सुरता//
'का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' के पाछू के दर्शन...
छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के मयारुक मन सुप्रसिद्ध गायक रहे केदार यादव के गाये ए लोकप्रिय गीत- "का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल, तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते- रेंगत आंखी मार दिए ना..."
एला जरूर सुने होहीं अउ घनघोर सिंगारिक गीत के सुरता करत मन भर मुसकाए होहीं. फेर ए गीत के रचयिता लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी एला का कल्पना कर के कइसन संदर्भ म लिखे रिहिन हें. एला जानहू, त परमानंद जी के कल्पना अउ ओकर गहराई के कायल हो जाहू.
बात सन् 1989-90 के आय. तब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव. एक दिन रायगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. बलदेव जी के मोर जगा सोर पहुंचिस के हमन लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी संग भेंट करे बर रायपुर आवत हन. तहूं तइयार रहिबे. काबर ते हमन वोकर घर ल देखे नइ अन, तहीं हमन ल वोकर घर लेगबे.
निश्चित दिन 9 जनवरी 1990 के डाॅ. बलदेव जी रायगढ़ के ही एक अउ साहित्यकार रामलाल निषादराज जी संग रायपुर पहुँचगें. इहाँ रायपुर म आकाशवाणी म कार्यरत खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं उंकर संग संघर गेंन. मोर बचपन रायपुर के कंकालीपारा, अमीनपारा आदि म ही बीते हे, तेकर सेती परमानंद जी के महामाई पारा वाले घर मैं कतकों बेर गे रेहेंव.
सबो साहित्यकार मनला लेके परमानंद जी के घर गेन. उहाँ आदर-सत्कार अउ चिन-चिन्हार के बाद साहित्यिक गोठ-बात चालू होइस. सब तो बढ़िया चलत रिहिस. तभे डाॅ. बलदेव जी थोक मुस्कावत, मजा ले असन पूछ परिन- 'परमानंद जी! का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' जइसन गीत ल आप कब लिखे रेहेव?
तब परमानंद जी डाॅ. बलदेव के मनसा भरम ल टमड़ डारिन, अउ घर के दुवारी कोती ल झांक के आरो दिन- 'ए गियां आ तो..' उंकर बुलउवा म एक चउदा-पंदरा बछर के चंदा बरोबर सुग्घर नोनी ओकर आगू म आके ठाढ़ होगे, अउ कहिस- 'काये बबा' तब परमानंद जी अपन उही नतनीन डहर इसारा करत कहिन- 'इही वो गियां आय. जे दिन ए ह ए धरती म आइस, उही दिन ए गीत ल लिखे रेहेंव. 'तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए गोंदा फूल'.
वो नोनी छी: बबा कहिके घर म खुसरगे. तब परमानंद जी के निरमल हांसी घर-अंगना के संगे-संग हमरो मनके चेहरा म बगर गेइस. उन कहिन- 'डाॅक्टर साहेब, कवि के जाए के बेरा होवत हे, अउ आगू म उन्मत्त प्रकृति हे, उद्दाम कविता के रूप म दंग-दंग ले खड़ा हो गिस.'
घनघोर सिंगारिक गीत कस लागत ए रचना के मूल म कतका निर्दोष अउ उज्जवल भाव. हमर जइसन आम कवि-लेखक मन के कल्पना ले बाहिर के दृश्य आय.
परमानंद जी आगू कहिन- 'नारी सौंदर्य अउ प्रेम बरनन म मैं ह ओकर प्राकृतिक स्वरूप ल जरूर अपनाय हौं, फेर शिथिलता ल कभू स्थान नइ दे हौं... आज तो हमर बड़े कवि मन घलो सीमा लांघ जाथें डाॅक्टर साहेब, सारी-सखा तो बेटी बरोबर होथे, फेर वोकर बरनन म बनेच मजाक होगे हे. शायद उंकर इशारा- ' मोर सारी परम पियारी' जइसन लोकप्रिय सिंगारिक रचना डहर रिहिस.
( ए प्रसंग संग संलग्न चित्र उही दिन के आय, जेमा नीचे म डेरी डहर ले- डॉ. बलदेव साव, बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' अउ रामलाल निषादराज. पाछू म खड़े- खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं सुशील वर्मा 'भोले')
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
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