Sunday, 8 January 2023

बसंत पंचमी म अंडा पेंड़ के गोठ

गुनान//
बसंत पंचमी म अंडा पेंड़ के गोठ
    बसंत के मादकता भरे मौसम म अंडा पेंड़ के गोठ करई ह बड़ा उजबक बानी के जना सकथे. फेर जे मन छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति अउ ओकर ले जुड़े परंपरा अउ महत्व ल जानथें, उन ए बात ल ठउका जानथें-समझथें, के इही दिन इहाँ होले डांड़ म अंडा पेंड़ ल बइगा के अगुवाई म पारंपरिक तरीका ले  पूजा-पाठ कर के गड़ियाए जाथे. तहाँ ले एकरे संग इहाँ होलिका /काम दहन परब के शुरुआत हो जाथे. लइका मन के एती-तेती ले लकड़ी टोर-खोज के लाना, होले बढ़ाना तहाँ ले फेर अधरतिहा के होवत ले नंगाड़ा के ताल म फाग सर्राना चालू हो जाथे, जे हा फागुन पुन्नी तक सरलग करीब 40 दिन तक चलथे.
    इहाँ ए जानना जरूरी हे, के छत्तीसगढ़ म जेन होली के परब मनाए जाथे, वो ह असल म 'काम दहन' के परब आय 'होलिका दहन' के नहीं. एकरे सेती ए पूरा चालीस दिन के परब ल 'मदनोत्सव' या 'वसंतोत्सव' के रूप म घलो जाने जाथे, जेला माघ महीना के अंजोरी पंचमी ले फागुन पुन्नी तक लगभग चालीस दिन तक मनाए जाथे.
    इहाँ सुरता राखे के लइक ए बात हे, के सती आत्मदाह के बाद जब भगवान भोलेनाथ ह कठोर तपस्या म चले जाथे, तब अतलंगी करत असुर ताड़कासुर के संहार खातिर देवता मन  तपस्यारत शिव जगा कामदेव ल भेजथें, तेमा शिव के तपस्या भंग होवय, ओकर भीतर काम के उदय होवय अउ फेर वोहा पार्वती संग बिहाव करय, जेकर ले शिव पुत्र (कार्तिकेय) के प्राप्ति होवय. काबर ते ताड़कासुर ह शिव पुत्र के हाथ ले ही मरे के वरदान मांगे रहिथे.
    देवता मन के अरजी-बिनती करे म कामदेव ह बसंत के मादकता भरे मौसम ल उचित गुन के अपन सुवारी रति संग तपस्यारत शिव जगा जाथे, अउ फेर वासनात्मक नृत्य-गीत अउ दृश्य के माध्यम ले शिव तपस्या भंग करे के उदिम म भीड़ जाथे. जे ह शिव जी के द्वारा अपन तीसर आंखी ल खोल के कामदेव ल भसम करत तक चलथे.
     छत्तीसगढ़ म बसंत पंचमी (माघ अंजोरी पंचमी) के दिन होले डांड़ म जेन अंडा के पेंड़ (पौधा या डारा) गड़ियाए जाथे, वो ह असल म कामदेव के आगमन के प्रतीक स्वरूप ही होथे. एकरे संग फेर इहाँ वासनात्मक शब्द, गीत अउ नृत्य के माध्यम ले मदनोत्सव के सिलसिला चल परथे. पहिली इही बखत इहाँ 'किसबीन नाच' के परंपरा घलो रिहिसे, जेला 'रति नृत्य' के प्रतीक स्वरूप आयोजित करे जावय. अब ए ह एक्का-दूक्का जगा भले देखे ले मिल जाथे, फेर जादा करके नंदाय असन ही होगे हे.
    'होलिका दहन' के संबंध ह छत्तीसगढ़ म मनाए जाने वाला परब संग कोनो जगा नइ दिखय. गुने के लाइक बात तो इहू आय- होलिका तो सिरिफ एके च दिन म चीता रचवा के वोमा आगी ढिलवाथे अउ खुदे वोमा जर के भसम हो जाथे. तब भला ओकर खातिर चालीस दिन के परब मनाए के बात कइसे सही हो सकथे? अउ फेर ए बखत वासनात्मक शब्द, गीत-नृत्य के चलन चलथे, ओकर संग होलिका के का संबंध हे?
    मैं हमेशा कहिथौं, छत्तीसगढ़ के संस्कृति सृष्टिकाल के संस्कृति आय. युग निर्धारण के दृष्टि ले कहिन त सतयुग के, जेला ओकर मूल रूप म समझे खातिर इहाँ के पारंपरिक रूप ल जड़ के जावत हे समझे के जरूरत हे. ए संबंध म अपन पहिली के आलेख मन म घलो आरो करत रेहे हौं. हमला आने-आने राज्य म उहाँ के संस्कृति मन के मापदंड लिखे गे ग्रंथ मनला जस के तस अंखमून्दा अपन संस्कृति के मानक के रूप म धरे के उदिम ले बांचे बर लागही. तभे हम छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के मूल स्वरूप ल जाने पाबो, ओकर असल रूप ल बंचा पाबो.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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