(दोनों फोटो गूगल से) |
लाहकत हे भोंभरा अउ घाम, छइहां अब नीक लागय
अंगरा बन उसनत हे चाम, रतिहा अब नीक लागय....
जुड़-जुड़ बोलथे अब चंदा-चंदैनी
मन होथे मिल लेतेंव लगाके निसैनी
सुरुज के सुरता झन करा, लपरहा बर खीक लागय...
कइसे पहाही ये जेठ-बइसाख ह
जिनगी जहर होगे अउ जीये के आस ह
तरा-ररा चुहथे पछीना, ये नून के बड़े ढीक लागय...
गरती हे आमा अउ अमली झरती
टोटा जुड़वाय बर माटी के करसी
भइंसा म चढ़के तउंरई, तरिया अब नीक लागय...
सुशील भोले
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
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