Wednesday, 23 November 2022

अगहन बिरस्पत कहानी 2

अगहन बिरस्पत कहानी 2

सियान बिना धियान नहीं..

    एक गाँव म ठाकुर -ठकुराइन रहिन। बड़ दयालु।  भगवान के कृपा ले घर म धन -धान्य भरपूर रहिस। लक्ष्मी दाई के बड़ कृपा रहीस। ठाकुर -ठकुराइन मन घलो दान - पुन करे म, जरूरतमंद के मदद करे म आगू रहय। हर महीना नियम से सोन के अवरा बना के ठाकुर -ठकुराइन दान करय। ठाकुर -ठकुराइन के सात झन बेटा -बहु रहिन। सुख से घर चलत रहीस हे। ठाकुर -ठकुराइन के दान ल देख के बहु मन खुसुर- फुसर करे। एक दिन सबले बड़े बहु से रहे नई गिस , ठाकुर -ठकुराइन ल कह दीस। अतेक दान करहु त घर के सबे सोन सिरा जही। बहु के बात ल सुन के ठाकुर -ठकुराइन दुखी होइन , फेर सोचिन ठीके कहत हे। अब ले चाँदी के अवरा दान  करबो। चाँदी के अवरा दान करे लगीन। थोर कुन समय बाद दूसरइया बहु टोक दिस। रात दिन चाँदी के दान करहु त घर के सबे चाँदी सिरा जही. वोमन फेर दुखी होइन , चाँदी ल छोड़ के कांसा के अवरा दान करे लगीन। तो तीसर बहु टोक दिस। कांसा ल छोड़ के पीतल के दान करे लगीन तो चौथइया टोक दिस , तो तांबा के करिन , पांचवा टोक दिस, लोहा के करिन तो छ्ठवैया ह टोक दिस। हार खाके माटी के अवरा बना बना के दान करिन। एक दिन सबले छोटकी कहिस रात -दिन माटी के अवरा दुहू तो सरी घर कुरिया फूट जही। छोटकी के बात ल सुन के दूनो झन अड़बड़ दुखी होइन। रतिहा ठाकुर -ठकुराइन सुनता सलाह होइन , अब घर रेहे के लाइक नई हे , चल कोनो दूसर गांव जाबो। अनसन सोच विचार के मुंधराहा उठ दुनों परानी घर ले निकल गीन।
घर ल दूनों झन मुड़- मुड़ के देखै , दुनो के आंखी ले आसू ह बोहात  रहै। बड़ भारी मन ले जात गिन। रेंगत रेंगत बड़ दुरिहा निकल गें। सांझ होगे , दुनों झन विचार करिन , आगू जंगल घना हे। इही मेर रुख के छइयां में रात ल बीता लेन। दुःख के मारे भूख -प्यास तक नई लागत रहिस ओमन ल। थके रहिन नींद परगे उंखर।  बिहनिया उठीं त अकबका गीन , उंखर चारों कोती अवरा -अवरा कोनों सोन के तो कोनो चाँदी , पीतल कासा , तांबा लोहा के। रुख ल देखिन तो आवारा के , समझ गिन लक्ष्मी -महरानी के कृपा ए। ख़ुशी -ख़ुशी सबे अवरा ल सकेलिन , उही मेर झोपडी़ बना के रहे लगीन , धीरे -धीरे उंखर घर भरगे। पहली असन फेर दान-पुन करे लगीन। झोपडी़ ह सुंदर महल बन गे। इंखर दान पुन के चर्चा दूरहिया -दूरहिया तक होय लगीस।
     ठाकुर -ठकुराइन के निकले ले बेटा -बहू मन खुश होइन। फेर ए काय धीरे-धीरे उंखर घर के सबो चीज़ -बस सिरागे। कभू घर के डेहरी म नई निकले रहिन तेन बहू मन , मेहनत -मजदूरी करे लगीन। कतकोन कमाय नई पूरय। साल बीत गे , अइसने अगहन के महीना गुरुवार के  दिन बड़े बहु लकड़ी ले बर जंगल चल दीस , प्यास लगीस ओला , पानी खोजत खोजत महल तक पहुंच गे। महल ल देख के अकबका गे। यहा जंगल म महल कोनो जादू तो नोय हे। फेर मरत रहय प्यास , मरता  क्या न करता , हिम्मत कर आरो दीस ''पानी मिलही का दाई बड़ प्यास लगत हे। भाखा ल सुन के ठकुराइन ठिठक गे , ये तो बहू के भाखा असन लगत हे  फेर सोचिस कहां आही , बाहर निकलिस तो देखिस दूबर पातर मोटियारी , भले घर के दिखत हे , काम -बूता के मारे बहू के रूप रंग , हुलिया बदल गए रहिस। चिन्हाय नई चिन्हात रहीस। सियानीन पानी दीस अउ भीतरी म बइठारिस पूछिस कोन गांव रहिथस बेटी , दूनों एक दूसर ल नई चीन सकिन। बहू बताय लगिस , का कहंव दाई - हमर सियान मन बड़ दानी रहिन , अड़बड़ दान देवय, हमन सब टोक -टोक देंन त दुखी होके घर ले निकल गिन। उंखर जाय ले सबो चीज बस सिरा गए कतकों कमाथन नई पूरे , एक लांघन एक फरहार हन। हमर सास ह लक्ष्मी रहिस। सिरतोन में दाई "सियान बिना धियान नई हे"                                               सास चिन्ह डरिस ये तो मोर बहू ए , मया के मारे बहू ल पोटार लीस। दूनों गला मिल के अड़बड़ रोइन। उखर सबे गिला सिकवा दूर होगे। लक्ष्मी -महारानी के कृपा ले सबे परिवार मिलगे। हसीं खुसी रेहे लगीन।

मोर कहानी पूर गे,  दार -भात चूर गे। 
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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