Saturday, 16 August 2025

कोंदा भैरा के गोठ-35

कोंदा भैरा के गोठ-35

-तोला कइसे लागथे जी भैरा.. अपन भाखा ल कोनो मनखे ल मार-पीट के बरपेली बोलवाए जा सकथे?
   -हव.. मुँह के आगू म तो बोलवाए जा सकथे जी कोंदा, फेर अंतस म वोकर बर ठउर नइ बनवाए जा सकय. 
   -सही कहे संगी.. अभी महाराष्ट्र म राज ठाकरे के कार्यकर्ता मन जइसन करत हें तेकर ले मराठी भाखा ल आत्मसात करे के रद्दा नइ निकल सकय.
   -हव सही आय.. हमर छत्तीसगढ़ म घलो राज्य आन्दोलन के बखत कुछ लोगन इहाँ के रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि मन म छत्तीसगढ़ी भाखा म एनाउंसमेंट करे के नॉव म तोड़फोड़ अउ आगजनी जइसन उदिम करे रिहिन हें, फेर वो मनला जनसमर्थन नइ मिल पावत रिहिसे.
   -लोकतंत्र म अइसन उग्रता ल कोनो समर्थन नइ देवँय.. जइसे हमन लोकतांत्रिक तरीका ले ही छत्तीसगढ़ राज ल पाएन.. घोषित रूप म राजभाषा पाएन.. ठउका अइसने   आठवीं अनुसूची म ठउर अउ शिक्षा संग राजकाज के माध्यम घलो पाबोन.. बस जइसे भाखा खातिर सरलग जनजागरण अउ सरकार ल चेत कराए के उदिम चलत हे वोला सरलग चलावत रेहे बर लागही.
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-नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कहना हे जी भैरा के भगवान राम के जनम नेपाल म होय रिहिसे.. वोकर कहना हे के भगवान शिव अउ विश्वामित्र घलो  नेपाल के ही रहिन हें.
   -मोला वोकर गोठ ह पतियाय असन नइ जनावत हे संगी कोंदा.
   -तोला चाहे कुछू जनावय.. वोकर कहना हे के वो ह ए बात ल महर्षि वाल्मीकि के लिखे रामायण के आधार म काहत हे अउ वाल्मीकि रामायण ही असली हे..  वोकर इहू कहना हे के वो बखत नेपाल म वो क्षेत्र ह रिहिस होही ते नहीं, फेर आज वो क्षेत्र ह नेपाल म हावय.. वाल्मीकि रामायण म लिखाय हवय तेमा विश्वामित्र काहत हे- राम कोसी नदी पार कर के पश्चिम डहर गिस अउ लक्ष्मण ल शिक्षा दिस.. ए सब नेपाल के सुनसरी जिला के वर्तमान क्षेत्र ले जुड़े हे.. विश्वामित्र चतरा के रिहिसे ए बात रामायण म लिखाय हे.
   -हमन ल जम्मो जुन्ना इतिहास मनला नवा संदर्भ संग फेर पढ़े बर लागही का संगी?
   -वोकर कहना हे- राम के जनम ठउर ह थारू गाँव आय शायद, जेन ह अब नेपाल म हवय.. अब राम ह भगवान आय ते नहीं ए लोगन के आस्था ये, फेर उँकर मन बर थारू ह पवित्र हे.. हमला एकर प्रचार करना हे.. बिना संकोच अउ डर के.
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-संगी भैरा.. सावन आथे तहाँ ले तोर मेछा-डाढ़ी बाढ़े लागथे.. अइसे काबर.. एकर कोनो महत्व हे का?
   -देख जी कोंदा.. पहिली तो महूँ ह तोरे असन एकर महत्व ल नइ समझत रेहेंव, फेर जब ले वैज्ञानिक के संगे-संग आध्यात्मिक महत्व ल समझेंव तब ले हर बछर पूरा सावन भर साँवर नइ बनावौं.
   -अच्छा.. अइसे का महत्व हे एकर?
   -एकर आध्यात्मिक या कहिन मनोवैज्ञानिक कारण तो ए हे के ए महीना ल शिव जी के भक्ति, उपासना अउ साधना के महीना माने जाथे.. मेछा-डाढ़ी बाढ़े ले मनखे के ध्यान बाहरी आकर्षक या सजावट डहार नइ अभर के आध्यात्मिक चिंतन म हरहिंछा होके लगे रहिथे.
   -अच्छा.. अउ वैज्ञानिक कारण?
   -वैज्ञानिक कारण ए हे के बरखा के मौसम म हमर शरीर के पाचन अग्नि (मेटाबॉलिज्म) ह थोकन कमजोरहा रहिथे, तेकर सेती ए बखत अनावश्यक शारीरिक बदलाव जइसे मेछा-डाढ़ी या साँवर बनवाना आदि ले बाँचना चाही.
   -वाह भई..!
   -हव.. कभू मेछा-डाढ़ी बनावत थोर-बहुत कटा-छोला घलो जाथे, जेकर ले कई किसम के संक्रमण के खतरा घलो बाढ़ जाथे.. अब तहीं बता ए सबला देखत-समझत महीना भर मरदनिया तीर नइ ओधबे त कुछू नुकसान हो जाही?
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-जब कभू कोनो मनखे नवा रद्दा गढ़े के कोशिश करथे, त लोगन वोला जकला-बइहा काहत भरमाए अउ भटकाए के उदिम तो करबे करथें जी भैरा.
    -हव ए बात तो सिरतोन आय जी कोंदा.. पहिली बात तो ए हे के लोगन वोकर कारज के उद्देश्य ल नइ समझ पावँय तभो अंते-तंते गोठियाथें, त कभू कोनो मनखे वोकर ए कारज ल इरखा भाव ले देखत घलो वोकर रद्दा म अटघा डारे के उदिम करथे.
   -सही आय जी.. अइसन मनखे के रद्दा म अटघा डरइया मन जादा जनाथें, फेर एक बात तो हे संगी.. नदिया के पानी कस सरलग बोहावत रहिबे, त तोर रद्दा म अइसन जतका अटघा डरइया काड़ी-कचरा बरोबर लोगन आथें, सब अपने अपन तिरिया जाथें.
   -अच्छा अइसे? 
   -हहो.. माउंटेन मेन के नॉव ले प्रसिद्ध दशरथ मॉंझी के नॉव ल सुने हावस नहीं.. वोकर जिनगी अउ ठोस इरादा ले करे बुता ह ए बात के सउँहे उदाहरण आय.. लोगन वोकर कारज ल देख के कतकों हाँसिन.. बेलबेली मढ़ाइन फेर जब तक वो ह अपन सुवारी के सुविधा खातिर आए जाए बर पहाड़ ल काट के रद्दा नइ बना लेइस, तब तक न थिराइस न हरहिंछा होके बइठिस.
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-कभू-कभू अंधविश्वास ह मूर्खता के जम्मो डेहरी मनला नाहकत जनाथे जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा?
   -अरे का कहिबे संगी.. बलरामपुर जिला के सामरी थाना क्षेत्र के गाँव चटनिया कटईडीह के 40 बछर के राजू कोरवा ह अपन बेटा के मिर्गी के बीमारी ल बने करे के नॉव म गाँव झलबासा के एक अढ़ई बछर के बाबू के बलि दे दिए रिहिसे.
   -वाह भई.. अपन बेटा के मिर्गी के बीमारी ल ठीक करे बर आन के लइका के बलि!
   -हव भई.. सुनब म अकबकासी लागत हे.. पहिली टोनही-टमनहिन.. तंत्र-मंत्र.. बइगा-गुनिया के नॉव म बलि के गोठ सुना जावत रिहिसे, फेर ए मिर्गी जइसन रोग ल बने करे बर बलि के गोठ ह पहिली बेर सुने ले मिले हे.
    -फेर मैं तो कहिथँव संगी.. बलि ह कोनो भी समस्या के समाधान नोहय.
   -बिल्कुल नोहय.. मैं तो देवता-धामी अउ परंपरा के नॉव म जेन बलि दिए जाथे तेनो ल उचित नइ मानँव.
   -बिल्कुल उचित नोहय.. जे देव-शक्ति मन लोगन ल जिनगी देथें.. उनला जीए के सहारा अउ रद्दा देखाथें, उही च मन उनला मारे-काटे के नॉव म खुश कइसे हो सकथें?
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-हमर छत्तीसगढ़ के पहला तिहार हरेली ल बने-बने मनाए के जोखा चलत हे जी भैरा? 
   -हौ जी कोंदा.. बने-बने जोखा चलत हे गा, फेर ए हरेली परब ह हमर संस्कृति के पहला परब नोहय जी संगी.
   -अच्छा! कतकों झन तो हरेली ल ही छत्तीसगढ़ी संस्कृति के पहला परब आय कहिके लोगन ल जनवावत हावँय जी.. एकर नॉव म कतकों किसम के आयोजन घलो करत हावँय.
   -असल म का हे ना.. जे मन इहाँ के मूल परब-तिहार के मुड़ी-पूछी तक ल नइ जानॅंय, तेही मन इहाँ के संस्कृति के अगुवा बने फोकटइहा म मटमटावत रहिथें, ए सब वोकरे मन के नादानी के सेती बगरे बात आय. असल म हमर संस्कृति के पहला परब अक्ती ह आय जी संगी, जे दिन 'मूठ धरे' के रूप म किसानी के शुरुआत होथे, जम्मो पौनी-पसानी अउ खेतिहर श्रमिक मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति होथे. एकर पाछू फेर जुड़वास आथे जेला माता पहुंचनी घलो कहिथन अउ वोकर बाद सवनाही आथे, तेकर पाछू फेर हरेली आथे जी संगी.
   -अच्छा.. माने हरेली ह चौथइया नंबर म आथे कहि दे.
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-सावन सोमवारी जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. अरे.. यहा अतेक लम्हरी अगसी ल धर के कहाँ चले जी?
   -एदे मंडल पारा डहार जाथौं.. उँकर अँगना म बने सुग्घर-सुग्घर फूल फुले रहिथें न उही मनला अमर के टोरे बर.
   -अच्छा.. माने महादेव म चढ़ाए खातिर फूल पान टोरे बर जावत हावस.. अउ उहू म लुका-चोरी?
   -अब परदा के ए पार ले जतका अमरा जाथे ते मनला टोरे म का हे गा?
   -अइसन ल चोरी कहे जाय संगी.. अउ भगवान म चोराए फूल-पान ल चढ़ाए म तोर जम्मो पुन्न के फल ह तो अधिया जाही.
   -अधिया काबर जाही जी?
   -जेकर घर-बारी ले बिन पूछे-सरेखे फूल टोरत हावस ते हा आधा ल नइ पाही जी.
   -अच्छा.. अइसनो होथे का?
   -हव.. होही कइसे नहीं.. अरे भई तोला आन के बारी-बखरी ले फूल-पान टोरनच हे, त एक भाखा उँकर जगा पूछ लेते.
   -अइसे.. तब मोर पूजा-पैलगी के फल ह पूरा मिलही?
   -हव.. तोर घर पूजा खातिर कुछू जिनिस ह नइए त या तो वोला पइसा देके बिसा ले.. अउ नहीं त वो घर-बारी के मालिक जगा पूछ के अनुमति ले ले तभे तोर पूजा के फल तोला पूरा मिलही.
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-नवरात जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. तैं जानथस हमर देश म जेन 51 शक्तिपीठ हे, तेमा के एक शक्तिपीठ ह आज पाकिस्तान के बलूचिस्तान म हे.. अउ सबले खास बात ए आय के इहाँ दाई सती के मुड़ी ह गिरे रिहिसे.
   -अच्छा.
   -हव.. ए ठउर ल अभी हम सब हिंगलाज के नॉव ले जानथन.
   -हव.. जसगीत म हिंगलाज भवानी कहिके गाथन न नवरात भर.
   -हव.. हिंगलाज भवानी ल जतका हम हिंदू मन मानथन वतकेच मुसलमान मन घलो मानथें.
   -अच्छा.. अइसे?
   -हव..मुसलमान मन एला 'नानी मंदिर' कहिथें कतकों झन वोला नानी पीर या नानी के हज के रूप म घलो चिन्हारी करथें.. इहाँ पाकिस्तान अउ अफगानिस्तान के संगे-संग मिस्र अउ ईरान के मुसलमान मन घलो आथें.
   -ए तो बने बात आय जी संगी.. आज चारोंमुड़ा धरम के नॉव म जेन दुवा-भेद अउ तिरिक-तीरा देखे ले मिलथे तेकर ले तो बनेच हे.. हमर तो मनसुभा हे के पूरा दुनिया म अइसन नजारा देखे ले मिलय.
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-ए बछर हमर छत्तीसगढ़ राज ल बने 25 बछर हो जाही जी भैरा.. सरकार के जम्मो विभाग डहार ले ए मौका म 15 अगस्त ले लेके 6 फरवरी'26 तक सरलग कार्यक्रम करे जाही काहत हें.
   -सरकारी विभाग वाले मन अतकेच तो करथें जी कोंदा.. उनला अपन निर्धारित बजट ल कइसनो कर के समोना होथे, भले वोकर संदर्भ म करे गे कार्यक्रम के आम जनता या इहाँ के अस्मिता खातिर कोनो महत्व झन राहय.
   -अब गिनती के मुताबिक भले हमन 25 बछर ल अमर डारे हन जी संगी, फेर पुरखा मन संग हमूँ मन जेन अस्मिता ऊपर आधारित राज्य निर्माण के अवधारणा संग राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन ते ह आज ले सिध नइ परे हे.
   -तोर कहना वाजिब हे संगी.. एक स्वतंत्र ईकाइ के रूप म छत्तीसगढ़ के एक अलगे नक्शा तो बनगे हवय, फेर भाखा अउ संस्कृति के रूप म जेन अलग चिन्हारी के सपना देखत हमन राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन तेन ह आजो ले अधूरा हे.
   -तोर बात म मोरो हुँकारू हे.. जब तक छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति.. संस्कृति माने इहाँ आध्यात्मिक संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के अवधारणा अधूरा ही रइही, चाहे अइसन कतकों रजत, स्वर्ण या हीरक जयंती मना लेवन.
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-हरेली परब के दिन 'पाटजात्रा'  पूजा रसम करे के संग विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के शुरूआत होगे जी भैरा.
   -ए तो बने बात आय जी कोंदा.. अच्छा ए बछर कुल कतेक दिन तक चलही ए परब ह?
   -पाँच घाट चार कोरी.. माने कुल 75 दिन.. 7अक्टूबर के परही वो तिथि ह जे दिन मावली माता के बिदागरी होही.
   -अच्छा.. पाटजात्रा रसम म रथ बनाय खातिर उपयोग होवइया औजार ठुरलू खोटला संग अउ आने जम्मो औजार मन के पूजा करे जाथे न?
   -हव.. परंपरा के मुताबिक रथ बनइया मन के मुखिया दलपति अउ आन कारीगर मन बोकरा के पूजवन करत महुआ के मँद तरपन करिन अउ दशहरा के शुरूआत करिन.
   -सब बने-बने जनाथे जी संगी, फेर मोला इही पूजवन के परंपरा भर ह थोकिन अनफभिक जनाथे.
   -अब कइसे करबे संगी.. पुरखौती परंपरा तो आस्था ऊपर आधारित होथे.. एमा कोनो किसम के तर्क-वितर्क अउ ज्ञान चर्चा बर ठउर नइ राहय.
   -तोरो कहना वाजिब हे.. तभो मोला जनाथे के हमर इहाँ के अइसन परंपरा अउ मान्यता मन म देश, काल अउ परिस्थिति के मुताबिक समीक्षा अउ संशोधन होवत रहना चाही.
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-मध्यप्रदेश सरकार ह नर्मदा उद्गम अमरकंटक म छत्तीसगढ़ ल पाँच एकड़ जमीन दिही काहत हे जी भैरा.
   -होना तो उल्टा रिहिसे जी कोंदा.. हमर सरकार जगा मध्यप्रदेश सरकार ह अनुरोध करतीस के उँकर श्रद्धालु मन के सुविधा खातिर उनला अमरकंटक म ठउर दिए जाय कहिके.
   -अच्छा..?
   -हव.. काबर के नर्मदा उद्गम स्थल अमरकंटक ह असल म छत्तीसगढ़ के पोगरौती भुइयाँ आय जिहाँ मध्यप्रदेश ह बँटवारा के बेरा ले ही अवैध कब्जा कर के बइठे हे.
   -वाह भई.. हमला तो ए बात के जानबा ही नइ रिहिसे..!
   -अमरकंटक ह जुन्ना छत्तीसगढ़ के ही अंग आय एकरे सेती इहाँ के पहला मुख्यमंत्री अजीत जोगी ह जब अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनिस त अमरकंटक ल छत्तीसगढ़ म सँघारे खातिर जबर कोशिश करे रिहिसे.. लगातार एकर बर आवाज उठावत रिहिसे.. फेर वोकर बाद जतका मुखिया बनीन उनमा काकरो समझ इहाँ के जुन्ना भौगोलिक स्थिति के बारे म नइ रिहिस तेकर सेती मध्यप्रदेश ह लगातार कनघटोरी करत बइठे रिहिसे.. आज स्थिति ए आगे के इहाँ के मुख्यमंत्री ह हमर पुरखौती भुइयाँ म थोर-बहुत जमीन दे के अरजी करे हे त कहूँ जा के मध्यप्रदेश सरकार ह अहसान करे बरोबर 5 एकड़ भुइयाँ अमरकंटक म दे के हुँकारू भरे हे.
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-नागदेवता के पूजा परब बने-बने मनाएव जी भैरा.
   -कहाँ जी कोंदा.. अब तो भइगे नेंग छुटई भर होवत हे.. हमर परोस म हरदेव लाला मंदिर हे जिहाँ हर बछर छत्तीसगढ़ स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता होवय तेनो अब तइहा के बात बरोबर होगे.
   -सही आय जी.. पहिली अइसने कुश्ती वाले अखाड़ा के पवित्र माटी ल नागपंचमी के दिन कुश्ती झरे के बाद लोगन अपन-अपन घर लेगयँ तहाँ ले उही माटी म भोजली बोवँय.
   -हव जी अब तो सबो परंपरा ह  नँदावत बरोबर जनाथे.. लोगन भोजली अभी घलो बोथें फेर अखाड़ा के पवित्र माटी जेमा दूध, मही, सरसों के तेल, हरदी अउ लिमऊ रस मिंझार के फुरहुर कोंवर बनाए जाय वोला अब कहाँ पाबे.. अब तो सिंथेटिक मैट के जमाना हे.
   -मोला लागथे संगी जइसे इहाँ के सरकार ह भाखा के बढ़वार बर राजभाषा आयोग बनाय हे, जम्मो पारंपरिक चिकित्सा पद्धति मन के संरक्षण  खातिर अभी छत्तीसगढ़ पादप बोर्ड के गठन करे हे, ठउका अइसनेच इहाँ के जम्मो पारंपरिक आध्यात्मिक संस्कृति के संरक्षण खातिर घलो एकाद आयोग या बोर्ड बना के इँकरो बढ़वार के बुता करतीस.
   -तोर सुझाव महूँ ल वाजिब जनावत हे संगी.. इहाँ के आध्यात्मिक संस्कृति के बढ़वार बहुते जरूरी हे.
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-संस्कृति विभाग द्वारा हर बछर राज्योत्सव के बेरा म दे जाने वाला राज्य अलंकरण खातिर अरजी पठोए के विज्ञापन छपगे हे जी भैरा.
   -तैं ह तो जानत हावस जी कोंदा मैं ह आरुग छत्तीसगढ़ी म लिखथौं-पढ़थौं अउ एकर खातिर तो काकरो नॉव ले अलग ले अलंकरण खातिर नॉव नइ दिखत हे.. पहिली पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान दिए जावय तेमा छत्तीसगढ़ी ल घलो समोवत रिहिन हें, फेर अब तो वो सम्मान ल निमगा हिंदी खातिर चिन्हारी कर दिए हे.
   -लाला जगदलपुरी के नॉव म घलो तो हावय.. वो ह आंचलिक साहित्य/ लोक कविता खातिर हे.
   -देख संगी हमर राज म हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी ल घलो राजभाषा के दर्जा मिले हे, त एकरो बर हिंदी बरोबर स्वतंत्र रूप ले एक अलंकरण काबर नहीं? आने क्षेत्रीय भाखा मन संग छत्तीसगढ़ी ल संघारना तो एकर अपमान बरोबर हे.. फेर मैं ह राज्य अलंकरण खातिर आवेदन दे के नियम ल उचित नइ मानँव.. संबंधित विभाग वाले मनला अपन इहाँ पंजीकृत समिति मन ले सुझाव माँगना चाही अउ फेर वो सुझाव ल चयन समिति के आगू म मढ़ा देना चाही, जेमा ले चयन समिति ह योग्यता, वरिष्ठता अउ उँकर द्वारा करे गे कारज के आधार म चयन कर लेतीस.
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-आजकाल जतका अधकचरा किसम के लोगन हें, तेनेच मन चारों मुड़ा के मंच मन म जा जा के मटमटावत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. महूँ आकब करे हौं.. भाखा संस्कृति के बात होय या अउ कुछू के लोगन अइसने मनला विशेषज्ञ के रूप म बलाथें अउ वाजिब ए इहू मन भारी जानकर बरोबर गोठियाथें घलो.
   -हव जी.. अभी एक न्यूज चैनल म 'रील' बनाए के जेन चलन चलत हे तेकर ऊपर चर्चा चलत रिहिसे, जेमा देवेश बजाज नॉव के एक लइका ह होशियारी देखावत काहत रिहिसे- छत्तीसगढ़ी ल पहिली 'लोवर कास्ट' वाले मन के भाखा माने जाय फेर जब ले ए मन रील बना के सोशलमीडिया म पोस्ट करत हें तब ले जम्मो वर्ग के लोगन वोला देखत हें.
   -अच्छा.. एकर मन के रील बनाए के सेती छत्तीसगढ़ी के लोकप्रियता बाढ़े हे?
   -वोकर कहे के मतलब तो अइसने रिहिसे.
   -वो लइका ल छत्तीसगढ़ी के विराटता के समझ नइए संगी.. हमर इहाँ तो देश के आजादी के आन्दोलन अउ छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन दूनों ल ही छत्तीसगढ़ी भाखा के माध्यम ले लड़े गे हवय त फेर ए ह लोवर कास्ट के भाखा कइसे होइस?
   -कार्यक्रम के संचालन करत एंकर ह घलो वोला तुरते टोके रिहिसे.. नहीं-नहीं अइसन झन बोलव.. इहाँ ले अइसन संदेश नइ जाना चाही.. छत्तीसगढ़ी बहुत सम्मानित भाषा आय.
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-बाहिर ले आए लोगन इहाँ के पुरखौती परंपरा, इतिहास अउ नॉव आदि ल बदल के अपन डहार ले लाने चिन्हारी ल थोपे के चंडाली म भारी बिधुन दिखथें जी भैरा.
   -हव जी.. अभी अइसने हमर पुरखौती चिन्हारी बस्तर के नॉव ल बदल के दंडकारण्य करे के माँग करत हें, धर्म स्थापना कौंसिल के सभापति डॉ. सौरभ निर्वाणी ह मुख्यमंत्री ल पाती लिखे हे.. उँकर कहना हे- भगवान राम ह वनवास काल म इहाँ आय रिहिसे.
   -तब तो छत्तीसगढ़ ल फेर दक्षिण कोसल कहे बर लागही.. फेर अभी एक विश्वविद्यालय द्वारा बस्तर के जुन्ना पखरा मन के शोध कारज करे गे हवय, तेकर मुताबिक तो बस्तर के इतिहास ह सत्तर हजार बछर ले जादा के बताए गे हे, त सिरिफ पाँच हजार बछर जुन्ना बेरा के नॉव काबर.. सत्तर हजार बछर जुन्ना वाले नॉव काबर नहीं?
   -छत्तीसगढ़ ल बाहिर ले पोथी-पथरा धर के आए लोगन गजब भरमावत हें संगी.
   -हव जी जबकि छत्तीसगढ़ ह धार्मिक, सांस्कृतिक अउ आध्यात्मिक रूप ले अतका समृद्ध हावय ते हमला बाहिर के न कोनो संत के जरूरत हे, न कोनो ग्रंथ के जरूरत हे, न ही कोनो भगवान के. जरूरत हे ते सिरिफ अपन पुरखौती परंपरा, लोकदेवता अउ जीवन पद्धति ल जाने समझे अउ वोला फिर से आत्मसात करे के.
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-हमर छत्तीसगढ़ म एक परंपरा हे जी भैरा जेला हमन लमसेना के नॉव ले जानथन. 
   -हव.. हावय न जी कोंदा.. कतकों झन एला घरजियाँ घलो कहि देथे ना.
   -हाँ दूनों ह मिलती-जुलती जिनिस आय, फेर लमसेना बने बर छोकरा ल नोनी के घर म रहिके अपन कार्यकुशलता अउ आदत-व्यवहार के परीक्षा दे बर लागथे.. नोनी के घर वाले मन जब पूरा मापदंड म खरा पाथें तब वोकर बिहाव ल घर के नोनी संग कर देथें.
   -अच्छा.. हव.
   -अउ तैं जानथस.. इहाँ लमसेना देवता (लमसेना डोकरा) घलो होथे?
   -वाह भई.. ए ह नवा सुने असन लागत हे.
   -कांकेर जिला के गाँव आँछीडोंगरी म हावय लमसेना डोकरा/देवता ह. ए जगा कोनो मंदिर देवाला नइए चारों मुड़ा ले खुल्ला जगा हे जेमा एक भाला धरे सियनहा के मूर्ति खड़े हे, वोकर दूनों मुड़ा म दू झन बघवा मन खड़े हें.. उही तीर म लोहा के एक बोर्ड गड़े हे, जेमा लिखाय हे- जय लमसेना डोकरा ग्राम आँछीडोंगरी.
   -अद्भुत हे संगी.. हमर इहाँ परंपरा अउ मान्यता ह.
   -हव.. लोगन मनोकामना माँगे खातिर त कतकों मनोकामना पूरा होय के बाद इहाँ नरियर चघा के आशीर्वाद लेवत रहिथें.
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-कतकों लोगन अपन इतिहास अउ संस्कृति ल बिगाड़े अउ भरमाए के बात करत रहिथें जी भैरा.
   -अब ए बात ल तो उही मन जान अउ समझ सकथें जी कोंदा जेकर मन के बारे म कुछू लिखे या बताए गे होथे.
   -हाँ जी.. बने काहत हावस.. त फेर वो मन खुद अपन इतिहास अउ संस्कृति ल काबर नइ लिखँय जे मन अइसन गोठ करत रहिथें.
   -हमर इहाँ कतकों समाज अइसन जे मन शिक्षा के अँजोर ले दुरिहा रिहिन.. आज जब वो मन थोक-बहुत पढ़े के चिभिक म आवत हें त अपन बारे म दूसर मन के द्वारा लिखे जिनिस मनला गलत काहत अउ समझत हें.
   -अच्छा अइसे..?
   -हव.. अच्छा अब तहीं बता.. जब तक हिरण ह अपन इतिहास ल खुद नइ लिखही तब तक हिरण मन के इतिहास म शिकारी के चंडाली ल उँकर शौर्य गाथा के रूप म लिखे जाही के नहीं?
   -कहे बर तो वाजिब काहत हावस संगी.. शिकार करइया मन ही कहूँ मरइया मन के इतिहास ल लिखहीं त उन मरइया के दुख-पीरा, अधिकार अउ उँकर गौरव ल लिखे ल छोड़ के अपन खुद के बहादुरी के गाथा ही लिखही.
   -हाँ... हमर इहाँ के बहुत अकन इतिहास अउ पंरपरा ल अइसने बानी के लिखे गे हवय, जेला वोकर ले संबंधित लोगन गलत बतावत रहिथें.
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-ए बछर ले स्वास्थ्य विभाग ह अंगदान करइया मन के परिवार वाले मन के सम्मान करे के नवा परंपरा के शुरुआत करत हे जी भैरा.
   -ए तो गजब सँहराय के लइक बात आय जी कोंदा.. एकर ले अंगदान करइया मनला बने प्रोत्साहन मिलही.
   -सही कहे जी.. अभी स्वास्थ्य सचिव ह जिला कलेक्टर मनला पाती पठोए हे जेमा कहे गे हवय के स्वतंत्रता दिवस के पबरित बेरा म सार्वजनिक मंच ले राज्य अउ जिला स्तर म अंगदान करइया मन के नता-रिश्ता मनला प्रमाण पत्र/प्रशस्ति पत्र दिए जाय.
   -बहुत बढ़िया संगी.. मोला परोसी राज मध्यप्रदेश के सुरता आवत हे... उहाँ अंगदान करइया मन के परिवार वाले मनला तो सम्मानित करे ही जाही संग म जे मनखे ह अंगदान करही तेकर अंतिम संस्कार ल राजकीय सम्मान के साथ करे जाही.
   -बहुत बढ़िया संगी.. आज अंगदान ले कतकों लोगन ल नवा जिनगी मिलत हे, फेर अभी घलो जागरूकता अउ उचित मार्गदर्शन के अभाव म कतकों लोगन चाह के घलो अंगदान नइ कर पावत हें.. जरूरी हे के शासन डहर ले अइसन कई किसम के उदिम करे जावय, जेकर ले लोगन अंगदान खातिर प्रोत्साहित तो होवँय संग म उनला उचित मार्गदर्शन घलो मिलत राहय.
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-मोर नाती ह आज पूछ परिस जी भैरा के परब अउ तिहार म का अंतर होथे.
   -एमा का अंतर जी कोंदा.. उही परब अउ उही तिहार.
   -चिटिक अंतर होथे सगी.. वोकर गुरुजी बतावत रिहिसे कहिथें- जेन तिहार ल सिरिफ उत्सव मंगल के रूप म मनाथन वो तिहार अउ जेमा पूजा-पाठ उपास-धास करथन ते ह परब.
   -हमन तो आजतक जम्मो च ल एकमई सरेखत रेहेन संगी.. यहा बुढ़त काल म अइसन सुने-गुने ले मिलही तेकर कभू सरेखा नइ करे रेहेन.
   -सिरतोन आय जी.. उँकर कहे के मतलब हे- जइसे हमन नवरात म जबर पूजा-पाठ, उपास-धास करथन तेला परब कहि सकथन.
   -अच्छा.. नवरात जइसन उपास-धास वाले मन परब कहाही?
   -हव.. अउ जइसे देवारी म बिना उपास-धास करे सिरिफ उत्सव-मंगल मनाथन वो ह तिहार कहाही.
   -गुने के लइक बात आय संगी अब चेत राखे बर लागही.. कोन-कोन ह परब आय अउ कोन ह तिहार.
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-बस्तर म किसानी के संगे-संग कतकों लोगन के कुलदेवता के रूप म पूजे जाने वाले भीमादेव ल रुद्रशिव ही आय कहिथें जी भैरा.
   -अच्छा.. जेकर अभी सावन म गजब पूजा वंदन करे जावत रिहिसे तेने भीमादेव ल जी कोंदा?
   -हव.. बस्तर के पत्रकार हेमंत कश्यप के अभी एक लेख पढ़त रेहेंव, जेमा उन बतावत हें- बिलासपुर जिला के ताला म जेन रुद्रशिव के मूर्ति हे, लगभग वइसनेच साज-श्रृंगार भीमादेव के घलो हे. 
   -अच्छा..!
   -हव.. ताला म रुद्रशिव के जेन मूर्ति हे तेकर एक अनुकृति जगदलपुर संग्रहालय म घलो हे.. भीमादेव के अलंकरण के संबंध म उन जानकारी दिए हें- उँकर मुड़ी म महामंडल साँप के पगड़ी बँधे हे. टोकी-बोंड़की साँप के उन जनेऊ पहिने हे. दूधनाग के कौपीन धारण करे हें. बंदूक माना साँप के कमरपट्टा कनिहा म लपेटे हें अउ सुपली साँप वोकर पाँव के पैजन बने हे.
   -ददा रे.. अतेक भयानक..!
   -हव.. अतेक भयानक अलंकरण हे भीमादेव के.. रुद्रशिव के अलंकरण घलो लगभग अइसने हे.. उँकर पूरा देंह म कतकों जीवजंतु अउ देवता मन हवँय.
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