अगहन बिरस्पत कहानी - 3
#सत बड़े ते लक्ष्मी..?
एक समय के बात आय. लक्ष्मी अउ सत गोठियावत रहिन , बाते -बात में दुनों म बहस होगे। सत कहय मैं बड़े हौं , लक्ष्मी कहय मैं बड़े हौं। दूनो अड़गें। छोटे बने बर कोनों तियार नहीं। फेर दूनों झन सोचिन , अइसन म फैसला होवय नहीं. विष्णु भगवान ल पूछबो उही ह फैसला करही , कोन बड़े हे? सत अउ लक्ष्मीं दुनों पहुँचगें विष्णु -लोक। सत अउ लक्ष्मी दूनों ल संगे देख विष्णु भगवान बहुत खुश होइस। दूनों के सुंदर आव -भगत करीस। तहांले आय के प्रयोजन पूछिस। लक्ष्मी दाई कहिस हमर दूनों में बहस होगे हे, मैं कईथव मैं बड़े ,सत कइथे मैं बड़े, हमन दूनों म बड़े कोन हे? फैसला आप ही करहू।
विष्णु भगवान सोंच म परगे. काला बड़े कहंव लक्ष्मी ल बड़े कहूँ त सत नराज ,सत ल बड़े कहूँ त लक्ष्मी रिसा जही ,दूनों बिगर काम चलय नहीं। अड़बड़ गुनिस ,फेर कहिस ए तो बड़ा कठिन प्रश्न हे. मैं हल कर नई सकौं। चलव भोले-भंडारी मेर जाबो ,उही ह टंटा टोरही. तीनों झन चल दिन कैलास-परवत।
सत, लक्ष्मी अउ विष्णु भगवान पहुंच गें कैलास-परवत। तीनों ल संगे देख भगवान भोले-भंडारी, अउ माता पार्वती गदगद होगें। तीनों के सुंदर आव -भगत करीन । तहांले आय के प्रयोजन पूछिन । भगवान विष्णु कहिस इन दूनों म बहस होगे हे, लक्ष्मी कइथे मैं बड़े ,सत कइथे मैं बड़े, अउ दूनों अड़ें हें ,फैसला आप ही करहूँ , इनमा कोन बड़े हे?
भोले-भंडारी सोंच म परगे ,काला बड़े कहंव लक्ष्मी ल बड़े कहूँ तो सत नराज ,सत ल बड़े कहूँ त लक्ष्मी रिसा जाही ,दूनों बिगर काम चलय नहीं। अड़बड़ गुनिस ,फेर कहिस- ए तो बड़ा कठिन प्रश्न हे ,मैं हल कर नई सकौं। चलव ब्रम्हाजी मे
जगा जाबो ,उही ह टंटा टोरही। सबे के लेखा-जोखा ओखरे मेर रहिथे। चारों चलदिन ब्रम्ह्लोक।
ब्रम्हाजी के आगू जब ये सवाल रखे गीस तव उहू असमंजस म पड़ गिस। केहे लगीस अड़बड़ कठिन प्रश्न हे ,मैं हल कर नई सकौं।भोले-भंडारी कहिस तैं नई बता सकस तो कोन बताही ?ब्रम्हाजी कहिन पाँचों-पांडव मेर चलिन। ऊंखरे मेर हल होही। धर्मराज बड़ धर्मनिष्ठ हे ,उही सही बताही। सबे झन चलदिन पाँचों-पांडव मेर।
ब्रम्हा , विष्णु , महेश ,सत , लक्ष्मी सबो झन ल संघरा देख पाँचों-पांडव गदगद होगीन। सबो के आव -भगत करिन। फेर आय के प्रयोजन पूछिन। ब्रम्हाजी कहिन एक ठक सवाल के हल बर आय हन ,लक्ष्मी कइथे मैं बड़े ,सत कइथे मैं बड़े, अउ दूनों अड़े हें , फैसला तुही मन करहू। सवाल सुन के पाँचों-पांडव अकचका गिन एक दूसर कोती देखे लगीन तहाँ ले नहीं म मुड़ी हलाय लगीन। ब्रम्हाजी कहिन- कइसे हल निकलही। धर्मराज कहिन एहि पास एक गाँव हे, उहाँ एक भिक्षुक माँ बेटा हे , उखरमेर चलथन उहें, फैसला होही। ब्रम्हा , विष्णु , महेश ,सत , लक्ष्मी ल भरोसा तो नई होईस फेर का करें जाय बर तियार होगे। सबोझन भेस बद्लिन साधु के भेस धर के उंखर कुटी म पहुंचगें। दुआर में खड़े हो के कहे -लगीन -भिक्षाम् देही ,- भिक्षाम् देही , उंकर भाखा ल सुनके बेटा बाहर आइस। साधु-मन ल देख के अकबका गे , थर-थर कांपे लगीस , फेर हिम्मत कर हाथ जोड़ के कहिस महराज हमन तो भिखारी हन आपमन ल का दे सकथो। धर्मराज कहिन हमन तोर कुटिया म कुछ दिन विश्राम करबो। लड़का कहिस - महराज कुटिया म हमरे निस्तारी बड़ मुस्किल ले होथे। त फेर..... धर्मराज कहिस- चिंता मतकर वत्स हमन रहि जाबो। लड़का असमंजस म परगे, फेर का करे नहीं कहूँ त साधू ए , श्राप दे दीही विचार के , सबो ल कुटिया भीतरी लेगिस।
भीतरी म जा के फेर विचार करे लगीस , यहा दस-दह झन के खाए पिए बर कइसे करौं। माँ बेटा भले गरीब फेर नियम के बड़ पक्का रहिन, बालक निसदिन 5 घर में भिक्षा मांगे ,5 ले छठवां घर में नई मांगे , जतका मिलगे उतके म संतोष करलें। नई मिले तेन दिन लांघन रहि जाय।लड़का ल चिंता म देख भगवान मन कहिन- बेटा फिकर मत कर जतका मिलही वोतके ल मिल- बांट के खा लेबो , तोर नियम नई टूटे। लड़का ल थोड़कुन बने लगीस , झोला ल धर के निकल गे, भिक्षा मांगे बर। यहा -का चमत्कार होगे , तीने घर म ओखर झोला भरगे। ईश्वर के महिमा अपरम्पार। लड़का खुसी खुसी घर अइस। माँ ल झोली देके रांधे बर कहिस। माँ सुंदर भोजन बनाइस।तहाँ ले सबे झन ल खाए -बर बुलाइस। सबे झन खाए -बर बइठिन. लड़का परोसे लगीस , धर्मराज कहिस तहूं बइठ हमर संग , माँ परोसही बालक -माँ परदा करथे , माँ बेटा बड़ खुद्दार अपन गरीबी ल बताना नइ चाहत रहिन। साधु मन जिद करे लगीन माँ परोसही तभे खाबो , बालक कहिस का बताओ , साधु महराज मोर माँ के लुगरा तार -तार होगे हे , बदन नई ढकाए ठीक से , आपमन के आगू म कइसे आही। साधु - माँ ह भुलागे हे का ओखर मेर सुंदर पीतांबरी हे , पहीरे ल का , बालक - कइसे मजाक करथो महराज , हम गरीब मेर कहां ले पीतांबरी आहि। साधु -ऊपर झांपी म देख। लड़का के मन देखे के तो नई होत रहीस फेर देखीस , तो का देखते सही म झापी म पीतांबरी राहय. पीतांबरी ल निकाल के अपन माँ ल दीस। माँ पीतांबरी ल पहरीस अउ झमा -झम सुंदर प्रेमपूर्वक भोजन परोसिस। सबे मन भर के खाईन, तहाँ ले बिश्राम करिन।
दूसर दिन फेर वइसने होइस। तीर के नगर -राजा ढिंढोरा पिटवाइस -राजकुमारी के बिहाव करे बर हे , सुयोग्य वर चाही। ये बात साधु मन के कान में चल दीस। अब का धर्मराज ह कहिस सुन बाबू राजा ल राजकुमारी बर सुयोग्य वर चाही। तोर ले योग्य कोनो नही हे , तैं दरबार म जा अउ राजकुमारी संग बिहाव के प्रस्ताव रख। लड़का घबरागे कइसन गोठियाथो साधु महराज वो राजकुमारी अउ मैं भिखारी कैसे बनबो संगवारी। अरे कुछु नई होय जा बिहाव के प्रस्ताव रख के आ। लड़का -तुंहर हाथ -पाँव जोरत हौ , नई जावंव। अरे कुछु नई होय जा, सबे के सबे केहे लगीन। लड़का असमंजस में पड़गे , एती कुआं वोती खाई का करे भाई , राजा मेंर जात हे तभो जी के काल नई जाही तो साधुमन के डर , का सोचत हस जा हमन काहत हन , कुछु नई होवय। अब का करय अाधा डर-बल के दरबार में गीस। महल के सिंग द्वार म पहुंचिस द्वारपाल मन दुत्कारिन , दरबार चलत हे कोनो भीख नई मिलय। लड़का -भीख बर नई आय हौं, मै बिहाव के प्रस्ताव ले के आय हवंव. बात ल सुन के सबे अड़बड़ हासींन ,अपन सकल ल देखे हस, राजकुमारी संग बिहाव करबे , चल भाग इहाँ ले।
लड़का पल्ला भागीस अउ अपन झोपड़ी म जा के लदलद कांपे लगिस। साधु मन पूछीन का होइस , का बतावंव मोला तो द्वारपाल मन दुत्कार दीन , प्रान बचा के आय हवंव। दूसर दिन फेर ओला बिहाव के प्रस्ताव ले के भेजिन। मारे डर के फेर गिस , द्वारपाल मन दुत्कारिन, का करय पल्ला भागीस। अईसने घेरी -बेरी साधु मन भेजय, अउ वोहा भगाय। बिचारा के जीव अधमरा होगे। ले एक बेर फेर जा हमन हन। फेर गीस। अबके मंत्री कहिस घेरी -बेरी आवत हस , राजकुमारी संग बिहाव करबे ! तो सुन पहली राजकुमारी बर महल बनवा फेर आबे। लड़का सोच म पड़गे। साधु मन मेर गीस - वा ! ओमन तो महल बनवाय बर कहत हे। साधु - जा हाँ कह दिबे।
लड़का -मैं कहां ले महल बनवाहूं , साधु -तैं काबर फिकर करथस हमन तो हन -जा हाँ कह. लड़का गीस हाँ महराज महल बनवा हूँ। मंत्री - तो जा महल बनवाले , फेर आबे। लड़का लहुट गे। एती रात म भगवान मन विश्वकर्मा ल बुलाइन अउ कहिन ए मेर सुंदर महल बना। रात भर म महल तइयार होगे। सुबेरे बस्ती म देखौ-देखौ होगे , बात महल तक पहुँचगे। सुन के राजा माथा पकड़ लीस। साधु मन वोला फेर भेजिन अउ चेताइन कुछु भी बनवाय ल कहीं तौ तैं हाँ कह देबे।लड़का महल गीस. मंत्री मेर कहिस- महल बनगे , राजकुमारी के हाथ मोर हाथ में दे दो। मंत्री -सोचिस लगथे येहा कुछु जादू जानथे , महल तो बनवा लीस , ऐला सोना- चाँदी हीरा -मोती जड़े खम्भा बनवाय ल कहिथों , कहाँ ले लानही , सुन महल तो तैं बनवा लेस , अब इहाँ ले उहाँ तक सोना- चाँदी, हीरा-मोती जड़े खम्भा बनवा , लड़का थोड़कुन सोच म पड़गे फेर वोला साधु मन के बात सुरता आ गे , हाँ बनवाहूं। मंत्री - तो जा बनवाले फेर आबे। लड़का फेर सोचत गीस हाँ तो कहि दें हव कइसे बनही? साधुमन ल सबे बात ल बताइस। भगवान के महिमा दूसर दिन पूरा बस्ती में इहाँ ले उहाँ तक सोना- चाँदी, हीरा-मोती जड़े खम्भा बनगे।
सुबेरे लड़का फेर महल गइस। अबके बार मंत्री सोचीस एला बरात में भगवान मन ल लाने ल कहिथंव , भगवान ल कइसे लानही। सुन बरात म तैं सबो देवी देवता मन ल लाबे। लड़का सोच म परगे , भगवान मन बरात म कइसे आही। फेर साधुमन मेर गीस। वाह ! बरात में भगवान मन ल लाने ल कहत हे। -साधु - जा हाँ कहिदे। लड़का महल गीस , अउ कहिस बरात में सबो देवी देवता मन ल लानहुं। अब मंत्री जुबान म फसगे। आगे कुछु शर्त नहीं। राजकुमारी के बिहाव के तइयारी सुरु होगे। राजा -रानी दुःख म खटिया धर लीन। मंत्री ह कहय, राह न महराज देवी देवता मनला कइसे लानही। एती भगवान मन सब देवी मन -पार्वती माता , ब्रम्हाणी , सरस्वती , दुर्गा माता सबे ल बुलाइन। का पूछे -बर हे , सबो माता मन मिल के सुंदर तेल-हरदी चढ़ाईन , बिहाव के सबे नेंग- जोग ल करिन। बरात के दिन आगे। का पूछे बर हे, सुंदर दूल्हा ल तैयार करिन।आगे-आगे दूल्हा पाछू में सबे भगवान ब्रम्हा , विष्णु -महेश , गणेश , पांचो पाण्डव , पवन , सबे परिवार सहित अपन-अपन सवारी म सवार , का पूछे बर हे, पूरा बस्ती में देखो -देखो होगे। बरात देखे बर पूरा सहर निकलगे। सुंदर ढोल -नगाड़ा , बाजा-गाजा के संग बरात महल पहुँचगे।
एती राजा -रानी के रोवइ-गवई रहय , भिखारी के संग बेटी के बिहाव होत हे , कैसे होही। बरात के वर्णन राजा -रानी के कान म गीस , वोमन पतिया बर तइयार नहीं , मंत्री जबरन राजा ल खीचीस अउ झरोखा मेर लानिस , देख महराज अब. बरात के सुंदरता ल देख के राजा-रानी हक्का -बक्का होगीन , ये का तैंतीस-कोटि देवी देवता !!! सुंदर तइयार होइन अउ दुवार-चार पूजा करीन। सबे नेंग- जोग सहित बिहाव होइस। बरात बिदा होगे। एती सबो मैय्या मन मिल के डोला- पाइरछन करिन।
रतिहा दूल्हा-दुल्हन ल कुरिया दिन। अब भगवान कहिन सबे झन खास कर सत अउ लक्ष्मी, इखर गोठ-बात ल धियान से कान लगा के सुनव।
राजकुमारी कहिस अब तो हमन जनम भर के संगवारी होगे , फेर एक ठन बात मोर मन म हे नाराज झन होहु।- तुमन तो सदादिन के मांग के दिन गुजारव , हमर छोड़े कुरता ल पहिनव। फेर का करेव के घर में सबे देवी-देवता विराजमान होगे ,धन -धान्य आगे। लड़का कहिस- भले हमन गरीब रहेन , भिक्षा मांग के मेहनत मजदूरी करके गुजर बसर करेन , लांघन भूखन -प्यासन रेहेन फेर कभू अपन सत- ईमान ल नई छोड़ेन। भगवान हमर सत-ईमान ल चीन्हिस अउ सत के पाछु म लक्षमी मैय्या बिराजीस।
दूल्हा-दुल्हन के गोठ-बात ल सुन के भगवान कहिन फैसला होगे , लक्ष्मी मइया स्वीकारिन मैं छोटे , सत कहिस मैं बड़े । टंटा निपट गे। दूसर दिन बड़े सबेरे दूल्हा-दुल्हन ल आशीर्वाद दे के , ऊंखर ऊपर फूल बरसाईं अउ सबे देवी देवता अपन-अपन धाम चल- दिन।
"मोर कहानी पूरगे ,दार- भात चूरगे।
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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