सुनो कबीर अब युग बदला, क्यूं राग पुराना गाते हो
भाटों के इस दौर में नाहक, ज्ञान मार्ग बतलाते हो.....
कौन यहाँ अब सच कहता, कौन साधक-सा जीता है
लेखन की धाराएँ बदलीं, विचारों का घट रिता है
जो अंधे हो गये उन्हें फिर, क्यूं शीशा दिखलाते हो.....
धर्म पताका जो फहराते, अब वही समर करवाते हैं
कोरा ज्ञान लिए मठाधीश, फतवा रोज दिखाते हैं
ऐसे लोगों को फिर तुम क्यूं, संत-मौलवी कहलवाते हो...
राजनीति हुई भूल-भुलैया, जैसे मकड़ी का जाला
कौन यहाँ पर हँस बना है, और कौन कौवे-सा काला
नहीं परख फिर भी तुम कैसे, एक छवि दिखलाते हो...
सुशील भोले
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
आपकी लेखनी तारीफ के काबिल है..वाह |
ReplyDeleteबहुत सही। पर ज्ञान मार्ग बतलाना भी जरूरी है।
ReplyDeleteआप सभी को धन्यवाद.. इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहिये साथ ही सुधार का मार्ग भी बताते रहिये... एक बार पुनः धन्यवाद....
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