कोंदा भैरा के गोठ-24
-हमर रायपुर के महादेव घाट वाले मंदिर ल अब मंदिर बोर्ड ले लेके जम्मो जगा हाटकेश्वरनाथ कहे, बोले अउ लिखे जाही जी भैरा.
-ए तो बने बात आय जी कोंदा, कोनो भी जगा या लोगन के नॉव ल शुद्ध रूप ले उच्चारण करना चाही.. वइसे भी हमर पुरखा मन एला हाटकेश्वरनाथ ही बोलंय, फेर लोगन के बोलचाल म धीरे धीरे एकर हा शब्द ले आ के मात्रा ह लुप्त होवत हटकेश्वरनाथ होगे रिहिसे.
-हव जी सही आय.. पहिली ए मंदिर जगा अबड़ सोना रहिसे कहिथें.. सोना ल हाट घलो कहे जाथे, एकरे सेती ए मंदिर म बिराजे महादेव ल हाटकेश्वरनाथ कहे जावय.
-बछर 1402 ई. म ब्रम्हदेव राय के शासन काल ए मंदिर ल हाजीराज नाइक ह बनवाए रिहिसे. मान्यता हे के हैहयवंशी राजा ब्रम्हदेव राय ह ए जगा के जंगल म शिकार खेले बर आए रिहिसे त ए शिवलिंग ल नदिया म बोहावत देखे रिहिन हें, जेला उन नदिया के खंड़ म स्थापित करवा दिए रिहिन हें.
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-श्रेष्ठ साहित्य के श्रेणी म कल्पना के समुंदर म उभुक-चुभुक कूदत लेखक भर मन के रचना ह नइ आवय जी भैरा, भलुक अनगढ़ अपरिपक्व हाथ ले लिखे जिनगी के कटु सत्य मन घलो आथे.
-तोर कहना वाजिब हे जी भैरा, भलुक जिनगी के वास्तविक दुख-पीरा ह असली साहित्य आय.. अब तिरुवनंतपुरम के झुग्गी बस्ती म रहइया धनुजा के ही लिखे किताब 'चेंगलचूलायिले एन्ते जीवितम' माने चेंगलचूला म मोर जीवन. ए किताब ल कन्नूर विश्वविद्यालय के बीए अउ कालीकट विश्वविद्यालय के एमए के पाठ्यक्रम म पढ़ाए जाथे.
-वाह भई.. ए तो गरब के लाइक बात आय.
-हव जी.. ए किताब के लेखिका धनुजा कुमारी ह आज घलो अंबालामुक्का के रवि नगर के गली मन म कचरा बीने के बुता करथे. अपन जिनगी के संघर्ष के संगे-संग जाति के आधार म मिले पीरा ल बिना कल्पना के सहारा लिए लिखे हे, एकरे सेती अभी राज्यपाल ह अपन निवास म बला के सम्मानित करिस हे, अउ मजेदार बात जानथस.. सम्मान होय के पहिली तक वोला ए बात के जानकारी नइ रिहिसे के वोकर लिखे किताब ल दू विश्वविद्यालय मन म पढ़ाए जाथे.
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-कतकों मठ, मंदिर अउ पंथ म ए देखे ले मिलथे जी भैरा के गुरु के लइका मन ही उहाँ के नवा गुरु पदवी ल पोगरा लेथें.
-हव कतकों जगा अइसन देखे ले मिलथे जी कोंदा.. फेर कतकों जगा इहू देखे म आथे के उहाँ के गुरु के योग्य शिष्य ल गुरु के आसन म बइठार दिए जाथे.
-हव अइसनो देखब म आथे, अउ मोला लागथे के योग्यता के आधार म गुरु के पदवी ल देना ह जादा बने बात आय.
-सही आय जी.. कर्म के मापदंड म ही अइसन व्यवस्था होना चाही, काबर ते हमन कतकों जगा अइसनो देखे हावन, जेमा कहे बर तो कोनो मनखे ल उहाँ गुरु बना के बइठार दिए जाथे, फेर करम कमई अउ तप जप के माध्यम ले वोला देखबे त वो ह अनफभिक जनाथे.
-सही आय जी.. सिरिफ गुरु के कुल म जनमे ले या उंकर वंशज होय भर म कोनो भी मनखे ह गुरु बने के योग्य नइ हो सकय. खासकर अध्यात्म म तो बिल्कुल नहीं.
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-अब बरखा रानी के बिदागरी के दिन आगे जी भैरा.. फेर तैं जानथस का हमर छत्तीसगढ़ म सबले जादा बरसा कहाँ होथे?
-सामान्य ज्ञान के किताब म पढ़े रेहेंव तेकर मुताबिक बीजापुर म सबले जादा बरसा होथे जी कोंदा.
-ठउका कहे संगी.. एला एकरे सेती हमर छत्तीसगढ़ के चेरापूंजी घलो कहे जाथे. अभी छत्तीसगढ़ म 23 अगस्त तक जतका बरसा होय हे बीजापुर म वोकर ले दुगुना बरसा हो चुके हे.
-वाह भई..!
-हव.. रायपुर मौसम विभाग म पदस्थ विज्ञानी के कहना हे के जब बंगाल के खाड़ी म कोनो सिस्टम बनथे, तब हवा चल के अरब सागर डहार जाथे, ए बेरा हवा ह बैलाडीला के पहाड़ी म टकरा के द्रोणिका असन बुता करथे, एकरे सेती बीजापुर जिला म सबले जादा बरसा होथे, एमा अबूझमाड़ के जंगल के घलो सहयोग होथे, काबर ते जंगल ह बादर मनला अपन डहार आकर्षित करथे.
-सही आय जी.. जंगल-झाड़ी, डोंगरी-पहार मन बादर ल अपन डहार आकर्षित करथे, फेर दुर्भाग्य देख हमन विकास के डोंगा म सवार होके एकरे मन के उजार करत हन!
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-मैं कतकों झनला देखथौं जी भैरा.. वो ह कोनो मनखे के अच्छाई अउ सुग्घर असन बुता मनला छोड़ के वोकर दोष देखई म ही अपन बेरा पहवावत रहिथे.
-हव कतकों झन अइसन होथे ना जी कोंदा.. अइसने मनला छिद्रांवेषी प्रवृत्ति के लोगन कहे जाथे. असल म ए मन खुद बुराई के भंडार होथे, तेकरे सेती उंकर साकारात्मक ऊर्जा के क्षरण होथे.. वोकर खुद के विकास ह ढेरियाए असन हो जाथे. अइसने मनला देखत चाणक्य ह केहे रिहिसे- मनखे के अइसन प्रवृत्ति ह कभू अपन भीतर के सद्गुण के विकास नइ होवन देवय.. परिणामस्वरूप वोकर मन, वाणी अउ कर्म तीनों कलुषित हो जाथे.
-होबेच करही संगी.. जे मनखे ह आने के एती-तेती म बूड़े रइही, वोला अपन बढ़वार के सोचे गुने के बेरा कहाँ मिल पाही?
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-हमन प्राचीन ऐतिहासिक नगरी आरंग के बारे म तो जानबेच करथन जी भैरा के उहाँ के राजा मोरध्वज / ताम्रध्वज के बेरा म भगवान कृष्ण ह अर्जुन संग इहाँ आए रिहिन हें अउ राजा जगा अपन बेटा ल आरा म काट के दान करे के रूप म परीक्षा लिए रिहिन हें.
-ए प्रसंग ल तो पूरा दुनिया जानथे जी कोंदा.. राजा के द्वारा अपन बेटा के अंग काटे के सेती ही ए नगरी ल आरंग के नॉव ले जानथन.
-ठउका कहे संगी.. द्वापर युग के वो बेरा म हमर अभी के राजधानी रायपुर घलो तब बसगे रिहिसे.
-हव..रायपुर घलो जुन्ना शहर आय.. रामायण अउ महाभारत दूनों काल म एकर उल्लेख मिल जाथे.
-हव जी.. रतनपुर के राजा राजसिंह के आश्रित कवि गोपाल मिश्र ह अपन ग्रंथ 'जैमिनि अश्वमेघ' (1694 ई.) म मोरध्वज के कथा लिखे हे, जेमा एकर उल्लेख मिलथे-
'मणिपुर से हम चल्यो सुवेश। मोरध्वज के देखत देश।। कृष्ण सहित प्रद्युम्न बुद्ध केतु। सब भूपति सो करके हेतु।। प्रबल सैन्य समिति बहु भाई। तबहिं रायपुर पहुंच्यो भाई।। जीते सु राज अनेक बढ़े। उनक सु अमित आनन्द उर। दोउ बाज राज औचक मिल। सुसैन्य टिके सब रायपुर।।
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-कोनो मनखे कुछू नवा करे खातिर मन म ठान लेवय त उमर ह वोकर रद्दा म कभू अटघा नइ डारय जी भैरा.
-सिरतोन आय जी कोंदा.. अब कालेच के बात ल देख लेना दुरुग जिला के गाँव अहिवारा के 67 बछर के मूलचंद साहू ल अपन लोग-लइका मन के बर-बिहाव कर के हरहिंछा हो लेइस, त फेर दौड़े के शुरुआत करीस अउ आज 67 बछर के उमर म घलो वो ह राष्ट्रीय प्रतियोगिता म भाग लेथे.. अउ सिरिफ भाग भर नइ लेवय संगी अभी तक वो ह दू ठ गोल्ड मेडल घलो जीत डारे हे. ए बछर हमर छत्तीसगढ़ शासन डहर ले मूलचंद जी ल खेल दिवस के बेरा म शहीद विनोद चौबे सम्मान ले सम्मानित करे गिस.
-हव जी लोगन बताथें के मूलचंद जी अभी रोज 8 किलोमीटर के दौड़ लगाथे एकरे सेती गाँव के लइका मन वोला मिल्खा दादा कहिथें.
-सही आय जी.. मूलचंद जी के कहना हे के वोमन 80 बछर के उमर तक दौड़तेच रइहीं.
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-हमर इहाँ के हर परब के संबंध खेती किसानी ले जुड़े होय के संगे-संग अध्यात्म ले घलो राहय जी भैरा.. ए बात अलग हे के हम वोकर मूल स्वरूप ल भुलावत हावन.
-तोर कहना वाजिब आय जी कोंदा.. हमन अपन मूल ल भुलावत हावन तेन तो हइच हे, अलहन असन बात ए आय के अंते देश-राज ले आए लोगन के पछलग्गू बनत उंकर जम्मो चरित्तर ल अपन मुड़ म खपलत जावत हन. अब ए पोरा परब ल देख ले, एकर हिंदी करण करत 'पोला' कहे ले धर लिए हावन, जबकि पोला कहे म तो अर्थ के अनर्थ हो जाथे.
-हव भई अइसने ए ह धान के पोर फूटे के या पोठरीपान धरे अउ वोला सधौरी खवाए के परब तो आएच, फेर ए ह भोलेनाथ के मयारुक सवारी नंदीश्वर के जन्मोत्सव परब घलो आय. एकरे सेती ए दिन घरों घर माटी के नंदिया बइला के पूजा करथन. ठेठरी ल जलहरी अउ खुरमी ल शिवलिंग के आकार म बना के पूर्ण शिवलिंग स्वरूप म वोला अर्पित करथन.
-हव जी पहिली एकरे सेती ए दिन नंदी महराज के स्वरूप गोल्लर ढीले के परंपरा रिहिसे. गोल्लर के पीठ म या जॉंघ म भोलेनाथ के त्रिशूल के चिनहा अॉंक के वोला ढीले जाय, जेला गाँव भर के लोगन देवता बरोबर मानंय.
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-मोला एक बात समझ नइ आवय जी भैरा.. लोगन कहिथें न.. के गंगा म नहाए ले लोगन के पाप धोवा जाथे कहिके.. आखिर अइसे कहिसे होवत होही?
-पाप ह गंगा म नहाए भर ले नइ धोवावय जी कोंदा.. अइसे म तो कर्मगत जे व्यवस्था हे, तेकर तो महत्व ही खतम हो जाही.. हाँ भई गंगा म नहाए ले मन म उठइया विचार जरूर शुद्ध होवत होही.. अउ फेर मन के शुद्ध होय के पाछू लोगन के कर्म सुधरत जावत होही.. अउ फेर कर्म के सुधरे ले तो सब दोष अउ पाप के नाश होतेच होही.
-हाँ भई अइसन होवत होही.. काबर ते कोनो भी पवित्र जगा म जाए के महत्व तो होबेच करथे, जइसे हमन अभी माता कौशल्या के धाम गे रेहेन, फेर कहूँ नहाय धोय भर म पाप नइ धोवाय संगी.
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-चाहे कुछू बात होवय जी भैरा.. घर ले बाहिर होटल ढाबा मन म नता, व्यवहार अउ नेंग के नॉव म कतकों कप चाय पी ले फेर अपन घर म देशी गुड़ म डबका के बनाय लाल चाय म मोला जेन मन-अंतस जुड़ाय कस गुरतुर जनाथे, तेन अउ कहूँ नइ जनाय.
-महतारी के हाथ म चुरे अउ परोसे भात म जेन मया-दुलार अउ आनंद रहिथे, तेन होटल ढाबा म कहाँ पाबे जी कोंदा.. ठउका इही बात चाय म घलो लागू होथे, फेर का करबे व्यवहार के नॉव म सबो ल ढकेले ले पर जाथे.
-हव जी.. अब ए चाय ह तो हमर मन के बोली-बतरस, आपसी संबंध-व्यवहार, कोनो ल घर बलाए के बहाना या कोनो ल अपन कविता कहानी सुनाय सबो च के बहाना बनगे हवय.
-सही आय जी, फेर तैं जानथस.. हमर देश म ए चाय के शुरूआत बौद्ध भिक्षुक मन करे रिहिन हें, फेर वो मन चाय के पत्ती ल चगल के खावंय, तेमा उनला नींद झन आवय, अउ तहाँ ले फेर उन घंटों घंटों साधना म लीन रहि जावंय.
-वइसे चाय ल कोनो भी रूप म ग्रहण करे के अपन फायदा तो हइच हे, विज्ञान घलो ए बात ल मानथे.
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-वइसे तो रायपुर के अस्तित्व रामायण अउ महाभारत काल ले हावय जी भैरा.. फेर एकर बड़का विकास के ताना बाना 14 वीं शताब्दी के आखिर म बुने गिस जब कलचुरी वंश के राजा हाजीराज ह खारुन नदिया के तीर हाटकेश्वर मंदिर अउ किला बनवाइस.
-वाह भई.. माने वोकर पहिली रायपुर ह नान्हे ठउर रिहिसे कहिदे जी कोंदा.
-हव जी.. वोकर पाछू फेर वोकर बेटा ह बूढ़ातरिया, महामाया मंदिर अउ महाराजबंद तरिया के बीच म किला बनाइस.
-अच्छा.. ए किला के चिनहा तो अभी घलो दिखथे, ए जगा ल हमन ब्रम्हपुरी कहिथन.
-हव बने चिनहे.. बूढ़ातरिया के राजघाट ले बछर 1402 म लिखे शिलालेख मिले हे, तेकर ले एकर इतिहास के जानबा होथे.
- बने कहे.. महूं ह इहाँ के इतिहासकार मन के गजब संगति करे हावौं.. वो मन एकर बारे म बेरा बेरा म जानबा करावत रहिथें.
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-शिक्षक दिवस म छत्तीसगढ़ शासन डहार ले हर बछर तीन पुरखा साहित्यकार डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, डॉ. मुकुटधार पाण्डेय अउ डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र के नॉव म तीन शिक्षक मनला सम्मानित करे जाथे जी भैरा.
-हव जी कोंदा ए तो बड़ा गरब करे के लाइक बात आय .
-हव जी.. फेर मैं काहत रेहेंव के हमर ए तीनों पुरखा साहित्यकार मन के चिन्हारी हिंदी के साहित्यकार के रूप म जादा हे, तेकर सेती अइसने इहाँ के तीन छत्तीसगढ़ी के पुरखा साहित्यकार मन के सुरता म घलो शासन ह तीन छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य खातिर बुता करत शिक्षक मनला सम्मानित करतीस त कइसे रहितीस?
-ए सुग्घर सुझाव हे जी संगी.. हिंदी के क्षेत्र म बुता करइया मनला हिंदी के चिन्हारी वाले मन के नॉव म अउ छत्तीसगढ़ी के चिन्हारी वाले साहित्यकार मन के नॉव म छत्तीसगढ़ी खातिर बुता करत मनला.
-मोर मन म इहू बात आथे संगी के राज्योत्सव के बेरा पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान दिए जाथे ना.. ठउका अइसने आरुग छत्तीसगढ़ी खातिर बुता करइया साहित्यकार मनला घलो कोनो छत्तीसगढ़ी के पुरखा साहित्यकार के नॉव ले हर बछर सम्मान दे जाना चाही.
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-अब धीरे धीरे दुनिया ले भाखा विविधता सिराय के खतरा बाढ़त जावत हे जी भैरा.
-पूरा दुनिया म कहाँ जाबे जी कोंदा.. हमर छत्तीसगढ़ ल ही देख ले.. इहाँ के कतकों भाखा मन के बोलइया मन खोजे म घलो मिले ले नइ धरय.
-एकर खातिर हमूं मन दोषी हावन संगी.. अब हमरे घर परिवार ल देख ले हम अपन लइका मनला महतारी भाखा म गोठियाय उनला सीखाय के बलदा हिंदी अंगरेजी म पुचकारत रहिथन.
-सही आय जी.. अभी साइंस एडवांसेज म प्रकाशित पेपर म बताए गे हवय के दुनिया भर म सात हजार ले जादा भाखा हे, उंकर व्याकरण म भिन्नता हे, फेर ए मन कहूँ नंदावत जाहीं त हम हमर इतिहास, हमर संज्ञानात्मक क्षमता ल बिसर डारबोन.
साइंस एडवांसेज म प्रकाशित पेपर म इहू बताय हे- हमन ग्रामबैंक के नॉव ले भाषा व्याकरण के एक बड़का डेटाबेस लॉन्च करे हावन, जेकर द्वारा भाषा के बारे म कतकों शोध प्रश्न के उत्तर दे सकथन अउ देख सकथन के कहूँ ए संकट ल रोके नइ सकबो त कतकों व्याकरणिक विविधता ल बिसर डारबोन.
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-छत्तीसगढ़ म एती वोती ले आवत संस्कृति मन के संघरे ले सब सॉंझर-मिंझर होवत जावत हे जी भैरा.
-ए तो होनच हे जी कोंदा.. लोगन अपन-अपन देश-राज के संस्कृति संग आथें अउ उहिच ल इहाँ घलो जीयत रहिथें. आजे के नुआखाई परब ल देख ले.. ओडिशा ले लगे क्षेत्र के लोगन जे मन उत्कल संस्कृति ल जीथें आज ऋषि पंचमी के दिन मनावत हें, जबकि छत्तीसगढ़ के मूल निवासी समाज के मन इही नवाखानी परब ल कुंवार महीना के अंजोरी नवमी के मनाहीं, त उत्तर भारत ले आए लोगन मन इहीच परब ल कातिक महीना म सुरहुत्ती के बिहान दिन अन्नकूट के रूप म मनाहीं. फेर उद्देश्य तो सबो के एके आय.. अपन नवा फसल ल अपन ईष्टदेव ल समर्पित करना.
-सही आय संगी एकर दिन बादर ह भौगोलिक स्थिति के मुताबिक तय हे अइसे मोला जनाथे.. समुद्र ले लगे क्षेत्र म मानसून जल्दी आ जथे, त उहाँ फसल घलो जल्दी आ जथे. बीच के भाग म थोरिक अबेर म मानसून आथे त एती थोरिक देरी म फसल आथे. ठउका अइसने च भंडार मुड़ा म अउ थोरिक देरी म मानसून जाथे त उहाँ फसल थोरिक अउ अबेर म आथे, तभे तो जल्दी वाले क्षेत्र म भादो म, मझोला वाले क्षेत्र म कुंवार म अउ अबेर वाले क्षेत्र म कातिक म नवाखानी/नवाखाई मनाथें.
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-राजनीति ह नवा-नवा महापुरुष अउ दिवस गढ़त रहिथे जी भैरा.
-कइसे का होगे जी कोंदा?
-हमर देश म चौधरी चरणसिंह के जनमदिन 23 दिसंबर ल राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप म मनाए जाथे ना.. फेर अब एदे पौराणिक पात्र बलराम के जयंती ल 9 सितम्बर के राष्ट्रीय किसान दिवस मनाए जाही काहत हें.
-फेर बलराम के जयंती ल ए मन हलषष्ठी के रूप म पहिली च ले मना डारे हें ना, त फेर अउ कहाँ ले के पइत जयंती आगे?
-अरे.. राजनीति ह जेन कर लय.. सब माफी हे वोकर मन बर.
-तभो ले जी.. राजनीतिक मनखे के बलदा पौराणिक पात्र लेना रिहिसे, त राजा जनक ल लेना रिहिसे, जेकर नॉंगर जोते म माता सीता ह अवतरे रिहिसे.
-टार बुजा ल मैं ए राजनीति वाले मन के चोचला म नइ परंव.. हमर मन के असली किसान दिवस तो अक्ती परब ह आय, जे दिन हमन किसानी के शुरूआत करथन.. बिहनिया बेरा बइगा बबा के सिद्ध करे धान के बिजहा ल अपन खेत म बोथन.. मूठ धरथन अउ संझा बेरा सौंजिया, पहाटिया जइसन पौनी पसारी अउ खेतिहर श्रमिक मन के नियुक्ति करथन.
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-ले देख ले जी भैरा सुनीता विलियम्स ह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ले फेर नइ लहुट पाइस काहत हें.
-हव जी कोंदा जेन यान ह उनला लाने बर गे रिहिसे तेला जुच्छा आगे काहत हें.
-फेर मोला ए समझ म नइ आवय संगी के वो मन अंतरिक्ष म कहाँ ले हवा पानी पावत होहीं, इहाँ धरती म तो इंकर बिना चार घड़ी के पहवई ह घलो लट्टे पट्टे हो जाथे, आखिर जरूरत तो उहों परत होही ना?
-जरूरत कइसे नइ परही जी.. अमेरिका म अलबामा मार्शल फ्लाइट सेंटर के कार्टर ह एक जानकारी म बताय हे- हर अंतरिक्ष यात्री ल पीये अउ आने उपयोग खातिर रोज 12 गैलन पानी लागथे, तेकर बर नासा ह उहाँ एक जल प्रणाली बनाय हे, जेन ह पर्यावरण ले उपलब्ध पीये के लाइक तरल पदार्थ के आखिरी बूंद तक ल नीचो लेथे. एकर छोड़े अंतरिक्ष यात्री मनला फिल्टर पानी मिलथे, जेमा शॉवर के पानी घलो शामिल रहिथे.
-वाह भई.. शॉवर के पानी मतलब नहाय-धोय सबो ह!
-हव.. वो सबो ल फिल्टर कर के उपयोग के लाइक बनाए जाथे, जेकर स्वाद ह बोतल बंद पानी बरोबर रहिथे.
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