आज तो दलदल में धंस गे हे, देख ले हमर पालनहार
रायपुर ले दिल्ली तक माते हे, दोगला-दलाली अउ भ्रष्टाचार.....
जेकर हाथ म दूध-रखवारी, उही लहुट जाथे रे बिलार
थाना-कछेरी म अब होथे, जुआ-चित्ती अउ बलात्कार....
राजनीति अब बेसिया बनगे, घर-घर हे वोकर लगवार
सत्-सेवा के मारग छूटगे, जइसे डोंगा हे बिन पतवार....
धरम-करम के पूंजी-पसरा, अब गांठ जमो छरियावत हे
ठग-जग बनगे पंडा-पुरोहित, साधु रोजी कमावत हे.....
हमर गली म कुकुर अबड़, बघवा सहीं हबकथें
राजनीति के लहू चिखे हें, जनता ल हांड़ा समझथें.....
गली-गली म अब तो होथे, हांव-हांव झिंकातानी
राजनीति के रूप बदलगे, चोरहा-लबरा चलाथें सियानी....
आगी लगगे कोइला म, डिजल-पेटरोल बिजरावत हे
महंगाई संग खांध जोर के, सरकार ठेंगा देखावत हे....
पद-पइसा अउ पावर खातिर, सबके नीयत डोलत हे
हरिश्चंद मन आज के देखौ, लबराबानी बोलत हें.....
परिया परत धान कटोरा, बंजर भुईं म लहुटत हे
मंत्री-संत्री खांध जोर के, अपनेच घर ल लूटत हे....
सोन-चिरइया फुदकय नहीं, पांखी-पांव कटागे हे
भ्रष्टतंत्र के राजशाही म, वोकर भाग नठागे हे.....
कइसे चलही देश के नइया, इही फिकर अबड़ होथे
त्राही-त्राही करत जनता, तीन धार के रोज रोथे.....
लम्हा-लम्हा तिलक लगाके, ढोंगी ढोल बजावत हे
धरम-करम ल जानय नहीं, जगतगुरु कहावत हे....
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ब्लॉग -http://www.mayarumati.blogspot.in/
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
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रायपुर ले दिल्ली तक माते हे, दोगला-दलाली अउ भ्रष्टाचार.....
जेकर हाथ म दूध-रखवारी, उही लहुट जाथे रे बिलार
थाना-कछेरी म अब होथे, जुआ-चित्ती अउ बलात्कार....
राजनीति अब बेसिया बनगे, घर-घर हे वोकर लगवार
सत्-सेवा के मारग छूटगे, जइसे डोंगा हे बिन पतवार....
धरम-करम के पूंजी-पसरा, अब गांठ जमो छरियावत हे
ठग-जग बनगे पंडा-पुरोहित, साधु रोजी कमावत हे.....
हमर गली म कुकुर अबड़, बघवा सहीं हबकथें
राजनीति के लहू चिखे हें, जनता ल हांड़ा समझथें.....
गली-गली म अब तो होथे, हांव-हांव झिंकातानी
राजनीति के रूप बदलगे, चोरहा-लबरा चलाथें सियानी....
आगी लगगे कोइला म, डिजल-पेटरोल बिजरावत हे
महंगाई संग खांध जोर के, सरकार ठेंगा देखावत हे....
पद-पइसा अउ पावर खातिर, सबके नीयत डोलत हे
हरिश्चंद मन आज के देखौ, लबराबानी बोलत हें.....
परिया परत धान कटोरा, बंजर भुईं म लहुटत हे
मंत्री-संत्री खांध जोर के, अपनेच घर ल लूटत हे....
सोन-चिरइया फुदकय नहीं, पांखी-पांव कटागे हे
भ्रष्टतंत्र के राजशाही म, वोकर भाग नठागे हे.....
कइसे चलही देश के नइया, इही फिकर अबड़ होथे
त्राही-त्राही करत जनता, तीन धार के रोज रोथे.....
लम्हा-लम्हा तिलक लगाके, ढोंगी ढोल बजावत हे
धरम-करम ल जानय नहीं, जगतगुरु कहावत हे....
सुशील भोले
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