Wednesday, 4 August 2021

पल-पल के जिनगानी..

पल-पल के जिनगानी.
   अभी विश्वव्यापी कोरोना ह चारों मुड़ा के लोगन ल एके तीर बइठारे अस कर दिए हे. घेरी-भेरी के लाकडाउन अउ अबड़ अकन पाबंदी मन के सेती, लोगन घर ले बाहिर घलो नइ निकल सकत हें. रोजी-रोजगार के दृष्टि ले देखिन, त ए ह दुब्बर बर दू असाढ़ कस होगे हे. फेर जिंहां तक चिंतन-मनन अउ लेखन संग जुड़े लोगन के जिनगी ल देखिन, त उन ए बुता म अउ जादा सक्रिय होगे हें.
     जइसे मैं ह ए बेरा म घर म खुसरे खुसरे अपन जिनगी भर के संस्मरण मन ल सुरता कर कर के एक किताब "सुरता के संसार" लिखे के उदिम कर डारे हंव, ठउका अइसनेच साहित्यकार चेतन भारती जी ह घलो अपन नौकरी ले सेवानिवृत्त होए के पाछू साहित्य के संगे-संग पेंशनर मन के बुता म भारी बिपतियाय रिहिन हें. फेर अभी के लाकडाउन म उंकर से एक पोठ बुता होगे हे.  घर म बइठे-बइठे उन अपन पूरा जिनगी ल "पल-पल के जिनगानी" के नांव ले एक किताब के रूप दे दिए हें.
   मोर चेतन भारती संग साहित्यिक ले जादा पारिवारिक संबंध हे. तभो वो सब जिनिस ल नइ जाने पाए रेहेंव, जेला अब ए किताब ल पढ़े के बाद जान पाएंव. हमर मन के घर घलो आसपास हे. हमर परिवार म उंकर आना जाना ह मोर साहित्य जगत म आए ले पहिली के हे, फेर जिनगी के जम्मो ओना-कोना ल ए किताब के माध्यम ले ही जान पाएंव.
   भारती जी आज जेन ऊंचाई के ठउर म हें, तेला पाए बर घात संघर्ष करें. ए बात सही घलो आय, जेन संघर्ष के रद्दा अपनाथे, सफलता वोकरे माथा म मउर मुकुट पहिनाथे. भारती जी संग तो मैं अबड़ साहित्यिक कार्यक्रम मन म संघरे हंव, फेर एक पइत अइसे घलो संघरेन ते ह आज तक संस्मरण के रूप म सुरता हे. बात मजेदार घलो हे.
   मगरलोड के संगम साहित्य समिति के हर बछर 13 अक्टूबर के वार्षिक सम्मेलन होथे. हमन ल हर बछर नेवता मिलथे. जाथन घलो. सन् 2016-17 के बात होही. हर बछर कस ए बछर चार चकिया गाड़ी म नइ जा के दुवे चक्का वाले म जा परेन, कुलदीप यादव के बात मान के, उहू म तीन सवारी.
   जाए बर तो बने चल देन, फेर आए के बेरा भारी भुगतउ कस होगे. रतिहा 12 बजे असन मगरलोड ले निकलेन. अक्टूबर के महीना म वो डहार रतिहा बेरा गजब जाड़ जनाथे. महानदी के कछार होए के सेती चारों मुड़ा हरियर-हरियर खेत-खार रहिथे. ते पाय के जाड़ गंज जनाथे.
   हमन आवत रेहेन त रद्दा म एक जगा गाड़ी पंचर होगे. आधा रात के वोती गंवई म कोन पंचर बनइया मिलतीस? फेर थोरके रेंगत ले एक जगा पंचर बनइया मिलिस. फेर वोकर जगा पंचर बनाए के लोशन खतम होगे राहर. त हमन नवा ट्यूब लगवा डारेन. फेर आगू बढ़ेन त तीन सवारी देख के एक झन पुलिस वाला छेंक लिस. हमन बताएन साहित्यकार आन, मगरलोड के कविसम्मेलन ले लहुटत हन. फेर वो पतियाए असन नइ करत रिहिसे. त हमन केहेन, कविता सुनावन का?
  वो कहीस नहीं जरूरी नइए फेर कहिस- ठीक हे, मैं तुंहर बात ल पतिया लेथंव फेर असली म थोरके आगू म एक ठन एक्सीडेंट होगे हे, तेकर सेती भीड़ भाड़ हे. पुलिस वाले मन घलो हें. तीन सवारी जाहू त पुलिस वाले मन तुमन ल धर लेहीं. तेकर ले एक झन इही जगा उतर जावव, तहाँ ले एक झन ल लेग के फेर दुसरइया ल लेग जाही, त बनही. हमन वोकर कहे बात ल मानेन.
  ए घटना के सुरता जब कभू हमन ल आवय त बनेच हांस डारन.
   भारती जी के जीवन संघर्ष ल सुरता करत मोर मन म ए चारलनिया गूंजत हे-
जतका बड़का सपना होथे संघर्ष घलो वतके होथे
अलकर भुइयां पटपर रद्दा कांटाखूंटी घलो मिलथे
इही सबला चतवारत जूझत बढ़त जाबे लक्ष्य डहर
तभे सफलता के मोर मुकुट माथा म जी संगी सजथे
 
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

1 comment:

  1. बहूत ही संवेदनसील रचना

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