Tuesday, 4 October 2022

भूमिका.. चार डांड़.. बिहनिया के जोहार

भूमिका//
"बिहनिया के जोहार"
        ( सुशील भोले के चार " डांड़")
समसामयिक जिनगी के चित्र/फोटो ल " चार डांड़" (पंक्ति) म  लिख  के उजागर कर  देना, सुशील भोले के खासियत अउ साहित्य म नवा प्रयोग बनगे। आज सोशल मिडिया के मोबाइल संस्कृति म ये कमाल के बात ये  होगे कि हमर गोठ बात, बिन कागज म लिखे, लोगन तक पहुंचत हे। बिहनिया बेरा म "जोहार","जय जोहार"," सुप्रभात", अंग्रेजी म "गुडमॉर्निंग"--हमर
तक पहुंच जथे।  तहां ले मन "हरियर"जो जथे,
"गदगद" हो जथे।   "चार डांड़ " के कवित्त म हम चित्र के इतिहास, सामयिक जिनगी,
संस्कृति, खेती बाड़ी, तीज-तिहार, जिनगी के संघर्ष, सुख-दुख, मय-मितान, मरनी-हरनी, धरम-करम, प्रेम-वियोग, सिंगार, नता-गोता, व्यवहार,
श्रद्धा, अंधविश्वास--- सबके कहिनी जान डरथन! ये सब "चार डांड़" के कवित्त म उतर जथे।
"जोहार","सुप्रभात"---कहत-कहत, सुशील भोले-- दार्शनिक बन जथे। पूरा जीवन दर्शन "चार डांड़ " म उंडेल देथे।
सुशील भोले ह पत्रकार घलो रहिस। उहि पत्रकारिता म    ये चित्रमय कवित्त, अखबार के एक  कोंटा म डारे के/छापे के--आदत बनगे रहिस। उहि आदत आजो ले बने हे। आज सुशील ह शरीर से अशक्त होगे हे, लकवा ग्रस्त होगे हे।फेर एक अंग हाथ अउ अंगरी ह चलथे--त  सोशल मीडिया ह ओखर बर वरदान बनगे हे।मन चलथे, बुध चलथे, सपना   देखई , अउ चिंतन  चलथे। ये " चार डांड़'"-ओखर प्रमाण आय। जिनगी जिये के , समय बिताये के, एक सहारा बनगे सोशल मीडिया ह!सकारात्मक ऊर्जा से भरे सुशील के लेखनी  सरलग चलथे।
छत्तीसगढ़िया मनखे के जीवनचर्या  के विविध रूप सुशील  के "चित्रमय चार डांड़" म  उजागर होथे, ओखर उदाहरण देवथंव---
1---   मनखे अउ नीति के बात----
अ--     "सत के साधक, लुलुवा हो जाय, फेर रद्दा ले टरय नहीं।," (सच्चा साधक मनखे ह सत के रद्दा म चलथे)।
ब-- "सरी मंझनिया साथ देवइया केवल बिरला होथे,
रिश्ता नाता कहत  भर के, भाई भतीजा बोचकथे,
तब बिन मुंह के अईसन साथी, रिश्ता के लाज बचाथे।(चित्र-बनिहारिन संग कुकुर ह लउठी धर के चलत हे)!
स--आज के लईका मन दाई ददा ल बंटवारा म बांट लेथें,
कोन काकर संग रइही, अपन हिस्सा म छांट लेथे
तब बज्जुर  छाती करना परथे ये विपत ल सहे के।(माता पिता के बंटवारा)
द---- "हर उमर के जोश निराला, कभु खेलौना, कभु भाला,
मयारु बर चूरी फुंदरी, त मोक्ष बर मिरगा छाला,
जइसे-जइसे उमर बढ़थे, मन के लोभ घलो बदलथे,
इहि ल तो संगी गुनिक मन, जीवन के गति कहिथे!" (जीवन के गति अउ परिवर्तन)
क--- "बिन घिसाए लगय नहीं माथ म ककरो चंदन,
जो धरथे संघर्ष के रद्दा, होथे ओखर अभिनन्दन।" (संघर्ष के बात)
ख-- "बिना मंजाय कोनो गहना म चमक आ नई सकय"!  (संघर्ष )
ग-- हीरा उगलत धरती छोड़ के , कोन देस तंय जाबे,
करबे चाकरी पर के, अउ बोझा लेबे डोहार",
(पलायन बर नीति के बात)
घ-- "आ संगी जोर खांध म खांध, रहिबों सब मिलजुर के,
आ एक ले एक ग्यारा हो जाइन, दिन बितहि मुसकुल के"! (एकता के सन्देश)
घ--- छत्तीसगढ़ म 36 नदियां, फेर 36 गति हो जाथे"! (पानी के अकाल, व्यवस्थित नहीं)
च--- "सबले ऊंचा पबरित हे आत्मज्ञान के ठउर, तब काबर भटकत हाबस तैं पोथी पतरा के रद्दा म।"  (आत्मज्ञान)
छ-- "कोनो काम करे के पहिली। ,मन म थोरिक गन लेवव,
कोन कहात हे   का-का, इहू बात ल गुनना चाही।
   ( मन की सीख-नीति के बात)
ज-- "सोन पांखी के फांफ़ा--मिरगा या बिखहर हो जीव,
सबके भीतर बनके रहिथे, एकेच आत्मा शिव,
तब कइसे  कोनो छोटे बड़े, ऊंचहा या नीच,
सब ओकरे सन्तान हे संगी, जतक़ा जीव सजीव" (मनखे मनखे एक समान)!
सुशील भोले ह आदिधर्म, सनातन धर्म के रद्दा म चलथे। तभे मनखे मनखे एक समान  के बात करथे ।
2--प्रकृति, ऋतु, पर्व, तिहार, खेती बाड़ी के चरचा कवित्त म चित्र सहित करथे। कोनो व्याख्या करे के जरूरत नई पड़य---
क- (ऋतु)-"माघ महिना आगे संगी लगगे आमा म मउर।"
(वर्षा) "नांगर म खेत जोतत नंगरिहा बर मया के बादर
झम ले आके रतो दिस हे धार, धरती दाई के गरभ ले अब अन्नपूर्णा दाई लेहि अवतार।"
ख-- (किसानी)- "चार महीना खूब कमाएन अभी माते हे मिंजाई,
अन्नपूर्णा बनके घर आये हे, हमर लक्ष्मी  दाई,"
ग-- (किसानी) -"अकती आगे, घाम ठठागे, चलव जी मूठ धरबो,
हमर किसानी के शुरुवात सम्मत ले सब करबो।"
घ-- (तिहार)- "कतेक सुग्घर हावय हमर तीजा के तिहार,
गंजमंज--गंजमंज लागत हावय ददा के दुवार!"
च- -(शीत) -"गोरसी तापे  के दिन आही, अब आवत    हावय  जाड़,
सुरुर सुरूर पुरवाही म होवत हावय नरमी के बाढ़!"
छ--(संक्रांति)---
"सुरुज नरायन के पांव लहुटगे, अब बेरा ल लहुटाही,
सुट ले बुलकत, घड़ी-पहर के चाल कदम अरझाही,
अब तिली गुड़ के लाडू सहीं सबके दिन बाद भाही,
संग सर-सर  झुमरत-नाचत पुरवाही राग बसंती गाही।"
ज-- (मौसम)-- "नवा बहुरिया के रेंगना कस लागे मौसम के चाल"!
सुशील ह हर मौसम अउ पर्व के बात करथे चित्र बनाके।छेरछेरा, हरेली, कमरछठ  के पसहर भात, अक्ति, तीजा-पोरा, भोजली, मितान, दशहरा, देवारी, होली!
झ-- नोनी जात के शिक्षा बहुत मूल्य रखथे।
रिक्शा चलावत बेटी के चित्र म लिखथे--
" घर  परिवार के जतक़ा बुता  जम्मो मोरेच हिस्सा,
कईसे भाग लिखथे  विधाता ये तिरिया  जनम के,
संउहे अनदेखी  करथे हमर जांगर  टोर करम  के!"
नारी शिक्षा के महत्व बतावत, नीति के बात कहिथे--
"चल नोनी  हो जा तियार, स्कूल जाबे  हब ले, पढई लिखई ह मोर  भरोसा, दाई बूता म जाथे तब ले,
पढ़बे  लिखबे ,जिनगी  गढ़बे, बढ़ के  तैं तो  सब ले,
हमर देश  राज के  नांव जगाबे, आदर्श गढ़बे  खब ले!"
नदिया नरवा पार करके नोनी मन पढ़े बर जाथें
उहि चित्र म--
"नदिया नरवा कतको उफनय, नई   परय  कोनो फरक,"(आज  बाधा  लांघ के नोनी मन पढ़थें।)
ट---नारी  के किसानी काम म घलो बाधा   ल लांघथे---

"एक हाथ में  हे नांगर अउ एक हाथ म तुतारी,
पीठ म बेटा ल बईठारे, नांगर जोतथे  महतारी,
एकरे भरोसा। घर के संवागा, इहि  बाहिर के रखवार,
एकरे भरोसा चूल्हा घलो सजथे, एकरेच भरोसा खार।"
सुशील ह नारी के हर क्षेत्र के संघर्ष के चित्रण करे हे।
ठ-- -आजकल "फ्रेंडशिप दिवस"के परम्परा चालू होगे हे, विदेशी तर्ज म।
सुशीलकहिथे---
"हम तो आरुग छत्तीसगढ़िया, एक पईत मनाथन,
गंगा बारु हो चाहे भोजली होय, कई जनम साथ निभाथन!"
अइसन विविध विषय म चित्र के संग " चार  डांड़ "  लिखत  सोशल मीडिया म अब्बड़ लोकप्रिय होगे हे।बिहनिया  संगी साथी मन बाट जोहत रहिथे।
मोर अन्तस्तल ले ,सुशील के तन अउ मन के स्वास्थ्य बर शुभकामना अउ असीस।ओखर कलम चलत राहय, बुध जागत रहय, मन आनन्दित  राहय।। सरस्वती  कृपा बनाय राहय।
सोशल मीडिया के माध्यम ले सुशील के चित्रमय "चार डांड़"" बिहनिया के जोहार" सबके हाथ म पहुंच जाय। सब आनन्द म भरके पढंय अउ गुंनय।
लेखनी चलत राहय,- ---असीस !
          -डॉ, सत्यभामा आडिल
     दशहरा (दंसहरा) 5--9--2022
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