सुरता...
छत्तीसगढ़ी सांचा म पगे साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा
छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार म जेकर मन के नांव आगू के डांड़ म गिने जाथे, वोमा टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा के नांव अगुवा के रूप म चिन्हारी करे जाथे. उंकर नाटककार के रूप म सबले जादा चिन्हारी हे, काबर ते उन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म सैकड़ों नाटक लिखिन. फेर कविता, कहानी, व्यंग्य लेखन म घलो उंकर वतकेच योगदान हे, जतका नाटक विधा म हे.
एकर मन के छोड़े एक अइसे लेखन के मैं विशेष रूप ले इहाँ चर्चा करना चाहथंव, जेकर कोनो साहित्यिक चर्चा म उल्लेख नइ करे जावय. वो आय, एक हिन्दी के दैनिक अखबार म छत्तीसगढ़ी म सरलग कतकों बछर ले संपादकीय लिखना.
1 नवंबर सन् 2000 के जेन दिन अलग छत्तीसगढ़ राज के घोषणा होइस, उहिच दिन ले उन दैनिक अग्रदूत म छत्तीसगढ़ी म संपादकीय लिखे के चालू कर देइन. वो बखत अग्रदूत प्रेस म संपादकीय लिखे के बुता ल उही मन करत रिहिन हें. उन रोज दू संपादकीय लिखंय, एक राष्ट्रीय स्तर के मुद्दा ऊपर जेला उन हिन्दी म लिखंय, अउ एक क्षेत्रीय स्तर के मुद्दा म जेला उन छत्तीसगढ़ी म लिखंय. अइसन ऐतिहासिक बुता आज तक अउ कोनो आने साहित्यकार मन अभी तक नइ कर पाए हें.
1 फरवरी सन् 1926 म दुरुग जिला के गाँव लिमतरा के शिक्षक पिता श्यामलाल जी के घर जन्मे टिकेन्द्रनाथ जी लइकई च ले पढ़ाकू अउ होशियार रहिन. उन पहिली खाद्य विभाग म सरकारी अधिकारी रिहिन. फेर वोला छोड़के लेखन (पत्रकारिता) ल अपन रोजगार के माध्यम बना लेइन. इही नवा रोजगार के ठीहा म मोर भेंट उंकर संग होइस दैनिक अग्रदूत प्रेस म. नवा नवा मैं अग्रदूत म सन् 1982 के आखिर म काम करे (सीखे खातिर कहना जादा ठीक रइही) गे राहंव, वो बखत अग्रदूत ह साप्ताहिक निकलय, दू-चार महीना के पाछू सन 1983 म वो ह दैनिक होइस. तब महूं अलवा जलवा दू चार लाईन लिखे के उदिम करत रहंव अउ उहाँ के साहित्यिक संपादक, जेन अंचल के प्रसिद्ध व्यंग्यकार घलोक रिहिन आदरणीय विनोद शंकर शुक्ल जी, उनला देखावंव. उन वोमा कुछ जोड़ सुधार के छाप देवंय. मैं गदगद हो जावंव.
विनोद शंकर शुक्ल जी अउ मैं अग्रदूत प्रेस के ऊपर मंजिल म बइठन, तेकर सेती टिकरिहा जी संग मोर खास पहचान नइ हो पाए रिहिसे. काबर ते वोमन नीचे के कमरा म बइठंय. तब उहाँ संपादकीय आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी लिखंय. उन मोर साहित्यिक अभिरुचि ल देख के भारी मया करंय. एक दिन त्रिवेदी जी के कुरिया म बइठे रेहेंव, तभे खादी के झक कुरता पैजामा पहिर पातर देंह के सियान उहाँ आइन अउ त्रिवेदी जी ल अपन लिखे कागज ल देखाइन. त्रिवेदी जी वोमन ल कुर्सी म बइठे बर कहिन. अउ मोर डहर देख के पूछिन, तैं एमन ल जानथस का? त्रिवेदी जी मोर संग छत्तीसगढ़ी म गोठियाए के कोशिश करंय. तब तक मैं सिरतोन म टिकरिहा जी संग विशेष परिचित नइ होए रेहेंव. तब त्रिवेदी जी बताइन के ये छत्तीसगढ़ी के बड़का साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी आंय. मैं जोहार पैलगी करेंव.
बाद म तो तहाँ ले रोज जोहार पैलगी होवय. फेर नीचे के कमरा म बइठंय तेकर सेती जादा गोठ बात नइ हो पावय. कुछ दिन के बाद अग्रदूत के भोपाल संस्करण चालू होइस, अउ आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी ल संपादक बना के भोपाल भेज दिए गइस, तेकर बाद फेर संपादकीय लिखे के जवाबदारी टिकरिहा जी के ऊपर आगे, तब टिकरिहा जी के ऊपर के संंपादकीय कमरा म अवई बाढ़गे, अउ एकरे संग मोरो उंकर संग मेल जोल अउ गोठ बात बाढ़गे. हमन एके समाज के होए के सेती घर परिवार गाँव गंवई के घलो गोठ करे लगेन. उंकर हांडीपारा वाले घर आना जाना करे लगेंव, उहू मन मोर संजय नगर वाले घर पधारिन. इही बीच उन मोला छत्तीसगढ़ी म लेखन करे खातिर प्रेरित करे लागिन. तब मैं हिन्दी म ही अलवा जलवा लिखत रेहेंव. उन बताइन के उहू मन पहिली हिन्दी म ही जादा लिखंय. बाद म डा. खूबचंद बघेल के प्रेरणा ले छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखे के चालू करिन. उन बतावंय के डा. खूबचंद बघेल उंकर हांडीपारा वाले घर म आवंय, अउ उंकर सियान संग बइठ के छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के संबंध म गोठ बात करंय. मैं वोमन ल ध्यान लगाके सुनंव. रायपुर के तात्यापारा वाले कुर्मी बोर्डिंग वो बखत स्वाधीनता आन्दोलन अउ वोकर बाद छत्तीसगढ़ राज आन्दोलनकारी मन के एक प्रकार के ठीहा रिहिस, जिहां सब जुरियावंय अउ आन्दोलन ल कइसे गति दिए जाय, एकर ऊपर चर्चा करंय.
टिकरिहा जी बतावंय के उहू मन एकर मन के चर्चा म शामिल होवय. उंकर घर उहिच तीर हे, तेकर सेती आए जाए म सोहलियत परय. वोकरे मन के संगत के सेती मोर छत्तीसगढ़ी म छोटे छोटे नाटक लिखे के चलन बाढ़िस, अइसे बतावंय. छत्तीसगढ़ के दुख पीरा, समस्या, समाजिक असमानता जम्मो डहर कलम रेंगे लागिस.
मोला उन साप्ताहिक अग्रदूत के जुन्ना फाइल मन ल घलो देखावंय. वोमा के हर अंक म टिकरिहा जी के कहानी, नाटक, व्यंग्य या कविता आदि कुछू न कुछू जरूर छपे राहय, अइसे एको अंक नइ राहय, जेमा टिकरिहा जी के रचना नइ राहत रिहिस होही. वोमन एक छत्तीसगढ़ी फिल्म 'मयारु भौजी' म कथा, पटकथा अउ संवाद लेखन घलो करे रिहिन.
टिकरिहा जी भारी संकोची स्वभाव के घलो रिहिन. उन लिखंय पढ़य तो अबड़, फेर कोनो कार्यक्रम म खासकर के मंच म जवई ल भावत नइ रिहिन. महूं ल कई बखत काहय- गोष्ठी फोष्ठी म झन जाए कर समय के बर्बादी भर आय कहिके. हाँ उन आकाशवाणी जरूर जावंय. उहाँ ले उंकर कहानी अउ नाटक बहुत प्रसारित होवय. वोकर मन के कहे म महूं एक पइत अपन तीन चार छत्तीसगढ़ी कविता ल लिफाफा म भर के आकाशवाणी भेज देंव. थोरके दिन म उहाँ ले मोर जगा चिट्ठी आगे, के फलाना दिन तोर कविता के प्रसारण होही अतका बजे तैं आकाशवाणी पहुँच जाबे कहिके.
वो बखत आकाशवाणी रायपुर के रतिहा प्रसारित होवइया चौपाल कार्यक्रम म छत्तीसगढ़ी कविता, कहानी आदि के प्रसारण घलो होवय. उहाँ बरसाती भैया (केशरी प्रसाद वाजपेयी जी), गुमान सिंह जी आदि चौपाल के उद्घोषक अउ प्रस्तुतकर्ता रहिन. मोला प्रसारण कमरा म उन अपन संग लेगिन. कार्यक्रम चालू होइस. बीच म मोला कविता पाठ खातिर आमंत्रित करिन. तब कार्यक्रम के सीधा प्रसारण होवय. तुमन बोलत जावव, अउ वोती प्रसारित होवत जाही. अब तो पहिली ले रिकार्डिंग कर लेथें, तेकर बाद फेर पाछू प्रसारित करथें.
टिकरिहा जी ककरो कार्यक्रम म भले नइ जावत रिहिन हें, फेर मोर दू बड़का कार्यक्रम म उन जरूर गेइन. पहिली बार मोर द्वारा प्रकाशित संपादित छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन जेकर 9 दिसंबर 1987 के कुर्मी बोर्डिंग रायपुर म विमोचन होए रिहिसे. अउ दूसर मोर पहिली आडियो कैसेट 'लहर' के विमोचन जेन कुर्मी समाज के महाधिवेशन जेन पाटन क्षेत्र म होए रिहिसे उहाँ. वइसे उंकर घर ले दू कदम के दुरिहा म छत्तीसगढ़ी समाज कार्यालय म घलो हमर मन के साहित्यिक बइठकी, जेन साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी के संयोजन म होवय, तेनो म संघर जावंय, फेर उन सिरिफ श्रोता के भूमिका म रहंय.
टिकरिहा जी वइसे तो छोटे बड़े सैकड़ा भर के पुरती नाटक लिखिन, वोमा दू चार बड़का नाटक घलो रिहिस. हमन उंकर एक बड़का नाटक 'गंवइहा' के मंचन रायपुर के रंगमंदिर म 1 जनवरी 1991 म करे रेहेन. पूरा तीन घंटा के प्ले रिहिसे. एला लोगन के भारी तारीफ मिलिस, त पाछू फेर भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा आयोजित लोक कला महोत्सव म घलो प्रस्तुत करे रेहेन.
गंवइहा नाटक के निर्देशन ल राधेश्याम बघेल अउ राकेश चंद्रवंशी करे रिहिन, एकर मुख्य संयोजक रिहिस पूरन सिंह बैस जी. ए नाटक के जम्मो गीत मनला मैं लिखे रेहेंव, जेला बोरिया गाँव के कलाकार संगवारी गोविन्द धनगर, जगतराम यादव, खुमान साव आदि मन के संग मिलके संगीत बद्ध घलो करे रेहेन. एकर मुख्य पात्र म राधेश्याम बघेल, विष्णु बघेल, पूरन सिंह बैस, हरिश सिंह, संदीप परगनिहा, इंद्रकुमार चंद्रवंशी, अमित बघेल, राकेश वर्मा, मंजू, अंजू टिकरिहा, चंद्रकांता टिकरिहा, रमादत्त जोशी, टाकेश्वरी परगनिहा, साधना महावादी आदि बहुत झन कलाकार साथी रिहिन. ' गंवइहा' के रंगमंदिर म मंचन के पाछू इही मंच म आदरणीय टिकरिहा जी के आयोजन समिति डहार ले सम्मान करे गिस. मोर सौभाग्य आय के उंकर स्वागत थारी ल धरे के मुही ल अवसर मिलिस.
7 अक्टूबर सन् 2004 के दिन ल मैं अपन जिनगी म कभू नइ भुलावंव. तब मैं प्रेस के काम ल छोड़ के अपन खुद के रिकार्डिंग स्टूडियो चलावत राहंव. दिन भर इहें बइठंव, काबर ते चारों मुड़ा के कलाकार अउ साहित्यकार मन इहें मोर जगा आ जावंय, त मोला ककरो संग भेंट करे बर कहूँ जाए के जरूरते नइ परय. फेर वो दिन जाने कइसे मोला अपन स्टूडियो म बइठे के मने नइ होइस. तेकर सेती मैं उठाएंव गाड़ी अउ शहर कोती रेंग देंव. अचानक अग्रदूत प्रेस जाए के मन होइस, गुनेंव अबड़ दिन होगे हे, वोती गे, चलो जुन्ना संगवारी मन संग भेंट कर लिया जाए.
मैं सीधा अग्रदूत प्रेस जेन वो बखत मालवीय रोड म रिहिस उहाँ चल दिएंव. अंदर घुसरेंव त उहाँ के केशियर वर्मा जी तीर ठाढ़ हो गेंव. तब उन बताइन के टिकरिहा जी तो अब हमर बीच म नइ रिहिन. मैं कइसे गोठ करथव वर्मा जी कहेंव, त उन बताइन, अभी मुकेश के फोन आए रिहिसे. मुकेश, टिकरिहा जी के छोटे मंझला बेटा आय, वो बखत उहू ह अग्रदूत प्रेस म काम करत राहय.
वर्मा जी मोला कहिस के मैं मुकेश ल बोल दे हंव अंतिम संस्कार के पूरा व्यवस्था प्रेस डहार ले होही, तुमन कुछू लेहू झन कहिके. वर्मा जी (तब वोमन घलो मोला वर्मा जी ही काहंय) तुमन बांस टाल जावव न उहाँ अंतिम संस्कार के जम्मो समान मिल जाथे, वोला ले के रिक्शा म जोर के हांडीपारा उंकर घर अमरा देवव.
मैं वर्मा जी के प्रेस डहार ले दे पइसा ल धरेंव अउ बांस टाल चल देंव. वोती वर्मा जी ह मुकेश ल बता दे राहय के सुशील वर्मा (भोले) ह अंतिम संस्कार के सब समान लेके आवत हे, तुमन बाकी सब तैयारी ल कर के राखव. मैं सब समान ल धर के हांडीपारा वाला घर पहुंचेंव तब तक जम्मो नता रिश्ता अउ शहर के जम्मो पत्रकार साहित्यकार मन उहाँ पहुँचगे राहंय. तहाँ उनला अंतिम बिदागरी दे के काम चालू होगे.
ए कइसे अजीब संयोग आय के जे आदरणीय टिकरिहा जी मोला छत्तीसगढ़ी लेखन खातिर रद्दा बताइन, उंकरे अंतिम बिदागरी के समान ल मैं अपन हाथ ले लेके गेंव. उंकर सुरता ल सादर नमन.. दंडासरन पैलगी.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
Wednesday, 10 February 2021
सुरता.. टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment