** झुमर के बरस रे बादर **
एसो अइसे झुमर के
बरसबे रे बादर,
लोगन के जम्मो
मन के मइल
धोवा जावय।
छल, कपट, इरखा के
चिखला
बने चिक्कन के
खलखल ले
बोहा जावय।
मया मितानी के
फूटय पिका
हिरदय के धनहा म
अउ फेर
घमघम ले
उपज जावय।
चम्मसहा
उसने
बोइर खोइला कस
जे हा
सबोच झनला
बने चोग्गर चोग्गर
गुरतुर भावय।
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना
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