Thursday, 14 January 2021

छट्ठी-बरही...

छट्ठी-बरही...
   हमर संस्कृति म अलग अलग कारज के अलग अलग महत्व हे. जम्मो कारज के एक विशेष महत्व होथे, एमा छट्ठी-बरही के घलो अपन महत्व अउ विधान हे.
   जब काकरो घर म लइका अवतरथे थे त तीन दिन म महतारी ल बरही नहवाये के नेंग पूरा करे जाथे अउ छै दिन बाद छट्ठी नेंग ल राखे जाथे। छट्ठी के आगू दिन संझा बेरा माईलोगिन मन ल कांके चाहा पिये बर बलाए जाथे। कांके चाहा पिये बर बलाये के सेती गांव म अरोसी-परोसी सब एक साथ मिलजुल के खुसी मनाये के मौका पाथें।  
   माइलोगिन मन बर एक विशेष प्रकार के पेय पदार्थ बनाये जाथे ओला कांके चाहा कहे जाथे. कांके चाहा म अलग अलग प्रकार के उरई के जर जइसन जड़ी बूटी डार के अउ करिया तिली म बघार के बनाये जाथे, उही ल कांके चाहा कहे जाथे। उही कांके  ल  लईका पाये बर आये माईलोगिन मन ल देथें। कांके पियईया माईलोगिन मन  लइका ल कोरा म पाके   आसिरवाद देथें।
कांके चाहा के बिहान दिन छट्ठी के कार्यक्रम रख जाथे,  जेमा घर म सब सगा सोदर मन आथें. सब परिवार एक जगह जुरिया के खुशी मनाथें. छट्ठी के दिन बाबू पिला मन लईका ल आसिरवाद देहे बर आथे बाबू पिला मन चाय नास्ता देथे। अउ जेला अपन सांवर बनवाना रइथे ओहा मरदनिया तिरन बईठ के अपन सांवर बनवाथें। घर के बाबू पिला मन तको   सांवर बनवाथें। घर के मनखे अउ सब सगा  सोदर मन सब्बो झन जुरिया के अपन अपन घर के हाल चाल के गोठ बात करत सब बइठे रइथें।
   संझा बेरा म पहिलावत लईका होये रथे त समधियानो घलो आथे. ए समधियानो के नेंग म  समधिन मन ल गांव के चौक ले घर तक परघा के लाये जाथे. समधिन मन घर पंहुचथें तहांले  सुग्घर गोड़ हाथ धोवाके बइठार के चाहा नास्ता दिए जाथे । अवतरे लइका ल लानके आये समधियानो मन ल पवाके आशिर्वाद लेवाए जाथे.  मुंधियार के गाँव बस्ती के भजन टोली वाला मन ल बुलाके घर म गायन भजनअउ सोहर गीत गवाये जाथे.  उहिच बेरा म नानुकअवतरे नान्हे लइका के नाव घलो धराये जाथे. एकर सेती एला नामकरण संस्कार घलो  कहे जाथे.ये जम्मो नेंग जोंग ह छै दिन के कार्यक्रम ल रखाथे तेकर सेती छट्ठी के नाम ले जाने जाथे।...

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