Thursday, 14 January 2021

तिल सकरायत ऊपर लोककथा...


     'तिल सकराएत' उपर लोककथा..
"उठ पुतुर तिल पुर्री"
    
     एक गाँव म एक झन महतारीअउ वोकर बेटा राहय। तिल सकराएत के दिन तिल के लाड़ू बनथे। तेखरे सेती वो दिन महतारी ह बड़े बिहनिया ले तिली ल धो डरे राहय। थोरिक घाम के रोस बाढ़िस तहाँ ले खटिया ल खोर म मढ़ा के सुग्घर चद्दर बिछा के तिली ल सुखोय बर बगरा दिस। ए बात ल तो सबो जानथन, के कोनों भी जिनिस ह पानी म भीजे ले फुल के बड़का असन हो जाथे। भीजे चना, उरीद, मूँग ल तो देखेच होहू। फेर तो वो तिली राहय। धोय-भीजे तिली के साइज सुक्खा तीली ले दुगुना अउ अढ़ई गुना बाढ़ जाथे। तिली पूरा खटिया भर बगर जाथे। महतारी के पाँच छै बछर के एक झन बेटा राहय तेला वोहा चेतावत कहिथे- "देखे रबे रे बेटा, कुकर-माकर अउ गाय गरू के। तिली सुखावत हे, अउ तहूँ झन खाबे। लाड़ू बनाहूँ तब खाबे। मैं तरिया ले कपड़ा-लत्ता काँच-पखार के अउ नहा-खोर के आवत हँव। तलघस तिली सुखा जही।"
    तिली जतके जल्दी भीजथे ओतके जल्दी सुखाथे घलो। नहा के आवत ले तिली सुखा के खटिया भर ले आधा हो जाय राहय। तेला देख के महतारी ल भरोसा नइ होय के तिली कइसे अधिया गे। सोचथे के टूरा ह लालच मा आधा तिली ल भकोस डरे होही। टूरा ल पूछिस त टूरा काला बतावय। वो बपुरा ह तो मुँह बाँधे रखवारी करत रिहिसे। फेर महतारी के गोड़ के रिस तरुवा म चघ गे। नानकुन लइका ल कुटकुट ले छर डरिस। लइका कोन्टा डाहन पटियागे। फेर रिस म महतारी ल लइका के दसा के ज्ञान नइ हो पाइस। रिसे-रिस म महतारी तीली ल सकेल के उही डब्बा म भरथे जेन म नाप के निकाले राहय। देखथे तौ ओखर मुँह ले अकस्मात निकल जथे, अइ! तिली तो जस के तस हे। अउ मैं फोकटे-फोकट नानकुन लइका उपर उरहा-धुरहा हाँत उठा डरेंव। अउ तुरते पटियाय लइका करा जाके हुत कराय ल लगथे, "उठ पुतुर (पुत्र) तिल पुर्री, उठ पुतुर तिल पुर्री।" पुतुर कहाँ उठने वाला हे। वो तो हमेसा बर सुत गे राहय।
  रिस म मनखे काय करत-करत काय कर डारथे नोनी-बाबू हो, तेन ल ये कहिनी ले जानव। जादा रिस कभू अउ काखरो बर अच्छा नइ होय।
दार-भात चुर गे, मोर कहिनी पुर गे।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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