महुआ के पतरी म, पसहर के भात।
मिंझर के चुरही, भाजी के छै जात।।
भंइस के दही संग, पाबोन परसाद।
दाई पोता मार के, दिही आसिरबाद।।
महतारी मन लइका खातिर, करे हे उपास।
जुग जुग जिए मोर बेटा, अइसे बिसवास।।
महतारी मन के सदा, सजे रहय सिंगार।
जम्मो झन बर सुग्घर हो, कमरछठ तिहार।।
No comments:
Post a Comment