Thursday, 2 September 2021

ठेठरी खुरमी अउ जोहार (संशोधित)

मूल संस्कृति के भावनात्मक रूप आय..
        ठेठरी-खुरमी अउ जोहार
   छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग म प्रचलित संस्कृति म वइसे तो किसम-किसम के रोटी-पिठा बनाए जाथे, फेर ठेठरी अउ खुरमी के अपन अलगेच महत्व हे। इहां के जम्मो तीज-तिहार म इंकर कोनो न कोनो रूप म उपयोग होबेच करथे। एकर असल कारन का आय? सिरिफ खाए-पीए के सुवाद के अउ कुछू बात?
   असल म ए इहां के मूल आध्यात्मिक संस्कृति के भावनात्मक रूप आय, जेला हम भुलावत जावत हन। ये बात ल तो हम सब जानथन के छत्तीसगढ़ मूल रूप ले बूढादेव के रूप म शिव परिवार के संस्कृति ल जीने वाला अंचल आय। एकरे सेती इंकर हर रूप म इहां भावनात्मक दर्शन देखे ले मिलथे।
    इहां एक "जोहार" शब्द के प्रचलन हे। हमला कोनो ल नमस्कार करना हे, मेल-भेंट करना हे, त वोला 'जोहार' कहिथन। ए "जोहार" का आय? इहू ह इहां के मूल संस्कृति के एक भावात्मक रूप आय, जइसे के ठेठरी-खुरमी आय।
    जोहार ह "जय" अउ "हर" शब्द के मेल ले बने हे, जेकर मूल भाव भगवान शंकर के जयकार करना होथे। "हर" शिव जी ल ही कहे जाथे, ए बात ल आप सब जानथव। वोकरे सेती 'जय' अउ 'हर' के मेल ले बने ए शब्द आय 'जोहार'। अभी एला बिगाड़ के लोगन "जय जोहार" बोले ले धर लिए हें, जे ह असल म एकर गलत रूप आय। संबोधन खातिर 'जोहार' शब्द अपनआप म पूर्ण हे, वोमा अलग से 'जय' जोड़े के जरूरत नइए.
     ठेठरी अउ खुरमी के आकार घलो ह अइसने इहां के मूल आध्यात्मिक संस्कृति के भावनात्मक रूप ल उजागर करे के माध्यम आय। ठेठरी ह जिहां शक्ति के प्रतीक स्वरूप रूप आय त खुरमी ह शिव के। आप मन जानत हवव के पूजा-पाठ म खासकर अभी अवइया पोरा-तीजा तिहार म जब ठेठरी-खुरमी चढ़ाए जाथे, त ठेठरी जेन जलहरी के आकार म बने रहिथे वोकर ऊपर शिव प्रतीक (लिंग)  के रूप म बने खुरमी (मुठिया वाला) ल रखे जाथे । तब दूनों मिल के एक पूर्ण शिव लिंग (जलहरी सहित वाला) बनथे।
    पहिली खुरमी ल मुठिया के आकार म बनाए जाय, जे ह शिव प्रतीक के रूप होय अउ खुरमी जेला जलहरी के  रूप म बनाए जाय वो ह शक्ति के प्रतीक होय। फेर अब बेरा के संग हम अपन मूल आध्यात्मिक संदर्भ ल भुलावत जावत हन। आने-आने क्षेत्र ले आए लोगन अउ उंकर चलन के मुताबिक रेंगई म अपन मूल पहचान अउ स्वरूप ले भटकत जावत हन। एकरे सेती ठेठरी अउ खुरमी ल घलो जलहरी अउ मुठिया के आकार देना छोड़ के, सिरिफ खाना-खजेना मान के आनी-बानी के रूप अउ आकार म बनाए लगे हन।
     जरूरी हे, अपन परंपरा अउ संस्कृति के मूल भाव ल जानना, तभे हमर अस्मिता के मानक अउ शुद्ध रूप बांचे रहि पाही। हमर छत्तीसगढि़या होए के सांस्कृतिक चिन्हारी तभे सुरक्षित रहि पाही।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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