ताल-तलैये सूख गये, नदियों की भी यही कहानी।
प्यासा पनघट पर बैठा है, भरकर आँखों में पानी।।
महानदी अब रेत उगलती, शिवनाथ सकुचाती है
अरपा-पैरी सांसें मंगतीं, निर्जीव सी गुहराती हैं
मेघदूत तो आते हैं पर, अघाती नहीं है यक्षिणी...
धरती खोदी पाताल सुखाया, सोख लिया जलस्रोतों को
बारिश की कुछ बूंदें आईं, दे दी उसे कल-पुर्जों को
मौसम का फिर दोष है क्या, हमने ही की है नादानी.....
दृश्य प्रलय-सा हुआ उपस्थित, खेतों और खलिहानों में
वृक्ष नहीं अब जीवन पाते, वन-उपवन-बागानों में
हमने खुद ही आग लगाई, छिनी प्रकृति की जवानी....
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 098269 92811
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