छत्तीसगढ़ी व्याकरण की रचना सर्वप्रथम सन् 1885 में हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा की गई थी, जिसका सन् 1890 में विश्व प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ने अंगरेजी अनुवाद कर छत्तीसगढ़ी और अंगरेजी भाषा में संयुक्त रूप से छपवाया था, तथा यह टिप्पणी की थी कि उत्तर भारत की भाषाओं को समझने में यह छत्तीसगढ़ी व्याकरण काफी उपयोगी साबित होगा।
ज्ञात रहे, उस समय तक हिन्दी का कोई सर्वमान्य व्याकरण प्रकाशित नहीं हो पाया था। हिन्दी व्याकरण सन् 1921 में कामता प्रसाद गुरु के माध्यम से प्रकाशित हो पाया था।
हीरालाल काव्योपाध्याय का वास्तविक नाम हीरालाल चन्नाहू था, लेकिन 11 सितंबर 1884 को गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के भाई की संस्था द्वारा कलकत्ता में उन्हें काव्योपाध्याय की उपाधि प्रदान की गई थी, तब से वे अपना नाम हीरालाल काव्योपाध्याय लिखते थे। हीरालाल जी का जन्म छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तात्यापारा नामक मोहल्ले में हुई थी। किन्तु उनका पैतृक गांव धमतरी जिला के अंतर्गत ग्राम चर्रा (कुरुद) है।
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