Thursday, 26 August 2021

कमरछठ और महुआ.. (संशोधित)

कमरछठ और महुआ का उपयोग?
कार्तिकेय जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला पर्व "कमरछठ" को बलराम जयंती के रूप में "हलषष्ठी" कहकर प्रचारित किया जाना कितना तर्क संगत और सत्य है? इस पर विचार किया जाना आवश्यक लगता है।
वैसे यह कहना भी सही लगता है, कि हलषष्ठी और कमर छठ (कुमार षष्ठ) दो अलग-अलग संदर्भ से जुड़े पर्व हैं. लेकिन हमारी अज्ञानता के कारण दोनों गड्ड-मड्ड कर एक कर दिए गये हैं. जैसे कई और पर्वों के संदर्भ में देखने में आता है. उदाहरण के रूप में छेरछेरा को ले सकते हैं. इसे आदिवासी वर्ग के लोग गोटुल की शिक्षा पूर्ण होने पर मनाते हैं. हमारे इधर मैदानी क्षेत्र में खरीफ फसल की मिंसाई के पश्चात खुशहाली के रूप में, तो सब्जी उत्पादक मरार समाज शाकंभरी जयंती के रूप में. जबकि मुझे शिव जी के द्वारा विवाह पूर्व पार्वती की परीक्षा लेने के लिए नट बनकर भिक्षा मांगने के संबंध में ज्ञान प्राप्त हुआ था.
    कमरछठ के संबंध मेरे द्वारा पूर्व में किये गये लेख में संस्कृत भाषा के "कुमार षष्ठ" शब्द को छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश के रूप में "कमरछठ" बनना बताया गया था। इस पर अनेक मित्रों ने प्रश्न किया था।
मित्रों, यहां की मूल संस्कृति, जिसे मैं "आदि धर्म" कहता हूं, वह वास्तव में शिव परिवार पर आधारित संस्कृति है। इसीलिए यहां के हर एक पर्व का संबंध किसी न किसी रूप में शिव और उनके परिवार पर आधारित होता है।
आप सभी जानते हैं, कि यहां के मूल निवासियों के जीवन में "महुआ" का कितना महत्व है? जन्म से लेकर मृत्यु तक यह (महुआ) इनके जीवन का अनिवार्य अंग है। तब आपको क्या लगता है, कि जिस "कमरछठ" पर्व में महुआ पत्ते की पतरी, महुआ डंगाल का दातून और पसहर को पकाने (खोने) के लिए चमचा (करछुल) के रूप में महुआ-डंगाल का उपयोग और सबसे बड़ी बात, इसकी पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में (लाई के साथ) सूखे हुए महुए के फूल उपयोग में लाया जाता है, वह "आदि संस्कृति" के बजाए किसी अन्य संस्कृति का अंग होगा?
मित्रों, यह़ा के मूल धर्म और संस्कृति के ऊपर मनगढंत किस्सा-कहानी गढ़कर जिस तरह भ्रमित किया जाता रहा है, जो बहुत ही चिंतनीय है।
  बहुत जरूरी है, कि हम अपनी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए अन्य कहे जाने वाले लोगों के पीछे भटकने के बजाय इसके नेतृत्व का ध्वज अपने ही हाथों में धारण करें। आइए "आदि धर्म जागृति संस्थान" के मिशनरी कार्य में हाथ से हाथ मिलाकर जुड़़ें।

आदिवासी समाज का यह मानना है.....

*खम्मर दाई पनमेश्वरी दाई दुल्हिन दाई ना सेवा जोहार*

कोयतुर समाज में गण जीवधारी अपने विशिष्ट संस्कृति, देवी देवता और प्रक्रति पर आधारित रीति रिवाज प्रथा परंपरा अनुसार प्रक्रति के देवी देवता और पुरखा पुरखा के देवी देवता हमेशा याद करने पर *संकट काल की घड़ी में अपने वंशज और फसल व संपत्ति की रक्षा करते हैं*

कमरछठ पूजा पद्धति मांझी समाज की कुल देवी पनमेश्वरी दाई पानी गुसाईन की याद में वर्तमान में हलषष्टी के रुप में मनाई जाती है

माता शक्ति हमेशा कृपालु होतीं हैं और अपने बाल बच्चों का ख्याल रखती हैं बच्चों की खुशहाली के लिए कमरछठ भादोमास अंधियारी षष्टी के दिन ताल सगुरिया बनाकर किनारे पर साजा सरंई महुआ डूमर गस्ती आम और काशी लगाते है तालाब में ही प्रक्रति जन्य पर आधारित उत्पन्न होने वाला धान पसहर का खीर बनाकर भोग कराया जाता है

*प्राकृतिक रूप से उपजे भाजी पाला:--चरोटा भाजी, कांटा भाजी, केना भाजी, कुर्रु भाजी, गुमी भाजी, सुनसुनिया भाजी, करमोत्ता भाजी*

ढेंस कांदा, रतालु कांदा, पोखरा, कमल फूल, खोखमा एवं केऊ कांदा
भैसी का दूध इस्तेमाल करतें हैं

*पेनमड़ा शक्ति के रूप में विराजमान
जैसे:-- *साजा झाड़ मे बुढादेव
           सरई झाड़ में सरना देव
           महुआ में दुल्हा देव
           डुमर मे दुल्हिन दाई
           आम झाड़ में संभू बाबा
            कांशी पेड़ देव तर्पण साक्षी के लिए उपयोग करते हैं**

आदि एवं समस्त प्राकृतिक शक्तियों का सेवा पूजा किया जाता हैं एवं पानी के लहरा को खम्मर दाई भी कहते हैं दुसरा अर्थ है खम माने शक्ति शाली एवं मर्र्री मानें बाल बच्चा होता है इसलिए दुल्हिन दाई पन्ने रानी पानी गुसाईन पनमेश्वरी दाई हल षष्टी कमरछट पूजा माताएं उपवास रहकर बाल बच्चों के खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं

*सामग्री:--6 महुआ पान के पतरी एवं महुआ का दातुन  
              6 प्रकार के भाजी
              महुआ फूल, पसहेर चांवल, लाई
              6 प्रकार के अन्न के दाना
              6 चुकी
              भैंस के दूध दही घी
              एक सफेद धजा
               पान, सुपारी बंदन ईलाइची पंच मेवा
               कुआंरी धागा एक माई कलश रख कर विधि विधान से
कमरछट पूजा किया जाता है!*

-सुशील भोले -9826992811
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर

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