Monday, 8 August 2022

लोक परंपरा 'नंगमत'

लोक परंपरा के मोहक रूप 'नंगमत'
    हमर छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक विविधता के अद्भुत दर्शन होथे. इहाँ कतकों अइसन परब अउ परंपरा हे, जेला कोनो अंचल विशेष म ही बहुतायत ले देखे बर मिलथे. हमर इहाँ एक 'नरबोद' परब मनाए जाथे, एला जादा कर के वन्यांचल क्षेत्र म ही जादा कर के देखे जाथे. ठउका अइसने 'नंगमत' के परंपरा घलो हे, जेला क्षेत्र विशेष म ही बहुतायत ले देखे जाथे.
    'नंगमत' के आयोजन ल जादा करके नागपंचमी के दिन ही करे जाथे. वइसे कोनो-कोनो गाँव म एकर आयोजन ल हरेली के दिन घलो कर लिए जाथे. जानकर मन के कहना हे, बरसात के दिन म सांप-डेड़ू जइसन जहरीला जीव-जंतु खेत-खार आदि म जादा कर के निकलथे, अउ ठउका इही बेरा खेती किसानी के बुता घलो भारी माते रहिथे, अइसन म लोगन ल खेत-खार जाएच बर लागथेच एकरे सेती उंकर मनके प्रकोप ले बांचे खातिर एक प्रकार के पूजा-बंदना करे जाथे. उंकर मनके जस गीत गा के सुमिरन करे जाथे.
    ग्रामीण संस्कृति म बइगा कहे जाने वाला मंत्र साधक के अगुवाई म नंगमत के आयोजन होथे. एमा बइगा ह अपन अउ मंत्र साधक चेला मन संग मिलके नंगमत के जोखा मढ़ाथे. बताए जाथे, जे बइगा ह सांप चाबे के जहर ल उतारे म सक्षम होथे, तेनेच ह ए आयोजन के अगुवाई करथे, अउ ए आयोजन म जेन चेला के सबो चेला मन म श्रेष्ठ प्रदर्शन करथे, वोला ए सांप के जहर उतारे वाले बुता म या कहन बइगई करे के अनुमति देथे. बाकी चेला मनला घलो अनुमति होथे, फेर वो मनला सिरिफ छोटे-मोटे फूक-झाड़ के ही.
    इहाँ ए बात जाने के लाइक हे, हमर छत्तीसगढ़ म हरेली परब के दिन अपन-अपन मांत्रिक शक्ति के पुनर्जागरण या पुनर्पाठ करे के परंपरा हे. इही दिन गुरु-शिष्य बनाए के परंपरा हे, जेला इहाँ पाठ-पिढ़वा देना या लेना कहे जाथे. ठउका अइसने च नंगमत के आयोजन ले जुड़े परंपरा घलो हे.
    वइसे नंगमत के आयोजन ल सांप मनके पूजा-सुमरनी अउ  पुराना पीढ़ी द्वारा नवा पीढ़ी ल अपन परंपरा के पोषण अउ आगू ले जाए के जिम्मेदारी खातिर प्रेरित करे के उद्देश्य खातिर घलो करे जाथे. कतकों लोगन खातिर ए ह सिरिफ मनोरंजन के माध्यम होथे, तेकर सेती वो मन सावन महीना के लगते एकर आयोजन के जोखा म लग जाथें. एकर मनोरंजक रूप के आनंद ले खातिर आस-पास के गांव वाले मन घलो गंज संख्या म सकलाथें.
    नंगमत के शुरुआत गाँव के ठाकुर देव, मेड़ो देव अउ आने जम्मो ग्राम्य देवता मन के संगे-संग अपन-अपन ईष्ट देवता मनके पूजा-सुमरनी के साथ होथे. जइसे गौरा-ईसरदेव परब म कोनो विशेष जगा ले पवित्र माटी लान के चौंरा बनाए जाथे, ठउका अइसने च एकरो खातिर नाग मनके रेहे के ठउर जेला भिंभोरा या बांबी आदि कहे जाथे, उहाँ ले माटी लान के एकरो खातिर एक चौंरा बनाए जाथे, जेमा पूजा-अर्चना करे जाथे. जस गीत गाने वाला सेउक मन नाग देवता के मांदर-ढोलक,   झांझ-मंजीरा संग जस गान करथें.-

गुरुसर गुरुसर गुर नीर गुरु साहेर शंकर
गुरु लक्ष्मी गुरु तंत्र मंत्र गुरु लखे निरंजन
गुरु बिना हुम ला हो काला रचे हो नागिन

गुरु के आवत जनि सुन पातेंव
चौकी चंदन पिढ़ुली मढ़ातेंव
लहुर छोड़ के अंगना बहारतेंव
रूंड काट मुंड बइठक देतेंव
जिभिया कलप के हो....

    इही बीच बइगा ह अपन मंत्र शक्ति के प्रयोग ले इच्छित लोगन के ऊपर नाग या अन्य सांप मनके आव्हान करथे, जेकर ले उनमा उंकर आगमन होथे, तहाँ ले जेन सांप उंकर ऊपर आए रहिथे, वोकरे अनुसार वोमन झूमथें-नाचथें, अंटियाथें-फुफकारथें, भुइयां म घोनडइया मारथें. इही बेरा ह देखइया मन बर मोहनी हो जाथे. एक निश्चित बेरा के बाद वोकर मन के शरीर ले वो सांप ल उतारे के परंपरा ल पूरा करे जाथे.
    आखिर म वो जगा सकलाय लोगन ल परसाद बांटे जाथे. ए परसाद म नांगजरी के विशेष महत्व होथे. उहू ल लोगन ल अउ आने परसाद संग संघार के दिए जाथे. एला कोनो भी बिखहर सांप के जहर उतारे बर रामबाण माने जाथे. ए नांगजरी ल बइगा ह विशेष पूजा-पाठ कर के लाने रहिथे. हमन ल बताए जाय, रिंगनी पेंड़ के जड़ ल कोनो निश्चित दिन म निमंत्रण देके, रतिहा म पूजा-पाठ कर के लाने जाथे. नंगमत के परंपरा ल पूरा करे के बाद जेन चेला ल विशिष्ट रूप ले मंत्र दीक्षा दिए जाथे, वोला कहूँ जगा ले भी सांप चाबे के जानकारी मिलथे, उहाँ जाना जरूरी होथे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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