Friday, 19 July 2024

सवनाही जोहार...

सवनाही जोहार.. 
     चौमसहा बरखा के आए के संग एकर परघनी करे अउ संग म अवइया रोग-राई आदि मन ले बॉंचे के जोखा होय लगथे. असाढ़ महीना के अमावस के जिहां जुड़वास या कहिन माता पहुंचनी मनाए जाथे, ठउका अइसने असाढ़ महीना के आखिरी इतवार के 'सवनाही परब' मनाए जाथे.
   सवनाही के शाब्दिक अर्थ होथे- सावन आही.. अब सावन आही त वोकर जोखा सरेखा घलो तो जरूरी हे. सवनाही ल हमर गाँव म असाढ़ के आखिरी इतवार के ही मनाए जाथे, कोनो कोनो गाँव म आने दिन घलो मना लेथें. एकर मनाए के परंपरा म घलो आने आने गाँव म थोक-बहुत अंतर देखे म आथे. जइसे कोनो गाँव के सरहद म करिया कुकरी के मुड़ म सेंदुर बुक के भूत-प्रेत रकसा आदि के भेंट खातिर ढील दिए जाथे, ए चलन ल हमन अपन गाँव म नइ देखे रेहेन. हमर गाँव म अइसन‌ तंत्र मंत्र रोग-राई वाले पूजा मनला घलो हमन हूम-धूप नरियर के माध्यम ले सात्विक विधि ले ही होवत देखे हावन.
   सवनाही परब के दिन बिहनिया ले ही सब जोखा सरेखा शुरू हो जाथे. बइगा ह मुंदरहा ले ही गाँव के अउ आने सियान मन संग मिल के ठाकुर देव, मेड़ो देव के संग म आने जम्मो ग्राम्य देवता अउ खेत-खार म बिराजित देवता मन के पूजा सुमरनी कर उनला मनाए के उदिम म लग जाथे, त दाई-माई मन घर के बाहरी भिथिया मन म गोबर के आदिम मनखे के चित्र या फेर बेंदरा आदि के छापा बनाथें. 
   हमर ग्रामीण संस्कृति म हनुमान जी ल लोक रक्षक देवता के रूप म प्रतिष्ठा प्राप्त हे, एकरे सेती सवनाही के बेरा म वोकरे प्रतीक स्वरूप बेंदरा के छापा भिथिया म बनाए जाथे. जइसे माता के रखवार के रूप म हनुमान जी ल लाली लंगुरवा कहि के जस गायन आदि म सुमरे जाथे ठउका वइसने सवनाही म घर के भिथिया म उंकर प्रतीक स्वरूप बेंदरा के रूप म अंकित करे जाथे.
   सवनाही म भिथिया म गोबर ले जेन छापा बनाए जाथे एकर वैज्ञानिक महत्व घलो हे. सावन भादो के गहिर बरखा म कतकों किसम के रोग-राई वाले जीवाणु मन जनमथें, जे मन घर म खुसरे के प्रयास करथे, अइसन बेरा म वो मन गोबर के बने छापा डहार आकर्षित होथे अउ उही म चटक के मर जाथे.
    ए दिन घर के सियान ह गरुवा मन के कोठा म मिंयार म बंधाय नरियर ल हेर के नवा नरियर ल नवा कपड़ा म लपेट के बॉंधथे. मालमत्ता मन के सुरक्षा खातिर कोठा म बंधाय नरियर ल बछर म एक बेर बलदे जाथे.
   सवनाही परब जेन दिन मनाए जाथे, तेकर पहिलीच गाँव म कोतवाल ह हॉंका पार दे रहिथे के फलाना दिन गाँव म सवनाही मनाए जाही, तेकर सेती कोनोच मनखे न तो गाँव ले बाहिर जावय अउ न कोनो किसम के बुता-काम करय. कहे जाय त ए दिन अनिवार्य रूप ले छुट्टी घोषित होथे. कहूँ कोनो मनखे ए आदेश के अनदेखा करही, त वोला डांड़-बोड़ी के भागीदार बनना परथे.
   इतवार के गरुवा ढीलाते पहाटिया ह गाँव के सबो मवेशी मनला खैरखा डांड म सकेल के ठोक देथे, तेकर पाछू मवेशी मन के गोंसइया मन परसा पान म कोड़हा के बने अंगाकर रोटी के संग जल धर के आथे अउ राउत संग बइगा ल देथे, जेला धर के बइगा अउ राउत मवेशी मन के संग गाँव के उत्ती मुड़ा गाँव के सियार म जाथे अउ सवनाही देवी के पूजा करथे. पूजा करे के पाछू वो कोड़हा के अंगाकर रोटी ल सवनाही देवी ल समर्पित करे जाथे, बॉंच जथे तेन अंगाकर ल गरुवा मनला खवा दिए जाथे. बइगा लेगे जल ल अभिमंत्रित कर के किसान मनला देथे, जेला किसान मन अपन अपन खेत म जाके छींच देथें. मान्यता हे के अभिमंत्रित जल ल छींचे म खेत म रोग-राई नइ संचरय.
   पूजा खातिर बइगा ह जेन पद्धति के माध्यम ले सिद्धी पाए रहिथे उही माध्यम के प्रयोग करथे. हमर गाँव म दू अलग अलग बइगा रिहिन हें, एक ल हमन डोंगहार बबा काहन, जेन केंवट समाज के रिहिसे, त दूसर ह ब्राह्मण समाज के रिहिसे, जेला मदन महराज काहन. एकरे सेती दूनों के तांत्रिक क्रिया म थोकिन अंतर देखे म आवय. फेर एक बात संहराय के लाइक रिहिसे के ए दूनों बइगा मन म कोनो बात ल लेके मन मुटाव होवत हमन कभू नइ देखेन, भलुक दूनों एक दूसर के सम्मान अउ सहयोग करयं अउ अलग अलग बेरा म अलग अलग नेंग म संघरंय.
   वइसे तो मोर पढ़ई लिखई ह जादा कर के शहर म होय हे, तभो अइसन परब या प्रसंग आवय त मैं गाँव पहुँच जावत रेहेंव अउ बइगा के अगुवाई म होवत अइसन प्रसंग म सियान मन संग संघर जावत रेहेंव. मोला सुरता हे हमन पूजा खातिर रखे थारी, लोटा, गिलास अउ छेना म माढ़े आगी के अंगरा मनला ही धरे के काम करन. सवनाही के परसाद ल बाहिर म ही खाए के नियम हे. एला धर के घर नइ लेगे जाय. इही ह सियान मन संग रात भर किंजरे के हमर मन के असली लालच राहय. 
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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