कोंदा भैरा के गोठ-11
-ए बखत नवा मुख्यमंत्री अउ जम्मो मंत्री मन संग विधायक मन इहाँ के राजभाखा छत्तीसगढ़ी म शपथ लेहीं के नहीं जी भैरा.
-लेना तो चाही जी कोंदा.. अरे भई जब इहाँ के विधानसभा म सर्वसम्मति ले प्रस्ताव पास कर के हिंदी के संग म छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा के दर्जा दिए गे हवय, त वोकर पालन ल घलो तो करना चाही ना.
-बात तो तैं सोला आना कहिथस जी संगी फेर इहाँ के अधिकारी मन कतकों बखत डेढ़ होशियारी कर देथें.
-कइसे भला?
-वो मन अभी छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म संघारे नइए कहिके अटघा डारे के उदिम कर देथें.
-अइसे कइसे हो सकथे, जब इहाँ के विधानसभा म राजभाखा के रूप म मान्यता देवत प्रस्ताव पारित हे, त वो मनला सोझबाय छत्तीसगढ़ी म शपथ देवाना चाही.
-वो बखत के शपथ ग्रहण म तो अइसने अटघा डारे रिहिन हें.. देखव भई ए बखत कइसे करथें ते.
-सोझबाय करना चाही जी.. एकर खातिर इहाँ के जम्मो विधायक अउ संबंधित लोगन ल चिटिक चेत घलो करना चाही.
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-हमर इहाँ बाहिरी-भितरी के मुद्दा ल लेके कई ठन पार्टी बनगे हवय जी भैरा जे मन विधानसभा ले लेके अउ आने चुनई म अपन उपस्थिति दर्ज कराए के उदिम करत रहिथें.
-हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. करना घलो चाही, काबर ते ए मन राष्ट्रीय पार्टी वाले मन के सिद्धांत ले अपन अलग सिद्धांत के आधार म इहाँ राज-काज चलाना चाहथें.
-हाँ ए बात तो हे.. हमू मन जब छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरे राहन, त अइसने बानी के सिद्धांत ल लेके ही वोमा जुरे रेहेन.
-सही आय काबर ते कोनो भी राष्ट्रीय पार्टी ह क्षेत्रीय अस्मिता के मापदंड म कारज नइ कर सकय, वोकर मन के मानक ही अलग होथे. एकरे सेती मोर ए कहना हे- जब सबो क्षेत्रीय पार्टी लगभग एके जइसे उद्देश्य ल लेके चुनावी मैदान म उतरथें, त सब अलग-अलग खेमाबंदी म काबर रहिथें.. सबो एकमई होके चुनई नइ लड़ सकंय का? कहूँ ए मन एक होके लड़तीन त अभी ले जादा लोगन के सहयोग अउ समर्थन मिलतीस.
-हाँ ए बात तो हे संगी, फेर सब के मुखिया बने के अपन साध होथे ना.. तभे तो ए सब अपन-अपन गौंटियई म मगन रहिथें.
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-बधाई हो जी भैरा.. मूल निवासी समाज के मुड़ म इहाँ के मुखियई के पागा खाप डारेव तुमन ए बखत.
-हव जी कोंदा तहूं ल बधाई.. हमर मनसुभा रिहिसे के आरुग छत्तीसगढ़िया ल ही इहाँ के मुखिया बनाए जाय.. वाजिब म गजब निक जनावत हे संगी, अब भरोसा होवत हे के इंकर अगुवई म गारंटी के रूप म जेन घोषणा पत्र जारी करे गे रिहिसे वोमा के जम्मो कारज ह पूरा होही.
-हव जी भरोसा तो हमूं मनला होवत हे के अब इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता के बढ़वार होही, राज्य आन्दोलन के बखत हमर पुरखा मन के ए राज के अस्मिता के स्वतंत्र चिन्हारी के जेन सपना देखे रिहिन हें, तेन ह पूरा होही, चारों खुंट छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परंपरा के दर्शन होही.
-हव जी अउ एकर शुरुआत ए मनला छत्तीसगढ़ी राजभाखा म शपथ ग्रहण कर के करना चाही, काबर ते भाखा अउ संस्कृति इही दूनों ह कोनो भी देश अउ राज के चिन्हारी के मानक होथे.
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-सत्ता म आए बदलाव के संग शासन-प्रशासन के कतकों काम-काज म घलो बदलाव देखे बर मिल जाथे जी भैरा.
-हव जी कोंदा ए बात तो हे. दलगत राजनीति के ए ह दुखद रूप आय, जेला सबो राज अउ दल म देखे जाथे.
-अभी देखना इहाँ गोबर खरीदी चलत रिहिसे, तेमा गरीब परिवार के कतेक माईलोगिन मनला रोजगार मिलत रिहिसे, गोबर के दीया, गोकाष्ठ, पेंट, पुट्टी सब बनत रिहिसे, फेर अब गोबर खरीदी बंद करे के आदेश के मिलते जम्मो महिला समूह मन के आगू म रोजी-रोटी के संकट जनावत हे.
-हव जी ए बपरी मनला कांग्रेस-भाजपा से का लेना-देना.. इन तो जॉंगर भर कमाथें तब कहूँ जाके घर के चुल्हा म आगी सिपचा पाथें.
-वइसे अभी तो इनला मौखिक आदेश भर मिले हे, लिखित आदेश के मिलते पूरा राज भर के हजारों महिला समूह के आगू म अंधियारी छा जाही.
-सही आय जी.. अउ एकरे संग इहाँ के गोबर दीया ले भगवान के धाम ह देवारी परब म जगमगाए रिहिसे तइसने कतकों गरब करे के लाइक खबर मन घलो बुता जाहीं.
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-मूल निवासी मनला इहाँ के मुखिया बनाए हे कहिके गजब गदकत रेहेन जी भैरा.. एकरे सेती उनला ज्ञापन अउ जम्मो मिडीया मन के माध्यम ले हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म शपथ ले बर गोहराए रेहेन, फेर वो मन तो ए डहार चेते नइ करीन.
-हव जी कोंदा इही बात ह महूं ल अलकरहा बानी के जनाइस हे. इहाँ के पढ़इया लइका मन ले लेके सियान-सामरत सबो झन छत्तीसगढ़ी म शपथ ले खातिर गोहराईन फेर सब बिरथा होगे.
-हव जी.. अउ तैं शपथ ग्रहण समारोह ल देखे हावस, वो मंच हमर राजगीत- 'अरपा पैरी के धार..' के गायन घलो नइ होइस.
-अतकेच नहीं संगी, वो मंच म छत्तीसगढ़ महतारी के छापा ल घलो एक कोंटा म टिकली बरोबर चटका दिए रिहिन हें भइगे.
-मोला तो ए सबो लच्छन ह बने नइ जनावत हे संगी.. फेर इहाँ राष्ट्रीयता के नॉव म क्षेत्रीय उपेक्षा के खेल तो नइ चालू हो जाही?
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-अभी के शपथ ह हमर चिन्हारी ऊपर गरहन धरे बरोबर होगे जी भैरा तभो ले बड़का नामधारी मन के एको प्रतिक्रिया सोशलमीडिया म देखे-पढ़े बर नइ मिलिस.
-इही बात ल तो महूं गुनत रेहेंव जी कोंदा.. इहाँ के भाखा, राजगीत अउ छत्तीसगढ़ महतारी के एक किसम ले हिनमान बरोबर होगे तभो ले कोनोच लंबरदार मन के ए बात ऊपर आरो नइ सुनाइस.. कहूँ ए सब अपन-अपन ले दरबारगिरी म तो मगन नइ होहीं?
-कइसे ढंग के जी?
-अतको ल नइ जानस बइहा.. काकर दरबार म हाजरी बजाबोन त कोन पद ल पाबोन अउ काकर म जाबोन त काला पोगराबो अइसे ढंग के.
-अच्छा.. पद-पदवी पाए के जोखा म भीड़े होहीं कहिदे!
-एदे.. अब ठउका समझे.. हमन नान-नान मन अपन भाखा-संस्कृति के मान-गौन अउ मरजाद के चिंता-फिकर म अरझे रहिथन अउ ए बड़का मन सिरिफ पद के अमरई अउ मंच म फूल-माला पहिरई के जुगाड़ म.. अतके तो फरक हे उंकर अउ हमार म.
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-गीता जयंती के जोहार जी भैरा.
-जोहार जी कोंदा.
-आज हमन ल गीता म भगवान ह जेन निष्काम कर्मयोग के उपदेश दिए हे, तेकर सबले जादा आवश्यकता जनाथे जी संगी.
-हाँ.. ए बात तो महूं ल ठउका लागथे जी.. काबर ते लोगन अभी धरम-करम के नॉव म एती-तेती के छकल-बकल अउ देखावा म भीड़े जादा जनाथें.
-उहू बपरा मन के दोस नइहे संगी.. जइसे उंकर रद्दा देखइया मन अंगरी म आरो कराथें तइसे उन बपरा मन करत रहिथें, जोगड़ा बरोबर किंजरत रहिथें.
-हव जी इहू बात सही हे.. फेर आज के ए लोकतांत्रिक ढाँचा अउ भागमभाग के बेरा म कर्मयोग ही सबले श्रेष्ठ रद्दा हो सकथे संगी, एकरे माध्यम ले हम अपन जिनगी के सबो सांसारिक कर्तव्य ल पूरा करत मोक्ष के आसन म बिराज सकथन.
-सिरतोन आय संगी.. हम अपन जम्मो किसम के करम ल भगवान ल अर्पित कर के निश्चिंत भाव ले हर कारज ल करत जाइन त सिरतोन म ए जिनगी सुफल हो जाही.
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-हमन ए पढ़त-सुनत रहिथन के जब-जब धरम के हानि होथे तब-तब देवता मन आवत रहिथें.. का सिरतोन म अइसन होथे जी भैरा?
-गुनिक सुजन मन कहिथें तो अइसने जी कोंदा. हाँ.. ए बात अलग हे भई के हमर असन माया-मोह अउ अहंकार म बूड़े मनखे उनला चिन्हे नइ पावन.
-वो कइसे?
-अरे भई.. जे मन अइसन गढ़न के आथें वो मन सिरिफ अपन काम-बुता म मगन रहिथें.. कोनो किसम के बाजा-रूंजी बजा के नइ बतावत राहंय के देखौ.. चिन्हौ.. मैं कोन आॅंव कहिके.
-अच्छा..!
-हहो.. उन तो कर्मयोग के जिनगी जीयत अपन कारज ल करथें अउ कलेचुप चले जाथें घलो.. उनला जाने-समझे बर तो हमला लागथे.. फेर का करबे हमर मन के टकर तो चिक्कन-चॉंदन अउ लीपे-पोते मनला देखे-टमड़े परगे हे न.. त सीधा-सरल अउ बिन चुपरे-पोते मनखे ल कहाँ आकब कर पाथन.. अउ पाछू जब सबके बताए-गुनाए म गम पाथन त तरूवा धर के पछताए के छोड़ अउ कुछू नइ कर पावन.
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-नवा बछर के बधाई जी भैरा.
-तहूं ल बधाई जी कोंदा.. फेर ए नवा बछर ह हमर देश के पुरखौती परंपरा नोहय संगी.
-हाँ ए बात तो हे, फेर आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर म इही वाले नवा बछर के चलन देखे म जादा आवत हे.
-हाँ जी ए बात तो हे, हमरो देश के संसद अउ जम्मो शासन-प्रशासन ह एकरे मुताबिक अपन दिन-बादर ल जोंगथे, त बता भला हमन एकर ले कइसे बोचक सकथन?
-सही आय संगी.. देश के जेन संवैधानिक व्यवस्था हे, तेकर संग तो रेहेच बर लागही.. वइसे हमर देश म चैत महीना के अंजोरी पाख के एकम तिथि ल जादा कर के माने जाथे.
-हमर देश के कतकों भाग म कृषि ऊपर आधारित नवा बछर के घलो चलन म हे, जइसे- हमर छत्तीसगढ़ म बैशाख महीना के अंजोरी पाख के तीज तिथि जेला अक्ती परब के रूप म जानथन वोला नवा बछर के रूप म मनाए जाथे.
-हव जी अक्ती परब के दिन ही हमन खेती-किसानी के शुरुआत करथन. अपन-अपन खेत म बॉंवत के मूठ धरथन संगे-संग पौनी-पसारी अउ आने बनिहार-भूतिहार मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति करथन.
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-हमर बस्तर म आजो अइसन कतकों परंपरा हे जे मन अउ अन्ते देखब म नइ आवय जी भैरा.
-हव जी कोंदा ए बात तो हे, तभे तो इहाँ के संस्कृति अउ सभ्यता के खोज-खबर आजो लोगन करत रहिथें.
-हव जी.. अइसने एक परंपरा हे इहाँ के जिला मुख्यालय जगदलपुर ले 70 किमी दुरिहा बसे गाँव बिंता म. इहाँ के लोगन अपन सरग सिधारे नता-रिश्ता मन खातिर मसानघाट म नान्हे-नान्हे मचान असन कुंदरा बनाथें.
-अच्छा.. अइसे! .. वइसे ए ह अपन पुरखा मन के ऋण ले मुक्त होए के ठउका उदिम आय, जइसे हमन उंकर मन के पिंड दान अउ पितर पाख म सुरता करथन तइसे गढ़न.
-हव जी.. अपन नता-रिश्ता के मठ जगा उंकर आत्मा के बसेरा खातिर अइसन बनाए जाथे. वइसे ए परंपरा ह बहुतेच कमती जगा देखे म आथे. तोला कभू बिंता बजार जाए के मौका मिलय, त उहाँ के मरघट्टी जरूर जाबे अइसन कतकों कुंदरा देखे बर मिल जाही.
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-बधाई हो जी भैरा.. तुंहर मन के मॉंग अउ जनभावना के मुताबिक विधायक अउ प्रोटेम स्पीकर मन छत्तीसगढ़ी भाखा म शपथ लिन हें.
-मुख्यमंत्री अउ उप मुख्यमंत्री मनला घलो पहिली अइसने छत्तीसगढ़ी भाखा म शपथ देवाय रहितीन त जादा निक जनाय रहितीस जी कोंदा.
-चलो आखिर छत्तीसगढ़ी के चेत तो आईस राजभवन ल.. देर आए दुरूस्त आए ही सही.
-ए ह देर आए दुरूस्त आए वाले बात नोहय संगी.. असल म ए ह लहुट के भोकवा ठउर म हबरिस वाले बात आय.
-वो कइसे?
-काबर ते जे अधिकारी मन पहिली आठवीं अनुसूची के अटघा डार के छत्तीसगढ़ी भाखा के हिनमान करे के चरित्तर रचत रिहिन हें, उनला अब समझ आगे के इहाँ के विधानसभा म सर्वसम्मति ले राजभाखा के रूप म पारित छत्तीसगढ़ी म शपथ देवाय ले कोनो किसम के संवैधानिक उलंघन नइ होवय.
-अच्छा.. अइसे.
-हहो.. पहिली ले अधिकारी मन ए महत्वपूर्ण बात ल समझ जाए रहितीन त लोगन के नाराजगी संग इहाँ के महतारी भाखा के हिनमान के आरोप ल काबर पाए रहितीन.. एकरे सेती काहत हौं.. ए ह लहुट के भोकवा ठउर म हबरिस वाले बात आय.
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-दुनिया भर के लोगन लोकसभा या विधानसभा जइसन संवैधानिक सदन म अपन महतारी भाखा म शपथ लेबोन कहिके सरकार जगा गोहरावत रहिथें जी भैरा, फेर इहाँ के सदन म अइसनो लोगन देखे म आइन जे मन संस्कृत जइसे अइसन भाखा म शपथ लिन हें, जेकर इहाँ कोनो किसम ले सामान्य व्यवहार म आरो घलो नइ मिलय.
-हमर संविधान ह सबो लोगन ल अपन पसंद के भाखा म शपथ ले के अधिकार दिए हे जी कोंदा.. त लोगन अपन मनपसंद के भाखा म शपथ ले सकथें, एमा हीने अउ गुने के का बात हे?
-जे मन चापलूसी के डोंगा म सवार होके मंत्री पद पाना चाहथें, तेकर मन के तो अइसन उदिम ह समझ म आथे, फेर वो मनखे के अइसन करई ह अलकर जनाइस, जेकर पुरखा ल हमन अपन महतारी भाखा म आध्यात्मिक दर्शन दे हे कहिके गरब करथन.
-अब ए तो वोकर सोच अउ चिंतन ऊपर हे. वइसे ए बात जरूर हे, के काकरो कुल म जनम धरे भर म ही वो मनखे म अपन पुरखा के ज्ञान अउ संस्कार के संचार नइ हो जाय, एकर खातिर वोला खुद तप-साधना के भट्ठी म तपे बर लागथे.
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-अब तो छत्तीसगढ़ी भाखा म पोठ लिखे जावत हे जी भैरा.
-हव जी कोंदा ए बात तो हे. खासकर के नवा पीढ़ी के रचनाकार मन सबोच विधा म अपन कलम रेंगावत हें.
-कतकों झन तो बड़का-बड़का ग्रंथ मन के अनुवाद तो घलोक करत हें कहिके सुनाथे जी.
-हाँ अनुवाद तो होवत हे, फेर मोला लागथे के हमला मौलिक लेखन म ही जादा चेत करना चाही.
-अइसे का..?
-हहो.. हमर इहाँ के कतकों अइसन ऐतिहासिक व्यक्तित्व हें, जिंकर ऊपर अभी तक कोनो लिखे नइए, जबकि उंकर मन ऊपर खंचित लिखे जाना चाही. हमन सिरिफ अनुवाद के नॉव म आने क्षेत्र अउ राज के ऐतिहासिक लोगन ल ही अमरत रहिबोन, त अपन गौरव मनला कोन जगा ठउर देवा पाबोन? हमर भाखा तो सही अरथ म तभे पोठ होही, जब एमा हमर गौरव, हमर अस्मिता अउ हमर इतिहास संघरत जाही.
-हाँ ए बात तो सिरतोन आय संगी.. अपन भाखा ह अपन चिन्हारी मन के माध्यम ले ही सही मायने म पोठ अउ रोठ बनथे.
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