पुनर्जन्म के अवधारणा अउ आदिवासी समाज
* घर पहुनई जाने बर मढ़ाथेंं कुढ़ी
मनखे के पुनर्जन्म होथे ते नइ होवय, ए बात ल लेके लोगन के अलग अलग मान्यता अउ विचार हे. जिहां तक हमर जइसन लोगन के बात हे, त हमन तो ए मानथन अउ जानथन घलो के मनखे के अपन ए जनम म करे गे कर्म के मुताबिक अगला जनम होथे या फेर वोला सद्गति जेला मोक्ष कहे जाथे, मिलथे. तहाँ ले फेर वो ह स्थायी रूप ले अपन ईष्ट के लोक म आसन या कहिन ठउर पाथे.
हमर इहाँ के हल्बाआदिवासी समाज म घलो ए मान्यता ल एक परंपरा, जेला घर पहुनई कहे जाथे के रूप म देखे जा सकथे. एमा इहू जाने के उदिम करे जाथे, के वो जीव ह अवइया जनम म का जोनी पाही? एकर खातिर ए घर पहुनई परंपरा के अंतर्गत 'कुढ़ी' मढ़ाथेंं.
दल्ली राजहरा के साहित्यकार राजेश्वरी ठाकुर जी ले मिले जानकारी के मुताबिक ए परंपरा के निर्वहन वो देंह छोड़े मनखे के तीजनाहवन के बाद आने वाला बुधवार या इतवार के रतिहा करे जाथे.
इहाँ ए जानना वाजिब जनाथे के आदिवासी समाज मृतक मनखे ल पहिली माटी देवय, माने दफना देवत रिहिसे, फेर अब कुछ लोगन हिंदू परंपरा के अनुसार मृतक के दाहसंस्कार करथे. दाहसंस्कार करे के तीसरइया दिन अस्थि विसर्जन करे जाथे, अउ फेर अस्थि विसर्जन के पाछू ए पुनर्जन्म के जानकारी खातिर ए परंपरा घर पहुनई के निर्वहन करथें, कुढ़ी मढ़ाथेंं. ए परंपरा ल अस्थि विसर्जन के बाद अवइया इतवार या फेर बुधवार के रतिहा म करे जाथे. उंकर मन के मान्यता हे के सोमवार अउ बिरस्पत ह सृष्टि के अधिष्ठात्री देवी के वार आय, तेकर सेती वो मन इही वार के चयन ए परंपरा ल संपन्न करे खातिर करथें.
देह छोड़ चुके आत्मा ह अगला जनम म का जोनी म अवतरही, एकर खातिर रतिहा बेरा वो ठउर ल जेन ठउर म वोकर जीव छूटे रहिथे (एकर खातिर कोनो दूसर कुरिया या ठउर के घलो उपयोग करे जा सकथे) वो जगा बने चौंक पूर के चॉंउर के पिसान के ढेरी/कुढ़ी मढ़ाथेंं. कलशा के ऊपर दीया मढ़ा के वोला बारे जाथे, संग म दू अउ चुकिया म लाड़ू, अइरसा रोटी, उरिद दार के बने बरा के संग चाय पानी घलो अपन देंह छोड़ के गे पिरोहिल खातिर रखे जाथे. वो चुकिया मनला ढॉंके खातिर परसा पाना अउ बगई डोरी के इस्तेमाल करे जाथे. पाछू ए मनला एक बड़का असन झॉंपी/झेंझरी के भीतर तोप के रख दिए जाथे.
जे दिन ए परंपरा ल संपन्न करे जाथे, वो दिन रतिहा बेरा जम्मो परिवार वाले मन के संगे-संग गोतियार मन घलो उही घर म सूतथें. ए कुढ़ी मढ़ाय वाले परंपरा के रतिहा घर के सिंग दरवाजा (माई कपाट) के संगे-संग घर के सबोच दरवाजा मनला खुल्ला छोड़ दिए जाथे. राजेश्वरी जी के कहना हे के ए परंपरा ल आदिकाल ले उंकर पुरखा मन द्वारा संपन्न करे जावत हे.
रतिहा पहाए के बाद जब सुरूज अंजोर ह बगर जाथे तब परिवार वाले, जम्मो गोतियार अउ पारा-परोसी मन के आगू म वो ढॉंके गे झॉंपी ल टार के चॉंउर पिसान के ढेरी/कुढ़ी म का जिनिस के चिनहा बने हे, तेला खोजे जाथे, जेन ए बात के साक्षी होथे के वो देंह छोड़े पिरोहिल के जनम अब कोन रूप या कोन जोनी म होवइया हे.
बताथें के वो चॉंउर पिसान के ढेरी म चिरई के पॉंव, मनखे के पॉंव, शंख, स्वास्तिक, गदा जइसन कोनो भी चिनहा बने दिख जाथे. मान्यता हे के अइसन चिनहा वो आत्मा के द्वारा ही बनाए जाथे. कतकों पइत चॉंउर पिसान के ढेरी म कोनोच किसम के चिनहा नइ दिखय, तब ए माने जाथे के अब वो मनखे के पुनर्जन्म नइ होवय.
राजेश्वरी जी बताथें के वो मन अपन सियान (पिताजी) के बखत करे गे चॉंउर पिसान के कुढ़ी म शंख के अउ अपन कका खातिर मढ़ाए गे ढेरी म स्वास्तिक के चिनहा खुद अपन अॉंखी म देखे रेहेंव, जेन जगजग ले स्पष्ट दिखत रिहिसे. अउ अइसे घलो नहीं के वो चिनहा मन सिरिफ मुंहिच भर ल दिखे रिहिसे, भलुक वो जगा जतका झन उपस्थित रिहिन हें सबो झनला दिखत रिहिसे. अइसने एक हनुमान भक्त खातिर मढ़ाए गे चॉंउर पिसान के ढेरी म गदा के निशान देखे रेहेन.
बिहनिया बेरा वो ढेरी/कुढ़ी म मढ़ाए चॉंउर पिसान के बोबरा (रोटी) बना के अपन देवता म हूम देथन अउ तब फेर गोतियार मन सब जेवन पाथें.
अपन सियान खातिर मढ़ाए कुढ़ी म शंख के चिनहा देखे के संबंध म राजेश्वरी जी बताथें के उंकर सियान शंभूनाथ जेला ए आदिवासी मन बड़ा देव कहिके संबोधित करथें, वोकर जबर भक्त रिहिन हें. वो मन अपन हाथ ले ही घर म शंभूनाथ के प्राणप्रतिष्ठा करे रिहिन हें. जब वो मन अपन जिनगी के पहाती बेरा म आईसीयू म भर्ती रिहिन हें, त उहाँ के डॉक्टर ह हमर सियान के पहिरे अंगूठी अउ चेन मनला देवत बेरा हमन ल पूछे रिहिन हें के तुंहर घर म शंभू काकर नॉव हे? वो मन घेरी- भेरी वोकरेच नॉव लेवत हें. तब हमन कमतीच उमर के रेहेन. हम चारों भाई बहिनी उही कुरिया म सूते रेहेन जिहां हमर सियान खातिर चॉंउर पिसान के कुढ़ी मढ़ाय जावत रिहिसे.
सियान के देंह छोड़े के दुख म हमर मन के नींद नइ परत रिहिसे. रतिहा करीब तीन बजे के आसपास हमन ल घर के सिंग दरवाजा डहार ले दाई.. दाई हुंत कराए के आवाज सुनाए रिहिसे, तब दूसर कुरिया म सूते हमर दूनों फूफू मन आवाज देवइया मनखे ल खोजे लागिन. अपन फूफू के आवाज सुन के महूं अपन कुरिया ले बाहिर आएंव. हमन सबो कुरिया म जा जाके पूछेन फेर आवाज तो कोनो नइ दिए रिहिन हें. तब हमन ल जनाए रिहिसे के जेकर खातिर कुढ़ी मढ़ाए गे रिहिसे शायद वोकर आत्मा इहाँ आए रिहिसे.
-सुशील भोले
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