जा बदरिया जा, ले जा ये संदेश
पिया मिलन को आ रही, नदी तुम्हारे देश.... ले जा...
बचपन बीता पर्वत-पर्वत, कभी झील कभी झरनों में
ऊंचे-ऊंचे हिम-शिखर और, घने लहराते वनों में
छूटी गोद माता की, अब जाना है दूर देश... ले जा...
किशोरावस्था मैं खेली-कूदी, खेतों और खलिहानों में
अपने तट पर बसे हुए, तीरथ देवस्थानों में
किसानों को समृद्ध किया, मिटाए सारे क्लेश... ले जा...
अब तो यौवन छलक रहा है, जैसे हो मधु का प्याला
अपना ही अंतस झुलस रहा है, धधक रही जैसे हो ज्वाला
प्रीतम सागर से मिलने, अब ली है दुल्हन वेश.. ले जा...
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
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