-सुनत हस भैरा..
-हाँ गोठियाना कोंदा..
-अभी-अभी एदे आरो मिलिस हे. हमर छत्तीसगढ़िया महामहिम ह उहाँ जाके मराठी म शपथ ग्रहण करीस हे.
-अच्छा! बाप-पुरखा जेन मनखे ह कभू अपन महतारी भाखा म शपथ नइ लेइस, तेन ह आने ठउर म जाके उहाँ के महतारी भाखा के पोषक होगे हे जी?
-का करबे भैरा, इही तो राजनीति आय, जेन ह अपन ल छोड़ के दूसर ल दाई अउ ददा कहिथे.
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- सुनना भैरा
-हाँ बताना कोंदा
-तुंहर राजधानी के महापौर ह अपन दल के राजकुमारी के स्वागत म गुलाब फूल के कालीन बिछवाए रिहिसे कहिथें?
-ठउका सुने हस. ए बछर चुनावी तिहार हे. बपरा महापौर ल अब पारा मोहल्ला के राजनीति ले ऊपर उठ के विधानसभा के कुर्सी पोगराना होही, त पार्टी के रानी-राजकुमारी मन के फूल-चढ़ोत्तरी तो करेच बर लागही.
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-सुनत हस भैरा
-हाँ बताना
-राजकुमारी के स्वागत म जेन गुलाब फूल के पंखुड़ी मनला तुंहर नेता ह कालीन बरोबर बिछवाए रिहिसे ना. अब उही फूल के पंखुड़ी ह हर्बल गुलाल बनके एसो के होली म तुंहर मन के चेहरा म चमकही.
-कइसे गोठियाथस कोंदा?
-बने काहत हौं. इहाँ के महिला समूह वाली मन वो जम्मो पंखुड़ी मनला सकेल के वोकर ले हर्बल गुलाल बनावत हें, जेहा वोकर मन के जम्मो ठीहा म बेचाही.
-वाह.. तब तो पार्टी के उत्साही कार्यकर्ता मन बर ठउका हो जही जी. राजकुमारी के पांव म पवित्र होय फूल ह उंकर जम्मो के चेहरा म दमकही.
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-सुनत हस भैरा
-हाँ सुनाना कोंदा
-तुंहर राज के मुखिया ह महाधिवेशन म सकलाय पहुना मनला सोन के माला पहिरा के स्वागत करिस हे कहिथें?
-वो तो 'बीरन' आय बइहा
-काय बीरन जी. चारों मुड़ा तो सोनहा माला के गोठ गदकत हे.
-फालिया मन के गोठ ल कहिथस. अफवाह उड़ाना अउ लोगन ल भरमाना, एकर छोड़ उनला अउ का आथे?
-फेर टीवी अखबार म समाचार देखे हौं, तेमा तो महू ल वइसने जनावत रिहिसे.
-हत तो बइहा कहिंके! हमर छत्तीसगढ़ के पुरखौती परंपरा ल तहूं नइ जानस जी?
-कइसे?
-अरे इहाँ के कवर्धा क्षेत्र के बैगा आदिवासी मन ए विशेष माला ल हाथ म जोड़ जोड़ के बड़ मिहनत ले बनाथें.
-कइसे?
-सूताखर नाम के एक किसम के कांदी या कहिन घास होथे, वोमा मुआ फूल के डंडी ल बने गूंथे जाथे. बड़ मिहनत लागथे जी ए बुता म. अउ सिरतोन म कहिन ते ए 'बीरन' ह सोनहा माला ले जादा किमती हे. अउ हमर बर गरब के बात हे, के हमर परंपरा कतेक सुंदर अउ मोहक हे.
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-चलना भैरा होले डांड़ डहार नइ जावस?
-जाहूं कोंदा अगोर. एदे पंचलकड़िया खातिर पांच ठी छेना हेर लेथौं
-अरे बइहा दू-चार ठी किन्नी, पिस्सू अउ ढेकना मनला घलो एको ठन शीशी उशी म धर ले राह.
-वोला काबर जी?
-वाह.. एकर ले गाँव म खुरहा-चपका जइसन कोनो किसम के महामारी या रोग नइ संचरय ना.
-अच्छा!
-हौ. तभे तो हमर पुरखौती बेरा ले अइसन रोग-राई मन ले बांचे खातिर अइसने खून चूसक जीव मनला घलो होले म डारे के परंपरा हे जी.
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- कइसे भैरा, तोर सवारी उत्ताधुर्रा कती रेंगत हे?
-बस जी कोंदा, आज लेठवा जाए तैयारी चलत हे.
-वाह भई, काकर लेठवा जी
-एदे भकला टूरा के
-अच्छा, भकला लिहे ले जावत हे जी
-हव जी. फागुन तिहार मान के जाये बर वोकर सियान ह मोला संगे म जाबे केहे हे. भकला ह कोनो किसम के भकलाही झन करय कहिके चेताय हे.
-बढ़िया हे संगी. . लेठवा मन के तो गजब जलवा होथे जी. दुल्हा बाबू ले जादा लेठवा के आव-भगत अउ पूछ-परख होथे.
-हाँ, ए तो हे संगी
-फेर धूम-धड़ाका के अलगेच मजा.
-वो कइसे
-अरे बइहा, ककरो मुंह म केरवस पोते के, त ककरो मेछा ल कैची म कतरे के. हमन तो जेवनास खोली के खटिया मन म माटी तेल घलो रितो देवत रेहेन. तहां ले कोनो सूतय तहाँ रचरिच-रचरिच बाजत राहय.
-अच्छा, ए सब करथे लेठवा मन
-हहो..
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-कइसे भैरा.. होरी बने-बने मनाये?
-हव जी कोंदा.. काली संत मन संग गरीब गुरबा अउ दलित मन के बस्ती म जाके होरी खेलन.
-अइसे काबर?
-देश भर ले आये संत मन अभी हमर छत्तीसगढ़ के चारों मुड़ा ले पदयात्रा निकाल के दलित मन घर खाना खावत हें, उनला दुलारत हें. ठउका इही उदिम म काली उंकर मन संग होरी घलो खेलन जी, तेमा एकरो मनके मन म हमर धरम के भाव जागय अउ सब एकमई हो जावन.
-अरे वाह! तहाँ ले ए सबो झन मन अतकेच भर म एकमई हो जहीं जी?
-काबर नइ होहीं जी?
-अरे बइहा, जब तक इन रोटी-बेटी अउ मान-गौन के बरोबरी नइ पाहीं, तब तक भइगे तुंहर अइसन जम्मो उदिम ह डहर चलती बनके रहि जाही.
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-कइसे जी भैरा तोर नोनी के उमर तो खसले असन लागत हे, बर-बिहाव के चेत कब करबे?
-मैं तो कब के सरेखा मढ़ावत हौं जी कोंदा, फेर इहिच महतारी बेटी सरकारी नौकरी वाले दमाद के नॉव म अभी ले ढेरियाए बइठे हें.
-वाह भई.. एक ले एक साॅंगर-मोंगर लइका हें, खुद के रोजी-रोजगार वाले तभो जी?
-भइगे गा! उनला सरकारी नौकरी वाले ही चाही कहिथें. देखना वोकरे चक्कर म नोनी ह अपन महतारी ले जादा देंह-पॉंव वाली असन दिखे ले धर ले हे
-हहो भई, अनफभिक असन लागत हे. ये पढ़े-लिखे लइका मन खुद के खेती-किसानी, रोजी-रोजगार के महत्व ल कब समझहीं ते?
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-आजकाल तुमन ल इहाँ के कला-संस्कृति ऊपर गजबेच लिखथे कहिथें जी भैरा
-ठउका सुने हस कोंदा. चारों मुड़ा के पेपर मन म छपत हवय, लोगन भारी सॅंहरावत हावंय
-बढ़िया हे, फेर मोला लागथे, अतकेच भर म तुंहर कला-संस्कृति के रखवारी अउ बढ़ोत्तरी नइ हो पाही
-वो कइसे?
-जब तक तुमन एकर खातिर जमीनी बुता नइ करहू, तब तक ए ह सिरिफ कागज के शोभा भर बनके रहि जाही. जनमानस के हिरदे म उतारे अउ चघाए के नहीं
-कइसे गोठियाथस जी
-बने गोठियाथंव जी. तहीं गुन तोर लिखे ल जे मन पढ़थें, ते मन तोर मुताबिक अइसन कोनो किसम के बुता जमीनी रूप म करंय नहीं, अउ जे मन थोर बहुत कुछू करे के उदिम करथें, उंकर पहुँच म तुंहर लिखे पहुँचय नहीं. अब तहीं बता- तैं जेन करना अउ करवाना चाहथस, तेन होही कइसे?
-तोर कहना तो वाजिब हे जी हमला लिखे के संगे-संग भुॅंइया म जाके बुता घलो करे बर लागही.
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