Sunday, 11 February 2024

भूमिका.. कोंदा भैरा.. डाॅ. सत्यभामा आड़िल

भूमिका//
दुलरुआ कोन्दा भैरा के गोठ--नवा उदिम
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               सोशल मिडिया  के  कतकोन ग्रुप म अपन झलक देखावत "कोन्दा भैरा के गोठ" ह सुशील भोले के नवा "उदिम"  आय, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य म!  मंय तो चकित हो गेंव पढ़के। चकित एकर सेती--कि कोन्दा गोठियावत हे अउ भैरा ह  हुंकारु देवत सुनथे! सुशील ह हमर गांव अउ लोकजीवन के संस्कृति के रिवाज बताथे कि कईसे  हमन मया अउ दुलार म अपन भांचा-भांची, नाती-नतुरा अउ गांव के कतकोन मयारुक अउ दुलरुआ लईका मन ला अईसन अलवा-जलवा नांव धरके पुकारथन!
    कोन्दा, भैरा, लेड़गा, सुनसुनहा/ही, खनखनहा,  तोतरी/रा, खोरवा,  डंगचघा, चमकुल, रिसहा,---
अतेक असन नांव धरथें-- गांवलोगन मन! त ये सब मया पिरीत के धरे नांव आय। दुलार म धरे नांव आय! नांव   म  वो  गुन  देखे बर नई मिलय!  ये ह हमर गांव के संस्कृति के खास बात आय! सुशील ह छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के जागरूक   रखवारा आय। शब्द अउ अर्थ ल संजो- संजो के  नवा उदिम करे हे! पढ़ के अब्बड़ निक लागथे!
संगी-जवंरिहा के सुग्घर गोठ-बात आय।
"कोन्दा भैरा के गोठ"- बात म--दुनिया भर के विषय हावय! राजनीति के दू चाल, वादा करथे फेर निभावत नइये, करनी अउ कथनी के भेद ल  दूध-पानी सहीं अलग करके गोठियाथे!राजनीति--खाली राजनीति आय , शतरंज के खेल, तिरी-पासा! कोनो पार्टी होवय, सबो एक बरोबर।कुर्सी म बइठिन, तहां ले एक बरोबर!      
   कोन्दा भैरा, तीज तेवहार ल पकड़थे त छत्तीसगढ़ के सबो मूल तेवहार के इतिहास बताथें, उंखर महिमा के बखान करथें! एक -एक रीत रिवाज के सुरता देवाथे!
       धरम-करम के गोठ होथे, त "आदि संस्कृति" के सुरता करके नन्दावत सनातन धरम के दुख मनाथें!  कोन्दा भैरा के गोठ मा अपन देसराज के 
के पहनई--ओढ़ई ल बिसार के परदेसिया रंग म रंगत लोग बर ताना कसथे!
             छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियावत नकलची दरबारी मन के पोल खोलत कोन्दा भैरा के गोठ ह बियंग के धार ल तेज  करथे!

ये बिधा के उदिम म किस्सागोई के आनन्द आथे गोठ म नाचा गम्मत के हांसी घलो होथे। ताना कसके " शब्दभेदी" बान चलाथे।
          समाज म बाढ़त अपराध, चोरी ढारी,  भ्र्ष्टाचार , इज्जत लुटई ,  सराब खोरी, फोकट म पावत चांउर अउ कामचोरी! सबो डहार--चारोमुड़ा के समस्या ऊपर कोन्दा-भैरा के नजर पड़ते! लईकन के पढई-लिखई ल लेके, अस्पताल म होवत लापरवाही अउ घोटाला के  पोल खोलथे!
आखिर म गोठ ल समेटत ,  सुशील के ये नवा उदिम के जतका तारीफ करे जाय, कमती हे!
         छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के संसार म, कोठी म। "कोन्दा-भैरा के  गोठ"  के स्वागत हे!" मोर असीस फलय -फुलय'"! सुशील जुग  जुग जियय अउ नवा नवा सिरजन करे बर कलम चलावत रहय! 
10फरवरी2024
                                    असीस देवत,
                            डॉ, सत्यभामा आडिल
                 पूर्व अध्यक्ष,--हिन्दी अध्ययन मंडल
                 पं, रविशंकर वि, वि, रायपुर ,(छ,ग,)

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