चलो दीप फिर आज जला दें,श्रम के सभी ठिकानों पर
नीर बहाते कृषक-झोपड़े, और खेतों के मचानों पर......
आज दृश्य विकराल बड़ा है, मुंह बाएं आकाल खड़ा है
अन्नदाता की झोली खाली, तिस पर सेठ का कर्ज चढ़ा है
नाचे फिर खुशहाली कैसे, उमंग भरे तरानों पर......
बस्तर की सुरकंठी मैना, नक्सल-भाषा सीख गई है
घोटुल सारे उजड़ रहे हैं, इंद्रावती भी रीत गई है
सल्फी-लांदा अब नहीं सुहाते, उत्सव के मुहानों पर....
खेतों पर अब फसल सरीखे, उग रहे हैं कारखाने
गांव-गली में वीरानी पसरी, उजड़ गये हैं आशियाने
ये कैसी परिभाषा विकास की, राजनीति की दुकानों पर....
सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811
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