर के देखा-सिखी सबोच ल अमरे असन कर डारथें.. अब देख लेना हिंदी सिनेमा मन के देखा-सिखी इहाँ करवा चौथ के उपास ह माईलोगिन मन म बनेच हमावत जावत हे.. ठउका अइसने अभी एक ठ नवा परंपरा देखे ले मिलिस- 'बेटा जितिया'.
-ए नॉव ह मोला नवा सुने अस जनावत हे.
-हव.. नवच तो आय, फेर पश्चिम ओडिशा ले लगे क्षेत्र के मन एला बनेच मनाथें.. उत्तर प्रदेश, बिहार अउ बंगाल म घलो एला मनाय जाथे बताथें.. पितरपाख माने कुँवार अँधियारी पाख के आठे तिथि म मनाथें बेटा जितिया ल.. अपन बेटा मन के लम्बा उमर खातिर महतारी मन निर्जला उपास रहिथें.
-मोला लागथे संगी के हमर छत्तीसगढ़ के पुरखौती परंपरा म पितरपाख म पितर मन के परघनी सुमरनी के छोड़े अउ कुछू नइ करे जाय.. जिहाँ तक बेटा मन खातिर उपास रहे के बात हे त वो तो इहाँ महतारी मन कमरछठ म करथें.. कोनो कोनो. सकट म घलो रहिथें.
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-तुँहर फैक्ट्री म काली विश्वकर्मा जयंती बड़ा जोर-सोर ले मनाइन हें कहिथें जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. हर बछर सृजन के देवता विश्वकर्मा जी के पूजा ल जोरदार मनाए जाथे.. छत्तीसगढ़ी के रंगझाझर कार्यक्रम घलो राखे रेहेन.. फेर तैं जानथस संगी.. काली जेन परब रिहिसे वो ह विश्वकर्मा जी के जयंती के परब नोहय.. सिरिफ पूजा के तिथि आय जेमा कल-कारखाना अउ आने श्रम साधक मन अपन-अपन कार्यस्थल म उँकर पूजा कर सकँय.
-अच्छा.. अइसे.. फेर कतकों लोगन तो जयंती काहत रिहिन हें!
-विश्वकर्मा जी के जयंती माघ महीना के अँजोरी पाख म तेरस के होथे.. कहूँ उँकर जयंती मनातीन त भारतीय पद्धति के मुताबिक माघ महीना म अँजोरी तेरस के मनातीन.. असल म कामगार मनला विश्वकर्मा पूजा खातिर एक अलग से तिथि जोंगे गे रिहिसे, जे हा अँगरेजी तारीख के अनुसार हर बछर 17 सितंबर के आथे.
-वाह भई..!
-हव.. हमर भारतीय परंपरा म सावन, भादो, कुँवार, कातिक के मुताबिक देवता धामी मन के परब तिहार या जयंती आथे न.. ठउका अइसने इहू ह आतीस कहूँ जयंती परब होतीस त.
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-तोला सुन के भले ताज्जुब लागही जी भैरा फेर ए ह सोला आना सच आय के एक झन देवी के मुड़ी ह आने जगा स्थापित हावय त वोकर बाँचे देंह ह आने जगा स्थापित हे अउ दूनोंच जगा उँकर पूरा भक्ति भाव ले पूजा आराधना अउ मान-गौन होथे.
-सिरतोन जी कोंदा.. ताज्जुब लागे के तो बातेच आय.
-हव.. हमर छत्तीसगढ़ म ही बिराजे देवी आय.. रतनपुर के महामाया देवी अउ अंबिकापुर के महामाया देवी दूनों एकेच आय, जेकर देंह ह अंबिकापुर म स्थापित हावय त मुड़ी ह रतनपुर म स्थापित हे.
-आखिर अइसे कइसे होगे संगी?
-एकर संबंध म एक दंतकथा बताए जाथे, तेकर मुताबिक मराठा सैनिक मन अंबिकापुर के देवी दाई के मूर्ति ल अपन संग म ले जाना चाहत रिहिन हें, फेर सफल नइ हो पाइन त उन रिस के मारे मूर्ति के मुड़ी ल काट के रतनपुर डहार आगू बढ़िन.. तब देवी दाई के प्रकोप ले हर कोस म वोमा के एक सैनिक मरत गिस अइसे किसम आखिर म रतनपुर
म आके उँकर मुड़ी स्थापित होगे.
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-हमर छत्तीसगढ़ म नवरात परब म माता के सुमरनी अरजी ह जस गीत के माध्यम ले ही होवत रिहिसे जी भैरा.. फेर जइसे-जइसे शहरी सभ्यता के नॉव म आने राज के चलागन मन इहाँ निंगत जावत हें वइसे-वइसे भक्ति भाव अउ श्रद्धा के ए चलागन म फूहड़ता अउ अश्लीलता ह घलो अपन ठउर बनावत जावत हे.
-सही कहे जी कोंदा.. ए बखत अभी डाँडिया/गरबा के सोर जादा आवत हे.. फेर एमा भक्ति भाव कम अउ आडंबर अश्लीलता के नजारा जादा देखे म आवत हे.
-वाजिब कहे संगी.. सोशलमीडिया म अभी शांतिनगर लोकांगन भिलाई के एक ठ विडीयो वायरल होवत हे, जे ह गरबा के नॉव म करबा नाच कस जनावत हे.
-हव जी महूँ आकब करे हौं.. उहाँ के विधायक ही ह वो आयोजन के माईमुड़ी आय.. अउ अश्लील गीत संग बेहूदा किसम के नाचत लोगन ल वो विधायक ही ह आगू म मुस्कीढारत बइठे घलो दिखत हे.
-हमर छत्तीसगढ़ के शालीन अउ गरिमामय संस्कृति म संस्कृति के नॉव म अइसन उजबक प्रदर्शन ल कभू स्वीकार नइ करे जा सकय संगी.. फेर आजकाल के लोगन ल चारों मुड़ा ले भेंड़ियाधसान बने देखथौं तेनो ह ताज्जुब बरोबर जनाथे.
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-मोर नाती पूछत रिहिसे जी भैरा के दशहरा के दिन टेहर्रा चिरई ल देखे ल काबर शुभ माने जाथे?
-तोला पाछू बछर बताए रेहेंव न जी कोंदा के विजयादशमी अउ दशहरा दू अलग-अलग परब आय.
-हव गा बताए रेहे.. फेर काय करबे खेती-किसानी के चिभिक म बूड़े तहाँ ले सब बिसरा जथे.
-जिहाँ तक टेहर्रा चिरई जेला नीलकंठ पक्षी घलो कहिथन.. तेकर दरस करई ल ए दिन भगवान भोलेनाथ के दरस करे बरोबर शुभ माने जाथे.. काबर के वो मन इही दंसहरा तिथि म जब समुद्र मंथन होए रिहिसे तेमा ले निकले विष या दंस ल पी के अपन टोटा म स्थापित कर लिए रिहिन हें, एकरे सेती उँकर टोटा नीला होगे रिहिसे.
-अच्छा.. एकरे सेती नीलकंठ पक्षी ल ए दिन भगवान नीलकंठ के प्रतीक माने जाथे कहिदे..अउ लोगन रावन भाँठा म रावन के पुतला म आगी ढीले के बाद सोन पान घलो तो बाँटथें.
-हाँ सोन पान ना.. जेला शमी पत्ता घलो कहिथें.. एला रावण के सोन के लंका ऊपर विजय प्राप्त करे के प्रतीक स्वरूप बाँटे जाथे, एकरे सेती तो एला सोन पान कहिथें.
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-नवरात म अभी कतकों जगा माता भवानी के सुमरनी ल सुवा गीत नृत्य जइसन पारंपरिक गीत मन के माध्यम ले करे जावत हे जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. महूँ ल दू चार ठउर ले अइसन सोर-खबर मिले हे.. आने राज के चलागन ले आए गरबा-डाँडिया आदि के विकल्प के रूप म इहाँ भाखा-संस्कृति के मयारुक मन पंडाल बना के अइसन आयोजन करत हें अउ वोला लोगन के गजब मया घलो मिलत हे.. दिन के दिन उहाँ सँघरइया लोगन के संख्या म बढ़वार देखे जावत हे.
-ए तो बने बात आय संगी.. अपन भाखा संस्कृति अउ परंपरा खातिर तो सब के मन म मया अउ उछाह होना चाही.. फेर मोला लागथे के अइसन पंडाल मन म अभी जेन गीत म नृत्य करे जाथे हे वो मन म सुधार करे जाना चाही.
-अच्छा.. अइसे काबर?
-अभी जेन पहिली ले रिकार्डेड गीत हे तेने म सामूहिक रूप ले नृत्य करे जावत हे.. जबकि होना ए चाही के माता के सुमरनी के जम्मो गीत मनला माता ऊपर ही आधारित होना चाही.
-हाँ.. ए बात तो हे.. सुवा, करमा, पंथी, ददरिया आदि सबो गीत मन म माता के जस गायन होनी चाही.. धुन भले जम्मो पारंपरिक गीत के राहय फेर वोमा शब्द ह माता के महिमा अउ उपासना ले संबंधित होनी चाही.
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-भले नवरात म हमन महिषासुर जेला हमन भैंसासुर कहिथन के वध के उछाह मनाए रेहेन जी भैरा.. फेर हमर छत्तीसगढ़ म अइसनो लोगन हें, जे मन दुर्गा दाई के नहीं भलुक भैंसासुर के पूजा करथें अउ अपनआप ल वोकर वंशज मानथें.. अउ ए नवरात ल शोक के रूप म मनाथें.
-हमर ग्राम्य संस्कृति म तो भैंसासुर के पूजा होवत मैं चारों मुड़ा देखथौं जी कोंदा.. हर गाँव के खेत के मेड़ म वोकर ठउर रहिथे जे मेर पूजा करे बिन कोनो किसान वो मेर ले बुलकय नहीं.. धान लुवई के शुरुआत घलो भैंसासुर के पूजा बिन करय नहीं.
-हाँ.. फेर ए अब धीरे-धीरे नँदाय असन जनावत हे.. हमन जोत-जँवारा के विसर्जन के बेरा कोनो मनखे ल भैंसासुर बन के जोत मन के आँवर-भाँवर किंजरत घलो देखे हावन.. जशपुर जिला के मनोरा विकासखंड के हाड़ीकोना, जरहापाठ, बुर्जुपाठ, अउ दौनापान के मूल निवासी मन नवरात म देवी पूजा के परंपरा ले दुरिहा रहिथें, भलुक वो मन शोक मनाथें अउ भैंसासुर ल अपन पूर्वज मान के वोकर पूजा करथें.. उँकर मानना हे के भैंसासुर के वध ह केवल एक छल आय, जेमा दुर्गा ह देवता मन संग मिलके उँकर पूर्वज के हत्या करे रिहिसे.. ए मन होरी देवारी जइसन परब म घलो भैंसासुर के ही पूजा करथें.
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-तुँहर इहाँ के बहुरिया मन आजकाल के नवा चलागन वाला उपास-धास रहिथें नहीं जी भैरा?
-कइसन ढंग के नवा चलागन वाला जी कोंदा?
-अरे.. सिनेमा उनिमा वाले मनला देख दुखा के करवाचौथ वाले नइ राहयंँ जी?
-टार बुजा ल.. कइसे गोठियाथस तैं ह.. अरे भई हमर इहाँ तो एकर ले बढ़ के तीजा के उपास रहिथें तब ए सब नवा-नवा चोचला काबर?
-हमर इहाँ के नेवरिन बहुरिया मन तो जिहाँ कोनो ल कुछू नवा चलागन म देखिन तहाँ उहू मन उम्हियाय परथें.
-ए सब हीनता अउ छोटे पन के चिन्हारी आय जी संगी.. जे मन अपन आप ल छोटे अउ पिछड़ा समझथें ना उही मन दूसर के पिछलग्गू बने म अपन गरब समझथें. फेर मोर तो कहना हे- जिहाँ तक सम्मान के बात हे, त सबो के संस्कृति अउ परंपरा के सम्मान करना चाही, फेर जीना चाही सिरिफ अपन संस्कृति ल.. काबर ते सिरिफ अपन संस्कृति ही ह आत्मगौरव के बोध कराथे, जबकि दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रद्दा देखाथे.
-सिरतोन कहे संगी.. दूसर के संस्कृति ह सिरिफ गुलामी के दहरा म बोरथे.
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-कतकों लोगन अभी घलो सुवा गीत ल नारी विरह के गीत कहिथें अउ लिखथें घलो जी भैरा.
-अइसन उही मन कहिथें जी कोंदा जे मन इहाँ के मूल संस्कृति ल बने पोठ असन नइ जानँय समझँय.
-अइसे का?
-हव.. अच्छा तहीं बता.. कोनो विरह गीत ल तारी बजा-बजा के अउ नाच-नाच के गाए जाथे का?
-विरह गीत तो रोनहा-धोनहा होथे जी संगी वोमा कइसे कोनो नाचहीं-कूदहीं.
-हाँ... वइसने एला बारों महीना घलो नइ गाए जाय.. सिरिफ कातिक महीना के अँधियारी पाख म गौरा-ईसरदेव के बिहाव होवत ले ही गाथें.. जबकि दूसर विरह गीत ल बारों महीना गाए जाथे.
-सही कहे संगी.
-असल म सुवा गीत ह गौरा-ईसरदेव परब के संदेश गीत आय.. तोला सुरता हे नहीं.. लइकई म कातिक लगय तहाँ मुँदरहा ले कातिक नहाय बर जावन अउ संझा बेरा सुवा नाचे बर?
-हव जी.. नोनी मन सुवा नाचँय अउ हमन उँकर सेर-चाउँर धरे के टोपली अउ झोला-झंगड़ मनला धरे राहन.
-ठउका सुरता करे.. असल म ए सब ह गौरा-ईसरदेव के बिहाव खातिर होथे.. गीत-नृत्य के माध्यम ले बिहाव म सँघरे के संदेश दिए जाथे अउ सेर-चाँउर ल वो दिन होवइया खर्चा के व्यवस्था खातिर सकेले जाथे.
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-बाहिर ले धरम के सँवागा खापे आवत लोगन मन इहाँ के जम्मो देव-ठिकाना मन म धीरे-धीरे कब्जा जमावत हें जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. अउ देव-ठिकाना म कब्जा करे के संगे-संग इहाँ के मूल परंपरा मन म बदलाव घलो करत हें.
-हव जी.. अभी मैं इहाँ के जुन्ना मंदिर के पुजारी के गोठ ल सुनत रेहेंव.. वो काहत रिहिसे- हमन मंदिर म नवरात के जोत ल कुवाँरी नोनी मन जगा चकमक पखरा ले जलवाथन कहिके.
-चकमक पखरा ले तो सबो जगा जोत जलवाथें संगी फेर वोला कुवाँरी नोनी मन जगा नहीं, भलुक मंत्रसिद्ध बइगा मन द्वारा जलवाए जाथे.. मंत्रसिद्ध बइगा मन के इहाँ के संस्कृति म जबर महत्व हे.
-सही कहे.. मंत्रसिद्ध बइगा ह वो जोत ल सिरिफ जलावय भर नहीं भलुक अभिमंत्रित घलो करथे.. तभे वो जोत के महत्व होथे.
-वाजिब कहे.. बिना अभिमंत्रित करे जोत जलाय के वतका महत्व नइए जतका अभिमंत्रित करे के होथे.. फेर कुवाँरी नोनी.. जे मन मंत्रसिद्धि नइ कर पाए हें, वइसन मन जगा जोत जलवाए के कोनो खास महत्व नइए.
-बाहरी ले आए लोगन इहाँ के धारमिक अउ सांस्कृतिक भावना संग सरलग खिलवाड़ करत हें.. एकर मन के खिलाफ सबो मूल निवासी मनला एकफेंट होके आगू आए बर लागही.
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-कातिक अमावस के होवइया गौरा-ईसरदेव बिहाव परब के बेरा म तैं ह काँसी डोरी वाला सोंटा मरवाथस नहीं जी भैरा?
-इहू ह पूछे के बात आय जी कोंदा.. हर बछर मैं गौरा-ईसरदेव के आशीर्वाद पाए बर सोंटा मरवाथौं.
-बहुत बढ़िया.. वइसे ए ह आय तो हमर पुरखा मन के बनाए एक परंपरा ही, फेर ए ह वैज्ञानिक दृष्टि ले घलो बड़ महत्तम के होथे.
-अच्छा.. अइसे का जी?
-हहो.. ए सोंटा ल काँसी के काँदी (सुक्खा पैरा) के डोरी ल बने पाँच दिन तक तेल म बोर के राखे जाथे, जेकर हाथ म सटाक ले परे ले हमर नस के सफेद रक्त कोशिका (white blood cells) मन ह सक्रिय हो जाथें.. सफेद रक्त कोशिका मन के सक्रिय होय ले करीब पचास किसम के बीमारी मन अपने अपन ठीक हो जाथें.. ए सोंटा के माध्यम ले शरीर ल मिले एक्यूप्रेशर के क्रिया ले कैंसर के लक्षण कहूँ जनावत होही त उहू ल ए सफेद रक्त कोशिका मन खतम कर देथें.
-वाह भई.. तब तो अब मैं ह हर बछर अपन घर के लइका मनला घलो सोंटा मरवाए बर कइहौं.
-जरूरी हे.. हमर पुरखा मन जे परंपरा बनाए हें वो मन आध्यात्मिक के संगे-संग वैज्ञानिक महत्व के घलो हे.
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-हमन अभी कातिक अमावस के गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब मनाए हावन न जी भैरा.. एमा ईशर राजा ह तो बइला के सवारी करथे फेर गौरा दाई ह कछुआ म बइठे रहिथे.
-हव कछुआ म ही उनला बइठारे जाथे जी कोंदा.
-हाँ इही ह हमर पुरखौती परंपरा आय.. अउ तैं जानथस.. धमतरी जिला के गाँव लोहारपथरा म हर बछर एक सिरतोन के कछुआ ह गौरा-ईशर बिहाव परब के बेरा म जेन घर म एकर मन के मूर्ति ल बनाए जाथे, उहिच घर म आके वो पूजा ठउर म बइठ जाथे.
-वाह भई.. ए तो कोनो दैवीय घटना बरोबर हे!
-हव जी तीस बछर ले आगर होगे हे बताथे गाँव वाले मन हर बछर गौरा-ईशर के मूर्ति बने के जगा आ के बइठ जाथे, तहाँ ले गाँव वाले मन वो जीयत कछुआ ल मूर्ति म ही बइठार के गाँव भर किंजारथें पूजा करथें अउ आखिर म कोनो तरिया म ढील देथें.
-ए ह गौरा-ईशर के साक्षात आशीष बरोबर जनावत हे संगी.
-गाँव के मन एला बहुत शुभ मानथें.. अउ तैं जानथस.. ए बछर एके संग तीन ठ कछुआ आगे रिहिन हें बताथें.. गाँव वह मन तीनों ल मूर्ति संग बइठार के पूजा करिन.. गाँव भर किंजारिन अउ तहाँ ले तरिया म ढील देइन.
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-नवा रायपुर म छत्तीसगढ़ विधानसभा के नवा भवन के लोकार्पण प्रधानमंत्री ह राज्य स्थापना दिवस के दिन करही काहत हें जी भैरा.
-हव जी कोंदा महूँ अइसने सुने हावँव.. फेर मैं ए गुनत रेहेंव के नवा विधानसभा भवन के नॉव ल काकर नॉव म रखे जाही ते?
-अब एला तो सत्ताधारी मन जोगथें संगी.. तोला सुरता हे नहीं.. जीरो पाइंट बरौदा वाले विधानसभा भवन के नामकरण के बेरा म तब के मुख्यमंत्री ह कइसे इहाँ के दू बड़का समाज ल लड़ाय के उदिम करे रिहिसे?
-सुरता कइसे नइ रइही संगी.. पहिली कुर्मी समाज के महाधिवेशन म मुख्यअतिथि के हैसियत ले वो ह छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल के नॉव म विधानसभा भवन ल करे के घोषणा करे रिहिसे.. अउ तहाँ ले दूसर दिन सतनामी समाज के कार्यक्रम म मिनीमाता के नॉव म घोषणा कर दिस.. एकरे सेती कुर्मी समाज अउ सतनामी समाज जबर धरना प्रदर्शन करे रिहिन हें.
-हव जी मोला सब सुरता हे.. अउ इहू सुरता हे के इहाँ के दू प्रमुख व्यक्तित्व के नॉव म दू बड़का समाज ल लड़वाय के उदिम करे के सेती वो मुख्यमंत्री ल छत्तीसगढ़ महतारी ह राजनीतिक रूप ले लतिया दे रिहिसे.. उहें ले वोकर राजनीतिक पतन चालू होय रिहिसे.
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-महर्षि वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड म "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" माने जननी अउ जन्मभूमि ल स्वर्ग ले घलो उँचहा अउ महान कहे गे हवय जी भैरा.
-हव जी कोंदा महूँ अइसने पढ़े रेहेंव.. वोमा भगवान राम ह अइसन कहे हे.
-तब मैं गुनथौं के अभी छत्तीसगढ़ महतारी के मूर्ति ल टोरे के घटना होय रिहिसे, तब वो मन कइसे अचेत सूते रिहिन, जे मन अग्रसेन अउ झूलेलाल के नॉव म बोंबियावत हें?
-सही आय जी.. छत्तीसगढ़ महतारी के अपमान उनला नइ दिखिस अउ जेकर मन के योगदान छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन ले लेके एकर निर्माण अउ सजाए सँवारे म चिटिको नइए वोकर मन बर कुछ भावनात्मक शब्द निकलगे तेकर बर उमियागे हें.. का ए मन वाजिब म छत्तीसगढ़ के निवासी आयँ.. अपन आप ल छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत मानथें.. अउ कहूँ अपन कर्म अउ आचरण ले अइसन साबित नइ करँय त ए मनला छत्तीसगढ़ म रहे के.. इहाँ के उपजे अन्न-जल ल खा-पी के जीए के का अधिकार हे?
-बिल्कुल नइए.. जे मन छत्तीसगढ़ ल मातृभूमि नइ मानँय.. जे मन छत्तीसगढ़ ल महतारी नइ मानँय.. वो मनला इहाँ रहे या जीए के कोनो नैतिक अधिकार नइए.. अइसन मन के कोनो मुलाजा नइ करे जाना चाही.
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-छत्तीसगढ़ जोहार जी भैरा.. आज नवा छत्तीसगढ़ ल बने पचीस बछर होगे.
-हव जी कोंदा.. नवा नक्शा सिरजे के जोहार हे.. फेर हमन जेन उद्देश्य ल लेके छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन तेन ह आज घलो छाहित नइ हो पाय हे.
-कइसे कहिथस संगी.. सरकार तो गजब विकास होय हे कहिके तुतरू बजावत रहिथे.. उँकर पँदोली देवइया रागी मन घलो भारी लाम-लाम गोठियाथें.
-हव जी विकास होय हे.. फेर कटाकट घपटे जंगल मनला उजार के बड़का-बड़का खदान कोड़े म होय हे.. उपजाऊ खेत मनला उजार के उहाँ क्रांकीट के जंगल के रूप म कालोनी मन के बसाय म होय हे.. डोंगरी-पहार मनला उजार के वोकर तरी म लुकाय खनिज संपदा मनला निकाले के बुता म विकास होय हे.. फेर इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता तो आजो चार-धार के रोवत हे.
-हव जी ए बात सही आय.. आज तक भाखा ल संवैधानिक दर्जा नइ मिल पाय हे.. संस्कृति के अलग चिन्हारी नइ बन पाए हे.. अस्मिता के तो कहूँ मेर आरो तक मिले ले नइ धरय.. अउ जब तक ए सब पूरा नइ हो जाय तब तक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के अवधारणा अधूरा ही रइही.. काबर ते छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के नेंव म इही मन प्राथमिकता रिहिसे.. इही सब आस के सेती हमन राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन.
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-काली जेठौनी परब के रतिहा तुमन जुन्ना झेंझरी, झँउहा, टुकना, सूपा जइसन बाँस ले बने जिनिस मन के भुर्री बार के आगी तापेव नहीं जी भैरा?
-हमर पुरखौती परंपरा आय जी कोंदा तापबो कइसे नहीं.. भले अब जाड़ ह पहिली असन पोठ जनावय नहीं, तभो नेंग ल तो करेच हावन.
-हव संगी हमूँ मन आगी तापे के नेंग ल करे हावन.. सियान मन बतावँय के बाँस के आगी म कफ नाशक के जबर गुन होथे.. तइहा बेरा म कोनो लइका ल निमोनिया हो जावय त वोला बाँस के आगी म ही सेंके जावय.. जाड़ के मौसम म रतिहा बेरा बाँस के लकड़ी के आगी के आँच ह अमरित बरोबर गुनकारी होथे कहिके बतावयँ सियान मन.
-अच्छा.. एकरे सेती जेठौनी के रतिहा बाँस ले बने जुन्ना जिनिस मनला बार के भुर्री तापे जाथे कहिदे?
-हव.. अउ हमर कृषि संस्कृति म जेठौनी के रतिहा अँगना म धान अउ कुसियार ल बने निक बानी के सजा के खड़ा करे जाय.. तहाँ ले वोकर सात भाँवर किंजर के लुए के नेंग करे जाय..
-हव.. अउ तोला सुरता हे नहीं.. डोकरी दाई ह जुन्ना बाँस के जिनिस के भुर्री के राख ल सकेल के वोमा अंडी तेल मिंझारय तहाँ ले नवा सूपा आदि मन म वार्निश बरोबर चुपर के सूखो देवय.
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-हमर देश म हर बछर 26 नवंबर के संविधान दिवस मनाए जाथे जी भैरा.
-हव जी कोंदा.. बछर 1949 म 26 नवंबर के भारत गणराज्य के संविधान बन के तइयार होय रिहिसे.. संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर के 125 वाँ जयंती के बेरा म 26 नवंबर 2015 म पहिली बेर भारत सरकार द्वारा संविधान दिवस मनाए गे रिहिसे तब ले अब हर बछर 26 नवंबर के संविधान दिवस मनाए जाथे.
-सही कहे.. अउ का तैं इहू बात ल जानत हावस के संविधान के हिंदी प्रारूप समिति के अध्यक्ष हमर दुरुग के पुरखा घनश्याम सिंह गुप्त जी ह रिहिन हें, जे मन 24 जनवरी 1950 के संविधान के हिंदी प्रति ल डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ल सौंपे रिहिन हें.
-अद्भुत हे संगी.. मतलब भारतीय संविधान के निर्माण म हमर छत्तीसगढ़ के घलो योगदान हे कहिदे.
-संविधान के हिंदी अनुवाद के बेरा के संस्मरण ल साहित्यकार दानेश्वर शर्मा जी ठउका बतावँय- घनश्याम गुप्ता जी हिंदी प्रारूप समिति के जम्मो सदस्य मनला काहँय के तुमन ल हिंदी या आने भाखा म अंगरेजी शब्द के उपयुक्त शब्द नइ मिलही त मोला बताहू.. मैं छत्तीसगढ़ी म वोकर शब्द बता देहूँ.
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-कातिक पुन्नी के दिन गुरु नानक देव जी के प्रकाश परब ल पूरा देश अउ दुनिया के संग छत्तीसगढ़ म घलो आस्था अउ श्रद्धा के संग मनाए गे रिहिसे जी भैरा.. फेर का तैं ए बात ल जानथस के गुरु नानक देव जी जब अमरकंटक ले जगन्नाथपुरी के यात्रा म रहिन त हमर छत्तीसगढ़ म घलो उन दू दिन रूके रिहिन हें?
-ए बात ले तो मैं अनचिन्हार हौं संगी.
-बछर 1506 ई. के बात आय महासमुंद जिला के गाँव गढ़फुलझर म एक पीपर पेंड़ के खाल्हे उन दू दिन रूके रिहिन हें.. ए गाँव ल आजकाल नानकसागर के नॉव ले घलो जाने जाथे.. ए गाँव के करीब पाँच एकड़ जमीन भूमि राजस्व रिकॉर्ड म गुरु नानक देव जी के नॉव म दर्ज हे.
-ए तो सिरतोन अद्भुत बात आय संगी.
-हव.. ए गाँव म लोगन के एकता अउ पवित्रता घलो देखते च बनथे.. गाँव म अभी तक कोनो किसम के लड़ई-झगरा या विवाद देखे ले नइ मिलय, एकरे सेती इहाँ ले आज तक कोनो थाना कछेरी म एफआईआर दर्ज नइ होय हे.
-ताज्जुब के बात हे संगी!
-जेन पीपर के खाल्हे म नानक देव रूके रिहीन हें, उही चौंरा म बइठ के सियान मन लोगन के समस्या के समाधान करथें.. लोगन बताथें के वो चौरा म बइठे ले मन म अद्भुत शांति जनाथे.
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