Sunday, 14 February 2021

'मयारु माटी' के प्रकाशन... सुरता..

सुरता...
प्रकाशन 'मयारु माटी' के.....
  अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ी भाखा म मासिक पत्रिका निकाले के बारे म सोचना, जब लोगन रायपुर जइसन शहर म छत्तीसगढ़ी गोठियाए तक म लजावंय. फेर जेन मनखे चेतलग होए के संग छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म जुड़ जाय, अउ वोकरेच संग छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के रंग म रंग जाय, तब तो अइसन सोचना कोनो किसम के अचरज वाले बात नइ हो सकय.
   सिरतोन आय, तब वो बखत हमन ल छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के छोड़ अउ कुछू नइ सूझत रहय. बस इही सोच म दिन पहा जावय के कइसनो कर के छत्तीसगढ़ी के सेवा कर लेतेन. वइसे तो मैं छात्र जीवन ले ही अलवा जलवा लिख के खुदे पढ़ के खुश हो जावत रेहेंव, फेर सन् 1982 के आखिर म जब अग्रदूत प्रेस म काम करे बर गेंव, अउ 1983 ले जब अग्रदूत ह दैनिक के रूप म निकले लगिस, त उहाँ के साहित्य संपादक विनोद शंकर शुक्ल जी ल मोर छोटे मोटे लिखे रचना मनला देखावंंव उन वोमा कुछू जोड़ सुधार के छाप देवंय. उही म मोर छपे रचना ल पढ़ के छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के सुशील यदु अउ रामप्रसाद कोसरिया जी मोर संग मिले बर अग्रदूत प्रेस आइन. तहाँ ले एकरे मन संग चारों मुड़ा के छत्तीसगढ़ी लेखक मन संग जुड़े बर धर लेंव. संग म पत्रकारिता म घलो जाना होगे. फेर आगू चलके अइसन संयोग बनिस के अपन खुद के प्रिंटिंग प्रेस घलो चालू कर डारेन. मन तो छत्तीसगढ़ी म एक पत्रिका निकाले के रहय, तेकर सेती पंजीयक, दृश्य एवं प्रचार निदेशालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नई दिल्ली के कार्यालय म पत्रिका के रजिस्ट्रेशन खातिर चार-पांच अलग अलग नांव लिख के पठो देंव. महीना भर के बुलकते उहाँ ले मोर जगा चिट्ठी आगे, जेमा 'मयारु माटी' के नांव ले तीन महीना के भीतर पत्रिका चालू करे के निर्देश रिहिस हे.
   मैं तुरते प्रकाशन के प्रक्रिया म भीड़ गेंव. संग म चारों मुड़ा के छत्तीसगढ़ी लिखइया-पढ़इया मन ल सोर दे लगेंव. महीना भर के भीतर पूरा छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत म एकर सोर बगरगे. कतकों झन छत्तीसगढ़ ले बाहिर रहइया मन के घलो पता-ठिकाना के आरो कराइन. उहू मनला, पाती भेजेंव.
    'मयारु माटी' के पहला अंक खातिर चारों मुड़ा ले रचना अउ शुभकामना आए लागिस. फेर वोमन म पद्य रचना ही जादा रहय. मैं शुरू ले पत्रकारिता ले जुड़े रेहे के सेती गद्य रचना के जादा मयारुक रेहेंव, एकरे सेती गद्य के विविध रूप एकर प्रकाशन खातिर चाहत रेहेंव. कतकों झन ल जोजिया के कहानी, नाटक, व्यंग्य, मुंहाचाही, आनी-बानी के लेख आदि लिखे बर काहंव. पहिली के एक दू अंक म तो महिंच ह कतकों किसम के रचना अलग अलग नांव म लिखंव, कतकों झन के हिन्दी रचना मन के अनुवाद घलो कर देवंव. वोकर बाद फेर भरपूर रचना आए लागिस, तब मोला वोमा छांट- निमार करे बर लग जावय.
    पहला अंक के छपई लगभग पूरा होए ले धर लिए रिहिसे, तब एकर विमोचन खातिर चर्चा होए लागिस. विमोचन कार्यक्रम म मैं कोनो नेता- फेता बलाए के पक्ष म नइ रेहेंव. आदरणीय हरि ठाकुर जी घलो कहिन- सिरतोन आय बाबू, अइसन पवित्र काम के शुरुआत कोनो पवित्र हाथ ले होना चाही. वो बखत मोर सबले बड़े सलाहकार आदरणीय टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी रहिन, वोमन सुझाव देइन के चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल बलाए जाए. मोला उंकर बात जंचगे.
   मैं तो चाहते रेहेंव के जे मन के छत्तीसगढ़ी भाखा संस्कृति के बढ़वार म योगदान हे, उही मनला पहुना के रूप म बलाए जाय. रामचंद्र देशमुख जी के संग सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंग चंद्राकर जी ल घलो बलाए के बात तय होगे.
    छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच के दूनों पुरखा मन ले अनुमति ले खातिर उंकर घर जाए के कारज ल मैं टिकरिहा जी संग पूरा करेंव. इतवार के दिन दूनों झन रायपुर ले रेल म चढ़के दुर्ग पहुंचेन. उहाँ ले पहिली बघेरा जाए के गुनेन, लहुटती म दुर्ग तो फेर आना हे, त महासिंग दाऊ इहाँ हमा लेबो केहेन.
    बघेरा के पहुंचत ले बेरा बने चढ़गे रहय. टिकरिहा जी दूनों हमन देशमुख जी के घर पहुंचेन. वतका बेरा वोमन अकेल्ला कुर्सी म बइठे राहंय. उंकर आगू के टेबल म डाक्टर मन के कान म अरझा के मरीज के देंह ल टमड़े के जिनिस माढ़े राहय. तब तक मैं नइ जानत रेहेंव के वोमन लकवा के मरीज मन के इलाज घलो करथें कहिके.
  उन टिकरिहा जी ल देखते तुरते कुर्सी ले खड़ा होके अगवानी करीन अउ तीर म माढ़े कुर्सी म बइठे बर कहिन. महू ल बइठे के इशारा करीन. वोकर बाद टिकरिहा जी उंकर जगा मोर परिचय बताइन, संग म छत्तीसगढ़ी म मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' निकाले के बात घलो बताइन. देशमुख जी बड़ा खुश होइन. टिकरिहा जी उनला विमोचन कार्यक्रम खातिर पहुना के रूप म पहुंचे खातिर पूछिन, त उन तुरते तैयार होगें. तहांले उंहचे दिन बादर घलो धरा डारेन के 9 दिसंबर 1987 दिन इतवार के संझा 5 बजे तात्यापारा रायपुर के कुर्मी बोर्डिंग म विमोचन कार्यक्रम ल राखबो कहिके.
    दाऊ जी फेर पूछिन के अउ कोन कोन अतिथि रइहीं कहिके, त हमन बताएन के महासिंग चंद्राकर जी ल घलो बलाए खातिर सोचे हावन, अभी इहाँ ले लहुटती म उंकर जगा अनुमति ले खातिर जाबो कहिके, त उन कहिन के ठीक हे, अच्छा बात हे, फेर मैं चाहथंव के दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी ल घलो बला लेहू, मोर नांव बताहू त उन तुरते तैयार हो जाहीं. हमन हव कहिके वापस दुर्ग लहुटेन. तहाँ दाऊ महासिंग चंद्राकर जी के इहाँ गेन. उहू मन कार्यक्रम म आए खातिर अनुमति दे देइन.
    रायपुर आए के बाद नेवता पाती छापे अउ वोला चारों मुड़ा बगराये के बुता म भीड़गेन. 9 दिसंबर के बिहनिया ले जतका हमर संगी साथी राहंय सबो झनला अलग अलग बुता खातिर जिम्मेदारी सौंप देन. फलाना फलाना काम फलाना ल करना हे, अउ वोकर बाद संझा 4 बजे तक जम्मो झनला कुर्मी बोर्डिंग पहुंच जाना हे.
     वाजिब म संझा 4 बजे तक हमर जम्मो संगी कुर्मी बोर्डिंग पहुंचगें. तहांले उहाँ के ऊपर वाले सभा कक्ष म विमोचन के तैयारी होए लागिस. रायपुर के जतका छत्तीसगढ़िया साहित्यकार, भाखा प्रेमी अउ मयारुक लोगन रहिन सब उहाँ पहुंचगे राहंय. पहुना मन म सबले पहिली दाऊ महासिंग चंद्राकर जी लाल रामकुमार सिंह संग पहुंचीन, तेकर पाछू कुमार साहू जी पधारिन. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी घलो थोरकेच बेर म पहुंच गिन.
   उंकर मन के आवत ले हमर मन के सबो तैयारी होगे राहय. उंकर पहुंचते डा. सुखदेव राम साहू 'सरस' जी कार्यक्रम के संचालन म लगगें. माता सरस्वती के छापा म फूल माला अउ हूम धूप के पाछू सबो पहुना मन के फूल माला ले स्वागत होइस. 'मयारु माटी' के मुंह उघरउनी (विमोचन) होइस, तेकर पाछू पहुना मन के आशीर्वचन होइस. तहांले उहाँ पहुंचे जम्मो झनला मयारु माटी के प्रति बांटे गिस.
   पहला अंक ल देखे के बाद लोगन के भारी दुलार मिले लागिस. अपन अपन ले सब रचनात्मक सहयोग करे लागिन. जे मन गद्य रचना म अच्छा सहयोग करीन उंकर मन के नांव मैं ए जगा जरूर लेना चाहहूं- श्यामलाल चतुर्वेदी, हरि ठाकुर, डॉ. बलदेव साव, लक्ष्मण मस्तुरिया, रामेश्वर वैष्णव, चेतन आर्य, राजेश्वर खरे, हेमनाथ वर्मा 'विकल', तीरथराम गढ़ेवाल, मुकुंद कौशल, डॉ. महेंद्र कश्यप 'राही', डॉ. व्यास नारायण दुबे, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्रा, डॉ. निरूपमा शर्मा आदि मन के सरलग सहयोग मिलय. इंकर मन के छोड़े डॉ. विमल पाठक, नारायण लाल परमार, लाला जगदलपुरी, जीवन यदु 'राही' के संगे संग अबड़ झन जुन्ना अउ नवा लिखइया मन एमा अलग अलग स्तंभ के अन्तर्गत छपत राहंय.
     मयारु माटी के सरलग प्रकाशन म तब आर्थिक समस्या घलो आये लागिस, जइसे के जम्मो साहित्यिक पत्रिका मन के आगू म आथे. एमा जादा फोरियाए के जरूरत नइए, काबर ते प्रकाशन के कारज ले जुड़े जम्मो मनखे एकर पीरा ल जानथें.
  पंजीकृत पत्रिका के प्रकाशन म ए नियम हे, के छै महीना लगातार प्रकाशन के बाद सरकारी सहायता विज्ञापन के रूप म मिले लगथे. आज अलग छत्तीसगढ़ राज बने के बाद ए ह बहुत आसान होगे हे वोकरे सेती इहाँ कतकों छोटे बड़े पत्र पत्रिका आज देखे बर मिल जाथे. फेर वो बखत हमन संयुक्त मध्यप्रदेश के अन्तर्गत राहत रेहेन, तेकर सेती जम्मो जिनिस खातिर भोपाली मन के मुंह ताकना परय. वोमन तो छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के नांव सुनते बिदके बर धर लेवंय, अंगरा कस गंजा जावंय. अइसे म भला सरकारी सहयोग कइसे मिले पातीस, सोचे के लाइक बात आय.एक दू छत्तीसगढ़िया नेता मन भोपाल ले सहयोग करवा देबो काहंय, फेर नेता मन के बात ह बाते बन के रहि जाय. अइसे तइसे करत कुल 13 अंक करीब डेढ़ बछर अकन म निकाल पाएन तहांले आगू नइ सक पाएन.
-सुशील वर्मा 'भोले'
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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