कमरछठ और महुआ का उपयोग?
कार्तिकेय जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला पर्व "कमरछठ" को बलराम जयंती के रूप में "हलषष्ठी" कहकर प्रचारित किया जाना कितना तर्क संगत और सत्य है? इस पर विचार किया जाना आवश्यक लगता है।
मेरे द्वारा पूर्व में किये गये पोस्ट (लेख) में संस्कृत भाषा के "कुमार षष्ठ" शब्द को छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश के रूप में "कमरछठ" बनना बताया गया था। इस पर अनेक मित्रों ने इसकी सत्यता पर प्रश्न किया था।
मित्रों, यहां की मूल संस्कृति, जिसे मैं "आदि धर्म" कहता हूं, शिव परिवार पर आधारित संस्कृति है। इसीलिए यहां के हर एक पर्व का संबंध किसी न किसी रूप में शिव और उनके परिवार पर आधारित होता है।
आप सभी जानते हैं, कि यहां के मूल निवासियों के जीवन में "महुआ" का कितना महत्व है? जन्म से लेकर मृत्यु तक यह (महुआ) इनके जीवन का अनिवार्य अंग है। तब आपको क्या लगता है, कि जिस "कमरछठ" पर्व में महुआ पत्ते की पतरी, महुआ डंगाल का दातून और पसहर को पकाने (खोने) के लिए चमचा (करछुल) के रूप में महुआ-डंगाल का उपयोग और सबसे बड़ी बात, इसकी पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में (लाई के साथ) सूखे हुए महुए के फूल उपयोग में लाया जाता है, वह "आदि संस्कृति" के बजाए किसी अन्य संस्कृति का अंग होगा?
मित्रों, यह़ा के मूल धर्म और संस्कृति के ऊपर मनगढंत किस्सा-कहानी गढ़कर जिस तरह भ्रमित किया जा रहा है, बहुत चिंतनीय है। हमारी मूल पहचान को समाप्त करने के लिए सैकड़ों वर्षों से षडयंत्र रचा जा रहा है। बहुत जरूरी है, कि हम अपनी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के नेतृत्व का ध्वज अपने हाथों में धारण करें। आइए "आदि धर्म जागृति संस्थान" के मिशनरी कार्य में हाथ से हाथ मिलाकर जुड़़े।
-सुशील भोले -9826992811
Wednesday, 1 May 2019
कमरछठ और महुआ का उपयोग
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