-कहाँ चले भैरा?
-एदे जी बूढ़ादेव के स्थापना खातिर कांसा दान के जोखा चलत हे, तेने म जावत हौं.
-कइसे ढंग के जोखा जी?
-वाह.. तोला गम नइ मिले हे जी! हमर राजधानी के बूढ़ा तरिया तीर दुनिया के सबले बड़े बूढ़ादेव के मूर्ति स्थापना के जोखा चलत हे, तेकरे बर चारों मुड़ा ले कांसा दान लिए जावत हे.
-अच्छा.. ए तो बने बात आय जी. इहाँ के मूल चिन्हारी खातिर तो जोखा मढ़ाए जाना ही चाही. फेर एक बात के बड़ा दुख होथे जी, इहाँ के शासन प्रशासन म बइठे लोगन के चेत ए मुड़ा काबर नइ जाय. उल्टा उन इहाँ के मूल चिन्हारी ल मेट के वोकर जगा अन्ते के चिन्हारी ल मढ़ा देथे!
-ए सब खातिर आज के दोगलाही राजनीति सबले जादा दोषी हे. अउ संग म हमू मन दोषी हन. जे मनखे इहाँ के अस्मिता ल, इहाँ के संस्कृति ल, इहाँ के इतिहास अउ गौरव ल बने गतर के जानय नहीं, तेकरे मन के मूड़ म राजनीति के पागा खाप देथन.
-तोर कहना सोला आना हे जी. हम सबला एकर ऊपर चेत करना चाही, जेन इहाँ के अस्मिता के चिन्हार हे, तेने ल अगुवा के मउर पहनाना चाही.
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-सुनत हस भैरा, अब मिलेट्स के रोटी-पीठा अउ जेवन चारों मुड़ा मिलत हे. एकर कैफे खुलत हे कहिथें.
-ए का मिलेट-फिलेट ए जी कोंदा?
-अरे हमर कोदो, कुटकी, रागी जइसन छोटे दाना वाले मोटहा फसल मन के जी.
-त अइसे गोठियाना. अन्ते-तन्ते काबर कहिथस.
-अरे बइहा, परदेशी भाखा म वइसने कहिथे गा. अभी हमर राज म एकर जबर प्रदर्शनी लगे रिहिसे. कृषि वैज्ञानिक मन एकर फायदा बतावत रिहिन हें.
-फायदा ल तो हमर ददा-बबा मन घलो बतावय, तभे तो वोमन एकर जबर खेती करॅंय, फेर लोगन जब तक दूसर मन नइ बतावय तब तक नइ पतियावंय.
-तोर ए गोठ ल सुनके मोला वो लइकई के सुरता आवत हे संगी, जब हमन स्कूल ले भाग के चेंदिया भांठा जावन अउ उहाँ बोवाय कोदो पान ल टोर के चगलन. मुंह ह बने पान खाय अस रच जावय त तीभ ल लमा-लमा के देखन अउ खुश होके लहुट आवन. फेर ए सब अब तइहा के बात होगे.
-हव जी लोगन अब ए सबला बोएच बर भुलागे हें.
-अब फेर दिन बहुरही. तइसे जनावत हे जी. सरकार संग वैज्ञानिक मन एकर महत्व ल बतावत हें- अइसन फसल मन शरीर खातिर तो गजब फायदा के होबेच करथें, संग म कमती पानी म घलो बने उपज देथें.
-तब तो बढ़िया हे जी, अभी मौसम ह जेन किसम के रेस-टीप खेले बर धर लिए हे, वोमा कम पानी म उपजइया फसल ह वरदान बरोबर हो जाही.
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-सुनत हस भैरा, आजकाल मोर नाती ह मोर संग बड़े बिहनिया ले पेपर पढ़े बर बइठ जाथे
-ए तो बढ़िया बात आय जी कोंदा, लइका के पढ़े के आदत बनत हे.
-फेर अपन महतारी जगा जाथे तहाँ ले मोबाइल बर रोमिया जाथे. दिन भर उहिच ल देखहूं कहिथे.
-असल म लइका मन नकलची होथे जी, तोला पेपर किताब पढ़त देखथे त अपनो पढ़े बर बइठ जाथे अउ अपन महतारी ल दिन भर मोबाइल म बूड़े देखथे त अपनो वइसने करहूं कहिथे.
-अच्छा! ए बात आय. मतलब हमला अपन लइका के पढ़े के आदत बनाना हे, त ओकर आगू म हमू ल पढ़त रेहे बर लागही.
-हहो. हम मोबाइल म बूड़े रहिबो अउ लइका पढ़त राहय गुनबो त कहाँ अइसन होही. हम अपन लइका ले जइसन करवाना चाहथन, हमू ल ओकर आगू म वइसने करे बर लागही.
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- उत्ताधुर्रा कहाँ चले भैरा?
-एदे जी, नवरात के आखिर म कन्या भोज कराए बर पारा के नोनी मनला बलाए बर जावत हौं
-अरे.. त तुंहर बेड़ा म एको नोनी नइए जी
-कहाँ जी, लइका मन वंश चलइया के नॉव म टूरच-टूरा मनला सकेल डारे हें
-वाह भई! एको नोनी नइ अवतरिस?
-अरे.. आजकल के लइका मन का-का जॅंचवा के उनला पहिलीच ले बिदा कर डारथें
-ले भला.. अइसन म कन्या भोज बर होवय, ते आगू चलके बहुरिया खोजई बर होवय, चिथियाये बर तो लागबे करही.
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-झोला-झंगड़ धर के कहाँ चले जी भैरा?
-एदे जी ममा गाँव जाथौं, हमर ममा ह नानी के सुरता म एक ठन नवा तरिया कोड़वाय हे ना, वोकरे बिहाव के जोखा मढ़ाय हे.
-आह भई.. तरिया के बिहाव?
-हहो, नवा तरिया के जब तक बिहाव नइ करबे तब तक वोला बउरे के बुता नइ हो सकय ना संगी.
-अच्छा.. मोला एकर गम नइ रिहिसे.
-वाह.. सबो जगा इही रिवाज हे. हमरो गाँव म घीवहा तरिया के बिहाव होए रिहिसे, तेकर सुरता नइए का जी?
-अरे.. वो पइत मैं कहूँ अन्ते अभरगे रेहेंव जी, तेकर सेती सुरता नइए.
-वाह.. बइहा नइतो, बीच तरिया म गड़े लकड़ी के जबर खंभा ल घलो नइ देखे होबे?
-कइसे?
-अरे उही तो चिनहा आय, तरिया के बिहाव होय के.
-अच्छा, एमा तरिया संग काकर भॉंवर पारत होही?
-भारी उजबक बरोबर पूछथस जी, तरिया म भगवान वरुण देव अउ वरुणी देवी के बिहाव ल विधिविधान ले करवाए जाथे.
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-आजकाल के लइका मन के मारे हमर असन सियान मन के मरे बिहान हे जी भैरा.
-कइसे का होगे तेमा?
-मोर घर नहीं, फेर एदे आजे के पेपर म छपे हे, एक झन आईएएस अधिकारी के बबा अउ बूढ़ी दाई ह वोकर मन के अतलंगी के सेती जहर खाके मरगें.
-वाह भई! अतेक बड़ अधिकारी घर अइसन घटना.
-अरे बाबू...जिहां घर म लइका मन के सियानी होइस तहाँ बड़े लागय न छोटे. पेपर म लिखाय हे- वोकर बहू-बेटा मन कब के बसियाहा जेवन मनला खाए बर देवय, तेकर सेती उन दूनों डोकरी-डोकरा रोज-रोज के धीमा जहर खवई ले बने हे, एके दिन के जहर म मर जावन कहिके चिट्ठी लिख के जबर जहर ल खाके मरगें.
एकरे सेती हमर पुरखा मन हाना बनाय हें ना-
जे घर म लइका सियान
ते घर के मरे बिहान
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-स्कूल खुलिस तहाँ ले लइका मन के संवाॅंगा के भारी संसो हो जाथे जी भैरा.
-अरे.. सबले जादा तो कापी किताब मन के. साल के साल बदल जाथे. तेमा आजकाल स्कूल वाले मन अलग-अलग दुकान अउ अलग-अलग प्रकाशक के बिसाय बर कहिथें.
-हव जी.. अउ एकर मन के दाम ह सरकारी किताब ले चार गुना जादा रहिथे. उंकर डरेस घलो ह फलानच जगा मिलही, अन्ते म नहीं. आखिर अइसे काबर करत होही?
-सबके तरी-उप्पर बंटनी म भागीदारी रहिथे गा, तेकर सेती.
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-हमर गाँव के लइका मन बने पढ़-लिख के गाँव के बढ़ोत्तरी बर बुता करहीं कहिके इहाँ लड़-भीड़ के स्कूल अउ काॅलेज खुलवाए रेहेन जी भैरा, फेर पढ़ के निकले के बाद लइका मन के अन्ते-तन्ते किंजरई ह थोकिन अनफभिक बरोबर जनाथे.
-तोर कहना महूं ल वाजिब जनाथे जी कोंदा. अब देखना, हमर गाँव के तीर-तखार म आठ-दस लइका पढ़-लिख के डॉक्टर बनगे हें, तभो नानमुन इलाज खातिर घलो हमन ल शहर कोती पल्ला भागे बर लागथे.
-हव जी, ए लइका मन विदेशी धरती म जाके मरे बर तियार हो जाथें, फेर अपन गाँव के लोगन अउ उंकर मया के चिटको चेत नइ करॅंय.
-इंकर दाई-ददा मन घलो तो अमेरिका, आस्ट्रेलिया गे हवय कहिके टेस मारे अस गोठियाथें, फेर जब इन मर जथें त परोसी मन के खांध म मसान घाट जाथें.
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-अक्ती जोहार जी भैरा. चलना ठाकुरदेव चौंरा डहार नइ जावस जी?
-एदे जी, धान ल दोना मन म धरत हौं तहाँ ले चलबो, थोरिक अगोर ले.
-मैं गुनत हौं, आज मूठ धरे के संगे-संग थोर-बहुत म बोनी घलो कर दौं का? ए बछर बादर-पानी ह तरी-उप्पर चलतेच हे.
-हव.. पानी ह तो रोजे के संगवारी होगे हे. तभो ले आज तो मैं ह पौनी-पसारी मन जगा पॉंव परई अउ हमर घर खातिर आने कमइया लगाहूं जोंगत हौं.
-नवा कमइया तो महूं ल लगाना हे, अब जुन्ना ह सियान बानी के होगे हे, पहिली असन वोला ओसरय नहीं. ले चल चली ठाकुरदेव कोती.
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