कोंदा भैरा के गोठ-15
-विदेशी संस्कृति के बड़ोरा ह शहर ले गाँव होवत अब हमर घर-परिवार म घलो निंगत जावत हे जी भैरा.
-काला कहिबे जी कोंदा.. जवनहा नोनी-बाबू मन ले नाहकत अब तो सियान-सामरत मन घलो एकर चिभिक म परत जावत हें.
-ठउका कहे संगी.. हमर इहाँ के सियानीन ल देख ले.. वेलेंटाइन डे आवत हे, त ए बछर मोला का-का गिफ्ट देबे कहिके अभीच ले हुदरत रिहिसे.
-झन पूछ संगी.. तुंहर घर तो वेलेंटाइन डे के एकेच दिन भर बर पूछत रिहिसे.. हमर इहाँ के डोकरी ह तो पूरा हफ्ता भर के लिस्ट ल ओरियावत रिहिसे.. सात ले लेके चौदा फरवरी तक का-का देबे कहिके, त महूं कहि देंव- ए उमर म तोला देवता-धामी मन के पोथी-पतरा ले बढ़ के अउ का मिल सकत हे कहिके.
-बने कहे संगी.. महूं हमर इहाँ के सियानीन ल.. तीरथ-बरत घूमाए के आश्वासन म निपटा देहूं.
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-आजकाल सोशलमीडिया के नॉव म का फेसबुक, इंस्टाग्राम आय हे तेनो मन गजब हे जी भैरा.
-कइसे का होगे जी भैरा?
-लोगन वोमा चुरुमुरु बूढ़ावत ले घलो जनावेच बने रहिथे भई..!
-बड़ा अचरज के बात हे... भला अइसे कइसे हो सकथे?
-अरे ओ टूरी.. का नॉव.. हाँ अंजोरी-अंधियारी कहिके नइ कुड़कावन.. स्कूल म पढ़त राहन त.
-हाँ हाँ..वो झुंडर्री चूंदी वाली बैसाखीन
-हाँ उही.. प्रायमरी ले मिडिल तक संगे म पढ़े हन.. तेने ल फेसबुक म भेटेंव संगी अभीच ले सतरा बछर के हे.
-अच्छा.. हमन नाती-नतुरा वाले होवत हन अउ ओ ह अभी ले सतरच बछर के हे..!
-हव भई.. पहिली तो महूं आकब नइ कर पाएंव, फेर मेसेंजर म अपने ह चेटिंग कर के बताइस के मैं फलानीन अंव कहिके, त मैं ओकर फोटू के बारे म पूछेंव.. तब बताइस के सोशलमीडिया म अइसने म बने लागथे, सतरा बछर के फोटू ल देख के सब बने-बने कमेंट अउ मेसेज करथे.
-भाग भइगे उंकर कमैंट अउ मेसेज के ललचही सउंख ल.. बूढ़िया होगे तभो ले मोटियारी के चुलुक.
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-हमर छत्तीसगढ़ सरकार ह जब ले 'महतारी वंदन' योजना शुरू करे के निर्णय लिए हे, तब ले घर म आदमी जात मन के सियानी कमतियाय असन जनावत हे जी भैरा.
-कइसे गढ़न के जी कोंदा?
-या.. नाती-नतुरा मनला कभू-कभार टिकिया-बिस्कुट खाए बर पइसा दे देवत रेहेन त ओ मन हमन ला बड़ा आदर-सम्मान करे अस गोठियावय जी.. फेर अब तो भुसभुस बानी के जनावत हे.
-कइसे भुसभुस बानी के जी?
-अब तो उन अइसन किसम के नान-मुन जेब खर्चा बर हमर मन ऊपर आश्रित नइ रइही.. भलुक हमन ल नटेरे असन कहि दिहीं- 'जेब खर्चा बर पइसा हब ले देवत हस ते दे.. नइते फेर मैं दाई जगा जाके 'महतारी वंदन' कर लेथौं.
-हाँ ए बात तो हे.. फेर लइका मन सिरिफ पइसा भर के सेती नहीं, भलुक बने असन संस्कार दे म घलो बने अदब के साथ बात करथें, अउ फेर इही संस्कारे ह तो जिनगी भर साथ देथे, हमरो संग अउ दुनिया संग घलो.
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-पहिली हमर मन के उमर म लोगन आवंय तहाँ ले वानप्रस्थ आश्रम के रद्दा धर लेवंय जी भैरा.
-हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. एकर ले सियान मन घलो बने जंगल म हरहिंछा रेहे राहंय अउ बेटा बहू मन घलो घर म स्वतंत्र राहंय.
-हव जी एकरे सेती सबो झन हरहट कटकट ले मुक्त राहंय, फेर अब तो न जंगल झाड़ी बांचीस अउ न ही वानप्रस्थ के परंपरा.. एकरे सेती घर म रात-दिन सास-बहू म खिबिड़-खाबड़ चलत रहिथे.. अउ जब उन खिसिया जथें त उनला वृद्धाश्रम म ढपेल देथें.
-ककरो भी स्वतंत्रता के उल्लंघन ठीक नोहय संगी.. न सियान मन के अउ न जवान मन के.. एकरे सेती सियान मनला घर म रहि के ही वानप्रस्थ के नियम ल मानना चाही.. बेटा बहू के स्वतंत्रता म रोड़ा बने ले बांच के सिरिफ अपन आप म मगन रहना चाही, तभेच घर परिवार म सुख-शांति के बासा हो पाही.
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-अभी इहाँ के वित्त मंत्री ह विधानसभा म बजट पेश करीस हे, तेमा मैं ह हमर असन मावालोग मन बर घलो कुछू नवा उदिम करे हे का कहिके गुनत रेहेंव जी भैरा.
-कइसे ढंग के नवा उदिम जी कोंदा?
-अरे माईलोगिन मन बर 'महतारी वंदन' योजना लागू नइ करे हे जी.. ठउका अइसने हमर मन बर 'ददा सुमरनी' योजना लानिस के नहीं काहत रेहेंव गा.
-अच्छा.. तेमा तुंहरो मन के चोंगी-माखुर के जुगाड़ बने असन होवत राहय अइसे ढंग के.
-हव भई.. अब ए उमर म नान-मुन खर्चा बर बेटा-बहू मन के मुंह तकई ह सुहावय नहीं जी.. फेर कभू तिहार-बार म 'कुछू-कांही' के जुगाड़ घलो तो हरहिंछा हो जाही.
-तोर कहना तो वाजिब हे संगी.. ले अवइया बेरा म चुनावी घोषणापत्र म अइसन प्रावधान करे खातिर नेता जी ल गोहराबोन, काबर ते तुंहरो मन के दवई-दारू जरूरी हे.
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-हमर खेती-किसानी अउ रांधे-गढ़े के तरीका म आवत बदलाव संग एकर ले जुड़े कतकों शब्द मन घलो नंदावत जावत हे जी भैरा.
-सिरतोन आय जी कोंदा.. अब देखना पहिली माटी के चुल्हा बनावय.. कभू एक-मुंहा कभू दू-मुंहा.. अइसने चुल्हा म बरे लकड़ी ले निकले कोइला के उपयोग बर माटीच के सिगड़ी.. अब सबो के चलागन नंदावत हे अउ एकरे संग इंकर ले जुड़े शब्द मन घलो.
-हव जी.. अइसने जिनगी के सबो क्षेत्र ले जुड़े बुता काम, परंपरा अउ उंकर ले जुड़े शब्द मन.. ए मन हमर महतारी भाखा के शब्दकोश बर घलो नकसान के बात आय संगी.
-सिरतोन आय.. हम अपन परंपरा के संग अपन शब्द ल भुलावत जावत हन अउ आने-आने चलागन के अपनई के सेती उंकर ले जुड़े आने भाखा के शब्द मनला अपन म संघारत जावत हन.
-शायद एकरे सेती भाखा ल सदानीरा कहिथें.. नदिया के बोहावत धारा म जइसे पानी के नवा नवा बूंद मन संघरत अउ आगू बढ़त जाथे, ठउका भाखा म घलो वइसने होवत जाथे.
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-चल तुमा के नार तैं कइसे झूले हिंडोला म.. अरे सेमी कहिथे मोर पान चिकनी महूं फरौं बाहिरी भितरी.. चल तुमा के नार...
-का बात हे संगी कोंदा.. आज तो जुन्ना बेरा के सुरता देवावत हे तोर तुमा के नार ह..
-हव जी भैरा.. अभी हमर इहाँ के शोधार्थी किसान कल्प दास ह तुमा के एक अइसे किसम विकसित करे हे, जे हा आने तुमा माने लौकी ले जादा मीठ होय के संग कैंसर अउ ब्लडप्रेशर ल नियंत्रण करे के घलो काम करही. संग म अउ कतकों किसम के फायदा पहुंचाही.
-वाह भई.. ए तो बढ़िया खबर हे संगी.
-हव जी हमर रायपुर के कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा ह बताए हे के ए नवा किसम ल भारत सरकार म रजिस्ट्रेशन करवाय जाही. शोधार्थी किसान कल्प दास ह ए तुमा के नामकरण 'नारायणा' करे हे. ए लौकी ल मई जून म बोए जाही त सरलग 9-10 महीना तक फसल देही, अउ दूसर लौकी मन ले जादा बड़का घलो होही.. संग म मात्रा घलो जादा रइही.
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