अभी तक साहित्यिक गोष्ठियों में या फिर कवि सम्मेलन के मंचों पर कविता पाठ करते थे। लोग तालियां बजाते थे, वाह..वाह.. कहते थे, तो उत्साहिक होकर और भी मस्त हो जाते थे। लेकिन अभी बीते रविवार को एक वीडियो शूट के लिए रिकार्डिग स्टूडियो में अकेला खड़े होकर कविता पाठ करने का अवसर मिला। न कोई वाह कहने वाला... न ताली बजाने वाला... समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं सही-सलामत पढ़ रहा हूं या नहीं.... हेडफोन जरूर था कान में... लेकिन हम लोग तो दूसरों की प्रतिक्रिया के आधार पर ही अच्छा या बुरा मानने के आदि हो चुके हैं।
आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी कविता पाठ करने का अवसर आता रहा है... लेकिन वहां अन्य कवि मित्रों की वाहवाही तो मिल ही जाती थी।
निश्चित रूप से रिकार्डिंग स्टूडियो का यह अनुभव... बिल्कुल नया अनुभव रहा.....
पहली बार नए काम में अटपटा लगता ही है .. धीरे धीरे आदत हो जाती है तब ठीक ठाक लगने लगता है ..
ReplyDelete... शुभकामनायें
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Deleteधन्यवाद कविता जी,
Deleteश्रोताअों के बीच गाने वाले को बंद कमरे में गवाना कालकोठरी में बंद कर देने जैसा लगता है..
बढिया अनुभव, अब आपकी कविताओं की एक सीडी भी निकाल दें लगे हाथ तो उत्त्म होगा।
ReplyDeleteधन्यवाद ललित जी,
Deleteबस एक-दो दिनों में पोस्ट करना आरंभ करूंगा... देखिएगा..