Thursday, 11 September 2025

रामचंद्र वर्मा संक्षिप्त परिचय..

   स्व. श्री रामचंद्र वर्मा का जन्म ग्राम नगरगाँव, थाना धरसींवा, जिला रायपुर के किसान स्व. बुधराम वर्मा एवं 
माता दया बाई के घर पर हुआ था.
   वे दो भाई और दो बहनों के भरेपूरे परिवार में सबसे बड़े थे. रामचंद्र वर्मा और अनुज देवचरण वर्मा दोनों ही शिक्षक थे. रामचंद्र की शिक्षक के रूप में प्रथम नियुक्ति ग्राम कूँरा (कुँवरगढ़), थाना धरसींवा जिला रायपुर में हुई थी. उसके पश्चात उनका स्थानांतरण ग्राम सिनोधा (नेवरा) में हुआ था, फिर भाठापारा शहर के मेन हिंदी स्कूल में स्थानांतरित होकर आए.
   यहीं मेन हिंदी स्कूल में शिक्षकीय कार्य करने के दौरान ही उन्होंने प्राथमिक हिंदी व्याकरण एवं रचना किताब कक्षा 3 री, चौथी एवं पाँचवीं का लेखन किया था, जिसे उस समय सभी शालाओं में पाठ्यपुस्तक के रूप में शामिल किया गया था. 
   भाठापारा शहर के ही एक शिक्षक आत्माराम जी जो अपने पिताजी के नाम पर अनुपम प्रकाशन के नाम से पुस्तक प्रकाशन का व्यवसाय करते थे, उनके ही प्रोत्साहन पर उन तीनों किताबों की रचना हुई थी, इसलिए उन किताबों का प्रकाशन अधिकार भी अनुपम प्रकाशन को दिया गया था.
   रामचंद वर्मा के अनुज देवचरण वर्मा का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो जाने के कारण उनके माता पिता असहाय से रहने लगे थे, इसलिए उन्होंने अपना स्थानांतरण भाठापारा से रायपुर करवा लिया था. रायपुर में तेलीबांधा रविग्राम स्कूल में उनका स्थानांतरण हुआ था. उसके पश्चात रामकुंड रायपुर स्थित सखाराम दुबे स्कूल में प्रधान पाठक के रूप में स्थानांतरण हुआ जहाँ से वे प्रधान पाठक के रूप में ही सेवानिवृत्त हुए.
   रामचंद्र वर्मा भाठापारा के हथनीपारा वार्ड में रहते थे, उस समय वहाँ घासीराम जी साव पार्षद थे. घासीराम जी का अत्यंत स्नेह रामचंद्र वर्मा को प्राप्त था, इसीलिए रामचंद्र के घर बहुत पूजा पाठ और तप जप के पश्चात आठ वर्षों के अंतराल पर उनका मझला सुपुत्र सुशील (छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार सुशील वर्मा भोले का) जन्म हुआ तो उसकी छट्ठी बरही सब घासीराम जी ने अपने ही घर पर अपने देखरेख और संरक्षण में करवाया था.
   रामचंद्र वर्मा के द्वितीय सुपुत्र साहित्यकार सुशील वर्मा भोले बताते हैं कि उनके पिताजी प्राथमिक व्याकरण रचना किताब को प्रतिवर्ष संशोधित करते थे. गरमी के दिनों में शालाओं का अवकाश होता था, तब वे उन तीनों किताबों का संशोधन संवर्धन करते थे. सुशील वर्मा भोले कहते हैं कि मैं उन्हें गरमी की छुट्टी भर लिखते पढ़ते ही देखता था. उनके इसी गतिविधियों को देख देख कर ही मेरे मन में भी लेखन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ.

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