** अपन देवता के कब पॉंव परबोन..? **
संगी हो आज धरम अउ संस्कृति के नॉव म मैं इहाँ के लोगन ल आने-आने लोगन के पाछू भेड़िया धसान बरोबर अंखमूंदा किंजरत देखथौं, त हमर पुरखा संत कवि पवन दीवान जी के वो बात के खॅंचित सुरता आथे, जब उन काहंय- 'अरे पर के पाछू किंजरइया हो.. हम अपन देवता के कब पॉंव परबोन.? '
संत कवि पवन दीवान जी जब वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. परदेशी राम जी वर्मा के संग मिल के 'माता कौशल्या गौरव अभियान' के मैदानी बुता चालू करिन, त एक बात ल वो मन हर मंच म कहंय- "बंगाल के मन अपन देवी-देवता धर के आइन, हम उंकरो पॉंव परेन, उत्तर प्रदेश बिहार के मन अपन देवी-देवता ल धर के आइन, हम उंकरो पॉंव परेन, गुजरात अउ पंजाब के मन अपन देवी-देवता धर के आइन, हम उंकरो पॉंव परेन। ओडिशा, महाराष्ट्र अउ आंध्र के मन अपन देवता धर के आइन हम उंकरो पॉंव परेन. बस चारों मुड़ा के देवी-देवता मन के पॉंव परइ चलत हे। त मैं पूछथंव- अरे ददा हो, बस हम दूसरेच मन के देवी-देवता मन के पॉंव परत रहिबोन, त अपन देवी-देवता मन के पॉंव कब परबोन? एदे देख लेवौ उंकर मनके देवता के पॉंव परई म हमर माथा खियागे हे, अउ ए परदेशिया मन एकरे नॉव म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागे हें."
ए बात ह सोला आना सिरतोन आय संगी हो.. अउ अइसन दृश्य ले बॉंचे खातिर ए जरूरी हावय के अब एकर खातिर मैदानी रूप म भीड़ना हे.
का हमूं मन अपन इहाँ के मूल देवी-देवता मन के पूजा उपासना के विधि अउ उंकर गौरव गाथा के प्रचार-प्रसार ल दुनिया भर नइ बगरा सकन? तेमा दुनिया के लोगन, हमर इहाँ के पारंपरिक देवी-देवता, हमर पूजा विधि, हमर जीवन पद्धति ल जानंय अउ अपनावंय?
"आदि धर्म जागृति संस्थान" के नॉव ले हमन अभी जे उदिम चलाए के जोखा मढ़ाए हावन, अउ अपन सख भर जनजागरण के बुता घलो करतेच रहिथन, तेने ह असल म अपन मूल देवी-देवता मन के पॉंव परे के ही उदिम आय। त आवव, आप सब जम्मो झन मिल के हमर अपन इहाँ के पारंपरिक देवी-देवता के, हमर अपन जुन्ना पूजा अउ उपासना विधि ले पॉंव परन, उंकर अलख जगावन, हमर अपन भाखा- संस्कृति के, हमर इतिहास अउ गौरव के, हमर सम्पूर्ण अस्मिता अउ जीवन पद्धति के सोर ल पूरा दुनिया म बगरावन।
संगी हो एक बात ल तो गॉंठ बॉंध के जान लेवौ, के छत्तीसगढ़ आध्यात्मिक रूप ले अतका समृद्ध अउ पोठ हे, ते हमला कोनो भी एती-तेती आने देश-राज के न तो कोनो संत के जरूरत हे, न कोनो ग्रंथ के जरूरत हे अउ न ही कोनो देवता के। हमर इहाँ सब हे, जरूरत बस अतके हे के हम अपन मूल ल जानन समझन, कोनो भी दूसर के बताए भरमजाल ले बाहिर के आवन.. अपन पुरखौती देवी-देवता, पूजा विधि अउ जीवन पद्धति ल आत्मसात कर लेवन, तहाँ ले कोनो भी मनखे धार्मिक या सांस्कृतिक रूप ले न तो हमला अपन गुलामी के रद्दा म रेंगा सकय, न कोनो गुरुघंटाल के रूप म हमर मुड़ी म चघे के हिमाकत कर सकय।
जोहार छत्तीसगढ़.. जय मूल धर्म
-सुशील भोले, आदि धर्म जागृति संस्थान
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