एक ले जादा परब अउ संदर्भ के सेती होवत हे भरम...
आज इंटरनेट के माध्यम ले सोशलमीडिया के चलन संग कतकों अइसन परब अउ उंकर मनले जुड़े संदर्भ मन के आने-आने जुड़ाव देखे बर मिलत हे. एकेच दिन म दू अलग अलग परब के जुड़ना ह सिरिफ संयोग के बात आय, फेर हमर मन के अज्ञानता अउ दूसर मनके देखे बताए संदर्भ ह लोगन म भरम के बीजा बोवत हे. एकर सेती लोगन आपस म ही बहसबाजी अउ तर्क वितर्क करे बर धर लिए हें.
आवव छत्तीसगढ़ ले जुड़े कुछ अइसने परब मन के मूल स्वरूप अउ आज लोगन ल देखाए जावत आने स्वरूप ल थोरिक टमड़ के देखथन.
अभी हमन कमरछठ परब मनाए हावन. एला आजकल हलषष्ठी के रूप म बताए जावत हे. आज ले दस पंदरा साल पहिली तक हमन ए हलषष्ठी नाम ल सुने तक नइ रेहेन. छत्तीसगढ़ पुरखौती बेरा ले कमरछठ ही मनावत अउ सुनत आए हे. कमरछठ जेन संस्कृत भाषा के 'कुमार षष्ठ' के अपभ्रंश ले बने शब्द आय. ए ह कुमार अर्थात कार्तिकेय आय. पूरा देवमंडल म कार्तिकेय ल ही कुमार कहे जाथे. एकरे सेती आज के दिन महतारी मन उंकर माता पिता के सगरी बनाके पूजा करथें. तेमा उंकरो लइका मन कार्तिकेय जइसे श्रेष्ठ, योग्य अउ दीर्घायु हो सकय. फेर सोशलमीडिया के संगे-संग अउ आने मीडिया मन के माध्यम ले अन्य प्रदेश ले अवइया ग्रंथ अउ लोगन के बताए बात के सेती एला बलराम जयंती के रूप म प्रचारित करे जाय लगे हे. एक बात तो आप मन स्पष्ट जान लेवव, इहाँ के मूल निवासी समाज ह आदिकाल ले जेन परब ल जीयत आए हे, वो ह बलराम ऊपर आधारित तो बिल्कुल नइ हो सकय.
अभी अवइया महीना म 'दशहरा' अवइया हे. इहू म अइसने झिंकातानी असन बात हो सकथे. काबर ते 'दंसहरा' ल विजयादशमी के रूप म ही प्रचारित करे जाथे. असल म दशहरा अउ विजयादशमी दू अलग अलग पर्व आय, जेन हमर मनके अज्ञानता के सेती गड्डमड्ड होके एक होगे हे. विजयादशमी ल सबो जानथें. भगवान राम द्वारा आततायी रावण ऊपर विजय प्राप्त करे के परब आय. फेर दशहरा ह असल म 'दंसहरा'आय. दंस अर्थात विष अउ हरा अर्थात हरण के परब. मतलब ए ह विषहरण के परब आय. उही विषहरण जेला शिव जी ह समुद्र मंथन ले निकले विष के करे रिहिसे. एकरे सेती उनला 'नीलकंठ' घलो कहे जाथे. काबर ते उन वो विष ल अपन कंठ माने टोटा म रख लिए रिहिन हें, जेकर सेती उंकर टोटा नीला अर्थात नीलकंठ होगे रिहिसे. दंसहरा के दिन नीलकंठ पक्षी ल देखना शुभ माने जाथे. काबर ते वोला ए दिन शिव जी के प्रतीक माने जाथे. फेर हम ए दू अलग अलग परब ल एकमई कर डारे हावन.
हमर इहाँ एकर पाछू एक अउ परब आथे, जेला हम सब 'छेरछेरा' के नाम ले जानथन. एकरो संदर्भ म लोगन के अलग अलग मान्यता हे. इहाँ के मैदानी भाग म एला खरीफ फसल के मिंजाई कुटाई के पाछू उत्सव के रूप म दान दे के परब के रूप म मनाए जाथे. जबकि इही ल इहाँ के सब्जी उत्पादक मरार समाज के मन शाकंभरी जयंती के रूप म मनाथें. इहाँ के मूल निवासी समाज एला गोटुल/घोटुल के शिक्षा म पारंगत होए के पाछू तीन दिन के परब के रूप म मनाथें. मोला जेन ज्ञान मिले रिहिसे, तेकर अनुसार ए ह भगवान शंकर द्वारा बिहाव के पहिली पार्वती के परीक्षा ले खातिर नट के रूप म नाचत गावत जाके भिक्षा मांगे के प्रतीक स्वरूप मनाए जाथे. एकरे सेती ए दिन लोगन बने सज-सम्हर के नाचत गावत कुहकी पारत भिक्षा मांगे बर जावंय. अब अइसन नजारा देखई ह नहीं के बरोबर होगे हे. फेर हमन जब गाँव म राहन त छेरछेरा म हमर गाँव के कलाकार टोली वाले मनला ए दिन पूरा रौ म देखन.
हमर इहाँ एक होली के परब घलो मनाए जाथे, जेला होलिका दहन के रूप म प्रचारित करे जाथे. ए ह छत्तीसगढ़ के संदर्भ म पूर्ण सत्य नोहय. हमर छत्तीसगढ़ म जेन परब मनाए जाथे वो ह असल म 'कामदहन' के परब आय. एकर ले संबंधित कथा सुने होहू- ताड़कासुर नाम के एक असुर ह शिव पुत्र के हाथ ही मरे के वरदान पाके भारी अतलंगी करत रहिथे. काबर ते शिव जी तो सती के आत्मदाह के बाद घोर तपस्या म लीन हो जाए रहिथे. अइसे म कहाँ ले शिव पुत्र आही अउ कोन वोला मारही? गुन के भारी अतलंगी मचावत रहिथे.
एकरे समाधान के सेती देवता मन कामदेव जगा अरजी करथें के कइसनों कर के शिव तपस्या ल भंग कर तेमा वोहा तपस्या ले उठय, पार्वती संग बिहाव करय, तब शिव पुत्र के आगमन होवय, जेहा ताड़कासुर के अतलंगी ले मुक्ति देवावय.
देवता मनके अरजी विनती करे ले कामदेव ह अपन सुवारी रति संग बसंत के मादकता भरे मौसम म जाके शिव तपस्या भंग करे के उदिम करथे. वोमन वासनात्मक गीत-नृत्य के प्रदर्शन करथें, तेमा शिव के मन म घलो काम के जागरण हो सकय. फेर इहाँ उल्टा हो जाथे. शिव जी अपन तीसरा नेत्र ल खोल के कामदेव ल ही भसम कर देथे.
हमर छत्तीसगढ़ म जेन होली के परब मनाए जाथे, वोहा कुल चालीस दिन, बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक मनाए जाथे. बसंत पंचमी के दिन हमर इहाँ जेन होले डांड़ म अंडा पेंड़ गड़ियाये जाथे, वो ह असल म कामदेव के आगमन के प्रतीक स्वरूप ही होथे. वोकर साथ ही इहाँ रोज होले डांड़ म नाचे गाये के सिलसिला चालू हो जाथे. इहाँ ए बात ध्यान राखे के लाइक हे, ए होले गीत नृत्य म वासनात्मक शब्द अउ दृश्य मन के गजब चलन होथे. काबर ते कामदेव अउ रति शिव तपस्या भंग करे बर अइसन उदिम करे रहिथें.
आपे मन गुनव- कहूँ ए परब ह सिरिफ होलिका दहन के सेती होतीस, त चालीस दिन के काबर मनाए जातीस? होलिका तो एके दिन म चीता रचवाईस, वोमा आगी ढिलवाइस अउ खुदे जल के भसम होगे. वोकर बर चालीस दिन के परब काबर? वासनात्मक गीत-नृत्य अउ शब्द ले होलिका के का संबंध?
संगी हो, हमर इहाँ के पूरा के पूरा परब तिहार अउ वोकर मनले जुड़े संदर्भ के नवा सिरा ले समीक्षा करे के जरूरत हे, तभे हमर मूल पहचान बांचे पाही. कहूँ आने आने क्षेत्र ले अवइया लोगन के संगत म उंकर बताए अउ देखाए रद्दा म अंखमुंदा रेंगबो त इहाँ के अस्मिता अउ सांस्कृतिक अस्तित्व के जउंहर हो जाही. अपन स्वतंत्र सांस्कृतिक चिन्हारी खातिर हमला अपन अस्मिता के पारंपरिक रूप के अनुसार लेखन, पढ़न करे बर लागही. नवा पीढ़ी ल आरूग रूप सौंपे बर लागही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
Wednesday, 17 August 2022
एक ले जादा परब म होवथे भरम
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