सारे बंदर फुदक रहे हैं, लुटेरों के वेश में
क्या सोचे थे, क्या हो गया, बापू तेरे देश में.....
पहला बंदर आंख मंूदकर, सत्ता पर जा बैठा है
मचा हुआ है हाहाकार, पर अचेत वह लेटा है
तांडव कर रहा भ्रष्टाचार, छद्म सेवा के भेष में....
दूसरा बंदर मुंह छिपाकर, जा बैठा मंत्रालय में
सारा समाधान पा जाता, वह बैठे मदिरालय में
फिर खुशहाली का नारा गूंजता , जनता के अवशेष में....
तीसरा बंदर कान दबाकर, तौल रहा है लोगों को
जन-हित को अनसुना कर, बढ़ा रहा उद्योगों को
तब कैसे आयेगा राम राज्य, बापू इस परिवेश में....
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 098269 92811
बंदर हमारे पूर्वज, हमारे भाई-बंद.
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