(पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी
की हिन्दी कविता *दूध में दरार पड़ गई* का
छत्तीसगढ़ी भावानुवाद : सुशील भोले)
लहू कइसे सादा होगे
भेद म अभेद खो गे
बंटगें शहीद, गीत कटगे
करेजा म कटार धंसगे
दूध म दनगारा परगे...
बंटगें शहीद, गीत कटगे
करेजा म कटार धंसगे
दूध म दनगारा परगे...
खेत म बारूद गंध
टूटगे नानक के छंद
सतलुज सहमगे
पीरा म भरगे
बसंत ले बहार झरगे
दूध म दनगारा परगे...
टूटगे नानक के छंद
सतलुज सहमगे
पीरा म भरगे
बसंत ले बहार झरगे
दूध म दनगारा परगे...
अपनेच छांव संग बैर
अउ पर मनावंय खैर
झन धर मरे के रस्ता
तुंहला देश के वास्ता
बात ल बनावौ ये बिगडग़े
दूध म दनगारा परगे...
अउ पर मनावंय खैर
झन धर मरे के रस्ता
तुंहला देश के वास्ता
बात ल बनावौ ये बिगडग़े
दूध म दनगारा परगे...
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