Monday, 21 November 2022

सार भजन..

सार भजन..
    कबीरपंथी मन जेन जीव के ए दुनिया ले बिरादरी हो जाथे, उंकर दशगात्र कार्यक्रम के दिन जीवन मरण के बंधन ले मुक्ति खातिर 'सार भजन' के आयोजन करथें.
    अइसन आयोजन ल उही तरिया म करे जाथे, जेमा दशगात्र के कार्यक्रम आयोजित होथे. ए बेरा म 'सार भजन जेला कोनो-कोनो निर्गुण भजन घलो कहिथें, वोला गाने वाला भजन मंडली वाले मन कबीर साहब के संगे-संग अउ जम्मो देवी-देवता मनके घलो फोटो रखथें, जेला वोमन या वो संबंधित परिवार वाले मन मानथें. भजन के आखिर म कबीर साहब के संगे-संग उन सबो देवता मनके घलो जय बोलाथें.
    आजकल अइसन आयोजन ल कबीरपंथी मन के छोड़े दूसर मन घलो आयोजन कर लेथें, जेमन इहाँ के पारंपरिक भाखा म  देवताहा या जंवरहा कहलाथें.  आवव सुनन अइसने एक सार भजन...

यहो नाम है ईश्वर का सांचा, नाम है भगवत  का सांचा
चुप चुप रहना सब कुछ सहना, सदा नाम जपना... भाई

*****

बने बने के मीत, पिबे तैं काकर मानी |
बिपत परे मा देख, करे ये तोरे चानी ||
गोठ मानले आज, कभू झन धोखा खाबे |
कहिथे हमर  सियान, जियत भर सुख ला पाबे || रचना-मोहन साहू

साहेब बंदगी साहेब
(प्रस्तुति : सुशील भोले)

No comments:

Post a Comment