सुशील भोले के सुन लेवव ये आय मोती बानी
सार-सार म सबो सार हे, नोहय कथा-कहानी
कोनो काम करे के पहिली मन म वोला गुन लेवव
नफा-नुकसान का होही सुपा म पहिली फुन लेवव
श्रद्धा के फल मिलथे वइसे जस चौमास के बरसा
कइसनो दनगारा छांड़े राहय, हरियाथे पूरा धरसा
जन सेवा ले बढ़ के नइये ये दुनिया म कहूं धरम
अपना लेथे जे ये मारग ल उही जानथे एकर मरम
काबर चुपरे राख ल बइहा, बनय ते मया चुपर लेना
छोड़ कपड़ा के उजराई, हिरदे ल उज्जर कर लेना
मया-पिरित अउ मीठ बोली ल जस देबे तस पाबे
मन-मंदरस म घोरे नइते, जुच्छा महुरा खाबे
नरम होथे जी वो फल ह जे होथे रसदार
ठक-ठकावत वो रहि जाथे जे होथे बेकार
रंगना हे त अंतस रंग, चोला के रंग उतर जाथे
घाम-पानी दूनो के मारे, फेर ये चोला सर जाथे
जिहां मुरख के पूजा होय उहां बिलमना नइ चाही
झर जाथे जस-कीर्ति, धन-दौलत नइ बांचय कांही
अपन दिया खुदे बनौ, खुद ल करौ अंजोर
मारग धलो खुदे बनावौ, झन भटकव चहुंओर
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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